विरासत में मिली संपत्ति पर नॉमिनेशन का क्या असर पड़ता है, समझिए

नामांकन शेयर, बैंक डिपॉजिट, म्युचुअल फंड्स इन्वेस्टमेंट्स, बैंक लॉकर्स के लिए दिए जा सकते हैं। लेकिन अचल संपत्तियों के लिए नियम व उलझनें अलग-अलग हैं। आइए आपको बताते हैं कि ये कैसे काम करते हैं।
भारतीय संसद में एक सवाल के जवाब में कहा गया कि बैंकों के पास पिछले 10 या उससे ज्यादा वर्षों से 5.124.98 करोड़ रुपये पड़े हैं, जिन पर किसी ने दावा नहीं किया है। अगर इस तथ्य को मानें कि बैंकों का ज्यादा इस्तेमाल शिक्षित लोग करते हैं तो उसे देखते हुए यह काफी बड़ी रकम है। यह राशि कम भी हो सकती है, अगर डिपॉजिटर ने बैंक अकाउंट में नॉमिनी दर्ज किया हुआ हो तो। आइए आपको बताते हैं कि नॉमिनी कौन होता है और उत्तराधिकार पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है।

क्या है नॉमिनेशन?

नॉमिनेशन एक प्रकिया है, जिसके तहत कोई शख्स अपनी मृत्यु के बाद उसकी ओर से किसी ओर को संपत्ति पाने का अधिकार सौंपता है। मालिक की मौत के बाद यह लागू हो जाता है और कोई खास संपत्ति नॉमिनी के नाम पर ट्रांसफर हो जाती है।

नॉमिनी और कानूनी वारिसों के अधिकार:

आमतौर पर माना जाता है कि एक बार संपत्ति ट्रांसफर होने के बाद नॉमिनी ही उसका मालिक बन जाता है। हालांकि इस नियम में कुछ अपवाद भी हैं। जैसे कानूनी वारिसों की ओर से नॉमिनी ट्रस्टी बन जाता है। इंश्योरेंस एक्ट के तहत नॉमिनी को पैसा चुकाने के बाद इंश्योरेंस कंपनी अपनी देयता से मुक्त हो जाती है। यह नॉमिनी की जिम्मेदारी है कि वह क्लेम की राशि कानूनी वारिसों को सौंप दे। न्यायपालिका ने इस मामले को काफी साफ कर दिया है। 1983 के सरबती देवी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि नॉमिनी प्रॉपर्टी का ट्रस्टी होता है और कानूनी वारिसों को उसे यह सौंपनी होती है। यह बैंक खातों में जमा राशि पर भी लागू होता है।
जो लोग शहरों में रहते हैं, उनकी अकसर रिहायशी संपत्तियां कॉरपोरेटिव हाउसिंग सोसाइटीज में होती हैं। एेसी प्रॉपर्टीज पर कॉरपोरेटिव सोसाइटी के कानून लागू होते हैं, जो हर राज्य में होते हैं। महाराष्ट्र कॉरपोरेटिव सोसाइटीज एक्ट के सेक्शन 30 के मुताबिक उदाहरण के तौर पर, अगर मालिक ने सोसाइटी के पास नॉमिनेशन फॉर्म जमा किया है तो उसके पास कानूनी रूप से नॉमिनी के नाम पर प्रॉपर्टी के ट्रांसफर का अधिकार है। हालांकि जिस नॉमिनी का हाउसिंग सोसाइटी के रिकॉर्ड्स में नाम बतौर मालिक दर्ज है, वह कानूनी वारिसों का प्रतिनिधित्व करता है। बंबई हाई कोर्ट ने 25 साल तक चले रामदास शिवराम सत्तूर मामले में वर्ष 2009 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि सिर्फ कानूनी वारिसों के पास ही फ्लैट का मालिकाना हक है।
वहीं कंपनियों में शेयर्स और प्रॉविडेंट फंड बकाया मामले में लॉ कहता है कि नॉमिनी एेसी संपत्ति का कानूनी मालिक बन जाता है। इसलिए डीमैट अकाउंट में शेयर के मामले में नॉमिनी इकलौता मालिक होगा। बंबई हाई कोर्ट ने यह फैसला सारस्वत बैंक लिमिटेड मामले में दिया था।

आपको क्या करना चाहिए:

जहां भी मुमकिन हो, मकानमालिकों को अपनी सभी संपत्तियों का नॉमिनी रखना चाहिए। चूंकि नॉमिनी कई मामलों में कानूनी वारिस भी होते हैं, इसलिए नॉमिनेशन करने से संपत्ति कानूनी वारिसों के पास चली जाएगी। अन्य मामलों में यह सुनिश्चित करेगा कि प्रॉपर्टी बिना दावे के न रह जाए और उस पर मुकदमा न हो। जबकि शेयर और प्रॉविडेंट फंड में नॉमिनी बनाते वक्त ध्यान रखें कि वह इनका मालिक बन जाएगा।
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