वक्त के साथ रिहायशी किराया बाजार विकसित हुआ है। नए कानून और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया बनाए गए हैं, ताकि रेंट अग्रीमेंट का उल्लंघन करने वाले किरायेदारों के रिस्क से मकानमालिक बच सकें।
किराया रेट:
सबसे पहले मकानमालिक को यह देखना चाहिए कि जहां प्रॉपर्टी स्थित है, वहां किराये की दर क्या है। नाइट फ्रैंक (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड की चेन्नई डायरेक्टर कंचन कृष्णन ने कहा, ”यह समझना बहुत जरूरी है कि आप उस संपत्ति से कितने किराये की उम्मीद कर रहे हैं। आप अपनी प्रॉपर्टी का विज्ञापन स्थानीय अखबार, अॉनलाइन विज्ञापन, प्रॉपर्टी एजेंट्स इत्यादि के जरिए भी दे सकते हैं। बुनियादी सुविधाओं के साथ समझौता न करें और सुनिश्चित करें कि आपकी प्रॉपर्टी में कोई बड़े रिपेयर या लीकेज प्रॉब्लम न हो। कम शब्दों में कहें तो संपत्ति को किरायेदार के अनुरूप बनाएं, जिससे आपको उसका उचित मूल्य मिल सके”।
किसी अपार्टमेंट को किराये पर देने के लिए जरूरी दस्तावेज:
मकानमालिकों के पास सभी अहम दस्तावेज होने चाहिए, ताकि प्रॉपर्टी सुरक्षित हाथों में रहे। जबकि किरायेदारों को बैनामे के पेपर्स देखने चाहिए, ताकि कन्फर्म हो जाए कि जो घर किराये पर दे रहा है, वह उसका मालिक ही है।
साईं एस्टेट कंसलटेंट के डायरेक्टर अमित वाधवानी ने कहा, ”अगर किराये पर दिए जाने वाली संपत्ति किसी कॉपरेटिव सोसाइटी या कॉलोनी का हिस्सा है तो शेयर सर्टिफिकेट भी जरूर देखने चाहिए। असोसिएशन की ओर से नो-अॉब्जेक्शन सर्टिफिकेट की भी जरूरत होगी, जिसमें घर किराये पर दिए जाने की शर्तें लिखी होंगी। बिजली का बिल, पैन कार्ड, आधार कार्ड इत्यादि जैसे दस्तावेजों को पास में रखें, क्योंकि इनका आईडी प्रूफ के तौर पर इस्तेमाल होता है”।
रेंट अग्रीमेंट के प्रकार:
हमेशा किरायेदार से सिक्योरिटी डिपॉजिट जरूर ले लें, जो एक से छह महीने का किराया हो। अगर किरायेदार किराया नहीं चुकाता तो आपके पास बैकअप रहेगा। इसके बाद रेंट अग्रीमेंट तैयार होता है, जो एक कानूनी दस्तावेज है। इसमें शर्तों के जरिए मकानमालिक और किरायेदार जुड़े होते हैं। अग्रीमेंट किसी वकील की सलाह के बाद ड्राफ्ट कराया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में विवादों से बचा जा सके। रियल एस्टेट मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट (REMI) की बिजनेस हेड शुभिका बिल्खा ने कहा, ”मकानमालिक को किरायेदार के साथ किस तरह का अग्रीमेंट करना है, इसका चुनाव उसे सावधानी से करना चाहिए। यह या तो किरायेदारी समझौता होगा या फिर लीव एंड लाइसेंस अग्रीमेंट। जिन राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र में रेंट कंट्रोल एक्ट प्रचलित है, वहां मकानमालिक लीव एंड लाइसेंस अग्रीमेंट को चुनते हैं, क्योंकि यह किरायेदारों के अधिकार और देनदारियों पर लगाम लगाता है”।
अग्रीमेंट का रजिस्ट्रेशन:
वाधवानी ने कहा, अग्रीमेंट के पंजीकृत होने के अलावा उस पर स्टैंप ड्यूटी भी चुकाई जानी चाहिए। महाराष्ट्र में लीव एंड लाइसेंस अग्रीमेंट पर कुल किराया राशि की 0.25 प्रतिशत स्टैंप ड्यूटी लगती है। जबकि लीज लाइसेंस पर बिक्रीनामे की तरह (कुल किराया राशि का 5 प्रतिशत)। बिल्खा के मुताबिक अग्रीमेंट में किराया/लाइसेंस फीस, किराया बढ़ाने की अवधि, सिक्योरिटी डिपॉजिट की जानकारी के अलावा उसके रिफंड, कॉमन एरिया मेंटेनेंस चार्जेज, किरायेदार की जिम्मेदारियां, रिपेयरिंग और अतिरिक्त लागत का भुगतान कौन करेगा की जानकारी लिखी होती है। इसके अलावा यूटिलिटी चार्जेज की जिम्मेदारी जैसे बिजली और गैस के अलावा टर्मिनेशन क्लॉज और टर्मिनेशन से पहले नोटिस पीरियड के बारे में भी लिखा होना चाहिए।
रेंट लीज की अवधि:
आम तौर पर किराये की अवधि 11 महीने की होती है जो अच्छी मानी जाती है। वाधवानी ने कहा, लीव एंड लाइसेंस अग्रीमेंट की अवधि 3 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, कुछ अग्रीमेंट्स में लॉक-इन क्लॉज होता है, जिसका मतलब है कि एक निश्चित अवधि तक किरायेदार घर खाली नहीं कर सकता। अगर वह एेसा करता है तो उसे लॉक-इन पीरियड के खत्म होने तक का किराया चुकाना होगा। अनावश्यक स्थितियों से निपटने के लिए मकानमालिक को एक क्लॉज के जरिए खुद को सुरक्षित रखना चाहिए। इसमें वह लॉक-इन पीरियड में भी किरायेदार से घर खाली करने को कह सकता है।
मुंबई के मलाड में अपना घर किराये पर देने वाले पब्लिक रिलेशन प्रोफेशनल प्रशांत गोलेचा ने कहा, ”किराया मासिक आमदनी का अच्छा स्रोत है। समझौते के लिए हमेशा अच्छा ब्रोकर चुनें। इसके अलावा किरायेदार की पुलिस वेरिफिकेशन भी जरूरी है। कई हाउसिंग सोसाइटीज इसके लिेए जोर लेने लगी हैं। पिछले 8 वर्षों में मुझे केवल एक बारे परेशानी झेलनी पड़ी”।
घर किराये पर देते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:
- हमेशा किरायेदार का बैकग्राउंड, उसके परिवार, वैवाहिक स्थिति, प्रोफेशन और वर्कप्लेस के बारे में मालूम कर लें।
- किरायेदार की आमदनी वेरिफाई करने के अलावा उसका ऋण अनुपात भी चेक कर लें।
- अग्रीमेंट तैयार होने के बाद पुलिस वेरिफिकेशन होनी चाहिेए, जिसके लिए दोनों पक्षों का मौजूद होना जरूरी है।