आवासीय इलाकों में आवारा कुत्ते की समस्या को लेकर अक्सर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया होती है। जबकि पालतू पशुओं के प्रेमी इन जानवरों को भोजन और कभी-कभी आश्रय प्रदान करके उनके प्रति स्नेह दिखाते हैं, अन्य लोग रेबीज और कुत्ते के काटने की संभावना जैसे स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर सावधान रहते हैं। मीडियाकॉम के बिजनेस डायरेक्टर सुदीप्तो चटर्जी कहते हैं, “नई दिल्ली के द्वारका सेक्टर 6 में हमारी सोसायटी में आवारा कुत्ते एक आम दृश्य हैं। हालांकि इससे मुझे कोई परेशान नहीं है, हमारे समाज में ऐसे कई लोग हैं जो जानवरों की मौजूदगी पसंद नहीं करते हैं, खासकर जब बच्चे परिसर के अंदर खेलते हैं। इसके अलावा, ये कुत्ते सुबह-सुबह शोर भी मचाते हैं। कुछ लोगों ने यह मामला रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) की बैठकों के दौरान भी उठाया था। दूसरी ओर, ऐसे निवासी भी हैं जो कुत्तों को खाना खिलाना और उनकी देखभाल करना पसंद करते हैं।”
ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल (HSI) इंडिया के प्रोग्राम मैनेजर, डॉग पॉपुलेशन मैनेजमेंट, डॉ पीयूष पटेल कहते हैं कि भारत में हाउसिंग कॉलोनी में तीन तरह के निवासी होते हैं – कुत्ते के प्रेमी, कुत्ते से नफरत करने वाले और वे लोग जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पटेल बताते हैं, “पहले दो प्रकार के लोगों के बीच हमेशा संघर्ष रहेगा। असल में समस्या कुत्ते के व्यवहार को समझने की क्षमता में निहित है। यदि लोग कुत्ते के व्यवहार और उनके झुंड की गतिशीलता को नहीं समझते हैं, तो कुत्ते कितने भी मिलनसार क्यों न हों, वे हमेशा जानवरों में दोष निकालेंगे। इसके विपरीत, जो व्यक्ति चुलबुला और आक्रामक व्यवहार को समझता है और इनमें अंतर कर सकता है, उसे समझाना आसान होगा।”
हाउसिंग कॉलोनियों में पालतू जानवरों के संबंध में कानून
ऐसे में सवाल यह है कि क्या आवासीय परिसर में कुत्ते प्रेमियों और कुत्ते से नफरत करने वालों के बीच विवाद का कोई स्थायी समाधान हो सकता है।
जागृति के सह-संस्थापक और ट्रस्टी वसुधा मेहता निवासियों से एडब्ल्यूबीआई (भारतीय पशु कल्याण बोर्ड), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी पालतू और आवारा कुत्तों के संबंध में फरवरी 2015 के सर्कुलर को पढ़ने की अपील करते हैं। मेहता कहते हैं, “इसके अनुसार, आरडब्ल्यूए स्ट्रीट डॉग्स को हटाने के लिए नहीं कह सकते हैं और न ही पालतू कुत्तों के मालिकों पर जुर्माना लगा सकते हैं। वे केवल उनकी नसबंदी और टीकाकरण के लिए अनुरोध कर सकते हैं, ताकि उनकी जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाया जा सके, जो कि भारत के पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत बनाए गए पशु जन्म नियंत्रण नियम 2001 के अनुसार है। सोसायटी जानवरों के प्रति दया-भाव को बढ़ावा देने और लोगों को संवेदनशील बनाने और मनुष्य और जानवरों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता वाली साहित्य भी लोगों में वितरित कर सकते हैं। हमें एक दयालु समाज की जरूरत है। हर तरफ पहले से ही काफी क्रूरता और घृणा व्याप्त है। जानवरों के प्रति दया, सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाएगी।”
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सोसायटी में कुत्ते की समस्या से निपटने के उपाय
पटेल इंसान-कुत्ते के टकराव से निपटने के लिए मानक एचएसआई प्रक्रियाओं के बारे में बताते हैं:
- कुत्ते की जनसंख्या का सर्वेक्षण (मात्रात्मक) – किसी परिसर की कुल कुत्तों की आबादी का अनुमान लगाने के लिए एक वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है। एकत्र किए गए डेटा में नर और मादा कुत्तों, पिल्ले, स्तनपान कराने वाली मादाओं, त्वचा की स्थिति, शरीर की स्थिति इत्यादि शामिल होंगे।
- केएपी (ज्ञान, कौशल और अभ्यास सर्वेक्षण) – निवासियों की एक निश्चित संख्या का उनके घर पर साक्षात्कार किया जाएगा। प्रश्न कुत्तों के व्यवहार, पालतू जानवरों की आबादी, कुत्ते के काटने की घटना, पालतू जानवरों के स्वामित्व, गली के कुत्तों के बारे में धारणा/मानसिकता आदि के बारे में समझने से संबंधित होंगे।
- अन्य सर्वेक्षण – इसमें आवासीय कॉलोनी की बाहरी सीमा को चेक करना शामिल होगा, जिससे कुत्तों के प्रवेश करने की जगह को नापा जा सके और बाहर से आने वाले कुत्तों की संख्या का आकलन हो सके।
- प्लानिंग – इस डेटा को जमा करने के बाद इन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्राथमिकताएं निर्धारित की जाएंगी:
- वास्तविक चिंताएं क्या हैं?
- क्या नसबंदी एक समाधान है? अगर सभी कुत्तों की भी नसबंदी कर दी जाए, फिर भी उपद्रव की शिकायतें बनी रह सकती हैं, क्योंकि कुत्तों का जीवन लगभग 7-8 साल का होता है।
- कुत्तों का अतिक्रमण – यदि परिसर में बाउंड्री नहीं हैं तो समय के साथ अंदर की नसबंदी वाले कुत्तों की जगह बाहर से बिना नसबंदी वाले कुत्ते आ जाएंगे।
- क्या फीडिंग एरिया बनाने से काम चलेगा? एक उचित फीडिंग जोन बनाना चाहिए और निवासियों को केवल इस फीडिंग जोन में निर्धारित समय पर कुत्तों को खिलाने की अनुमति दी जानी चाहिए। इससे कुत्तों का आना-जाना कम होगा और उनको खाने की तलाश में घरों में प्रवेश करने से रोकेगा।
- शिक्षा – यदि समुदाय को आसानी से आश्वस्त किया जा सकता है, तो एक उचित कार्यक्रम लागू किया जाना चाहिए।
कानून साफ तौर पर कहता कि कुत्तों से छुटकारा पाने का कोई तरीका नहीं है, क्योंकि यह मूल रूप से एक अपराध होगा। इसलिए प्रभावी जागरूकता पैदा करना समय की मांग है। पटेल कहते हैं कि एक क्षेत्र के सभी कुत्तों की नसबंदी भी पूरी तरह से आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान नहीं कर सकती है। पटेल ने विस्तार से बताया, “हम घनत्व या जन्म दर को कम कर सकते हैं लेकिन इसे केवल नियमित हस्तक्षेप और निवासियों के प्रयासों से ही बनाए रखा जा सकता है।” पटेल कहते हैं कि कुत्ते के काटने की अधिकतर घटनाएं किसी परिसर में पालतू कुत्ते की आबादी के कारण होते हैं। “इसलिए, सभी आवासीय कॉलोनियों में पालतू जानवरों को रखने के लिए बुनियादी नियम होने चाहिए, जिसमें पालतू जानवरों को पट्टे लगाकर रखना, अनिवार्य टीकाकरण और पालतू कुत्तों की नसबंदी, कचरे का उचित निपटान, आदि शामिल हैं,” उन्होंने आखिर में कहा।
पालतू जानवर रखने वालों के लिए टिप्स
यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने पालतू जानवरों को नियंत्रण में रखें ताकि यह पड़ोस के अन्य निवासियों की शांति में खलल न डाले। साथ ही, यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि आपको जानवर पालने का अधिकार है और यह सुनिश्चित करने के तरीके हैं कि आपकी स्वतंत्रता प्रभावित न हो।
- पालतू या किसी अन्य जानवर के खतरे में होने पर भारतीय पशु कल्याण बोर्ड से बेझिझक संपर्क करें।
- सोसायटी का रजिस्ट्रार (आरओएस) पालतू जानवर रखने वाले परिवार के प्रति अनुचित रवैया रखने के लिए आरडब्ल्यूए के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है या उसे भंग भी कर सकता है।
- अगर आरडब्ल्यूए सहयोग नहीं करता है तो आप धारा 428, 429 आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) के तहत नजदीकी स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
- जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम एक अन्य मंच है जहां आप अपनी शिकायत कर सकते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (जी) के तहत आरडब्ल्यूए सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अनुसार इस देश के नागरिकों का कर्तव्य है कि वे जानवरों और पर्यावरण की समान रूप से रक्षा करें। आरडब्ल्यूए के प्रस्ताव जो जानवरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 (3) का उल्लंघन करते हैं और साथ ही संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) के खिलाफ हैं जो पर्यावरण को सुरक्षा और सुधार प्रदान करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
क्या आरडब्ल्यूए पालतू जानवरों के मालिकों को पट्टा का इस्तेमाल करने के लिए बोल सकता है?
आरडब्ल्यूए पालतू जानवरों के मालिकों को उन्हें पट्टा पर रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है, लेकिन यह सलाह दी जाती है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर पालतू जानवरों को नियंत्रण में रखना चाहिए।
क्या कोई आरडब्ल्यूए मुझसे अपने पालतू जानवर को छोड़ने के लिए कह सकता है?
अगर कोई आरडब्ल्यूए आपको अपने पालतू जानवर को छोड़ने के लिए कहता है तो यह कानून के तहत एक अपराध है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना आपकी जिम्मेदारी है कि हाउसिंग सोसायटी में आपका पालतू जानवर दूसरों के लिए परेशानी का कारण न बने।
पालतू जानवरों के मालिकों के लिए आरडब्ल्यूए क्या नियम बना सकता है?
आरडब्ल्यूए उचित अनुरोध कर सकता है। इनमें पालतू जानवरों के लिए जगह आवंटित करना, उनके शौच के बारे में नियम बनाना, नियमित टीकाकरण करना और उन्हें साफ-सुथरा रखना शामिल हो सकता है।