Site icon Housing News

ज्येष्ठ मास में क्यों की जाती है विष्णु भगवान के त्रिविक्रम रूप की पूजा

jyeshta-month-vishnu-trivikram-avatar-puja

ज्येष्ठ मास, जिसे हिंदी में ज्येष्ठ मास या ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष कहा जाता है, हिन्दू कैलेंडर में विशेष महत्व रखता है। इस मास को विशेष आदान-प्रदान और पूजा-अर्चना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मास में भगवान विष्णु का त्रिविक्रम रूप पूजन किया जाता है और इसके पीछे कई रोचक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं।

 

त्रिविक्रम रूप का महत्व

त्रिविक्रम रूप को भगवान विष्णु का एक प्रमुख रूप माना जाता है, जिसमें विष्णु भगवान अपनी विशाल विक्रम (कद) द्वारा तीन लोकों का विस्तार करते हैं। इस रूप में विष्णु भगवान की विद्या, शक्ति और महानता प्रकट होती है। इसे ज्येष्ठ मास में पूजा जाता है ताकि भक्त विष्णु भगवान के शक्तिशाली रूप का आदर कर सके और उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सके।

 

त्रिविक्रम रूप पूजा की कथाएं

त्रिविक्रम रूप पूजा का महत्वपूर्ण दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा होती है। इस दिन भक्त त्रिविक्रम रूप के दर्शन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। त्रिविक्रम रूप पूजा के पीछे कई महत्वपूर्ण कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो हमें विष्णु भगवान के महानता और अद्भुत लीलाओं के बारे में बताती हैं।

एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच एक महायुद्ध हुआ। इस महायुद्ध में देवताओं को विजय मिली और असुरों को पराजित होना पड़ा। इस युद्ध के बाद भगवान विष्णु ने अपना त्रिविक्रम रूप धारण किया और तीनों लोकों का विस्तार किया। भगवान विष्णु ने एक चरण से आकाश छू लिया, दूसरे चरण से पृथ्वी को स्थिर किया, और तीसरे चरण से पाताल को नीचे धकेला। इस रूप में विष्णु भगवान का महानता, शक्ति और महत्व प्रकट होता है।

दूसरी कथा के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु ने देवताओं के लिए नीलकंठ महादेव के साथ मिलकर शरीर धारण किया । भगवान विष्णु ने मृत्यु के रूप में अपना शरीर धारण किया और देवताओं को सुरक्षा प्रदान की। इसलिए भगवान विष्णु का यह रूप त्रिविक्रम रूप कहलाया।

तीसरी कथा के अनुसार, एक बार देवताओं ने ब्रह्माजी से उच्चारण किया कि वे समस्त लोकों में प्रकाश बने रहें और सुरक्षा प्रदान करें। इसके उत्तर में ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि भगवान विष्णु ने उनके रूप में उत्पन्न होकर समस्त लोकों का संरक्षण किया है। यही कारण है कि त्रिविक्रम रूप पूजा में भगवान विष्णु का वंदन किया जाता है।

त्रिविक्रम रूप पूजा के दौरान भगवान विष्णु की कथाओं को सुनने से भक्त की श्रद्धा और आस्था मजबूत होती है। इस पूजा में भक्त विष्णु भगवान के समीप आते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। यह पूजा उनके धार्मिकता, भक्ति और समर्पण को बढ़ाती है। इसके अलावा, यह पूजा भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर ले जाती है और धर्मिकता के गुणों को स्थापित करती है।

त्रिविक्रम रूप पूजा भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है, जिसे विशेष आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पूजा में भक्त भगवान विष्णु के प्रतिमा को समर्पित करते हैं और उनके चरणों की पूजा करते हैं। यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव होता है जो भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

 

पूजा विधि

त्रिविक्रम रूप की पूजा में आराधना करने के लिए विधिवत तरीका अनुसरण किया जाता है। पूजा की शुरुआत में भक्त त्रिविक्रम रूप के मूर्ति को एक पवित्र स्थान पर स्थापित करते हैं। मूर्ति को पवित्र पानी से स्नान कराया जाता है और उसे सुगंधित चंदन और रोली से सजाया जाता है। इसके बाद भक्त द्वारा पूजन के लिए धूप, दीप, फूल, फल, सुपारी, नारियल आदि उपचार प्रदान किए जाते हैं। इन उपचारों को मूर्ति के आगे रखकर उन्हें अर्चना की जाती है। आरती के दौरान भक्त त्रिविक्रम रूप की महिमा को गाते हैं और उनकी आरती करते हैं। पूजा के अंत में प्रसाद का वितरण किया जाता है जो भक्तों को दिया जाता है।

त्रिविक्रम रूप की पूजा के दौरान भक्तों को विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु स्तोत्र, विष्णु चालीसा और अन्य प्रमुख मंत्रों का जाप करना चाहिए। इससे भक्त की आत्मिक एवं मानसिक शुद्धि होती है और उन्हें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। भक्त ध्यान और धारणा की स्थिति में जाकर त्रिविक्रम रूप के आभास का अनुभव करते हैं और भगवान के सामीप महसूस करते हैं।

त्रिविक्रम रूप की पूजा एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक उत्सव है जो भक्तों को विष्णु भगवान की महिमा और शक्ति का अनुभव कराता है। इस उत्सव में भक्त विष्णु भगवान के सानिध्य में आकर शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति की कामना करते हैं। यह पूजा भक्तों के जीवन में आनंद, शांति, एकाग्रता और ध्यान की स्थापना करती है और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर ले जाती है।

 

त्रिविक्रम रूप पूजा के महत्वपूर्ण दिन

त्रिविक्रम रूप की पूजा का महत्वपूर्ण दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा होती है। इस दिन भक्त त्रिविक्रम रूप के दर्शन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पूजा विधि के अनुसार आठवीं दिन को समाप्त होती है और उसके बाद पूजा सामग्री को नदी में विसर्जन किया जाता है।

ज्येष्ठ मास में त्रिविक्रम रूप की पूजा करने से भक्त विष्णु भगवान के कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं। इस पूजा में श्रद्धा और समर्पण रखकर भक्त आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चलते हैं और धर्मिकता के गुणों को स्थापित करते हैं।

 

Was this article useful?
  • 😃 (0)
  • 😐 (0)
  • 😔 (0)
Exit mobile version