अलग-अलग प्रकार के घर
भारत में अलग-अलग क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, निर्माण सामग्री, वास्तु शास्त्र के नियमों, तथा लोगों की लाइफस्टाइल और उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर कई प्रकार के घर बनाए जाते हैं। भारत में घरों के आर्किटेक्चर की शैली भी अलग-अलग होती है, जो नए जमाने के ट्रेंड, संस्कृतियों और उभरती जरूरतों के साथ विकसित हुई हैं। इसी वजह से यहाँ अलग-अलग डिजाइन के घर बनाए जाते हैं। यहाँ पूरे भारत में सामान्य तौर पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के घरों की जानकारी दी गई है।
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भारत में घरों के प्रकार #1: फ्लैट या अपार्टमेंट
ऐसे घरों को फ्लैट या अपार्टमेंट कहा जाता है, जो कई घरों वाली एक बड़ी इमारत का हिस्सा होता है और इनमें आरामदायक तरीके से जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी बुनियादी सुविधाएँ मौजूद होती हैं। जमीन या प्लॉट की कमी की वजह से आजकल ऊँची इमारतों में एक साथ कई घरों को तैयार किया जाने लगा है। महानगरों और शहरों में फ्लैट या अपार्टमेंट की तरह के घरों के निर्माण में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। फ्लैट का आकार 1/2/3 बीएचके और कभी-कभी इससे बड़ा भी हो सकता है। डेवलपर्स आज के जमाने के घर खरीदने वाले लोगों की जरूरतों के अनुरूप कई अतिरिक्त सुविधाओं वाले फ्लैट भी ऑफ़र करते हैं। आजकल देश के सभी शहरों में अपार्टमेंट की लोकप्रियता काफी बढ़ गई है, और इस प्रकार के घर मध्यम वर्ग तथा उच्च-मध्यम वर्ग की शहरी आबादी के लिए बेहद किफायती साबित हुए हैं।
भारत में पाए जाने वाले घरों के प्रकार #2: आरके या स्टूडियो रूम
रूम-किचन को संक्षेप में आरके कहा जाता है, और इसे स्टूडियो अपार्टमेंट के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के घर ज्यादातर मेट्रो शहरों में देखे जाते हैं, जिनमें अलग बेडरूम या लिविंग रूम नहीं होते हैं। स्टूडियो के कमरे कॉम्पैक्ट होते हैं जिन्हें कम जगह में बड़ी अच्छी तरह तैयार किया जाता है, तथा कामकाजी लोग और छात्र इस तरह के घरों को काफी पसंद करते हैं।
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भारत में पाए जाने वाले घरों के प्रकार #3: पेंटहाउस
किसी प्रीमियम इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर बनाए गए लग्जरी घर को पेंटहाउस कहते हैं। भारत में पेंटहाउस अपनी खास पहचान और स्टेटस सिंबल से जुड़े होते हैं। इस तरह के घर बेहद आलीशान और सभी सुविधाओं से सुसज्जित होते हैं, और इस तरह की सुविधाएँ उसी बिल्डिंग के दूसरे अपार्टमेंट में मौजूद नहीं होती हैं। पेंटहाउस में कुदरती रोशनी उसकी व्यवस्था होती है और वे बेहद हवादार होते हैं, साथ ही इस तरह के घरों से आसपास का पूरा नजारा दिखाई देता है। हालांकि पेंटहाउस मल्टी-रेजिडेंशियल कॉम्पलेक्स में बनाए जाते हैं, इसके बावजूद ऐसे घर आपको विला और बंगले की तरह आजादी का एहसास कराते हैं। इस प्रकार के घरों में एक ही घर के भीतर अलग-अलग मंजिल बनाई जा सकती है, जो बड़े परिवारों के लिए उपयुक्त होते हैं। सामान्य तौर पर एक फ्लैट की तुलना में पेंटहाउस की छत अधिक ऊँची होती है। ऐसे घरों का लेआउट प्लान बेमिसाल होता है, साथ ही इनमें पर्सनल टैरेस और प्राइवेट लिफ्ट जैसी लक्जरी सुविधाएँ मौजूद होती हैं।
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भारत में घरों के प्रकार #4: बंगला
बंगले की श्रेणी में आने वाले घरों में आमतौर पर एक बड़ा बरामदा होता है और इनकी छत नीची होती है। ऐसे घर एक मंजिला या डेढ़ मंजिला होते हैं। सामान्य तौर पर बंगले के चारों ओर बगीचा और एक पार्किंग एरिया होता है, साथ ही यह दूसरे घरों से थोड़ी दूरी पर स्थित होता है। फ्लैटों की तुलना में बंगले थोड़ी ज्यादा महंगे होते हैं क्योंकि ऐसे घर बड़ी जगह पर बनाए जाते हैं, और अक्सर एक मंजिला होते हैं। भारत में पारंपरिक और आधुनिक डिजाइन वाले बंगले कई अलग-अलग स्टाइल में बनाए जाते हैं। महामारी में हमारे घरों को अलग-अलग तरह की बहुत सी गतिविधियों वाला स्थान बना दिया, और इसी वजह से बंगलों की लोकप्रियता काफी बढ़ गई क्योंकि इनमें रहने के अलावा बाहरी गतिविधियों के लिए भी काफी जगह होती है। चूंकि भारत के अधिकांश हिस्से का मौसम उष्णकटिबंधीय है, इसी वजह से अच्छी तरह डिजाइन किए गए बंगलों में इनडोर और आउटडोर का बेहतरीन तालमेल दिखाई देता है।
भारत में घरों के प्रकार #5: विला
विला भी भारत में पाए जाने वाले घरों का एक प्रकार है, और इस तरह के लग्जरी घरों में आधुनिक सुख-सुविधाओं की सभी चीजें मौजूद होती हैं। आमतौर पर विला का आकार काफी बड़ा होता है, जिसमें लॉन और बैकयार्ड सहित कई अन्य सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। बड़ी इमारतों में बने फ्लैटों की तरह, एक ही इलाके के विला एकजुटता की भावना को बढ़ावा देने के साथ-साथ बंगले की तरह निजी स्थान का अनुभव भी देते है। ऐसे लोग विला को ज्यादा पसंद करते हैं, जो घर बनाने के झंझट के बिना एक स्वतंत्र घर की गोपनीयता चाहते हैं। शहरों के बाहरी इलाकों में चहारदीवारी से घिरे इस तरह के कई विला के निर्माण के लिए भरपूर जगह मौजूद होती है। एक साथ बनाए गए बहुत से विला की चहारदीवारी के भीतर मनोरंजन के लिए क्लब हाउस, स्विमिंग पूल और थिएटर मौजूद होते हैं।
भारत में घरों के प्रकार #6: कॉन्डोमिनियम
हाल के दिनों में, भारत के कुछ शहरों में कॉन्डोमिनियम की लोकप्रियता बढ़ी है। कॉन्डो एक प्रकार का घर होता है जिसे एक बिल्डिंग कॉम्पलेक्स में बनाया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में अलग-अलग लोगों के अपार्टमेंट होते हैं। कॉन्डोमिनियम या कॉन्डो को किसी संस्था द्वारा खरीदा जाता है, जिसके घरों का प्रबंधन या तो मालिक द्वारा निजी तौर पर या फिर कॉन्डो समूह के मकान मालिकों के संघ द्वारा किया जाता है। कॉन्डोमिनियम एक बड़ी इमारत होती है जिसे छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा जाता है, जिसमें हर घर का मालिकाना हक उसके खरीदार के पास होता है लेकिन साझा क्षेत्रों का मालिकाना हक सबके पास होता है। कानूनी तौर पर उस प्रॉपर्टी के अंदर आने वाले बगीचे, छत और अन्य सुविधाओं का साझा तौर पर उपयोग किया जा सकता है, और प्रत्येक मालिक को अपने करों का भुगतान करने, मॉर्गेज करने तथा प्रॉपर्टी के रखरखाव और मरम्मत का अधिकार होता है।
भारत में घरों के प्रकार #7: कॉटेज
कॉटेज छोटे आकार के एक मंजिला घर होते हैं, जिसे अलग-अलग आर्किटेक्चर स्टाइल में बनाया जाता है। कॉटेज ग्रामीण इलाकों में बनाया जाने वाला एक छोटा, आरामदायक घर होता है, जिसमें गाँव की जिंदगी के साथ-साथ बेहद सुकून का अनुभव होता है। अक्सर इस तरह के घरों को गर्मियों के दौरान उपयोग के लिए या वेकेशन होम की तरह बनाया जाता है। आमतौर पर कॉटेज में पुराने जमाने का जादुई एहसास होता है और यह क्षेत्र की जलवायु के अनुसार एक छोटे से बरामदे के साथ पत्थर, लकड़ी, फूस की छतों, पक्की दीवारों आदि से बना हो सकता है। कॉटेज हाउस के डिजाइन वाले घर समुद्र तटों (गोवा में), झीलों या फिर हिमाचल प्रदेश, नैनीताल (उत्तराखंड) या ऊटी जैसे पहाड़ी इलाकों के आसपास वेकेशन होम के रूप में काफी लोकप्रिय हैं।
भारत में घरों के प्रकार #8: भारत में रो हाउस
रो हाउस स्वतंत्र स्वामित्व वाला घर होता है, जिसे चारदीवारी से घिरी कम्युनिटी के भीतर बनाया जाता है। रो हाउस के सभी घरों का आर्किटेक्चर एक जैसा होता है। एक रो हाउस दरअसल एक बंगले और एक फ्लैट के डिजाइन और दोनों के फायदों का मिला-जुला रूप है। बिल्डर के हस्तक्षेप के बिना रो हाउस के घर का नवीनीकरण किया जा सकता है। रो हाउस एक कम्युनिटी में रहते हुए स्वतंत्र जीवन का अनुभव प्रदान करता है। भारत में, आमतौर पर नोएडा, गुरुग्राम, पुणे, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में रो हाउस देखे जाते हैं।
भारत में घरों के प्रकार #9: डुप्लेक्स हाउस
डुप्लेक्स हाउस भी भारत में पाए जाने वाले घर का एक प्रकार है, जिसमें दो मंजिलों पर रहने के कमरे बनाए जाते हैं। डुप्लेक्स हाउस में दो मंजिलों पर रहने के कमरों के साथ-साथ एक किचन और एक कॉमन एरिया भी होता है। दोनों मंजिलें एक सीढ़ी से जुड़ी हुई होती हैं। कई बिल्डर खरीदार की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डुप्लेक्स अपार्टमेंट के लेआउट में भी बदलाव करते हैं। डुप्लेक्स हाउस भारत में बेहद स्टाइलिश, और अव्वल दर्जे के इंडिपेंडेंट हाउस का एक प्रकार है, जिसमें अपार्टमेंट की सभी खूबियाँ मौजूद होती हैं। डुप्लेक्स हाउस बड़े परिवारों के लिए आदर्श है, जिसमें परिवार के सभी लोग एक ही छत के नीचे रहते हुए भी किसी के दखल के बिना अपनी निजी जिंदगी का आनंद लेते हैं।
भारत में घरों के प्रकार #10: फार्महाउस
फार्महाउस एक प्रकार का घर होता है, जो चारों तरफ से खेतों या कुदरती नजारे वाले हरे–भरे बगीचे से घिरा होता है। आमतौर पर हॉलिडे होम या वीकेंड पर समय बिताने के लिए अपने दूसरे घर की तलाश कर रहे लोगों को फार्महाउस पसंद आता है, जो पारंपरिक और आधुनिक, दोनों तरह के हो सकते हैं। परिवारों को फार्महाउस पसंद है, क्योंकि यहाँ उन्हें बेहतर लाइफस्टाइल के लिए सब्जियां उगाने, आराम फरमाने, फिटनेस के लिए समय निकालने, पड़ोसियों को परेशान किए बिना पार्टियों की मेजबानी करने और कुदरत की गोद में सुकून भरे पल बिताने का अवसर मिलता है। मुंबई में लोनावाला, कर्जत और अलीबाग के आसपास काफी फार्महाउस बने हैं। दिल्ली में छतरपुर, वेस्टएंड ग्रीन्स, महरौली, रजोकरी और सुल्तानपुर में बहुत से फार्महाउस मौजूद हैं।
भारत में घरों के प्रकार #11: स्टिल्ट हाउस
स्टिल्ट प्रकार के घर बाँस से तैयार किए जाते हैं और आमतौर पर इस तरह के घर असम जैसे बाढ़ की संभावना वाले इलाकों में बनाए जाते हैं। इस तरह के घरों को बाढ़ से बचाव के लिए जमीन से थोड़ा ऊपर बनाया जाता है। ऊपर उठा हुआ ढांचा घर में पानी को प्रवेश करने से रोकता है।
भारत में घरों के प्रकार #12: ट्री हाउस
आमतौर पर भारत के जंगली इलाकों में ट्रीहाउस बनाए जाते हैं। लोग वीकेंड पर छुट्टियां मनाने के लिए इस तरह के घरों को काफी पसंद करते हैं। ट्रीहाउस जमीन के ऊपर पेड़ों की ऊँची डालियों पर बनाए जाते हैं, जो चारों तरफ से पेड़ के पत्तों से घिरा होता है और ऐसे घरों में आधुनिक सुविधा के सभी साधन मौजूद होते हैं।
भारत में घरों के प्रकार #13: झोपड़ी
झोंपड़ी छोटे आकार का बहुत ही साधारण सा दिखने वाला घर होता है, जिसे आसपास मिलने वाली अलग-अलग सामग्रियों, जैसे कि लकड़ी, पत्थर, फूस, ताड़ के पत्तों, पेड़ की डालियों या मिट्टी से बनाया जाता है। इस प्रकार के घरों को बनाने में पीढ़ियों से चली आ रही तकनीकों का उपयोग किया जाता है। भारत में इस तरह के घर सदियों से बनाए जाते रहे हैं, जो बेहद सरल और किफायती घरों में से एक हैं।
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भारत में घरों के प्रकार #14: इको-फ्रेंडली घर
भारत में अपना घर बनवाने वाले कई लोग पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने की कोशिश करते हैं, और इसके लिए वे अपने घरों को सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी के साथ डिजाइन करते हैं। आजकल, भारत में लोग इको-फ्रेंडली घरों को काफी पसंद करने लगे हैं। ईको-फ्रेंडली घर पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं, जिनमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों का इस्तेमाल नहीं होता है। ऐसे घरों के निर्माण और उपयोग, दोनों में ऊर्जा की बचत होती है। इसके अलावा, इको-फ्रेंडली घरों में बिजली की खपत को कम करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए थर्मल इन्सुलेशन तकनीक का उपयोग किया जाता है। पानी को बचाना भी इको-फ्रेंडली घरों की एक बड़ी खासियत है। ऐसे घरों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के अलावा कम बहाव वाले नल और पानी का कम इस्तेमाल करने वाले उपकरण पानी को बचाने में मदद करते हैं। भारत में ऐसे घर बेहद हवादार होते हैं और इनमें कुदरती रोशनी की व्यवस्था होती है। इतना ही नहीं, ऐसे घरों की सजावट में भी इको-फ्रेंडली चीजों का इस्तेमाल होता है। इको-फ्रेंडली घरों में किफायती तरीके से बिजली उत्पन्न करने और ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों की खपत को कम करने के लिए सोलर पैनल, बायोमास बॉयलर और हीट पंप का उपयोग किया जाता है।
भारत में अन्य प्रकार के घर #15: पैलेस
भारत में पुराने जमाने के राजाओं-महाराजाओं के कई आलीशान महल बने हुए हैं, जिन्हें पैलेस कहा जाता है। आज इनमें से ज्यादातर महलों को हेरिटेज होटल बना दिया गया है। भारत के अलग-अलग राज्यों में बने इन आलीशान महलों के आर्किटेक्चर से महाराजाओं के ठाठ-बाट और वैभव से भरी उनकी जिंदगी का पता चलता है।
भारत में घरों के प्रकार #16: केबिन
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ये मुख्य तौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले बड़े घर हैं। इसके विशिष्ट डिज़ाइन में तेज ढलान वाली छतें होती हैं जो मजबूत बाहरी दीवारों से आगे फैली होती हैं। यह वास्तुशिल्प शैली भारी बर्फबारी के अलावा कड़ाके की ठंड के दौरान इसकी मजबूती सुनिश्चित करती है। परंपरागत रूप से, ऐसे घर का निर्माण अंदर और बाहरी दोनों तरह से लकड़ी से किया जाता है, जो प्राकृतिक परिवेश के साथ आसानी से मेल खाता है और एक ग्रामीण माहौल का अनुभव कराता है। आज, इसे हाइकर्स और प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षक हॉलिडे होम के रूप में देखा जाता है।
भारत में घरों के प्रकार #17: कच्चा घर
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कच्चे घर, जो मूलतः ग्रामीण भारत में पाए जाते हैं, पारंपरिक झोपड़ियाँ हैं जो लकड़ी, पुआल, मिट्टी और छप्पर जैसी प्राकृतिक सामग्रियों से बनाई जाती हैं। ये साधारण घर विभिन्न स्थानों पर पाए जा सकते हैं और उनकी मिट्टी की दीवारों पर खूबसूरत डिज़ाइन होते हैं जो उनकी सिंपल लुक को सुंदरता प्रदान करते हैं। कच्चे घर देहाती आकर्षण का प्रतीक हैं और ग्रामीण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
भारत में घरों के प्रकार #18: हवेली
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हवेलियाँ बहुत बड़े घर होती हैं जो भारत की समृद्धि और भव्य वास्तुशिल्प को दिखाती हैं। मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली ये ऐतिहासिक संरचनाएँ जटिल नक्काशी, सुशोभित आगे का भाग और विशाल आंगनों से भरपूर हैं। मध्यकालीन युग के दौरान धनी व्यापारियों और रईसों द्वारा निर्मित हवेलियों में उनके नाते रिश्तेदार भी रहा करते थे और ये धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक थीं। अपनी शानदार भित्तिचित्रों, बालकनियों और झरोखों के साथ, हवेलियाँ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण हैं और अपनी भव्यता और सौंदर्य से पर्यटकों का मन मोह लेती हैं।
भारत में घरों के प्रकार #19: हाउसबोट
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भारत में हाउसबोट एक अनोखा अनुभव प्रदान करते हैं, खासकर केरल और कश्मीर में। ये तैरते घर शांत बैकवाटर, झीलों और नदियों में चलने के लिए बनाए गए हैं, ताकि उसमें रहने वालों को शांत पानी का आनंद मिल सके। हाउसबोट पारंपरिक से लेकर आधुनिक तक विभिन्न आकारों और डिज़ाइनों में आते हैं। वे खूबसूरत दृश्यों का आनंद लेने के लिए आरामदायक बेडरूम, लिविंग एरिया, रसोईघर और यहां तक कि सन डेक से भी परिपूर्ण होते हैं। अपने लकड़ी के बाहरी हिस्से और जटिल नक्काशीदार अंदरूनी भाग के साथ, हाउसबोट क्षेत्र विशेष की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत दर्शाते हैं। कई हाउसबोट आरामदायक और यादगार स्टे सुनिश्चित करने के लिए खाना और वैयक्तिकृत सेवाओं जैसी सुविधाएं भी प्रदान करते हैं। हाउसबोट पर रहने से प्रकृति से जुड़ने, स्थानीय परंपराओं का अनुभव करने और खूबसूरत दृश्यों से पूर्ण सुकून भरी जीवन शैली का आनंद लेने का अनोखा अवसर प्राप्त होता है।
भारत में घरों के प्रकार #20: समुद्र तट पर बने घर
भारत में समुद्र तट पर बने घर तटीय सौंदर्य का आनंद लेने और शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर सुकून से आराम करने के लिए बनाए गए हैं। इन घरों को समुद्र के मनमोहक दृश्यों और प्राकृतिक परिवेश के साथ मेल करने के लिए सावधानीपूर्वक बनाया गया है। समुद्र तट के घरों में अक्सर खुले लेआउट, बड़ी खिड़कियां और विशाल बालकनी या बरामदे होते हैं जो निवासियों को ठंडी समुद्री हवा और मनोरम दृश्यों का आनंद प्रदान करते हैं। समुद्री तट के घरों का आंतरिक डिजाइन आरामदायक माहौल बनाने पर फोकस करता है, जिसमें हल्के और हवादार कलर स्कीम, प्राकृतिक सामग्री और समुद्र तट से प्रेरित सजावट शामिल हैं। समुद्री तट के कई घरों में आउटडोर स्पेस जैसे बगीचे, आँगन या निजी तट भी शामिल होते हैं, जो इनडोर और आउटडोर के बीच कनेक्शन को बढ़ावा देते हैं। चाहे हॉलिडे होम के रूप में इस्तेमाल किया जाए या स्थायी निवास के रूप में, समुद्र तट पर घर प्रकृति की सुंदरता के करीब सुकून भरा और तरोताजा जीवन शैली प्रदान करते हैं।
भारत में अलग-अलग तरह के घरों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियाँ
भारत में अलग-अलग तरह के घरों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियाँ भी अलग-अलग होती हैं, जो उस इलाके पर निर्भर है जहाँ ये घर बनाए गए हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है – कुदरती और सिंथेटिक। आमतौर पर भारत में घर बनाने के लिए लकड़ी, सीमेंट, धातु, ईंटें, कंक्रीट, मार्बल, पत्थर और मिट्टी जैसी सामग्रियों का इस्तेमाल होता है। इन सामग्रियों का इस्तेमाल कई बातों पर निर्भर है, जिसमें उनका किफायती होना, घर का प्रकार, डिजाइन और जलवायु की परिस्थिति शामिल है। भारत में घर बनाने के लिए गीली मिट्टी, सख्त चिकनी मिट्टी, रेत, इमारती लकड़ी, बांस, चट्टानों और पत्थरों के अलावा पेड़ की टहनियों एवं पत्तियों जैसी कुदरती सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। भारत के गाँवों में लोग पारंपरिक रूप से मिट्टी के घरों में रहते हैं, जो मिट्टी, रेत और गाद के मिश्रण से बने होते हैं। साथ ही, आजकल इको-फ्रेंडली घरों के बारे में लोगों की बढ़ती जागरूकता की वजह से ऐसी कुदरती सामग्रियों की काफी मांग है। लोग घर बनवाने के लिए स्थानीय रूप से तैयार सामग्रियों की मांग करते हैं, क्योंकि इस तरह की सामग्रियाँ स्थानीय डिजाइन की खूबसूरती के अनुरूप होती हैं और उस इलाके की जलवायु में अधिक टिकाऊ हो सकती हैं। हाल के दिनों में, भारत में आधुनिक घरों के सामने के हिस्से या छत के रूप में बड़े पैमाने पर कांच का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इससे घर में सूरज की रोशनी पर्याप्त मात्रा में मिलती है और बिजली की खपत कम होती है। घर बनाने में एल्यूमीनियम और स्टील के एलॉय का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है और बड़ी इमारतों का ढांचा तैयार करने में इनका इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक घर
देश के अलग-अलग हिस्सों में पारंपरिक तरीके के घर बनाए जाते हैं, जो स्थानीय जलवायु, जमीन के आकार और वहां की संस्कृति के अनुरूप विकसित हुए हैं। भारत के हर राज्य में पारंपरिक घर अलग-अलग होते हैं, क्योंकि देश के हर इलाके में ऐसे घर स्थानीय तकनीक और वहाँ मिलने वाली सामग्रियों से बने होते हैं। ऐसे घरों के निर्माण में बड़े पैमाने पर पत्थर, ईंटें, मिट्टी, लकड़ी, चूना और फूस का उपयोग किया जाता है। भारत में पारंपरिक प्रकार के ज्यादातर घरों के भीतर एक आंगन होता है, जो लेआउट का सबसे अहम हिस्सा होता है। इससे घर के अंदरूनी हिस्सों में कुदरती रोशनी मिलती है और पूरा घर बेहद हवादार बन जाता है। ऐसे घरों की कुछ अन्य विशेषताओं में एक बड़ा बरामदा, ढलान वाली छत, जाली या जालीदार स्क्रीन, खिड़कियों और दरवाजे के ऊपर छज्जे शामिल हैं। आइए हम भारत में पारंपरिक घरों के कुछ उदाहरणों पर एक नजर डालें।
- केरल के पारंपरिक घर काफी बड़े आकार के होते हैं, जिन्हें नालुकेट्टू कहा जाता है। ऐसे घरों में चार ब्लॉक होते हैं जो एक खुले आंगन से जुड़ते हैं। एट्टुकेट्टू भी इसी प्रकार के घर होते हैं जिनमें आठ-ब्लॉक बनाए जाते हैं। आमतौर पर केरल में पारंपरिक घरों को बनाने में मिट्टी, इमारती लकड़ी और ताड़ के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कुदरत के साथ बेहतरीन तालमेल बनाते हैं। केरल में थाचू शास्त्र (आर्किटेक्चर का विज्ञान) के साथ-साथ वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार ऐसे पारंपरिक घर बनाए जाते हैं।
- कर्नाटक में बंट समुदाय के लोग पारंपरिक तौर पर घरों का निर्माण करते हैं जिसे गुट्टू घर कहा जाता है। इस तरह के घरों की छत खड़ी ढलान वाले होते हैं जो आंगन के चारों ओर दो मंजिला ब्लॉकों को जोड़ते हैं। ऐसे घरों में लकड़ी का काफी इस्तेमाल होता है जिसमें लकड़ी के झूले, लकड़ी की छतें, बारीकी से तैयार किए गए खंभे और नक्काशीदार दरवाजे शामिल हैं। इस इलाके में जबरदस्त गर्मी और भारी बरसात का सामना करने के लिए घरों को इस तरीके से डिजाइन किया जाता है। ऐसे घरों को बनाने में मिट्टी और बेहद मजबूत लकड़ी का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर गुट्टू घर के चारों ओर धान के खेत और ताड़ के पेड़ होते हैं।
- राजस्थान के पारंपरिक घरों की कारीगरी शानदार होती है, जिसमें मुगल, फारसी और भारतीय वास्तुकला की झलक दिखाई देती है। पारंपरिक तरीके से बने इन घरों, हवेलियों में बेहद खूबसूरत आंगन और बेहद बारीकी से डिजाइन किए गए झरोखे, बेहतरीन पैटर्न वाले फर्श और नक्काशीदार हम भी मौजूद होते हैं। हवेलियों का निर्माण बलुआ पत्थर, संगमरमर, लकड़ी, प्लास्टर या ग्रेनाइट से किया जाता है।
- कच्छ में पारंपरिक प्रकार के घरों को भुंगस कहा जाता है, और स्थानीय जमीन के स्वरूप तथा बेहद खराब जलवायु की वजह से इस इलाके में ऐसे घर बनाए जाते हैं। गुजरात में मिट्टी के इन गोल आकार वाले घर की छत फूस की बनी होती है। ऐसे घरों का ढांचा भूकंप के दौरान स्थिर रहता है और वे स्थानीय जलवायु का सामना करने के लिए जाने जाते हैं।
- बंगाल के इलाके में पारंपरिक तौर पर बंगले का निर्माण किया जाता है। ऐसे एक मंजिला घरों के बरामदे बंगाल की गर्मियों की उमस में थोड़ी राहत देते हैं। आमतौर पर बंगलों में ढलान वाली छतें, बड़े आकार के कमरे, बड़ी खिड़कियां और घर के सामने चौड़े बरामदे होते हैं। ‘बंगला’ हिंदी का एक शब्द है, जिसका मतलब है ‘बंगाली स्टाइल में बनाया गया घर’ और भारत में अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान यह अंग्रेजी का शब्द बन गया।
- चांग घर (एक असमिया शब्द) बाँस के बड़े डंडे या लकड़ी के खंभों के ऊपर बनाया जाने वाला घर है, जो असम के ऊपरी हिस्सों में रहने वाली जनजातियों के घरों का एक रूपांतरण है। इस तरह के घर बाढ़ और जंगली जानवरों से लोगों की हिफाजत करते हैं। पारंपरिक तौर पर, असम के मिसिंग समुदाय के लोग बाँस के खंभों के ऊपर बने घरों में रहते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
कच्चा मकान क्या होता है?
जिन घरों की दीवारें बाँस, मिट्टी, घास, ईख, पत्थर, फूस, पुआल, पत्ते और कच्ची ईंटों से बनी होती हैं, ऐसे घरों को कच्चा मकान के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर इस प्रकार के घर ग्रामीण इलाकों या शहरों के उन इलाकों में पाए जाते हैं, जहाँ मजदूर रहने के लिए अस्थायी घर बनाते हैं।
भारत में हाउसबोट कहाँ पाए जाते हैं?
भारत में केरल और कश्मीर में हाउसबोट पाए जाते हैं। केरल के पारंपरिक हाउसबोट को केट्टुवल्लम कहते हैं, जो अलाप्पुझा, कोल्लम और कुमारकोम में पाए जाते हैं। कश्मीर में श्रीनगर के डल झील में पारंपरिक हाउसबोट पाए जाते हैं। हाउसबोट में रहने के लिए कमरे, किचन और बालकनी जैसी सभी बुनियादी सुविधाएँ मौजूद होती हैं।
भारत में चारदीवारी से घिरी कम्युनिटी के भीतर बने घरों की मांग इतनी अधिक क्यों है?
हाउसिंग सोसाइटी चारदीवारी से घिरी कम्युनिटी होती है, जिसके भीतर फ्लैट के अलावा विला भी बनाए जाते हैं। ऐसी कम्युनिटी में स्विमिंग पूल, पार्क और जिम जैसी सुविधाएँ मौजूद होती हैं जिनका इस्तेमाल वहाँ रहने वाले सभी लोग कर सकते हैं। शहरों में, चारदीवारी से घिरी कम्युनिटी के भीतर बने घरों की मांग काफी अधिक है, क्योंकि इस तरह की कम्युनिटी लोगों को बेहतर लाइफस्टाइल के साथ-साथ सुरक्षा भी देती है।