प्राचीन काल में हिंदुओं के बीच बहुपत्नी विवाह (एक से अधिक विवाह) को मान्यता मिली हुई थी और समाज में यह स्वीकार्य भी था। लेकिन आधुनिक भारत में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक से अधिक विवाह करना (द्विविवाह या बहुविवाह) कानूनन अपराध है। यदि कोई विवाह हिन्दू अधिनियम के अंतर्गत वैध है तो ऐसी स्थिति में पत्नी को कई तरह के कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार, पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी करना गैरकानूनी है, लेकिन यदि पहली पत्नी से विधिवत तलाक लेने के बाद दूसरी शादी की जाती है और वह कानून की नजर में मान्य है तो दूसरी पत्नी से पैदा हुए बच्चों को पति की पैतृक और अन्य संपत्तियों पर अधिकार प्राप्त होता है। दूसरी पत्नी के संपत्ति संबंधी अधिकारों को विस्तार से समझने के लिए हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 तथा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का अध्ययन आवश्यक है।
इसका सीधा अर्थ यह है कि भारत में किसी पति की दूसरी पत्नी के संपत्ति पर अधिकार मुख्यतः इन बातों पर निर्भर करते हैं –
- विवाह की वैधता
- धार्मिक कानूनों की लागू स्थिति
- दूसरी शादी के दौरान अर्जित संपत्ति
- पहले से बने हुए समझौते
- पति की मृत्यु पर, बिना वसीयत के संपत्ति का उत्तराधिकार (यदि पति की दूसरी पत्नी थी)
दूसरी शादी कब कानूनी रूप से वैध होती है?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा-5 के अनुसार, दूसरी शादी को तभी वैधानिक दर्जा प्राप्त होता है जब ‘विवाह के समय दोनों में से किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित न हो।’ उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दोहराया था कि यदि पति या पत्नी में से किसी के जीवनसाथी जीवित हैं तो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत की गई दूसरी शादी वैध नहीं मानी जाएगी। इस शर्त का उल्लंघन करने पर ऐसी दूसरी शादी हिन्दू अधिनियम की धारा-11 के अंतर्गत शून्य घोषित कर दी जाती है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि ऐसे विवाह में दोनों पक्षों की सहमति से भी इसे वैधानिक नहीं माना जा सकता।
भारत में उत्तराधिकार कानून दूसरी पत्नी को पहली पत्नी के बराबर तब ही मान्यता देता है, जब उस विवाह की वैधानिक स्थिति स्पष्ट रूप से स्थापित हो। दूसरी शादी निम्नलिखित परिस्थितियों में वैध मानी जाएगी –
पहली पत्नी की मृत्यु
पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी शादी की गई थी, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि व्यक्ति की पहली शादी से कोई संतान है, तो दूसरी पत्नी होने के बावजूद भी उस संतान के प्रति उसके कर्तव्य समाप्त नहीं होते। व्यक्ति दूसरी शादी होने के बाद भी पहली शादी से हुए बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं होता।
पहली पत्नी से तलाक
पति द्वारा पहली पत्नी से तलाक लेने के बाद दूसरी शादी की गई थी।
पहली पत्नी के बारे में 7 वर्षों से कोई जानकारी नहीं है
यदि दूसरी शादी उस समय संपन्न हुई, जब पहली पत्नी अपने पति को छोड़कर चली गई थी और पति को उसकी मौजूदगी या जीवित होने की कोई खबर नहीं थी। इस कारण दूसरी पत्नी और उसके बच्चों को पति/पिता की संपत्ति पर वैसे ही अधिकार होंगे, जैसे पहली पत्नी और उसके बच्चों को हैं। हालांकि, यदि दूसरी शादी अमान्य साबित होती है तो दूसरी पत्नी के संपत्ति पर अधिकार नगण्य या नाममात्र ही होंगे।
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उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर, यदि दूसरी शादी वैध है तो दूसरी पत्नी और उसके बच्चे को भी अपने पति/पिता की संपत्ति पर वही अधिकार मिलेंगे, जो पहली पत्नी और उसके बच्चों को प्राप्त हैं। लेकिन यदि दूसरी शादी अवैध (अमान्य) पाई जाती है, तो दूसरी पत्नी का संपत्ति पर अधिकार लगभग नगण्य रह जाएगा।
क्या दूसरी पत्नी पहली पत्नी की संपत्ति पर दावा कर सकती है?
नहीं, दूसरी पत्नी पहली पत्नी की संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती, जब तक कि वह संपत्ति उसे विधिक रूप से वसीयत या उत्तराधिकार कानूनों के तहत न मिली हो।
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भारत में दूसरी पत्नी के संपत्ति अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956/2005
यह उत्तराधिकार कानून हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों पर लागू होता है, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925
यह कानून उन हिंदुओं पर लागू होता है, जिनकी मृत्यु वसीयत (टेस्टामेंटरी उत्तराधिकार) के साथ होती है। यह कानून ईसाइयों की संपत्ति अधिकारों से भी संबंधित है। अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति वसीयत बनाकर मृत्यु करता है, तो यह अधिनियम उस पर भी लागू होगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937
यह उत्तराधिकार कानून मुसलमानों पर लागू होता है, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है।
दूसरी पत्नी की अन्य कानूनों के तहत कानूनी स्थिति
मुस्लिम कानून
मुस्लिमों के लिए बहुपत्नी विवाह (एक से अधिक पत्नी रखना) व्यक्तिगत कानून के तहत मान्य है, जिसमें एक पुरुष एक ही समय में 4 तक पत्नियां रख सकता है, इसलिए दूसरी पत्नी को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है और उसे कुछ संपत्ति अधिकार भी दिए जाते हैं।
अन्य धर्म
ईसाई और पारसी धर्मों के अंतर्गत लागू विवाह कानूनों के अनुसार बहुपत्नी विवाह की अनुमति नहीं है। यदि कोई पुरुष पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो यह दूसरी शादी अमान्य मानी जाती है।
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दूसरी शादी में दूसरी पत्नी के संपत्ति अधिकार
ऐसे में जहां विवाह की कोई कानूनी मंजूरी नहीं है, दूसरी पत्नी का अपने पति की पुश्तैनी संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा। हालाँकि, पति की स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में ऐसा नहीं है। वह वसीयत के द्वारा इसे दूसरी पत्नी सहित किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र होगा। हालांकि, अगर वसीयत छोड़े बिना उसकी मृत्य हो जाती है (कानूनी भाषा में निर्वसीयत), तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच बाँट दी जाएगी।
यदि पहली पत्नी से तलाक के बाद या पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी होती है, तो दूसरी शादी को कानूनी मान्यता होगी और दूसरी पत्नी को अपने पति की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति में पूरा अधिकार होगा (और अपने पति के क्लास-1 वारिसों के तहत आएगी)।
दूसरी पत्नी: उसकी विभिन्न कानूनी स्थितियां
विभिन्न अदालतों ने केस-टू-केस के आधार पर दूसरी पत्नी के संपत्ति अधिकारों पर अलग-अलग रुख अपनाया है। हम यहां कुछ परिस्थितियों का हवाला दे रहे हैं और बताते हैं कि वे दूसरी पत्नी की संपत्ति के अधिकारों की कानूनी स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
यदि दूसरी शादी पति की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद हुई हो
चूंकि इस दूसरी शादी को कानूनी मान्यता प्राप्त है, इसलिए दूसरी पत्नी और उसके बच्चे पति के क्लास-1 कानूनी वारिसों की हैसियत से अपने संपत्ति के अधिकारों का दावा कर सकती है। पहली पत्नी के बच्चों के साथ-साथ दूसरी पत्नी का भी संपत्ति में समान अधिकार होगा।
क्या दूसरी पत्नी पहली पत्नी की संपत्ति पर दावा कर सकती है?
नहीं, दूसरी पत्नी पहली पत्नी की संपत्ति पर तब तक दावा नहीं कर सकती, जब तक कि वह संपत्ति उसे किसी वसीयत या उत्तराधिकार कानूनों के तहत विधिक रूप से प्राप्त न हुई हो।
अगर दूसरी पत्नी ने पहली पत्नी से तलाक के बाद अपने पति से शादी की: तलाक के बाद पत्नी के अधिकार
इस मामले में भी दूसरी शादी वैध है। इसलिए, यह दूसरी पत्नी को उसके पति की संपत्ति में अधिकार देता है। चूंकि मौजूदा कानून के तहत पहली पत्नी का तलाक हो चुका है, इसलिए उसे अपने पूर्व पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा। हालांकि, उसके बच्चे क्लास-1 वारिस बने रहेंगे और पैतृक संपत्ति में अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं।
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यदि संपत्ति पति और पहली पत्नी के सह–स्वामित्व की है
चूंकि संपत्ति के मालिक पति और पहली पत्नी संयुक्त रूप से हैं, पत्नी संपत्ति के अपने हिस्से पर दावा करने में सक्षम होगी। दूसरी पत्नी ऐसी संपत्तियों पर कोई दावा नहीं कर सकती है, चाहे दूसरी शादी की कानूनी स्थिति जो भी हो। हालांकि, पहली पत्नी की मृत्यु की स्थिति में दूसरी पत्नी ऐसी संपत्तियों में दावा कर सकती है।
अगर पहली पत्नी से तलाक हो गया हो: तलाक के बाद पत्नी के अधिकार
पहली पत्नी अपने पति की स्व-अर्जित संपत्ति पर दावा कर सकती है, जिसे पहली शादी के दौरान खरीदा गया था, भले ही दोनों तलाक लेने का फैसला करें। यदि संपत्ति पहली पत्नी और पति के नाम पर पंजीकृत है, तो अदालत हरेक पक्ष द्वारा किए गए योगदान का फैसला करेगी और तलाक के समय संपत्ति का उसीके अनुसार बँटवारा करेगी।
यदि संपत्ति पति के नाम से पंजीकृत है और वह एकमात्र कर्जदार है, तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पहली पत्नी तलाक के समय इस पर दावा नहीं कर सकती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि संपत्ति शादी के बाद खरीदी गई थी। दूसरी पत्नी उस संपत्ति पर दावा कर सकती है।
पहली पत्नी से तलाक के बिना दूसरी शादी
यदि हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू होता है और पहली पत्नी से तलाक के बिना दूसरी शादी की जाती है, तो दूसरी पत्नी संपत्ति में कोई दावा नहीं कर सकती, क्योंकि उसकी यह शादी अवैध मानी जाएगी।
ध्यान दें कि हालांकि इस्लाम में बहुपत्नी विवाह (एक पुरुष चार पत्नियां रख सकता है) की अनुमति है, लेकिन मुस्लिम पुरुष भी दूसरी शादी नहीं कर सकते यदि वे अपनी पहली पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं।
“यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो पवित्र कुरान के निर्देशों के अनुसार, वह दूसरी शादी नहीं कर सकता,” इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा।
पति की स्व-अर्जित संपत्ति में दूसरी पत्नी का अधिकार
किसी व्यक्ति की स्व-अर्जित संपत्ति (self-acquired property) उसके जीवन भर उसकी अपनी होती है और वो किसी भी तरह से वसीयत के जरिए इसे किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र होता है। अपने जीवनकाल के दौरान भी वो इस संपत्ति को जिसे चाहे उसे उपहार के तौर पर दे सकता है।
परिणामस्वरूप, दूसरी पत्नी अपने मृत पति की सेल्फ अक्वायर्ड प्रॉपर्टी पर केवल उसी हालत में दावेदारी कर सकती है अगर मृतक द्वारा कोई वसीयत न छोड़ी गई हो। अगर वसीयत में मृतक ने अपने सेल्फ अक्वायर्ड प्रॉपर्टी किसी और को देने का इरादा ज़ाहिर किया है तो मृतक की इच्छा के हिसाब से ही संपत्ति का बंटवारा होगा।
अगर उसके दिवंगत पति ने वसीयत के द्वारा अपनी स्व-अर्जित संपत्ति किसी दूसरे को दे दिया है, और दूसरी पत्नी को उसकी मृत्यु के बाद इस बारे में पता चलता है, तो ऐसी संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने के लिए उसके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हालाँकि, अन्य आधारों पर वसीयत को चुनौती देने का विकल्प हमेशा खुला रहता है।
दूसरी पत्नी का भरण-पोषण का अधिकार
दंड प्रक्रिया संहिता, 1974 की धारा-125 के तहत, दूसरी पत्नी को अपने विवाह से कोई भरण-पोषण नहीं मिल सकता क्योंकि कानून उसे अमान्य और अवैध मानता है। हालांकि, दूसरी पत्नी के वे बच्चे, जिनका जन्म ऐसे विवाह से हुआ है, जो कानूनी रूप से मान्य नहीं है, उन्हें भरण-पोषण की सुविधा मिल सकती है, बशर्ते वे नाबालिग हों। यदि वे बच्चे मानसिक या चिकित्सकीय कारणों से आत्मनिर्भर नहीं हो सकते, तो वे बालिग होने के बाद भी अपने पिता से आर्थिक सहायता की मांग कर सकते हैं।
हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में अदालतों ने यह माना है कि यदि दूसरी पत्नी यह साबित कर सके कि उसे अपने पति की पहली शादी के बारे में जानकारी नहीं थी, तब वह भी पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। यदि पति भरण-पोषण देने से इनकार करता है, तो वह कोर्ट का सहारा ले सकती है।
एडवोकेट मिश्रा के अनुसार, इस स्थिति में यदि पति अपनी दूसरी पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करता है, तो दूसरी पत्नी उसे अदालत में घसीट सकती है। हालांकि, इसके लिए उसे यह साबित करना होगा कि जब उसका विवाह हुआ, तब उसे पति की पहली शादी के बारे में जानकारी नहीं थी।
हालांकि, इस पहलू पर अलग-अलग अदालतों ने अलग-अलग निर्णय दिए हैं। वर्ष 2021 में मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने यह फैसला सुनाया था कि अगर दूसरी पत्नी को पहली शादी की जानकारी नहीं भी थी, तब भी उसे कानूनी रूप से पत्नी नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा, “मान लें कि अपीलकर्ता (दूसरी पत्नी) को प्रतिवादी (पति) की पहली शादी की जानकारी नहीं थी और वह इस बात को साबित भी कर देती है, तब भी यह नहीं माना जा सकता कि वह प्रतिवादी की वैधानिक पत्नी है।”
दूसरी शादी से हुए बच्चों के संपत्ति का अधिकार
दूसरी शादी से हुए बच्चों के संदर्भ में जैविक माता-पिता की कानूनी जिम्मेदारियों का प्रभाव बच्चे की सम्पत्ति और भरण-पोषण के अधिकारों पर पड़ेगा।
दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे – चाहे वैध या अवैध – का अपने पिता की संपत्ति में पहली पत्नी के बच्चों के समान अधिकार है, क्योंकि दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चों को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के तहत वैध माना जाता है। वे अपने पिता के class-1 के कानूनी वारिस होंगे और उनकी मृत्यु की होने पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के अनुसार संपत्ति के वारिस होंगे।
सुप्रीम कोर्ट का यह भी विचार है कि दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे पिता की संपत्ति पर दावा कर सकते हैं, भले ही शादी अवैध हो।
हालाँकि दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चों को पैतृक संपत्ति को अन्य क्लास-1 वारिसों के साथ साझा करना होगा, वे पिता की स्वयं की अर्जित संपत्ति के एकमात्र मालिक बन सकते हैं, अगर वो ऐसी वसीयत छोड़कर जाते हैं।
वसीयत न होने पर मृत व्यक्ति के सभी कानूनी वारिसों द्वारा स्व-अर्जित संपत्ति पर दावा किया जाएगा।
दूसरी शादी से जन्मे बच्चों को पुश्तैनी संपत्ति अन्य क्लास-1 उत्तराधिकारियों के साथ शेयर करनी होगी, लेकिन यदि व्यक्ति ने वसीयत में ऐसा इरादा जाहिर किया हो, तो वे उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति के एकमात्र मालिक बन सकते हैं।
यदि वसीयत नहीं है तो उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति पर मृतक के सभी वैध उत्तराधिकारियों का दावा होगा।
एक Reddit पोस्ट में दूसरे विवाह से जन्मे बेटे ने संपत्ति को लेकर अपनी चिंता और सवाल साझा किए हैं। पढ़िए उस स्टोरी के बारे में यहां विस्तार से –
“मेरे पापा (हिंदू) ने पहली पत्नी से एक बेटा (चलो उसे ‘बेटा A’ मान लेते हैं) और एक बेटी (40 साल) को जन्म दिया था। फिर शादी के 20 साल बाद उन्होंने दूसरी शादी की, जिससे मेरे और मेरे छोटे भाई (क्रमशः 35 और 30 साल) का जन्म हुआ। पापा का एक बिजनेस है, जिसे बेटा A बीते 15 साल से संभाल रहा है। वह एक आलीशान बंगले में रहता है, जहां 24 घंटे नौकर-चाकर रहते हैं।
हम दोनों भाई चार गलियों दूर एक फ्लैट में रहते हैं। पहले ये दो मंजिला मकान हुआ करता था, जिसे पापा और उनके पहले बेटे ने मिलकर गिरा दिया और अपार्टमेंट बनवाकर बिजनेस के लिए पैसा जुटाया।
पापा ने कहा था कि उन्होंने हमारे लिए एक करोड़ रुपये नकद और तीन फ्लैट यूनिट्स बचाकर रखे हैं, ये सभी अभी उनके नाम पर हैं। वे बार-बार कहते हैं कि उनके बाद बेटा A हमारा ख्याल रखेगा, लेकिन सच कहें तो हम उसे ज्यादा जानते नहीं।
सवाल यह है कि जब पापा नहीं रहेंगे, तो क्या ये संपत्ति हमारे नाम ट्रांसफर होगी? अगर बेटा A कोर्ट में यह दावा करे कि सारी संपत्ति उसी की है क्योंकि हम ‘कानूनी बेटे’ नहीं हैं, तो क्या हम केस लड़ सकते हैं? हमारी जानकारी के अनुसार पापा ने कोई वसीयत नहीं बनाई है। हमारे पास राशन कार्ड, पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं, जिन पर पापा का नाम दर्ज है।”
रेडिट के एक यूजर ने इस बात को साफ करते हुए लिखा कि “इस संदर्भ में दो तरह की संपत्तियां होती हैं, एक होती है स्वअर्जित संपत्ति और दूसरी होती है पैतृक संपत्ति। स्वअर्जित संपत्ति वह होती है, जिसे कोई व्यक्ति अपने परिश्रम और कमाई से खुद खरीदता है। वहीं, दूसरी ओर पैतृक संपत्ति वह होती है जो किसी को जन्म से ही मिलती है। इसे सीधे शब्दों में कहें तो यह विरासत में मिली संपत्ति होती है। हिंदू कानून के तहत यदि कोई संपत्ति व्यक्ति ने खुद की कमाई से खरीदी है तो उस पर उसका पूरा अधिकार होता है और वह जैसा चाहे वैसा फैसला ले सकता है। लेकिन अगर वह संपत्ति पैतृक है मतलब परदादा या उससे ऊपर की पीढ़ी की संपत्ति है और वह संपत्ति दादा, फिर पिता और फिर उनके बच्चों तक पहुंची है, तो उस पर सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं बल्कि सभी उत्तराधिकारियों का हिस्सा होता है। ऐसे में कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि यह पूरी संपत्ति केवल किसी एक व्यक्ति को मिलेगी और दूसरे को नहीं। वह वसीयत (will) में इस तरह का निर्णय नहीं ले सकता।”
जहां तक बात दूसरी पत्नी से जन्मे बच्चों की है, तो उन्हें भी संपत्ति में कानूनी अधिकार होता है। लेकिन अकसर यह अधिकार उन्हें पिता की मृत्यु के बाद संघर्ष करके हासिल करना पड़ता है, इसलिए बेहतर यही होगा कि एक प्रतिष्ठित सिविल वकील से सलाह लें और पहले से ही संपत्ति का बंटवारा करवा लें, जिसमें दूसरी पत्नी के बच्चों के लिए भी अलग से हिस्सा तय कर दिया जाए।
दूसरी पत्नी की पहली शादी से हुए बच्चों के अधिकार क्या हैं?
यदि दूसरी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत वैध भी हो, तब भी दूसरी पत्नी की पहली शादी से हुए बच्चों को उसके दूसरे पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में वारिसों की श्रेणी में ‘पुत्र’ शब्द का उपयोग किया गया है, जिसमें ‘सौतेला पुत्र’ शामिल नहीं होता। इस कानून में ‘पुत्र’ का तात्पर्य केवल जन्म से उत्पन्न पुत्र या विधिवत दत्तक पुत्र से होता है, सौतेले पुत्र से नहीं।
यह भी देखें: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक हिंदू बेटी के संपत्ति के अधिकार
दूसरी पत्नी की बेटी के पैतृक संपत्ति में क्या अधिकार हैं?
दूसरी पत्नी की बेटी को पैतृक संपत्ति में किसी भी अन्य बेटी के समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह अधिकार उन व्यक्तिगत कानूनों के अधीन होते हैं, जो संबंधित पक्षों पर लागू होते हैं।
क्लास-1 कानूनी उत्तराधिकारी कौन हैं? |
अगर कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत छोड़े (निर्वसीयत) मर जाता है, तो उसकी संपत्ति पहले क्लास-1 के वारिसों को दी जाएगी। क्लास-1 के वारिसों में शामिल हैं:
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क्लास-2 कानूनी उत्तराधिकारी कौन हैं? |
यदि कोई क्लास-1 वारिस अपना दावा पेश करने के लिए मौजूद नहीं है, तो मृतक की संपत्ति उसके क्लास-2 उत्तराधिकारियों के बीच विभाजित की जाती है। किसी व्यक्ति के क्लास-2 वारिसों में शामिल हैं:
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यह भी देखें: मालिक की मृत्यु के बाद संपत्ति ट्रांसफर के बारे में सब कुछ जानें
दूसरी शादी से जन्मे बच्चों के अधिकार क्या हैं?
यहां विभिन्न धार्मिक कानूनों के तहत दूसरी शादी से जन्मे बच्चों के अधिकारों का उल्लेख किया गया है।
हिंदू कानून
- यदि दूसरी शादी हिंदू कानून के तहत वैध है, तो दूसरी पत्नी से जन्मे बच्चों को पहली पत्नी के बच्चों के समान संपत्ति में अधिकार मिलेगा।
- यदि शादी वैध नहीं है, तो दूसरी शादी से जन्मे बच्चे अपने पिता की संपत्ति (स्वअर्जित और पैतृक) पर अधिकार रख सकते हैं, लेकिन संयुक्त पैतृक संपत्ति पर नहीं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के अनुसार, ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे।
पारसी कानून
- पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 की धारा 3 (b) के अनुसार, यदि विवाह अवैध भी हो, तो भी उस विवाह से जन्मे बच्चे को वैध माना जाएगा।
ईसाई कानून
- ईसाई कानून के तहत, दूसरी शादी या निरस्त (annulled) विवाह से जन्मे बच्चों को वैध माना जाएगा और उनके पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार होगा।
मुस्लिम कानून
मुस्लिम कानून के अनुसार, पिता को अपने अवैध (illegitimate) बच्चे का भरण-पोषण करने की बाध्यता नहीं है। हालांकि, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत, पिता को बच्चे के भरण-पोषण के लिए भुगतान करने का निर्देश दिया गया है।
लिव-इन रिलेशनशिप में दूसरी पार्टनर से जन्मे बच्चों के अधिकार क्या हैं?
लिव-इन पार्टनर को पैतृक या स्वयं अर्जित संपत्ति पर अधिकार तो नहीं मिलता, लेकिन घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA) के तहत उन्हें भरण-पोषण पाने का कानूनी अधिकार है। वहीं, लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को वैवाहिक संबंध से जन्मे बच्चों के समान ही संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
द्विविवाह क्या है?
पहले से ही शादीशुदा व्यक्ति से शादी करने को द्विविवाह कहते हैं। मौजूदा कानून किसी व्यक्ति को किसी शादीशुदा व्यक्ति (जिसका जीवनसाथी जीवित हो) से शादी करने की अनुमति नहीं देते हैं।
बहुविवाह क्या है?
एक से अधिक व्यक्तियों से विवाह करने को बहुविवाह कहते हैं। बहुपत्नीत्व उस पुरुष को कहते हैं, जिसकी एक से अधिक पत्नियाँ होती हैं।
बहुपतित्व क्या है?
किसी महिला द्वारा एक से अधिक पतियों से शादी करने को बहुपतित्व कहते हैं।
दूसरी पत्नी के अधिकार: कोर्ट ने जो कहा उसकी नवीनतम जानकारी
पत्नी द्वारा अलग-अलग धाराओं के तहत गुजारा भत्ता मांगने के खिलाफ कोई कानून नहीं: हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पत्नी को दो अलग-अलग क़ानूनों के तहत मुआवजे की मांग करने से रोकता हो। हाईकोर्ट ने अपना फैसले में रजनेश बनाम नेहा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी कानून के किसी एक प्रावधान के तहत गुजारा भत्ता ले रही है, तो अदालत को एक अन्य धारा के तहत गुजरा भत्ता पर फैसला करते समय पत्नी को मिलने वाले गुजारा भत्ता को ध्यान में रखना चाहिए।
हिंदू महिला द्वारा पार्टीशन डीड से प्राप्त पारिवारिक संपत्ति विरासत नहीं है: हाईकोर्ट
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि पंजीकृत विभाजन विलेख (पार्टीशन डीड) के माध्यम से किसी हिंदू महिला द्वारा प्राप्त पैतृक संपत्ति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत विरासत नहीं माना जा सकता है। अदालत ने कहा कि ऐसी संपत्ति महिला के निधन के बाद पिता के उत्तराधिकारियों के पास वापस नहीं जाएगी।
इद्दत के बाद भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला भरण-पोषण की हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) ने फैसला सुनाया है कि भारत में एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूरे जीवन के लिए CRPC (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 125 के तहत मेंटिनेंस का दावा करने की हकदार है, वरन उसने दूसरी शादी न की हो। CRPC की धारा 125 पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को भरण-पोषण देने के नियम स्थापित करती है।
विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चे उसके दूसरे पति की संपत्ति के वारिस बन सकते हैं: हाईकोर्ट
गुजरात उच्च न्यायालय ने जून 2022 में फैसला दिया कि किसी विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चों को उसके दूसरे पति से प्राप्त संपत्ति में अधिकार है। कोर्ट ने आगे कहा कि ये तब भी वैध होगा जब बच्चे शादी के बगैर या अवैध संबंध से पैदा हुए हों।
फिर से शादी करने से समझौता नहीं खत्म किया जा सकता: हाईकोर्ट
एक मामले में, एक कपल ने साल 2006 में शादी की और उनकी शादी 2015 में समाप्त हो गई जिसके बाद दोनों के बीच समझौता हुआ. समझौते के अंतर्गत तय हुआ कि पति को स्थायी गुजारा भत्ता के तौर पर पत्नी को 30 लाख रुपये देने होंगे.
पत्नी के खिलाफ गुजारा भत्ता मांगने के खिलाफ कोई कानून नहीं: हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानून का कोई प्रावधान नहीं है जो पत्नी को दो अलग-अलग कानूनों के तहत मुआवजे की मांग करने से रोकता हो। हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए रजनीश बनाम नेहा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि पत्नी को कानून के एक प्रावधान के तहत गुजारा भत्ता मिल रहा है तो अदालत को पत्नी को मिलने वाले गुजारे भत्ते को ध्यान में रखना चाहिए जबकि दूसरी धारा के तहत गुजारा भत्ता सुनिश्चित करना चाहिए।
हिंदू महिला को विभाजन विलेख के जरिए मिली पारिवारिक संपत्ति विरासत में नहीं: हाईकोर्ट
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि पंजीकृत विभाजन विलेख के जरिए हिंदू महिला को मिली पैतृक संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत विरासत की श्रेणी में नहीं आ सकती। अदालत ने कहा कि नतीजतन, ऐसी संपत्ति महिला के निधन के बाद उसके पिता के वारिसों को वापस नहीं जाएगी।
दहेज मिलने से माता-पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार नहीं टूटता: हाईकोर्ट
बंबई उच्च न्यायालय की गोवा पीठ ने कहा है कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में उनका अधिकार इसलिए समाप्त नहीं होता क्योंकि उनकी शादी के समय दहेज दिया गया था।
पीठ ने कहा, ‘अगर यह मान भी लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया तो इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाता. बेटियों के अधिकारों को उस तरीके से समाप्त नहीं किया जा सकता था जिस तरह से पिता के निधन के बाद भाइयों द्वारा उन्हें समाप्त करने का प्रयास किया गया है, “पीठ ने उस मामले में अपना आदेश देते हुए कहा जहां एक भाई ने अपनी बहन की सहमति के बिना स्थानांतरण विलेख किया है।
तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत के बाद भी गुजारा भत्ता की हकदार: हाईकोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में तलाकशुदा मुस्लिम महिला यदि दूसरी शादी के लिए अयोग्य घोषित नहीं की जाती है तो वह आजीवन गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार है। सीआरपीसी की धारा 125 पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने के नियमों को स्थापित करती है।
विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चे सौतेले पिता की संपत्ति के वारिस हो सकते हैं: हाईकोर्ट
विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चों को उसकी संपत्ति में अधिकार होता है जो महिला अपने दूसरे पति से प्राप्त करती है, गुजरात उच्च न्यायालय ने जून 2022 में आयोजित किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह तब भी सच है जब बच्चे विवाह से या अवैध संबंध के माध्यम से पैदा हुए थे।
पति और पहली पत्नी की संयुक्त संपत्ति
यदि किसी संपत्ति पर पति और पहली पत्नी दोनों का संयुक्त स्वामित्व है तो उस संपत्ति पर दूसरी पत्नी का कोई अधिकार नहीं होता, लेकिन यदि पहली पत्नी का निधन हो जाता है तो उस स्थिति में दूसरी पत्नी को उस संपत्ति पर कानूनी अधिकार प्राप्त हो सकता है।
मिश्रित परिवारों के लिए एस्टेट प्लानिंग टिप्स
- वसीयत और ट्रस्ट: मिश्रित परिवारों की जरूरतों के अनुसार तैयार की गई वसीयत और ट्रस्ट दस्तावेज बहुत जरूरी होते हैं। इससे संपत्ति को लेकर होने वाली गलतफहमियों और झगड़ों से बचा जा सकता है।
- लाभार्थी जानकारी अपडेट करें: जीवन बीमा, रिटायरमेंट अकाउंट्स और अन्य वित्तीय योजनाओं में नामित लाभार्थियों की जानकारी समय-समय पर अपडेट करते रहें। इससे भविष्य में संपत्ति वितरण को लेकर कोई उलझन नहीं होगी।
पारदर्शी संवाद: अपने परिवार के साथ एस्टेट प्लानिंग को लेकर स्पष्ट और खुली बातचीत करें। इससे सभी को अपनी भूमिका समझ में आती है और अनिश्चितताओं से बचा जा सकता है।
भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में दूसरी पत्नी के लिए उत्तराधिकार कानून
भारत | यूके | यूएसए | |
बहुविवाह | · भारत में हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम और हाल ही में लागू भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत बहुविवाह अवैध है।
· इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त है। |
यूनाइटेड किंगडम में बहुविवाह अवैध है। | संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुविवाह अवैध है। |
पहली पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरी शादी | गैरकानूनी | गैरकानूनी | गैरकानूनी |
दूसरी पत्नी के अधिकार | · यदि दूसरा विवाह वैध है, तो वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत प्रथम श्रेणी की उत्तराधिकारी है।
· अवैध विवाह की स्थिति में दूसरी पत्नी का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। |
· ये अधिकार विवाह की वैधता पर आधारित हैं।
· उत्तराधिकार वसीयत पर निर्भर करता है। · वसीयत न होने की स्थिति में, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पत्नी को संपत्ति विरासत में मिलेगी। |
· ये अधिकार विवाह की वैधता पर आधारित हैं।
· उत्तराधिकार वसीयत पर निर्भर करता है। · वसीयत न होने की स्थिति में, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पत्नी को संपत्ति विरासत में मिलेगी। |
दूसरी पत्नी के बच्चों के अधिकार | कुछ प्रकार की संपत्तियों पर कानूनी और अवैध दोनों तरह की दूसरी शादियों की अनुमति है। | ब्रिटेन में, माता-पिता की वैवाहिक स्थिति चाहे जो भी हो, बच्चों को समान उत्तराधिकार अधिकार प्राप्त हैं। | सभी बच्चे, चाहे उनकी वैधानिकता कुछ भी हो, अपने जैविक माता-पिता से विरासत प्राप्त कर सकते हैं। |
Housing.com का पक्ष
संपत्ति का उत्तराधिकार एक जटिल विषय है और जब इसमें दूसरी शादी शामिल हो तो यह और भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे मामलों में किसी पेशेवर वकील से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है, जो आपको विस्तृत जानकारी और सही मार्गदर्शन प्रदान कर सके।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
दूसरी पत्नी के कानूनी अधिकार क्या हैं?
दूसरी पत्नी के कानूनी अधिकार उसकी शादी की कानूनी स्थिति से निर्धारित होते हैं। अगर शादी वैध है, तो दूसरी पत्नी को भी पहली पत्नी के समान कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।
पति की संपत्ति में दूसरी पत्नी के क्या अधिकार हैं?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, दूसरी पत्नी का अपने पति की संपत्ति में वही अधिकार है जो पहली पत्नी का होता है, अगर शादी पहली पत्नी से तलाक या उसके निधन के बाद हुई हो।
क्या दूसरी पत्नी पहली पत्नी की संपत्ति पर दावा कर सकती है?
नहीं, दूसरी पत्नी उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती जो कानूनी रूप से पहली पत्नी की है।
क्या हिन्दू दो शादी कर सकता है?
अगर पहला पति/पत्नी जीवित है या दूसरी शादी के समय पूर्व पति/पत्नी के बीच तलाक नहीं हुआ है, तो कानून दूसरी शादी को मान्यता नहीं देता है।
दूसरी पत्नी के बच्चों के संपत्ति के अधिकार क्या हैं?
दूसरी पत्नी के बच्चों को भी पहली पत्नी के बच्चों के समान अधिकार प्राप्त हैं। सभी बच्चे क्लास- 1 के वारिस श्रेणी में आते हैं और उनकी पैतृक संपत्ति में समान हिस्सेदारी के हकदार होते हैं।
क्या पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी हिंदू के लिए वैध है?
यदि पहली पत्नी जीवित है या पहली पत्नी और पति के बीच तलाक अंतिम रूप से संपन्न नहीं हुआ है, तो दूसरी शादी को कानून वैधता नहीं देता।
दूसरी पत्नी के बच्चों के संपत्ति अधिकार क्या हैं?
दूसरी पत्नी के बच्चों के अधिकार पहली पत्नी के बच्चों के समान होते हैं। किसी पुरुष के सभी बच्चे क्लास-1 वारिस की श्रेणी में आते हैं और उनकी पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा पाते हैं।
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