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विरासत में मिली संपत्ति पर कैसे होगी टैक्स की गणना

Taxation of property received through inheritance

आप जो भी कमाते हैं, उस पर आपको टैक्स देना पड़ता है. यह इनकम या तो सैलरी के रूप में होनी चाहिए या फिर बिजनेस से. इसके अलावा यह निष्क्रिय आय (Passive Income) जैसे कैपिटल गेन्स, ब्याज या संपत्ति से मिलने वाली किराये की आय हो सकती है. किराये की आय पर टैक्स प्रॉपर्टी के स्वामित्व के आधार पर लगता है. इसलिए जब तक आप प्रॉपर्टी के मालिक नहीं बनेंगे आपको टैक्स देना नहीं पड़ेगा. विरासत की स्थिति में, टैक्स देने की स्थिति तब आएगी, जब आप प्रॉपर्टी के मालिक बन जाएंगे.

आप किसी संपत्ति को दो तरीकों से हासिल कर सकते हैं:

वसीयत के जरिए आप अपनी मर्जी से जैसे चाहे संपत्ति विरासत में दे सकते हैं. लेकिन एक मुस्लिम वसीयत के जरिए एक-तिहाई से ज्यादा संपत्ति विरासत में नहीं दे सकता. मुस्लिम अपने उत्तराधिकारियों की मर्जी से वसीयत के जरिए पूरी संपत्ति विरासत में दे सकता है. वसीयत के तहत, विल करने वाले शख्स (जिसे वसीयतकर्ता कहा जाता है) की मौत हो जाती है, तो उसकी सभी संपत्तियों का प्रबंधन वसीयत के तहत नियुक्त मैनेजर के पास आ जाता है. इसलिए, जब वसीयत बनाने वाला शख्स मर जाता है तो उस वर्ष में अचल संपत्ति से हुई आय पर अलग तरह से टैक्स लगेगा.

मरने वाले के उत्तराधिकारी/प्रतिनिधि को साल की शुरुआत से लेकर मरने की तारीख तक इनकम टैक्स रिटर्न्स भरना पड़ता है. साथ ही बतौर कानूनी प्रतिनिधि रिटर्न्स फाइल करने में प्रॉपर्टी से हुई आय को शामिल करना होता है. मरने की तारीख से लेकर संपत्ति के बंटवारे तक, वसीयत के प्रबंधक इनकम टैक्स रिटर्न्स फाइल करने के जिम्मेदार होते हैं. इस अवधि की आय निष्पादकों द्वारा दाखिल किए जाने वाले रिटर्न में एस्टेट ऑफ लेट (मृतक) की स्थिति में शामिल की जाएगी.

अगर संपत्ति का बंटवारा उसी वर्ष में किया गया है, जिसमें शख्स की मृत्यु हुई है तो जिस शख्स को प्रॉपर्टी मिलेगी, उसे अधिग्रहण की तारीख से लेकर साल के अंत तक अपने पर्सनल इनकम टैक्स रिटर्न्स में प्रॉपर्टी से हुई आय शामिल करनी पड़ेगी. यह एक दिन के लिए भी हो सकता है. इसलिए जिन लोगों को विरासत के तहत मिली संपत्ति पर टैक्स चुकाना है, वह प्रबंधक द्वारा असलियत में बांटी गई संपत्ति में लिए गए समय पर निर्भर करेगा.

वसीयत में न मिलने वाली संपत्ति पर कैसे लगेगा टैक्स:

अगर मरने वाले ने वसीयत नहीं बनाई है या फिर विचाराधीन संपत्ति को वसीयत के तहत निपटाया नहीं गया है तो ऐसे में उस शख्स के मरते ही प्रॉपर्टी कानूनी वारिसों के नाम हो जाएगी. इसलिए जो उत्तराधिकारी विरासत के हकदार हैं, वे शख्स की मौत के दिन प्रॉपर्टी के मालिक बन जाते हैं वो भी बिना कुछ किए. वर्ष के 1 अप्रैल से लेकर मरने की तारीख तक प्रॉपर्टी से हुई आय पर टैक्स कानूनी वारिसों को चुकाना होगा. बाकी की अवधि में टैक्स उसे चुकाना होगा, जिसे प्रॉपर्टी विरासत में मिलेगी.

प्रॉपर्टी किराये पर देने के मामले में, अगर एक से ज्यादा उत्तराधिकारियों को विरासत में संपत्ति मिली है तो वे प्रॉपर्टी के सह-मालिक बन जाते हैं. हर किसी को मालिक माना जाएगा और उनके शेयर के मुताबिक व्यक्तिगत तौर पर टैक्स लगेगा न कि जॉइंट ओनर्स के तौर पर. इसके अलावा ‘असोसिएशन और पर्सन्स’ को लेकर भी टैक्स लगेगा.

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