संपत्ति अधिकार: वारिस कौन होता है और विरासत क्या है?

आज हम आपको हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) के तहत बेटियों, बहुओं, छोड़ी गई पहली पत्नी, दूसरी पत्नी, कन्वर्ट्स, गोद लिए हुए बच्चों, विधवा, माताओं इत्यादि के प्रॉपर्टी के अधिकारों को लेकर हर एक पहलू से वाकिफ कराएंगे.

हमारे देश में संपत्ति पर अधिकार और दावे को लेकर नियम और कानून समय समय पर बदलते रहे हैं. बहुत से लोगों को कानूनी समझ और नियमों की जानकारी अक्सर नहीं होती है लेकिन यह बेहद जरूरी है कि संपत्ति से जुड़े नियमों और अधिकारों के संबंध में सही जानकारी हो.

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जब भी संपत्ति पर अधिकार की बात आती है तो हमारे देश में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को कहीं ना कहीं विशेष अधिकार दिए जाते हैं. जैसे जैसे समय बीतता है तो यह अधिकार कानूनी तौर पर भी मान्य हो जाते हैं.भारत में पिता की संपत्ति में बेटे को दिया जाने वाला अधिकार एक ऐसा ही अधिकार माना गया है.

कुछ समय पहले तक पिता की संपत्ति पर पूरी तरह से केवल बेटे का ही अधिकार होता था लेकिन हाल ही में इस कानून में कुछ बदलाव किए गए हैं और महिलाओं के लिए संपत्ति तथा विरासत से जुड़े कानूनों (Laws for Women in India) ने एक नया रूप लिया है.हालांकि, महिलाओं के लिए इस्लामी कानून हिंदू कानूनों से थोड़े अलग तथा कठोर हैं.

इस्लाम में अभी भी महिलाओं के लिए नियम थोड़ी कठोर है क्योंकि हर एक धर्म के अपने अलग-अलग नियम होते हैं. संपत्ति से जुड़े कुछ कानून हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, तथा हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 है. इस्लाम में  मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 तथा भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 भी इसी से संबंधित कानून है. इन कानूनों को  हिंदू कानून, मुस्लिम कानून और ईसाई कानून के नाम से जाना जाता है और  हिंदू कानून हिंदुओं, जैन, बौद्ध व सिखों पर लागू होता है.

 

पैतृक संपत्ति क्या है? (Ancestral Property )

हिंदू कानून के तहत संपत्ति या तो स्वयं अर्जित संपत्ति होगी या पैतृक संपत्ति होगी. दोनों प्रकार की संपत्ति के बीच का अंतर आप आसानी से समझ सकते हैं. जो संपत्ति मालिक ने अपने संसाधनों का उपयोग करके अर्जित की है, वह उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति है, जबकि जो संपत्ति उसे अपने परिवार के सदस्यों से विरासत में मिली है वह पैतृक संपत्ति है.

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पैतृक संपत्ति बनाम स्व-अर्जित संपत्ति(Ancestral Property Vs Self-Acquired Property)

दोनों प्रकार की संपत्तियों के बीच अंतर को काफी जटिल बनाने वाला तथ्य यह है कि स्वयं अर्जित संपत्ति एक समय के बाद पैतृक संपत्ति बन जाती है। इसका उल्टा भी सही है- पैतृक संपत्ति भी स्वयं अर्जित संपत्ति बन सकती है। जब कोई पैतृक संपत्ति संयुक्त हिंदू परिवार(Joint Hindu Family) के सदस्यों में बांट दी जाती है, तो वह परिवार के सदस्य के हाथों में स्वयं अर्जित संपत्ति बन जाती है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति के परदादा की स्वयं अर्जित और अविभाजित संपत्ति आखिरकार पैतृक संपत्ति बन जाती है.

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कौन होता है उत्तराधिकारी?

वारिस की अवधारणा की कानूनी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। विश्व भर के अधिकतर कानूनों की तरह भारतीय कानून भी वारिस की अवधारणा को मान्यता देता है। उत्तराधिकारियों में वे व्यक्ति शामिल होते हैं, जो अपने पूर्वजों से कानूनी तौर पर संपत्ति प्राप्त करने के हकदार होते हैं। यह आर्टिकल भारत में विरासत, वारिस की अवधारणा और संपत्ति के अधिकारों के बारे में आपको समझ देगा।

 

पैतृक संपत्ति के कानूनी वारिस कौन होते हैं?

वारिस वो व्यक्ति है जो कानूनी रूप से  उन पूर्वजों की संपत्ति को विरासत के रूप में लेने  का अधिकार रखता है, जिनकी बिना वसीयत लिखे मृत्यु हो गई हो यानी जो निर्वसीयत है. ऐसे संपत्ति के मालिक की मृत्यु के बाद संपत्ति के उत्तराधिकार और अन्य दावों से संबंधित मामलों को उनके कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा उठाए जाने की आवश्यकता होगी.

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हमें यह जाने की जरूरत है कि वारिस की परिभाषा अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग है. इसी वजह से मृत व्यक्ति की संपत्ति में उनके संपत्ति के अधिकार भी उनके धर्म के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) सभी हिंदुओं, बौद्धों, जैन और सिखों पर लागू होता है. ये उन पर भी लागू होता है, जो इनमें से किसी भी धर्म में कन्वर्ट हुए हैं या फिर मां-बाप की शादी के बिना पैदा हुए हैं. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम भारतीय मुस्लिमों और ईसाइयों पर लागू नहीं होता क्योंकि संपत्ति उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को विरासत में कैसे मिलेगी, इसके लिए उनके निजी कानून हैं.

इस आर्टिकल में हम उन सभी के प्रॉपर्टी अधिकारों के बारे में बात करेंगे, जिन पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम तब सवालों में आता है, जब किसी हिंदू की बिना वसीयत छोड़े ही मौत हो जाती है. इसके बाद उत्तराधिकार कानून के नियमों पर ही निर्भर करता है.

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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम किस स्थिति में  लागू होता है?

जब भी किसी हिंदू की बिना वसीयत छोड़े मृत्यु हो जाती है तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू हो जाता है. इस अधिनियम के अनुसार उसकी संपत्ति निम्नलिखित और इस वरीयता क्रम में जाती है. नीचे दिए गए चार्ट में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार सही उत्तराधिकारी बताया गया है.

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हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार वारिस

क्लास-I उत्तराधिकारी क्लास-II  उत्तराधिकारी सगोत्र सजातीय
1. बेटा 2. बेटी, 3. विधवा, 4. मां, 5. पूर्ववर्ती बेटे का बेटा, 6. पूर्ववर्ती बेटे की बेटी, 7. पूर्ववर्ती बेटे की विधवा, 8. पूर्ववर्ती बेटी का बेटा, 9. पूर्ववर्ती बेटी की बेटी, 10. पूर्वनिर्धारित पुत्र का पूर्वनिर्धारित पुत्र, 11. पूर्ववर्ती बेटे के पूर्ववर्ती बेटे की बेटी 12. पूर्ववर्ती बेटे के पूर्ववर्ती बेटे की विधवा.

 

i. पिता ii. (1) बेटे की बेटी का बेटा, (2) बेटे की बेटी की बेटी, (3) भाई, (4) बहन iii. (1) बेटी के बेटे, (2) बेटी के बेटे की बेटी, (3) बेटी की बेटी, (4) बेटी की बेटी. iv. (1) भाई का बेटा, (2) बहन का बेटा, (3) भाई की बेटी, (4) बहन की बेटी. v. पिता के पिता; पिता की मां. vi. पिता की विधवा; भाई की विधवा vii. पिता का भाई; पिता की बहन. viii. नाना; मां की मां ix मामा; मां की बहन. उदाहरण: पिता के भाई का पुत्र या यहां तक कि पिता के भाई की विधवा.

नियम 1: दो उत्तराधिकारियों में, जो ज्यादा करीबी है, उसे तवज्जो दी जाती है.

नियम 2: जहां चढ़ाई की डिग्री की संख्या समान या कोई नहीं है, उस उत्तराधिकारी को पसंद किया जाता है जो आम पूर्वज के करीब है.

नियम 3: जहां न तो उत्तराधिकारी को नियम 1 या नियम 2 के तहत दूसरे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, वे एक साथ लेते हैं.

उदाहरण: पिता की बहन का बेटा या भाई की बेटी का बेटा

नियम 1. दो उत्तराधिकारियों में से एक, जो पास की रेखा में है, को प्राथमिकता दी जाती है.

नियम 2: जहां चढ़ाई की डिग्री की संख्या समान या कोई नहीं है, उस उत्तराधिकारी को पसंद किया जाता है जो आम पूर्वज के करीब है.

नियम 3: जहां न तो उत्तराधिकारी को नियम 1 या नियम 2 के तहत दूसरे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, वे एक साथ लेते हैं.

* ध्यान दें: सगोत्र पुरुषों के रिश्तों में होते हैं लेकिन उनका खून का या गोद का रिश्ता नहीं होता. ये शादी द्वारा बने रिश्ते होते हैं. वहीं सजातीय महिलाओं के रिश्तों में आते हैं.

 

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विरासत क्या है?

उत्तराधिकार शब्द का इस्तेमाल विशेष रूप से उत्तराधिकार के संदर्भ में किया जाता है. एक शख्स की मौत पर उसकी संपत्ति, टाइटल, लोन और दायित्व वारिस माने जा सकते हैं. लेकिन अलग अलग विरासत को लेकर लोग  अलग-अलग व्यवहार करते हैं. रियल और अचल संपत्ति को अक्सर विरासत के रूप में माना जाता है. आइए आपको हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में विरासत के बारे में बताते हैं.

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क्या पैतृक संपत्ति उपहार में दी जा सकती है?

पैतृक संपत्ति को उपहार यानी गिफ्ट में दिया जा सकता है, लेकिन इसकी 3 शर्तें हैं:
1)  इसे किसी कानूनी आवश्यकता के तहत दिया जा रहा हो
2) इससे पारिवारिक संपत्ति का लाभ हो रहा हो
3) परिवार के सभी हमवारिस की सहमति से दिया जा रहा हो

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्ता ‘पवित्र उद्देश्यों’ जैसे दान और धार्मिक कार्यों के लिए अपनी संपत्ति को उपहार में देने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है. हालांकि, शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए ये कहा है  कि ‘प्यार और स्नेह ‘ में दिया हुआ उपहार, दान नहीं होता है.

क्या बेटियां शादी के बाद पिता की संपत्ति पर दावा कर सकती हैं?

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) में साल 2005 में संशोधन किया गया था. इसमें प्रॉपर्टी के मामले में बेटियों को बराबर का अधिकार दिया गया था. 2005 से पहले केवल बेटों को ही दिवंगत पिता की प्रॉपर्टी में अधिकार मिलता था और बेटियां केवल कुंवारी रहने तक ही इसकी हक़दार होई थी. ऐसा माना जाता था कि शादी के बाद महिला अपने पति की संपत्ति से जुड़ जाती है और उस संपत्ति में उसका अधिकार हो जाता है. अब शादीशुदा और गैरशादीशुदा बेटियों का अपने पिता की संपत्ति में भाइयों के बराबर ही अधिकार है. वे भी अपने भाइयों की तरह समान कर्तव्यों, देनदारियों की हकदार हैं. 2005 में, यह भी फैसला सुनाया गया कि एक बेटी के पास समान अधिकार हैं बशर्ते 9 सितंबर 2005 को पिता और बेटी दोनों जीवित हों.

2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बेटी अपने मृत पिता की संपत्ति को विरासत में हासिल कर सकती है, भले ही पिता इस तारीख पर जीवित था या नहीं. यहां, महिलाओं को सहदायिक के रूप में भी स्वीकार किया गया था. वे पिता की संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं.

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बेटियों को अपने माता-पिता की स्वयं अर्जित की गई संपत्ति और किसी भी अन्य संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार है, जिसके वे पूर्ण रूप से मालिक हैं। यह कानून उन मामलों में भी लागू होगा जहां बेटी के माता-पिता की मृत्यु बिना वसीयत किए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के संहिताकरण से पहले ही हो गई हो।

 

पिता की संपत्ति में विवाहित बेटियों का हिस्सा

विवाहित बेटियां अपने पिता की संपत्ति में कितना हिस्सा ले सकती हैं? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, पिता की पैतृक संपत्ति में बेटी को उसके भाइयों के बराबर अधिकार मिलता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पिता की मौत के बाद संपत्ति को भाई और बहन के बीच समान रूप से बाँटा जाएगा। चूंकि उत्तराधिकार कानून मृतक के अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों को भी संपत्ति के अधिकार प्रदान करते हैं, संपत्ति का बँटवारा लागू विरासत कानूनों के अनुसार प्रत्येक वारिस के हिस्से पर आधारित होगा। विवाहित बेटी का अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा होने का सीधा सा मतलब यह है कि उसका भाई जितना भी दावा करेगा, उसे भी उतना ही हिस्सा मिलेगा।

 

एकल महिलाओं को विरासत में मिली संपत्ति का क्या होता है?

निःसंतान महिला की विरासत में मिली संपत्ति स्रोत के पास वापस चली जाती है: सुप्रीम कोर्ट

SC ने फैसला सुनाया था की ऐसी महिलाओं की संपत्ति जो अपने पीछे कोई संतान नहीं छोड़ती है और बिना वसीयत छोड़े ही मर जाती है, उनकी संपत्ति अपने स्रोत यानी जहाँ से उन्हें ये संपत्ति मिली थी उसके पास वापस चली जाती है।

“यदि एक हिंदू महिला बिना किसी बच्चे को छोड़े मर जाती है, तो उसके पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों को मिल जाएगी, जबकि उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पति या ससुर के वारिसों के पास जाएगी।” एससी ने एस अब्दुल नज़ीर और कृष्णा मुरारी, जेजे मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा था।

उन विवाहित महिलाओं के मामले में जो अपने पति और बच्चों को पीछे छोड़ कर मर जाती हैं, उनकी संपत्ति, जिसमें उनके माता-पिता से विरासत में मिली संपत्ति भी शामिल है, उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (ए) के मुताबिक उनके पति और उनके बच्चों को मिल जाएगी।

 

कुंवारी बालिग बेटी CRPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत अपने पिता से मेंटिनेंस का दावा नहीं कर सकती: होई कोर्ट

केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि अविवाहित बालिग बेटी  CRPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत अपने पिता से भरण-पोषण की मांग इस आधार पर नहीं कर सकती है कि उसके पास खुद का भरण-पोषण करने का साधन नहीं है। होई कोर्ट ने कहा कि एक अविवाहित बेटी अगर शारीरिक, मानसिक असामान्यता या चोट के कारण खुद का खर्च उठाने में असमर्थ है, तो वह CRPC के सेक्शन 125 के तहत अपने पिता से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। यह क्लेम करने के लिए, उसे सबूत पेश करने होंगे, इस बात का जिक्र हाई कोर्ट ने अपने 26 जनवरी, 2023 को सुनाए फैसले में किया।

होई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए, “CRPC के सेक्शन 125 (1) के अंतर्गत, एक अविवाहित बेटी जो बालिग हो चुकी है, वह अपने पिता से गुजारा भत्ते के लिए पैसे की डिमांड सामान्य हालातों में नहीं कर सकती। कहने का मतलब सिर्फ इसलिए नहीं कि उसे पैसे चाहिए, तो पिता को पैसे देने ही होंगे। लेकिन अगर वही अविवाहित बेटी जो बालिग हो चुकी हो और किसी शारीरिक चोट, मानसिक हालत या किसी चोट की वजह से खुद का खयाल रखने में अक्षम है, और उस बात के वह सबूत कोर्ट में पेश करती है, तो उसे पिता द्वारा गुजारा भत्ता दिया जाना अनिवार्य है।”

 

बेटे की प्रॉपर्टी में मां के अधिकार

एक मां अपने मृत बेटे की संपत्ति की कानूनी वारिस होती है. इसलिए, अगर कोई शख्स अपनी मां, पत्नी और बच्चों को छोड़कर गुजर गया है, तो उसकी संपत्ति पर सभी का समान अधिकार होता है. ध्यान दें कि अगर मां बिना वसीयत बनाए गुजर जाती है, तो उसके बेटे की संपत्ति में उसका हिस्सा उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के पास चला जाएगा, जिसमें अन्य बच्चे भी शामिल हैं.

 

गोद लिए हुए बच्चों के प्रॉपर्टी में अधिकार

गोद लिया हुआ बच्चा भी क्लास -I उत्तराधिकारी होता है और उसे भी वही सारे अधिकार मिलते हैं, जो एक जैविक बच्चे को मिलते हैं. अगर पिता को किसी अपराध के कारण प्रॉपर्टी के उत्तराधिकारी होने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था तो एक गोद लिया बच्चा अपने दत्तक पिता की संपत्ति के लिए दावा नहीं कर सकता है. अगर पिता ने कोई और धर्म अपना लिया है और गोद लिया हुआ बच्चा भी उसी धर्म का पालन कर रहा है, तो भी इस मामले में, गोद लिया बच्चा पैतृक संपत्ति हासिल नहीं कर सकता है.

 

स्वयं के बच्चे और गोद लिए बच्चे में कोई अंतर नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

नवंबर 2022 को, कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाया कि गोद लिए गए बच्चे के अधिकार स्वयं के द्वारा पैदा किए गए बच्चे के बराबर ही हैं. अगर उनके माता या पिता का निधन हो जाता है और अनुकंपा के आधार पर नौकरी की जरूरत पड़ती है, तो इसके लिए अगर बच्चा गोद लिया ही क्यों न हो, उसे नौकरी पाने के समान अधिकार होंगे. कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने कहा, “एक बेटा, बेटा ही है और एक बेटी, बेटी ही है, फि चाहे गोद लिया या ली गई हो, अगर इनमें अंतर करना ही होता, तो पिर गोद लेने का मतलब ही क्या हुआ.”

गोद लिए बच्चे का अपने जन्म के परिवार की पैतृक संपत्ति पर हक नहीं: हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया है जिसमें कहा गया है कि जब किसी बच्चे को गोद लिया जाता है, तो उसके पास अपने जन्म के परिवार की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है। इसका मतलब है कि वह उस संपत्ति में कोई भी अधिकार या हित छोड़ देता है। हालांकि, यदि संपत्ति को गोद लेने से पहले विभाजित किया गया था और गोद लिए गए बच्चे को दिया गया था, तो वे उस संपत्ति को अपने नए परिवार के हिस्से के रूप में रख सकते हैं।

तेलंगाना हाई कोर्ट ने कहा, “अगर किसी बच्चे को गोद लिया जाता है,और गोद लेने से पहले संपत्ति का बंटवारा किया गया हो और उन्हें दिया गया हो, तो वह संपत्ति का अपना हिस्सा अपने नए परिवार के लिए ले जा सकता है। इसका मतलब यह है कि यदि गोद लिए गए बच्चे को संपत्ति गिफ्ट के रूप में, वसीयत के माध्यम से प्राप्त हुई है, या यह उसे अपने जन्मदाता पिता या परिवार के अन्य सदस्यों से विरासत में मिली है, तो वे उस संपत्ति को रख सकते हैं। हालांकि, यदि संपत्ति का स्वामित्व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ संयुक्त रूप से है, तो गोद लिया गया बच्चा इसे अपने साथ नहीं ले सकता है।”

 

छोड़ी गई पहली पत्नी के प्रॉपर्टी में अधिकार

मान लीजिए कि कोई हिंदू अपनी पत्नी को बिना तलाक दिए छोड़ देता है और दूसरी शादी कर लेता है. इस मामले में, उनकी पहली शादी कानून की ओर से रद्द नहीं की गई है और पहली पत्नी और उनके बच्चे कानूनी उत्तराधिकारी हैं. अगर दोनों का तलाक हो चुका है तो पहली पत्नी प्रॉपर्टी में कोई दावा नहीं कर सकती. लेकिन उसकी जो चीजें हैं, वो उसी की रहेंगी. वहीं, अगर पति और पत्नी ने प्रॉपर्टी की खरीद में योगदान दिया है तो तलाक के मामले में दोनों के मौद्रिक योगदान के प्रतिशत का जिक्र होना जरूरी है. यह खासतौर पर तब जरूरी है, जब आप संपत्ति में बेदखली का मुकदमा दायर करना चाहते हैं.

 

दूसरी पत्नी के प्रॉपर्टी में अधिकार

दूसरी पत्नी के पास पति की संपत्ति में पूरा अधिकार होता है. बशर्ते पति की पहली पत्नी का फिर से शादी करने से पहले ही निधन या तलाक हो गया हो. उसके बच्चों का भी पिता के हिस्से में पहली पत्नी से हुए बच्चों की तरह समान अधिकार हैं. अगर दूसरी शादी कानूनी नहीं है तो न तो दूसरी पत्नी और न ही उसके बच्चों को पति की पैतृक संपत्ति में कानूनी हक मिलेगा.

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धर्मांतरण का संपत्ति का अधिकार पर प्रभाव

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक किसी शख्स ने अगर दूसरा धर्म अपना लिया है, तब भी वह प्रॉपर्टी विरासत में हासिल कर सकते हैं. अगर कोई शख्स अपना धर्म बदलता है तो भारतीय कानून उसे प्रॉपर्टी विरासत में हासिल करने से रोकता नहीं है. जाति विकलांग निष्कासन अधिनियम कहता है कि जिसने भी अपने धर्म का त्याग किया है, उसे प्रॉपर्टी विरासत में मिल सकती है. लेकिन कन्वर्ट होने वाले के वारिस समान अधिकारों का फायदा नहीं उठा पाते हैं. अगर बेटा या बेटी हिंदू धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म का पालन करते हैं, तो उन्हें पैतृक संपत्ति विरासत में देने से अयोग्य ठहराया जा सकता है.

 

मृतक पत्नी की प्रॉपर्टी में पुरुष के अधिकार

पत्नी के जीवित रहते हुए पति के उसकी प्रॉपर्टी में कोई अधिकार नहीं होते. अगर पत्नी का देहांत हो जाता है तो प्रॉपर्टी शेयर पति और बच्चों में बंट जाएंगे. कोलकाता के वकील देवज्योति बरमन कहते हैं, “अगर पत्नी को अपने जीवनकाल में हिस्सा मिल जाता है तो पति विरासत में उसे हासिल कर सकता है. अगर उसे अपने जीवनकाल में अपने माता-पिता या पूर्वजों से विरासत में प्रॉपर्टी नहीं मिली है, तो पति यह दावा नहीं कर सकता है.” अगर किसी शख्स ने अपनी पत्नी के नाम पर अपने स्वयं के पैसों से संपत्ति खरीदी है, तो वह अपनी मौत के बाद भी स्वामित्व को बनाए रख सकता है.

 

भारत में विधवाओं का संपत्ति का अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, के मुताबिक, अगर कोई शख्स बिना वसीयत छोड़े मर जाता है तो एक मृत शख्स की संपत्ति को उसके वारिसों के बीच अनुसूची के वर्ग- I में बांटा जाएगा. अगर कोई शख्स वसीयत छोड़े बिना मर जाता है, तो उसकी विधवा एक हिस्सा लेती है. मृतक के वर्ग- I के उत्तराधिकारी विधवा, उसका बेटा, उसकी बेटी, उसकी मां, मर चुके बेटे का बेटे, मर चुके बेटे की बेटी, मर चुके बेटे की विधवा, मर चुकी बेटी का बेटा, मर चुकी बेटी की बेटी, मर चुके बेटे की बेटी, मर चुके बेटे की बेटी, पहले से मर चुके बेटे के पूर्व मृत बेटे की बेटी, पहले से मर चुके बेटे के पहले से मर चुके बेटे की विधवा.

 

CRPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत बहू अपने ससुर पर मेंटिनेंस का दावा नहीं कर सकती: होई कोर्ट

पटना हाई कोर्ट ने कहा है, CRPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत बहू अपने ससुर पर मेंटिनेंस का दावा नहीं कर सकती। होई कोर्ट ने फैसला सुनाया, “CRPC का सेक्शन 125 पत्नी, बच्चों और माता-पिता के मेंटिंनेंस को लेकर किए गए ऑर्डर से डील करता है।  बहू CRPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत मेंटिनेंस का दावा नहीं कर सकती लेकिन वह यही दावा हिंदू एडॉप्शन और मेंटिनेंस एक्ट के सेक्शन 19 के अंतर्गत कर सकती है। क्योंकि इस मामले में  CRPC के सेक्शन 125 के प्रावधान प्रभावी नहीं होते.”

क्या अपराधी विरासत का दावा कर सकते हैं?

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम कहता है कि गंभीर अपराधों में जिनको दोषी करार दिया गया है, उसको प्रॉपर्टी विरासत में नहीं मिलेगी.

 

सौतेले बच्चों का संपत्ति का अधिकार

सौतेले बच्चे (Half Blood children) वे होते हैं, जहां एक बच्चा दूसरी पत्नी/ साथी के साथ पिता से पैदा होता है और दूसरा बच्चा दूसरे पति/ साथी के साथ पत्नी से पैदा होता है. संक्षिप्त में, जहां एक पैरेंट समान होता है (पुनर्विवाह या तलाक के मामले में) तो बच्चा उस व्यक्ति के करीब होता है, जिससे वह प्रॉपर्टी विरासत में पा रहा है. ऐसे में उसे ही तवज्जो दी जाएगी. उदाहरण के तौर पर अगर अभिषेक भावना से शादी करता है और चंदन अभिषेक की पहली पत्नी का बेटा है. देवेंद्र भावना के पहले पति का बेटा है तो अगर अभिषेक की प्रॉपर्टी का बंटवारा होगा, तो तवज्जो चंदन को दी जाएगी.

 

लिव-इन कपल्स और उनके बच्चों के प्रॉपर्टी के अधिकार

2015 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि लंबे समय तक घर में साथी की तरह रहने वाले जोड़ों को विवाहित माना जाएगा. भारत में कोई भी धर्म लिव-इन को कानूनी नहीं मानता. लेकिन कानून कुछ राहत देता है. क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के सेक्शन 125, के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाएं कानूनी अधिकारों और गुजारा-भत्ता की हकदार हैं. लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे हिंदू विवाह अधिनियम धारा 16 के अनुसार माता-पिता की खुद कमाई हुई संपत्ति के भी हकदार हैं. बच्चे भी गुजारा-भत्ता मांग सकते हैं. ध्यान दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वह ‘आया और गया’ वाले रिश्तों को लिव-इन रिलेशनशिप नहीं मानता. नियम तभी माने जाएंगे, जब दोनों पार्टनर्स लंबे समय से साथ रह रहे हैं.

2008 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, लिव-इन कपल से पैदा हुए बच्चों को कानूनी उत्तराधिकारी के समान विरासत का अधिकार होगा। हालांकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार, शादी के बगैर पैदा हुए बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति में अपना हक माँग सकते हैं, किसी अन्य संबंधी की संपत्ति में नहीं।

2011 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया जिसमें कहा गया था कि जो बच्चे बिना विवाह के पैदा हुए हैं, उन्हें अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार है। इसमें वह संपत्ति शामिल है जो उनके माता-पिता ने खुद बनाई थी और वह संपत्ति जो पैतृक है। फैसला रेवांसिद्दप्पा और अन्य बनाम मल्लिकार्जुन और अन्य नाम के एक मामले में दिया गया था। इसका मतलब यह है कि भले ही किसी बच्चे के माता-पिता की शादी नहीं हुई हो, फिर भी उन्हें उनसे संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ ने फैसला सुनाया, “भले ही माता-पिता के रिश्ते को कानूनी मान्यता न मिली हो लेकिन ऐसे मामलों में अगर बच्चा हो जाता है, तो उन्हें उसका माता-पिता ही माना जाएगा। ऐसे रिश्ते में जिस बच्चे का जन्म होता है वह मासूम होता है और उसे सभी तरह के अधिकार मिलने चाहिए। जो अन्य बच्चों को उनके माता-पिता से मिलते हैं। यह सेक्शन  16 (3) का निचोड़ है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर बिना शादी के पैदा की गई संतान को वैध घोषित कर दिया जाता है, तो उनके साथ किसी तरह का भैदभाव नहीं किया जा सकता। क्योंकि अब उनके पास अन्य बच्चों की ही तरह मां-बाप की संपत्ति में अधिकार, दोनों जो स्वयं पिता ने बनाई हो और वो भी जो उन्हें उन्हें पैतृक रूप में मिली हो शामिल है।”

उन्होंने आगे कहा, “2011 में, सुप्रीम कोर्ट ने, हालांकि, रेवांसिद्दप्पा और अन्य बनाम मल्लिकार्जुन और अन्य में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि नाजायज बच्चों का अपने माता-पिता की स्व-अर्जित, साथ ही हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पैतृक संपत्तियों में अधिकार है। गौर करने वाली बात है कि विधायिका ने ‘संपत्ति’ शब्द का इस्तेमाल करने की सलाह दी है और इसे स्व-अर्जित संपत्ति या पैतृक संपत्ति के रूप में परिभाषित नहीं किया है। इसे व्यापक और सामान्य रखा गया है।”

अविवाहित मां और बच्चे के अधिकार

इसे लेकर फिलहाल कोई स्पष्ट नियम नहीं है कि किसी अविवाहित कपल, जिनके बच्चे हैं, उन्हें  अपना हिस्सा कैसे मिलेगा अगर माता-पिता के बीच कस्टडी को लेकर लड़ाई है. अगर माता-पिता एक ही धर्म के हैं तो उनके पर्सनल लॉ पर विचार किया जाएगा. अगर वे एक धर्म के नहीं हैं तो छोटे बच्चों से जवाब मांगा जाएगा और बच्चे के काउंसिलिंग कराई जाएगी ताकि उस पर मानसिक प्रभाव ना पड़े. ध्यान दें कि हिंदू पर्सनल लॉ के मुताबिक, 5 साल की उम्र तक मां बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक होती है. उसके बाद पिता बच्चे का प्राकृतिक संरक्षक बन जाते हैं. पिता के मृत्यु के बाद मां बच्चे की संरक्षक बन जाती है.

यह भी पढ़ें: क्या हैं मुस्लिम महिला के संपत्ति में अधिकार?

 

पति की पैतृक संपत्ति पर पत्नी का अधिकार

कई भारतीय राज्यों में, जब पुरुष रोजगार के बेहतर अवसरों के लिए शहर से बाहर चले जाते हैं तो वे अस्थायी तौर पर अपने परिवार को घर पर ही छोड़ देते हैं. उत्तराखंड, जहां काफी पुरुष काम के लिए दूसरे राज्यों में चले जाते हैं, वहां महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देने के लिए राज्य सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है, जहां महिलाओं को पुरुषों की पैतृक संपत्ति में सह-स्वामित्व अधिकार दिए गए हैं. इस फैसले से उत्तराखंड की 35 लाख महिलाओं को फायदा हुआ है.

ध्यान दें कि तलाकशुदा महिला, जिसने दोबारा शादी की है, वह सह-मालिक नहीं बन पाएगी. लेकिन अगर तलाकशुदा पति उसके वित्तीय खर्चे नहीं उठा सकता तो महिला सह-मालिक बन सकती है. अगर तलाकशुदा महिला जिसके बच्चे नहीं हैं या उसका पति सात साल से गुमशुदा है या फिर फरार है तो वह अपने पति की जमीन में सह-मालिक बन सकती है.

 

वरिष्ठ नागरिकों के पास संपत्ति का विशेष अधिकार है; बेटा, बहू लाइसेंसधारी हैं: कलकत्ता हाई कोर्ट

कलकत्ता हाई कोर्ट ने 23 जुलाई 2021 को एक वरिष्ठ नागरिक के अपने घर में रहने के अधिकार को बरकरार रखा और कहा कि उसका बेटा और बेटी संपत्ति में रहने वाले ‘सर्वश्रेष्ठ लाइसेंसधारी’ थे और इसलिए, बेदखली के लिए उत्तरदायी थे.वरिष्ठ नागरिक के अपने घर में विशेष रूप से निवास करने के अधिकार पर हाई कोर्ट ने कहा, इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के चश्मे से देखा जाना चाहिए. वर्चुअल सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा, ”यह अब तय हो चुका है कि बच्चे और उनकी पत्नियां/पति वरिष्ठ नागरिकों के घर में सर्वश्रेष्ठ लाइसेंसधारी होते हैं. ऐसे लाइसेंस का अंत तब हो जाता है, जब वरिष्ठ नागरिक बच्चों और उनके परिवारों के साथ असहज हो जाते हैं. ” कलकत्ता हाई कोर्ट का यह आदेश वैसा ही है, जो पहले दिल्ली हाई कोर्ट व पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट दे चुके हैं.

यह भी देखें: बिक्री विलेख और बिक्री के समझौते के बारे में सब कुछ

 

विरासत और प्रतिकूल कब्जा

जिन लोगों को कोई संपत्ति विरासत में मिली है, जो किसी और के कब्जे में है, उन्हें संपत्ति का कब्जा लेने में सावधानी बरतनी होगी. मौजूदा कानूनों के तहत, कोई व्यक्ति जो 12 वर्षों से किसी संपत्ति में रह रहा है, बिना किसी रुकावट के, प्रतिकूल कब्जे वाले कानूनों के तहत संपत्ति में अधिकार हासिल करता है.

 

संपत्ति के अधिकार की वर्तमान स्थिति क्या है: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में बदलाव

2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किया गया था ताकि पहले के अधिनियम के भीतर विभिन्न धाराओं को जोड़ा या हटाया जा सके। अधिनियम में कुछ सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन इस प्रकार हैं:

धारा 4(2) संशोधन

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 4(2) में इसके उत्तराधिकार के दायरे में कृषि भूमि शामिल नहीं थी। 2005 में कृषि भूमि पर उत्तराधिकार का दावा करने का अधिकार जोड़कर इसे रद्द कर दिया गया है। पुरुषों और महिलाओं के बीच अधिक समानता सुनिश्चित करने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया था, ताकि महिलाएं उन भूमि पर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें जिसपे वे मेहनत कर रही हैं।

धारा 6 का सुधार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 में कहा गया है कि महिलाएं संपत्ति के अधिकारों का आनंद तभी ले सकती हैं जब वह महिला के रिश्तेदारों या अजनबियों द्वारा उपहार में दी गई हो। हालाँकि, दोनों ही मामलों में, पूर्ण स्वामित्व या अधिकार रिश्तेदारों या अजनबियों द्वारा बनाए रखा गया था। धारा ६ में सुधार और नए खंड जोड़ने से महिलाओं को अपने भाइयों या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों के समान अधिकार प्राप्त करने में मदद मिली।

यह भी देखें: क्या उपहार विलेख निरस्त किया जा सकता है ?

धारा 3 को हटाना

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3 महिलाओं को एक घर के भीतर विभाजन की मांग करने का अधिकार नहीं देती जब तक कि पुरुष सदस्य ऐसा नहीं चाहते। इसने महिलाओं की स्वायत्तता और अधिकारों को कम कर दिया और उनकी निजता में बाधा उत्पन्न की। परिणामस्वरूप, संशोधन ने इस अधिनियम की धारा 3 को हटा दिया.

यह भी देखें: जानिए विभाजन विलेख फॉर्मेट के बारे में ज़रूरी बातें

 

आदिवासी महिला का संपत्ति अधिकार

आदिवासी महिला को परिवार की संपत्ति में मनाही के कानून में संशोधन किया जाये: सरकार से सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर 2022 को सरकार से कहा कि हिंदू सक्सेशन एक्ट का प्रावधान जो आदिवासी महिला को उसके पिता की संपत्ति पर हिस्सा लेने से मना करता है, उस पर फिर से विचार किया जाये.

उन्होंने सेक्शन 2(2) का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदू सक्सेशन एक्ट में यह सेक्शन पैतृक संपत्ति में महिला और पुरुष को बराबर हक देता है. लेकिन यह कानून शेड्यूल ट्राइब्स सदस्यों पर लागू नहीं होता. हिंदू सक्सेशन एक्ट के सेक्शन 2(2) के मुताबिक जो कानून महिला और पुरुष को उनकी पैतृक संपत्ति पर समान हक देता है वह शेड्यूल ट्राइब्स सदस्यों पर लागू नहीं होता.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जब गैर आदिवासी महिला को अपने पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिले हैं, तो ऐसे में आदिवासी बेटी को वो अधिकार न मिलें, ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती. उत्तराधिकार के लिए पुरुष आदिवासी सदस्य बराबर ही महिला आदिवासी सदस्य को भी अधिकार हैं.”

 

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

क्या संपत्ति का अधिकार एक कानूनी अधिकार है?

संविधान अधिनियम 1978 में संशोधन के कारण संपत्ति का स्वामित्व अब एक मौलिक अधिकार नहीं है. हालांकि, यह बहुत ही कानूनी, मानवीय और संवैधानिक अधिकार है.

क्या बेटे का पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है?

जी हां, बेटा क्लास-I उत्तराधिकारी होता है और उसका पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है.

राइट टू प्रॉपर्टी में क्या-क्या शामिल होता है?

सभी भारतीयों के पास प्रॉपर्टी पाने का अधिकार है. उनके पास अपनी संपत्ति के अधिग्रहण, प्रबंधन, लुत्फ लेने और बेचने के अधिकार भी हैं. जब तक इनमें से कोई भी भूमि के कानून के विरोध में नहीं है, शख्स को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता.

क्या बेटी शादी के बाद पिता की संपत्ति पर दावा कर सकती है?

कानून के मुताबिक हां. एक शादीशुदा बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगने का पूरा अधिकार है. उसका अपने भाई और कुंवारी बहन जितना ही अधिकार है.

हमारे लेख से संबंधित कोई सवाल या प्रतिक्रिया है? हम आपकी बात सुनना चाहेंगे।

हमारे प्रधान संपादक झूमर घोष को [email protected] पर लिखें

 

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