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प्रॉपर्टी की अदला-बदली करने पर स्टैंप ड्यूटी और टैक्स

Stamp duty and taxation on exchange of property
जब कोई प्रॉपर्टी खरीदता है तो बिक्री पर विचार आम तौर पर पैसे के जरिए किया जाता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि प्रॉपर्टी के ट्रांसफर के विचार में हमेशा पैसा शामिल हो। आप किसी बड़ी या छोटी जगह पर जा सकते हैं, जो आपकी जगहों की जरूरतों और वित्तीय विचार पर निर्भर करता है। प्रॉपर्टी कानून के तहत एक प्रॉपर्टी से दूसरे की अदला-बदली संभव है। यह हमेशा जरूरी नहीं है कि आप एक रिहायशी संपत्ति को दूसरे से एक्सचेंज करें। आप कमर्शियल प्रॉपर्टी को किसी अन्य से भी एक्सचेंज कर सकते हैं, चाहे वह जमीन हो, कमर्शियल प्रॉपर्टी हो, रिहायशी हो या फिर अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी। अगर दोनों संपत्तियों की वैल्यू अलग-अलग है तो अंतर का भुगतान पैसे के जरिए किया जा सकता है। हालांकि एेसे अदला-बदली पर स्टैंप ड्यूटी और इनकम टैक्स की उलझनें होती हैं।

प्रॉपर्टी एक्सचेंज पर स्टैंड ड्यूटी का असर:

प्रॉपर्टी बेचने पर आपको बैनामा या बिक्री समझौता बनवाना पड़ता है, जिस पर बाद में तय दरों पर मार्केट वैल्यू के मुताबिक स्टैंप ड्यूटी चुकानी पड़ती है। हालांकि प्रॉपर्टी एक्सचेंज के लिए आपको एक्सचेंज डीड (विनिमय पत्र) की जरूरत होती है, क्योंकि एक्सचेंज लेनदेन बिक्री लेनदेन से अलग होता है। दो प्रॉपर्टीज की अदला-बदली दो अलग-अलग बैनामे के जरिए भी की जा सकती है। लेकिन इस तरह के एक्सचेंज के लिए अगर दो अलग-अलग बैनामे बनवाए जाते हैं तो आपको दोनों समझौतों पर स्टैंप ड्यूटी चुकानी होगी। कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र में रियायती स्टैंप ड्यूटी के भुगतान का प्रावधान है, अगर एक्सचेंज ड्यूटी का निष्पादन किया जाता है। महाराष्ट्र स्टैंप एक्ट के आर्टिकल 32 के शेड्यूल 1 के मुताबिक अचल संपत्ति के एक्सचेंज डीड के मामले में दस्तावेज पर स्टैंप ड्यूटी चुकाई जानी चाहिए। इंस्ट्रूमेंट पर स्टैंप ड्यूटी के लिए वैल्यू बड़े बाजार के साथ संपत्ति के तौर पर ली जाएगी। इसलिए अगर आप एक ही बिल्डिंग में अपना बड़ा फ्लैट छोटे के साथ एक्सचेंज कर रहे हैं तो बड़े फ्लैट के मार्केट वैल्यू पर स्टैंप ड्यूटी चुकाई जाएगी।
जहां तक सवाल है कि स्टैंप ड्यूटी की लागत कौन उठाएगा तो यह मुद्दा दोनों पक्षों के बीच तय होना चाहिए। बैनामे के मामले में अगर दोनों पक्षों में कोई राय नहीं बनती तो खरीददार को स्टैंप ड्यूटी चुकानी होगी। हालांकि एक्सचेंज के मामले में यह मुद्दा आपसी सहमति से सुलझाया जाना चाहिए। ट्रांसफर अॉफ प्रॉपर्टी एक्ट के सेक्शन 54 के मुताबिक अचल संपत्ति में अधिकार हस्तांतरण (ट्रांसफर) का एक्सचेंज डीड समर्थन करता है, लिहाजा इसे रजिस्ट्रार अॉफिस में रजिस्टर्ड कराना जरूरी है।

एक्सचेंज ऑफ़ प्रॉपर्टी में इनकम टैक्स का प्रभाव:

अचल संपत्ति की अदला-बदली में भी इनकम टैक्स की उलझनें हैं। अगर 24 महीने रहने के बाद संपत्ति एक्सचेंज की जाती है तो ऐसे एक्सचेंज पर किसी भी तरह के फायदे या नुकसान को लॉन्ग टर्म माना जाएगा। अगर एक्सचेंज प्रॉपर्टी के अधिग्रहण के 24 महीनों के भीतर किया जाता है तो फायदे या नुकसान को शॉर्ट टर्म माना जाएगा।
एेसे भी एक्सचेंज हो सकते हैं, जिसमें दोनों पक्ष संपत्ति के लिए कोई पैसा न दें और एक्सचेंज डीड में थोड़ी राशि का जिक्र हो। एेसी स्थितियों में पूंजी लाभ को पूरा करने के मकसद से स्टैंप ड्यूटी रेडी रेकनर के मुताबिक संपत्ति की मार्केट वैल्यू मालूम करें और इसकी तुलना उस लागत से करें, जिस पर आपने उसे खरीदा है। अगर प्रॉपर्टी 24 महीने से ज्यादा तक आपके पास थी तो आप सूचीकरण (Indexation) फायदों के अलावा सेक्शन 54, 54एफ और 54ईसी के तहत टैक्स छूट अवसर का लाभ भी ले सकते हैं। रिहायशी प्रॉपर्टी के एक्सचेंज के मामले में सेक्शन 54 के तहत छूट कम कीमत वाले फ्लैट्स के लिए उपलब्ध है, जिन्होंने बड़े फ्लैट के साथ इसे एक्सचेंज किया है। उनके लिए कोई टैक्स देयता नहीं होगी।
हालांकि, अगर आपको एक छोटा फ्लैट मिलता है और इसकी मार्केट वैल्यू इंडेक्सड लॉन्ग टर्म गेन्स के बराबर होती है तो भी कोई टैक्स देयता नहीं होगी। लेकिन अगर मार्केट वैल्यू इंडेक्सड लॉन्ग टर्म गेन्स से कम है तो आपको 20.36 प्रतिशत के अंतर पर टैक्स चुकाना पड़ सकता है। आप अंतर को खास संस्थानों के कैपिटल गेन्स बॉन्ड्स में निवेश कर सेक्शन 54ईसी के तहत छूट पा सकते हैं।
अगर आप रिहायशी संपत्ति के बदले अपनी कमर्शियल प्रॉपर्टी या जमीन एक्सचेंज कर रहे हैं तो आपको देखना होगा कि क्या आवासीय संपत्ति में निवेश की राशि कम से कम वाणिज्यिक संपत्ति / जमीन की एक्सचेंज मार्केट वैल्यू के बराबर है। कमी के मामले में यही सेक्शन 54ईसी के तहत कैपिटल गेन्स बॉन्ड्स में निवेश किया जा सकता है। अगर आप जमीन के टुकड़े या कमर्शियल प्रॉपर्टी के बदले जमीन/कमर्शियल प्रॉपर्टी/रिहायशी प्रॉपर्टी को एक्सचेंज करते हैं तो आप धारा 54 के तहत एक्सचेंज में हासिल की गई प्रॉपर्टी वैल्यू के संबंध में किसी भी टैक्स छूट का दावा नहीं कर सकते। ऐसे एक्सचेंज पर हासिल किए गए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर छूट का दावा करने के लिए आपको या तो सेक्शन 54एफ के तहत रिहायशी संपत्ति में निवेश करना होगा या सेक्शन 54ईसी के तहत कैपिटल गेन्स बॉन्ड्स में। ऊपर बताई गई बातों से आपको यह तो साफ हो गया होगा कि एक प्रॉपर्टी से दूसरे को एक्सचेंज करते हुए आपको कोई खास टैक्स छूट नहीं मिलेगी। जब काम एक्सचेंज डीड से हुआ हो तो आप स्टैंप ड्यूटी में पैसा बचा सकते हैं।

एक्सचेंज डीड के बारे में मुख्य तथ्य

एक्सचेंज डीड प्रॉपर्टी के मालिकों द्वारा तब बनाया जाता है जब वे अपनी प्रॉपर्टी का मालिकाना हक किसी दूसरे को हस्तांतरित करने का निर्णय लेते हैं। ऐसा हस्तांतरण एक्सचेंज डीड के जरिए होता है। अचल संपत्ति के अलावा, एक्सचेंज डीड के जरिए नकदी और अन्य संपत्तियों का आदान-प्रदान भी किया जा सकता है।

 

एक्सचेंज डीड क्या रिकॉर्ड करता है?

एक्सचेंज डीड चीजें रिकॉर्ड करता है:

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