छठ महापर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहला छठ पर्व चैत्र मास यानी मार्च-अप्रैल में पड़ता है और दूसरा कार्तिक मास यानी अक्टूबर-नवंबर में पड़ता है। दोनों माह में पड़ने वाले छठ पर्व का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ कहा जाता है, जो एक प्राचीन हिंदू त्योहार है, यह त्योहार भारतवर्ष मएइन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है, जहां इसे बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भक्तों द्वारा छठी माता की विशेष पूजा के लिए जाना जाता है। यह एक प्रकार का धार्मिक व्रत है जो सूर्य देवता को समर्पित होता है और इस व्रत के दौरान भक्त उनके आशीर्वाद और वरदान की कामना करते हैं।
चैती छठ का पौराणिक इतिहास:
सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी छठ पूजा
सूर्य पुत्र कर्ण भगवान सूर्य देव के परम भक्त थे। वो प्रतिदिन भगवान सूर्य की पूजा करते थे। इस दौरान वो घंटों तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को जल अर्पित करते थे। जिसके बाद भगवान सूर्य ने उन पर कृपा की और कर्ण आगे चलकर महान योद्धा बने। आज भी छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा प्रचलित है।
द्रौपदी ने की थी छठ पूजा
चैती छठ का पौराणिक इतिहास महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि जब पांडव सम्राट युधिष्ठिर ने जुए में भाइयों के साथ राजपाठ हार जाने के बाद सब कुछ खो दिया था, तो उस समय द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। उन्होंने इस व्रत के माध्यम से अपनी मनोकामना को पूरा किया और पांडवों को उनका सब कुछ वापस मिल गया। इसलिए छठ व्रत को लोक परंपरा में सूर्य देवता और छठी माता के भाई-बहन के संबंध के रूप में मान्यता दी जाती है, और इस मौके पर भगवान सूर्य की पूजा और आराधना को फलदायी माना जाता है। इसलिए इस व्रत को प्रतिवर्ष धार्मिक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
वैदिक महत्व
छठी माता का इतिहास भी चैती छठ के पौराणिक इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। छठी माता वैदिक धर्म में देवी दुर्गा के रूप में जानी जाती है। इनकी विशेषता यह है कि वे भगवान सूर्य की माता मानी जाती हैं। वैदिक पुराणों में लिखा गया है कि छठी माता के अनुयायी अपने अश्वमेध यज्ञ के बाद इस व्रत का पालन करते थे। यह पूजा उनके बाल्यावस्था में ही शुरू हो जाया करती थी और अब तक चली आ रही है।
भगवान श्रीराम और माता सीता ने छठ व्रत पर की थी सूर्य उपासना
भगवान श्रीराम और माता सीता की कथाओं में छठ व्रत का उल्लेख मिलता है। कथाओं में विशेष रूप से बताया गया है कि उन्होंने छठ व्रत अपनी उपासना के रूप में पूरा किया था। श्रीराम और माता सीता ने छठ व्रत भगवान सूर्य देव की पूजा और उनके आशीर्वाद की कामना करने के लिए मनाया था।
कथानुसार, भगवान श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या के राजा दशरथ के आदेश पर वनवास चले गए थे। उनके वनवास के दौरान, उन्होंने एक बहुत आदर्श जीवन जीने का प्रयास किया और धार्मिक कर्तव्यों का पालन किया। इस दौरान, उन्होंने भगवान सूर्य की उपासना करने का निर्णय लिया और छठ व्रत का पालन किया। छठ व्रत के दौरान, भगवान श्रीराम और माता सीता ने अन्न, दूध और फलों का व्रत रखा और उन्होंने पावन गंगा के किनारे जाकर सूर्योदय के समय सूर्य देव की पूजा की। भगवान श्रीराम और सीता ने दोनों को व्रत के नियमों का पालन करते हुए और अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्य देव की उपासना की। छठ व्रत का पालन करने से, भगवान श्रीराम और माता सीता ने सूर्य देव की कृपा प्राप्त की जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हुईं। छठ व्रत ने उन्हें ऊर्जा, शक्ति और सुख का आभास कराया और उनकी भक्ति और आदर्श जीवन शैली को और अधिक मजबूत बनाया।
भगवान की कथाओं के साथ साथ एक अन्य प्रसिद्ध कथा भी छठ व्रत से जुड़ी हुई है। यह कथा पुराणों में प्रस्तुत की गई है। इस कथा के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा अपनी रानी के साथ संतानहीन थे। वे हर तरह के प्रयास करने के बावजूद कोई संतान प्राप्त नहीं कर पा रहे थे। तब उन्होंने महर्षि कश्यप से सलाह ली। महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रयेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के बाद, रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुख की बात यह थी कि वह शिशु मर गया। राजा और रानी के पुत्र की मृत्यु की सूचना से पूरे नगर में दुख की लहर फैल गई।
कथा के अनुसार, जब राजा अपने मृत शिशु के अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक दिव्य विमान धरती पर उतरा। विमान में एक देवी बैठी हुईं थीं, उन्होंने मृत शिशु को देखते हुए कहा, “मैं जगत के सभी बालकों की संरक्षक षष्ठी देवी हूं।” इसके बाद देवी ने शिशु जके मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। यह चमत्कार देखकर राजा बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपने राज्य में हर साल छठ वृत को मनाने का निर्णय लिया। तब से हर साल छठ व्रत मनाया जाता है।
चैती छठ व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
- व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और साफ कपड़े पहनते हैं।
- व्रती एक पवित्र स्थान पर एक पूजा स्थल तैयार करते हैं।
- पूजा स्थल पर एक लकड़ी की चौकी रखते हैं और उस पर एक लाल कपड़ा बिछाते हैं।
- चौकी पर एक कलश रखते हैं और उसमें पानी भरते हैं।
- चौकी पर एक दीपक जलाते हैं।
- चौकी पर भगवान सूर्य देव और छठ देवी की मूर्तियां रखते हैं।
- व्रती भगवान सूर्य देव और छठ देवी की पूजा करते हैं।
- व्रती भगवान सूर्य देव और छठ देवी को अर्घ्य देते हैं।
- व्रती भगवान सूर्य देव और छठ देवी को भोग लगाते हैं।
- व्रती इस दिन फल, सब्जियां और चावल का भोजन करते हैं।