सावन माह की शिवरात्रि का महत्त्व, इस तरह से करें महादेव की पूजा

इस साल 4 जुलाई से सावन माह की शुरुआत हो चुकी है। यह माह भगवान महादेव को समर्पित है, इसलिए इस माह में हर दिन भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है। हर दिन भगवान का रुद्राभिषेक किया जाता है, जिसका खास महत्व होता है। सनातन धर्म में 12 शिवरात्रि होती हैं। लेकिन सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि का अलग ही महत्व होता है। सावन मास की शिवरात्रि हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह पर्व शिवभक्तों द्वारा पूरे विश्व में विशेष आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है। सावन माह की शिवरात्रि का व्रत भक्तों द्वारा बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

सावन मास में शिवरात्रि का पर्व प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास के पूर्णिमा के आधार पर निर्धारित की जाती है। सावन मास में शिवरात्रि मनाने का विशेष महत्व होता है। इस दिन शिवभक्त भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें विशेष भक्ति भाव से प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

 

सावन मास की शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त

इस साल सावन माह की शिवरात्रि 15 जुलाई को है। जिसका शुभ मुहूर्त 15 जुलाई को संध्याकाल 8 बजकर 32 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 16 जुलाई को रात 10 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगा। इस दिन 15 जुलाई को ही शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भक्तों को स्नान के पश्चात शिवलिंग की सजावट करें। धूप, दीप, बेल आदि आरपित करें और दीपक जलाएं। विधिवत पूजा और आराधना के साथ ही शिवालय में भजन-कीर्तन करें। मन्त्रों और श्लोकों का जाप करें और मन में शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखें।

सावन मास की शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव की शक्ति और कृपा पाने का एक शानदार अवसर है। इस दिन भक्त शिव की आराधना करके अपने जीवन में सुख, शांति और आनंद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। शिवरात्रि का उत्सव भक्तों को आत्मज्ञान, समर्पण और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

 

शिवरात्रि पर बन रहे ये शुभ योग

सावन मास की शिवरात्रि पर दो शुभ योग वृद्धि और ध्रुव योग बन रहे हैं। वृद्धि योग की अवधि 16 जुलाई को सुबह 08:22 बजे तक रहेगी। इस योग में पूजा पाठ करने की मान्यता है। उसके बाद ध्रुव योग का प्रारंभ होगा, जो पूरी रात रहेगा।

 

सावन की शिवरात्रि पर ऐसे करें महादेव की पूजा

सावन की शिवरात्रि पर देवों के देव महादेव की पूजा करना एक श्रद्धालु और धार्मिक परंपरा है। यदि आप सावन की शिवरात्रि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित तरीकों से आप भगवान को प्रसन्न कर सकते है:

  • शिवलिंग की स्थापना: सुबह के समय उठकर, पूजा के लिए एक शुभ स्थान पर शिवलिंग की स्थापना करें। एक पूजा स्थल तैयार कर सकते हैं जहां आप शिवलिंग को धूप, दीप, फूल और जल से सजा सकते हैं। इस स्थान को प्राकृतिक और शुद्ध रखने के लिए उचित साफ-सफाई का ध्यान रखें।
  • उपवास का पालन: शिवरात्रि के दिन निराहार उपवास रखें या फिर फल और शाकाहारी आहार लें। व्रत के दौरान आपको सात्विक आहार लेना चाहिए और अन्न की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
  • पूजा और आराधना: शिवलिंग की पूजा करें और शिवजी के नाम से मन्त्रों का जाप करें। जल, धूप, दीप, फूल और बेल पत्र अर्पित करें। इस दिन आप शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र और अन्य शिव स्तोत्रों का पाठ कर सकते हैं। अपने मन, शरीर और आत्मा के साथ पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करें।
  • ध्यान करें: ध्यान और मेधा का अभ्यास करें ताकि आप शिव की अपार शक्ति, ज्ञान और आनंद का अनुभव कर सकें। ध्यान और मेधा का प्रयास करने से आपकी आंतरिक साधनाओं में वृद्धि होगी और आप शिव के साथ अध्यात्मिक जीवन में सामर्थ्य और संतोष की प्राप्ति करेंगे।
  • जागरण करें: रात्रि में शिवरात्रि के विशेष अवसर पर जागरण करें। भजन-कीर्तन करें, शिवजी की महिमा गाएं और उनके नाम का जाप करें। यह आपकी आत्मिक उन्नति, शांति और आनंद को बढ़ाएगा।
  • दान करें: शिवरात्रि के दिन दान करने का विशेष महत्व है। आप गरीबों को खाना, वस्त्र, धन और ज्ञान का दान कर सकते हैं। इससे आपका हृदय उदार होगा और आप शिव की कृपा को प्राप्त करेंगे।
  • अभिवादन करें: शिवरात्रि के अनुष्ठान के बाद, शिवलिंग को विधिवत प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करें और अभिवादन करें। शिवलिंग की पूजा के बाद प्रणाम करें और शिव की कृपा, आशीर्वाद और सुख की कामना करें।

 

भारत में इन जगहों धूमधाम से मनाया जाता है शिवरात्रि का पर्व

भारत के हर शिवालय या शिव मंदिर में शिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इनके अलावा भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शिवरात्रि का विशेष उत्साह रहता है, जिनमें  सोमनाथ, श्री शैल मल्लिकार्जुन, महाकाल, ओंकारेश्वर, नागेश्वर, बैजनाथ, भीमाशंकर, त्र्यंम्बकेश्वर,  घृष्णेश्वर, केदारनाथ, काशी विश्वनाथ और रामेश्वरम्‌ का प्रमुखता से लिया जाता है।

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