कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka high Court) की धारवाड़ पीठ (Dharwad Bench) ने फैसला सुनाया है कि बिक्री विलेख (सेल डीड) के गवाह को धोखाधड़ी के मामले में पक्ष नहीं बनाया जा सकता है अगर उसके खिलाफ कोई अन्य आरोप नहीं हैं।
राजेश तोतागंती की याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने 18 सितंबर 2023 के अपने आदेश में उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 420, धारा 465, धारा 467, धारा 468, धारा 471 और धारा 474 के साथ धारा 34 के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया।
“सेल डीड को देखने से पता चलेगा कि याचिकाकर्ता सेल डीड का प्रमाणित गवाह है। याचिकाकर्ता के एक प्रमाणित गवाह और आरोपी नंबर 1 के दोस्त के रूप में काम करने के इस आरोप को छोड़कर, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अन्य आरोप नही है जो कथित अपराधों के लिए याचिकाकर्ता को दोषी ठहराए,” हाई कोर्ट ने कहा।
“शीर्ष अदालत और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि एक प्रमाणित गवाह को अपराध के जाल में नही फंसाया जा सकता है अगर उसके ऊपर एक प्रमाणित गवाह होने के अलावा कोई अन्य आरोप नही है| मौजूदा मामले में भी, शिकायत या आरोप पत्र के सारांश को पढ़ने से इस तथ्य के अलावा कोई अन्य आरोप नही पता चलेगा कि याचिकाकर्ता आरोपी नंबर 1 का दोस्त था और बिक्री विलेख का प्रमाणित गवाह था,” हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया।
राजेश टोटागंती और कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामला
याचिकाकर्ता के खिलाफ मंजप्पा नामक व्यक्ति ने आईपीसी की धारा 34 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 420, 465, 467, 468, 471, 474 के तहत दंडनीय अपराधों के आरोपों के तहत शिकायत दर्ज की थी। अपनी शिकायत में मंजप्पा ने कहा कि एक सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी का उपयोग करके जालसाजी की गई थी, और भले ही राजेश टोटागंती जालसाजी का प्रत्यक्ष लाभार्थी नही था, वह मुख्य आरोपी के कार्यों के सक्रिय समर्थन में था। इसके बाद पुलिस ने उसके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया.