किरायेदारी अधिनियम के मसौदे को केंद्रीय कैबिनेट ने दी मंजूरी

इस कानून से भारत में किराये के आवास को बढ़ावा मिलने की संभावना है. इसे पहली बार साल 2019 में प्रस्तावित किया गया था.

केंद्रीय कैबिनेट ने 2 जून 2021 को किरायेदारी अधिनियम के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है. इस कदम से भारत के किरायेदारी आवास बाजार को एक नई दिशा मिलेगी और कई सुधार होंगे.

हाउसिंग मिनिस्ट्री ने एक बयान में कहा, ‘मसौदा किरायेदारी अधिनियम औपचारिक बाजार की ओर धीरे-धीरे शिफ्ट करके किराये के आवास के संस्थागतकरण को सक्षम करेगा. घरों की भारी कमी को देखते हुए यह प्राइवेट प्लेयर्स की हिस्सेदारी को भी बतौर बिजनेस मॉडल किराया आवास में मौका देगा. ‘

सरकार द्वारा मंजूर किए गए ड्राफ्ट में, जिसे 2019 में प्रस्तावित किया गया था, अब उसे राज्यों में सर्कुलेट किया जाएगा ताकि वे केंद्र के संस्करण को ध्यान में रखते हुए किरायेदारी के नियम बना सकें.

किरायेदारी आवास के अलावा ड्राफ्ट कानून सेक्टर में इन्वेस्टमेंट को भी बढ़ावा देगा और जगह को शेयर करने की प्रणाली और आंत्रप्रेन्योर से जुड़े अवसरों को प्रोत्साहित करेगा.

सरकार को उम्मीद है कि मॉडल किरायेदारी अधिनियम भारत के बड़े आवासीय बाजार में खाली पड़े घरों की चाबी खोलेगा. घरों की भारी कमी को देखते हुए यह प्राइवेट प्लेयर्स की हिस्सेदारी को भी बतौर बिजनेस मॉडल किराया आवास में मौका देगा.

मार्च 2021 में, हाउसिंग सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा ने कहा कि हाउसिंग मिनिस्ट्री आने वाले कुछ महीनों में केंद्रीय कैबिनेट के आगे मंजूरी के लिए कानूनी ड्राफ्ट पेश करेगा.

11 जनवरी 2021 को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में हाउसिंग सेक्रेटरी ने कहा, ‘हमें कुछ राज्यों की ओर से कोई प्रतिक्रिया (ड्राफ्ट कानून पर) नहीं मिली है. जो कुछ राज्यों से हमें प्रतिक्रियाएं मिली हैं, उनकी हम समीक्षा कर रहे हैं. हम प्रक्रिया में हैं और अगले एक महीने में हम केंद्रीय कैबिनेट के आगे मंजूरी के लिए ड्राफ्ट कानून पेश करेंगे. मार्च तक यह हो जाना चाहिए.’

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2022 तक सभी लोगों को अपना घर देने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. किरायेदारी आवास बाजार में सप्लाई को और बढ़ावा देने के लिए  किरायेदारी अधिनियम का मसौदा तैयार किया गया है. किरायेदारी अधिनियम के मसौदे का मकसद किरायेदारी को मकानमालिक और किरायेदार दोनों के लिए फायदे का सौदा बनाना है. किरायेदारी आवास के बाजार को चलाने वाले जिन मौजूदा नियमों में जो खामियां थीं, उसे भरना भी इसका एक मकसद है.

25 नवंबर, 2020 को उद्योग निकाय NAREDCO द्वारा आयोजित तीन दिवसीय वर्चुअल रियल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टर्स समिट को संबोधित करते हुए हाउसिंग सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा ने कहा कि नए कानून की वजह से पुराने कानूनों के नियमों के जंजाल में फंसे 1 करोड़ घरों के ताले खुल जाएंगे और एक बार लागू होने के बाद रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश बढ़ेगा. इससे किफायती किरायेदारी आवास की एक नई लहर आएगी.

किरायेदारी अधिनियम का मसौदा जल्द ही कानून की शक्ल अख्तियार कर लेगा क्योंकि केंद्र सरकार ने राज्यों और अन्य स्टेकहोल्डर्स को 31 अक्टूबर 2020 तक का वक्त दिया है ताकि वे पॉलिसी दस्तावेज पर अपने सुझाव भेज सकें. इस बीच केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ ने इस मसौदा कानून को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और इस बाबत लोगों से 31 अक्टूबर 2020 तक प्रतिक्रियाएं मांगी हैं.

ध्यान दें कि किराया भुगतान पर टैक्स छूट मिलती है. साल 2011 में भारत में 11.1 मिलियन खाली घर थे क्योंकि नियमों में काफी गड़बड़ियां थीं और प्रवासियों को घर मिलने में दिक्कतें हो रही थीं. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बिल्डर्स के पास काफी तादाद में बड़े शहरों में बिना बिके फ्लैट/अपार्टमेंट्स खाली पड़े हैं. शहरी क्षेत्रों में खाली घरों की संख्या 2011 और अब के बीच नाटकीय रूप से बढ़ी होगी.

आइए अब यह देखते हैं कि कैसे किरायेदारी अधिनियम 2019 का मसौदा इस परेशानी का हल निकालता है ताकि डिमांड-सप्लाई के बीच जो गैप है उसे भरा जा सके.

यहां से पीडीएफ डाउनलोड करें.

मसौदा किरायेदारी अधिनियम 2019: मुख्य बातें

अधिनियम में किराये के आवास को बढ़ावा देने, नियमों को सख्त करने और मकानमालिकों और किरायेदारों के लिए इसे आकर्षक बनाने को लेकर कई उपाय किए हैं.

मसौदा किरायेदारी अधिनियम 2019 के तहत ‘किराया प्राधिकरण’ की स्थापना की जाएगी

रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी, जिसे रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवेलपमेंट) एक्ट 2016 के तहत बनाया गया था, इसी तर्ज पर अब राज्य किराया प्राधिकरणों की शहरों में स्थापना कर सकते हैं. इसकी स्थापना के बाद किरायेदारों और मकानमालिकों को रेंट अग्रीमेंट को पंजीकृत कराने के लिए अथॉरिटी के सामने पेश होना पड़ेगा. अथॉरिटी अपनी एक वेबसाइट बनाएगी ताकि रेंट अग्रीमेंट्स के रूप में मिलने वाले डेटा को संजोया जा सके.

पॉलिसी दस्तावेज के मुताबिक, ‘इस कानून के लागू होने के बाद कोई भी शख्स बिना लिखित समझौते के ना तो किराया दे सकता है ना ले सकता है. इसके बारे में किराया प्राधिकरण को मकानमालिक और किरायेदार दोनों को ही अग्रीमेंट की तारीख के दो महीने के समय से पहले शेड्यूल में फॉर्म के जरिए सूचित करना होगा.’

मसौदा किरायेदारी कानून के तहत किराया अदालत/ट्रिब्यूनल करेंगे विवादों का निपटारा

अगर कोई विवाद होता है तो समाधान के लिए दोनों पक्ष पहले किराया प्राधिकरण के पास जाएंगे. अगर किराया प्राधिकरण के आदेश से दोनों पक्ष संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे राहत पाने के लिए किराया अदालत/ट्रिब्यूनल से गुहार लगा सकते हैं. इन अदालतों को शिकायत मिलने के 60 दिनों के भीतर उसका निपटारा करना होगा.

कानून में कहा गया, ‘किराया अदालतों की स्थापना के बाद किराया आवास से जुड़े विवादों पर सिविल कोर्ट्स का कोई क्षेत्राधिकार नहीं रह जाएगा. धारा 30 के तहत किराया प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र को छोड़कर, मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवादों से संबंधित आवेदनों को सुनने और तय करने के लिए सिविल कोर्ट नहीं बल्कि किराया अदालतों के पास ही सुनवाई का अधिकार होगा.’

मसौदा किरायेदारी अधिनियम: वो प्रावधान जो मकानमालिकों की मदद कर सकते हैं

किरायेदारों का तय समय से ज्यादा तक ठहरना: अगर किराया समझौता खत्म हो जाता है तो किरायेदारों को मकानमालिकों को 2 महीने का दोगुना किराया और बाद के महीनों में किराए का चार गुना भुगतान करना होगा.

किरायेदारों को निकालना आसान होगा

मॉडल पॉलिसी के तहत, अगर किरायेदार लगातार दो महीने का किराया नहीं चुका पाता है तो किरायेदारों को निकालने के लिए मकानमालिक किराया अदालतों का रुख कर सकते हैं.

किरायेदार अन्य लोगों को नहीं रख पाएंगे

मकानमालिक की इजाजत के बिना किरायेदार किसी और को उस घर में रहने के लिए नहीं ला सकता.

मसौदा किरायेदारी कानून: वे प्रावधान जिनसे किरायेदारों को फायदा होगा

मकानमालिकों की चिकचिक से छुटकारा

अब तक मकानमालिक जब चाहे अपने किराये पर दिए घर में घुस आते थे. शिकायतों की फेहरिस्त में किराये पर रह रहे लोगों की यह शिकायत भी शामिल थी. इसे रोकने के लिए अब पॉलिसी में कहा गया है कि किराये पर दिए घर में आने के लिए मकानमालिक को किरायेदार को 24 घंटे का नोटिस देना होगा. वे सुबह 7 बजे से पहले और रात 8 बजे के बाद घर में नहीं आ सकते.

मकानमालिकों द्वारा मांगी जाने वाली सिक्योरिटी डिपॉजिट की सीमा तय

मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में किरायेदारों को कम से कम एक साल का किराया बतौर सिक्योरिटी डिपॉजिट देना पड़ता है. कानून बनने के बाद मकानमालिक बतौर सिक्योरिटी डिपॉजिट दो महीने से ज्यादा का किराया नहीं मांग पाएंगे.

मकानमालिकों द्वारा किराये में इजाफा होगा विनियमित

किराया समझौते की अवधि के दौरान मकानमालिक किराया नहीं बढ़ा सकता, जब तक कि ऐसा किराया समझौता में ना लिखा हो. किराया बढ़ाने के लिए अब मकानमालिक को किरायेदार को तीन महीने पहले नोटिस देना होगा.

किराया वाले घर की ढांचागत देखभाल के लिए मकानमालिक होंगे जिम्मेदार

पॉलिसी के मुताबिक, किराये के घर की देखभाल के लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार होंगे लेकिन ढांचागत देखभाल की जिम्मेदारी मकानमालिक पर होगी.

मसौदा किरायेदारी अधिनियम कितना कारगर साबित होगा?

इस बीच प्रशंसनीय प्रावधानों के बावजूद यह सवाल भी उठने लगे हैं कि मसौदा नीति कितनी कारगर साबित होगी. सबसे पहले जमीन राज्यों का विषय है इसलिए मसौदा नीति को मानने या ना मानने के लिए राज्य स्वतंत्र हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 2014 में पहली बार सरकार बनने के बाद से काम कर रहा है. चूंकि नियम बाध्यकारी नहीं हैं, राज्यों को शायद ही इसे अपनाने की जल्दी होगी.

संपत्ति विवादों में माहिर गुरुग्राम के एक वकील ब्रजेश मिश्रा बताते हैं, ”अधिनियम के शुरू होने के दो साल बाद, राज्य अभी भी रेरा के तहत प्राधिकरण स्थापित करने में व्यस्त हैं. कुछ को छोड़कर, अधिकांश अभी भी इसे सीखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.” मिश्रा आगे कहते हैं, ”बहुत ज्यादा राज्य इस पॉलिसी को अपनाने की आतुरता नहीं दिखाएंगे क्योंकि इस मामले में उन्हें ज्यादा काम करना है.”

भले ही राज्य विनियामक समझौता स्थापित कर लें तब भी डेवलपर्स इस हाउसिंग सेगमेंट में शामिल होने के इच्छुक नहीं हो सकते हैं, बावजूद इसके कि उनके पास 1.13 ट्रिलियन रुपये का इन्वेंट्री स्टॉक है. ऐसा इसलिए है क्योंकि किराये की उपज, जो आमतौर पर सालाना 2% -3% के बीच होती है, पर्याप्त आकर्षक नहीं है. इसके विपरीत, डेवेलपर्स को प्रोजेक्ट डेवेलपमेंट के लिए लोन पर 12% -14% के बीच ब्याज देना पड़ता है.

मसौदा किरायेदारी अधिनियम कम किराये के मुद्दे पर रुख स्पष्ट नहीं करता इसलिए, ऐसा भी परिदृश्य हो सकता है, जहां बिल्डर रेंटल सेगमेंट के लिए घर बनाने के लिए अनिच्छुक हो सकते हैं, लेकिन किराये के लिए अपने इन्वेंट्री स्टॉक का उपयोग कर सकते हैं.

पूछे जाने वाले सवाल

किरायेदारों के लिए नए कानून क्या हैं?

केंद्र सरकार ने साल 2019 में किरायेदारी अधिनियम का मसौदा पेश किया था, जिसका मकसद किरायेदारों और मकानमालिकों के हितों की रक्षा करना था.

सिक्योरिटी डिपॉजिट को लेकर नए किरायेदारी अधिनियम क्या कहते हैं?

सिक्योरिटी डिपॉजिट के तौर पर मकानमालिक सिर्फ दो महीने का ही किराया ले सकते हैं.

नया किरायेदारी अधिनियम मकानमालिकों की मदद कैसे करेगा?

रेंट अग्रीमेंट की सीमा खत्म हो जाने के बाद किरायेदार नहीं रुक पाएंगे और मकानमालिक उन्हें आसानी से निकाल पाएगा.

क्या राज्यों ने किरायेदारी अधिनियम के मसौदे को लागू कर दिया है?

केंद्र के संस्करण के आधार पर राज्य अपना किरायेदारी कानून बना सकते हैं.

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