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आज हम जानेंगे शिव मानस पूजा हिंदी में अर्थ के साथ

शिव मानस पूजामानसिक रूप से की हुई भगवान शिव की पूजा।

मानसिक शिव पूजा का अर्थ है, बिना किसी विशेष स्थान पर गये और बिना कोई पूजन सामग्री जुटाए किसी भी स्थान में रहते हुए केवल मन्त्रों से भगवान शिव की पूजा करना। शिव मानस पूजा सामान्य तरीके से की गई पूजा से किसी भी तरह कम नहीं है। समयाभाव या साधन नहीं जुटा पाने की स्थिति में आप भी शिव मानस पूजा कर सकते हैं। 

 

 

जप करते समय मंत्र का अर्थ जानना बहुत जरूरी होता है। शिव मानस पूजा अर्थ समेत नीचे समझाई गयी है। भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आप प्रतिदिन भक्ति के साथ इसका जाप कर सकते हैं।

 

श्री शिव मानस पूजा

 

रत्नैःकल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं दिव्यांबरं

नानारत्न विभूषितं मृगमदामॊदांकितं चंदनम्

जातीचंपक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं धूपं तथा

दीपं दॆव दयानिधॆ पशुपतॆ हृत्कल्पितं गृह्यताम्

 

अर्थ- हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,

यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्न से विभूषित दिव्य वस्त्र,

कस्तूरि आदि गन्ध से समन्वित चन्दन,

जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि तथा

धूप और दीप ग्रहण कीजिये।

 

सौवर्णॆ नवरत्नखंड रचितॆ पात्रॆ घृतं पायसं

भक्ष्यं पंचविधं पयॊदधियुतं रंभाफलं पानकम्

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखंडॊज्ज्वलं

तांबूलं मनसा मया विरचितं भक्त्याप्रभॊ स्वीकुरु

 

अर्थ मैंने नवीन रत्नखण्डों से जड़ित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन, कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक,

कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं।

कृपया मेरे ह्रदय में भक्ति भाव से की गई इस भेंट को स्वीकार करें।

 

छत्रं चामरयॊर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं

वीणा भॆरि मृदंगकाहलकला गीतं नृत्यं तथा

साष्टांगं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्यॆतत्समस्तं मया

संकल्पॆन समर्पितं तव विभॊ पूजां गृहाण प्रभॊ

 

अर्थ- छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण,

वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,

गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति

यह सब मैं अपनी हार्दिक इच्छा से प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया आपको अर्पित की गई इस पूजा को स्वीकार करें।

 

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरिरं गृहं

पूजा तॆ विषयॊपभॊगरचना निद्रा समाधिस्थितिः

संचारः पदयॊः प्रदक्षिणविधिः स्तॊत्राणि सर्वा गिरॊ

यद्यत्कर्म करॊमि तत्तदखिलं शंभॊ तवाराधनम्

 

अर्थ- हे शम्भो, मेरी आत्मा तुम हो,

बुद्धि पार्वतीजी हैं,

प्राण आपके गण हैं,

शरीर आपका मन्दिर है,

सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,

निद्रा समाधि है, मेरा चलनाफिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं।

इस प्रकार मैं जोजो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है।

 

करचरण कृतं वाक्कायुजं कर्मजं वा

श्रवण नयनजं वा मानसं वाऽपराधम्

विहितमविहितं वा सर्वमॆतत्क्षमस्व

जय जय करुणाब्धॆ श्री महादॆव शंभॊ

 

 

अर्थ हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो। आप क्षमा कीजिये।

हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो।

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