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क्या होता है त्रिपक्षीय समझौता और यह कैसे काम करता है, जानिए

त्रिपक्षीय समझौता (Tripartite Agreement) एक कानूनी दस्तावेज है, जिसमें खरीददार, बैंक और विक्रेता शामिल होते हैं। इसकी जरूरत तब पड़ती है, जब एक ग्राहक किसी अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में घर खरीदने के लिए होम लोन अप्लाई करता है। रियल एस्टेट मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट (REMI) और अनेट ग्रुप के को-फाउंडर और अध्यक्ष रोहन बुलचंदानी ने कहा, प्रॉपर्टी खरीद में होम लोन लेने के लिए त्रिपक्षीय समझौते किए जाते हैं। चूंकि घर या अपार्टमेंट्स पोजेशन तक ग्राहक के नाम पर नहीं होता, इसलिेए बिल्डर को बैंक के साथ समझौते में शामिल कर लिया जाता है। बुलचंदानी ने कहा, लीज इंडस्ट्री में त्रिपक्षीय समझौता गिरवी रखने वाले/ कर्ज देने वाले, मालिक/ उधारकर्ता और किरायेदार के बीच हो सकता है। इस समझौते में लिखा होता है कि अगर मालिक/ उधार लेने वाला पैसे चुका नहीं पाता तो गिरवी रखने वाला/उधार देने वाला प्रॉपर्टी का नया मालिक बन जाएगा। इसके बाद किरायेदार को कर्ज देने वाले को नया मालिक मानना होगा। लेकिन समझौते के तहत नया मालिक किरायेदार के किसी नियम व प्रावधानों में बदलाव नहीं कर सकता।

कैसे काम करता है त्रिपक्षीय समझौता:

एक्सपर्ट्स के मुताबिक त्रिपक्षीय समझौता किसी घर की खरीद के लिए बैंक से लोन लेने के लिेए किया जाता है, जिसमें बिल्डर भी शामिल होता है। ओरिस इन्फ्रास्ट्रक्चर के सीएमडी विजय गुप्ता ने कहा, कानून के मुताबिक हाउसिंग सोसाइटी बनाने वाले किसी भी बिल्डर को हर खरीददार के साथ त्रिपक्षीय समझौते में आना होगा, चाहे उसने फ्लैट खरीद लिया हो या प्रोजेक्ट में फ्लैट खरीदने वाला हो। उन्होंने कहा, रियल एस्टेट के लेनदेन में शामिल सभी पार्टियों की स्थिति यह समझौता साफ करता है। साथ ही सभी दस्तावेजों पर नजर भी रखता है। त्रिपक्षीय समझौते में विषय संपत्ति का ब्योरा होने के अलावा सभी मूल संपत्ति दस्तावेजों का एक कॉन्ट्रैक्ट शामिल होना चाहिए। जहां प्रॉपर्टी स्थित है, उस राज्य में त्रिपक्षीय समझौते पर मुहर जरूर लगवानी चाहिए।

इन जानकारियों की पड़ेगी जरूरत:

बुलचंदानी के मुताबिक इन चीजों को अनिवार्य रूप से बताना जरूरी है: 
त्रिपक्षीय दस्तावेज को यह बताकर बिल्डर या विक्रेता का प्रतिनिधित्व करना चाहिए कि प्रॉपर्टी का टाइटल स्पष्ट है। साथ ही यह भी लिखा होना चाहिए कि बिल्डर प्रॉपर्टी की बिक्री के लिए किसी अन्य पार्टी के साथ नए समझौते में नहीं है। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र ओनरशिप अॉफ फ्लैट्स एक्ट, 1963 के तहत खरीदी गई संपत्ति की पूरी जानकारी देनी होती है। त्रिपक्षीय दस्तावेजों में बिल्डर की देयता भी शामिल होनी चाहिए कि वह स्थानीय प्रशासन द्वारा अप्रूव किए गए प्लान और स्पेसिफिकेशंस के तहत ही इमारत का निर्माण करेगा।
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