देश भर में कल्पवृक्ष के नाम से विख्यात पारिजात का दुर्लभ पेड़ जीवन प्रदान करने वाला माना गया है। इस यूनीक पेड़ को हेरिटेज वृक्ष का दर्जा सरकार के द्वारा दिया गया है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक यह एक ऐसा वृक्ष है जिसके नीचे बैठकर व्यक्ति अपनी किसी भी मुराद को मांगे तो वह पूरी हो जाती है। पुराणों और धर्म गृंथों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से पारिजात का वृक्ष भी एक है।
पारिजात का महाभारत से लिंक
(Source: Uttar Pradesh government)
समुद्र मंथन से मिला यह दिव्या पेड़ देवताओ को मिला था और उन्हीं के संरक्षण में था । इस वृक्ष को देवराज इंद्र ने लाकर अपने उपवन में लगाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस कल्पवृक्ष को भगवान् शंकर की पूजा के लिए स्वर्ण पुष्प हेतु भगवान् श्री कृष्ण की सहायता से अर्जुन ने धरती पर स्थापित किया था। माना जाता है जिस समय अज्ञात वास में पांडव वन-वन भटक रहे थे, तभी कुंती महारानी को स्वप्न आया कि यदि स्वर्ण पुष्प से भगवान् शंकर की पूजा की जाए तो युद्ध में पांडवो को कोई हरा नही सकता। एक दूसरी मान्यता के अनुसार अपनी पत्नी सत्यभामा की जिद पर भगवान कृष्ण इस पेड़ को स्वर्ग से धरती पर लाए। महाभारत काल में अर्जुन इसे द्वारका नगरी से बाराबंकी ज़िले के बरौलिया गांव में लाए थे.
भारत में कहाँ है पारिजात का पेड़?
पारिजात का विश्व-प्रसिद्ध पेड़ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बरौलिया नामक गांव में स्थित है, जो सिरौली गौसपुर तहसील के अंतर्गत आता है। बाराबंकी जिला मुख्यालय से यह गांव लगभग 38 किलोमीटर पूर्वी दिशा में है। हर साल, बड़ी संख्या में पर्यटक इस अद्वितीय वृक्ष को देखने के लिए आते हैं।
पारिजात धाम से कुछ दूरी पर भगवान् शंकर का कुंतेश्वर मन्दिर किंतूर नामक गांव में है। इन गॉंवों दोनों के बीच की दूरी मात्र 1 किलोमीटर है। माना जाता है की किंतूर नाम का ये गांव महाभारत काल में बना था, और इसका नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर रखा गया था। फाल्गुन मास के महाशिवरात्रि पर्व पर कावरियाँ जब काँवर लेकर कुंतेश्वर महादेव के पुण्य स्थान पर जल चढ़ाने आते हैं, तो पारिजात धाम के दर्शन अवश्य करते हैं।
देखनें में कैसा है पारिजात का चमत्कारी पेड़?
वैसे तो वनस्पति विज्ञान में परिजात को ऐडानसोनिया डिजिटाटा (Adansonia digitata) के नाम से जाना जाता है, मगर इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह अलौकिक पेड़ में न कोई फल होते हैं न ही बीज। न ही इसकी शाखा की कलम से एक दूसरा परिजात वृक्ष उत्पन्न किया जा सकता है। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह एक यूनिसेक्स पुरुष वृक्ष है और ऐसा कोई पेड़ दुनिया भर में और कहीं भी नहीं पाया गया है।
वनस्पति शास्त्रियों के हिसाब से 1,000 से 5,000 वर्ष तक की आयु वाले इस पेड़ के तने की परिधि लगभग 50 फीट और ऊंचाई लगभग 45 फीट है। निचले हिस्से में इस वृक्ष की पत्तियां, हाथ की उंगलियों की तरह पांच-युक्तियां वाली हैं, जबकि वृक्ष के ऊपरी हिस्से पर यह सात-युक्तियां वाली होती हैं।
पारिजात का फूल
(Source: Uttar Pradesh government)
पारिजात का फूल बहुत खूबसूरत और सफेद रंग का होता है, और सूखने पर सोने के रंग का हो जाता है। इसके फूल में पांच पंखुड़ी हैं। इस पेड़ पर बेहद कम बार बहुत कम संख्या में फूल खिलता है, लेकिन जब यह होता है, वह गंगा दशहरा जो की मई के महीने में पड़ती है, के बाद ही होता हैं। पारिजात के फूल की मदमाती सुगंध दूर-दूर तक फैलती है। लोकमत है कि परिजात की शाखाएं टूटती या सूखती नहीं हैं बल्कि वे मूल तने में सिकुड़ती है और गायब हो जाती हैं।
पारिजात वृक्ष में फूल आने का समय
(Source: Uttar Pradesh government)
पारिजात वृक्ष के बारे में मान्यता है कि इसमें केवल फूल ही खिलता है। और इस वृक्ष में फूल खिलने का समय जुलाई महीने से अक्टूबर महीने तक का होता है। इसी दौरान पारिजात वृक्ष में नयी पत्तियाँ भी निकलती हैं। परंतु इस अलौकिक वृक्ष में बीज नहीं होता है. यह अलौकिक वृक्ष साल भर में लगभग छः माह सूखा रहता है और तत्पश्चात हरा-भरा हो जाता है।
भगवान् श्री कृष्ण और उनके सखा अर्जुन द्वारा लाया गया देव वृक्ष पारिजात की उत्पत्ति के बारे में अनेकों कथाएं प्रचलित हैं। माना जाता है द्वापर युग के अंत में जब पांडव 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास में घूम रहे थे उस समय महारानी कुंती ने भगवान् शंकर की पूजा स्वर्ण पुष्प से करनी चाही। उस समय स्वर्ण पुष्प केवल इंद्र की वाटिका नंदन वन में स्थित कल्पवृक्ष में ही होते थे, माता की इच्छा पूर्ण करने के लिए अर्जुन अपने सखा श्री कृष्ण के साथ स्वर्ग जाकर कल्पवृक्ष की एक शाखा को लेकर यहाँ आये और इसे एक कुएं पर प्रत्यारोपित कर दिया। उसी कल्पवृक्ष की शाखा से पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति हुई। ये वृक्ष इस समय लगभग 6675 वर्ष पुराना है इतने वर्षों के अंतराल में आजतक ना जानें कितने तूफ़ान, भूकंप, झंझावत इत्यादि आये । लेकिन इस वृक्ष की कोई शाखा या डाल टूटकर जमीन पर नहीं गिरी। यही चीज इस वृक्ष की विशेषता को प्रदर्शित करती है।
पारिजात वृक्ष के दर्शन का महत्त्व
माना जाता है पारिजात वृक्ष के दर्शन करने मात्र से लोगों को एक अलौकिक सुख का आभास होता है। व्यक्ति को यह आभास होता है की वह किसी देवस्थान पर हैं। ऐसी मान्यता है कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर या उस वृक्ष की फेरी लगाने से व्यक्ति की सभी मुरादे पूरी हो जाती हैं। व्यक्ति जिस प्रकार की भी इच्छा रखता है, वह इच्छाएं सभी पूर्ण हो जाती हैं। इस वृक्ष के नीचे सुहागिन स्त्रियां फेरी लगाकर अपनी मुरादे मांगती हैं। इसीलिए जिला बाराबंकी में इसकी महिमा को कुछ इस प्रकार वर्णित किया जाता है:
कल्प वृक्ष सा वृक्ष नहि, पारिजात सा धाम।
आवे नर विश्वास करि, पूर्ण होई सब काम।।
आयुर्वेद के अनुसार पारिजात का महत्त्व
पारिजात के फूल,पत्तियां और छाल का उपयोग आयुर्वेद की दवाओ में होता है। इसकी पत्तियां कब्ज और एसिडिटी में बहुत ही कारगर होती हैं। इस की पत्तियां एलर्जी ,दमा और मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति होती है। कल्पवृक्ष दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है। इसीलिए वास्तु शास्त्र में इसका बहुत ही महत्व है।
कैसे पहुंचें पारिजात देखने?
निकटतम हवाई अड्डा: लखनऊ का चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बाराबंकी ज़िले से 45 किलोमीटर दूर है। बरौलिया गांव वहां से लगभग 38 किलोमीटर दूर है, जहां परिजात वृक्ष स्थित है। लखनऊ हवाई अड्डे से आप आसानी से टैक्सी लेकर परिजात वृक्ष देखने जा सकते हैं।
निकटतम रेलवे स्टेशन: जिला बाराबंकी में बुढ़वाल जंक्शन रेलवे स्टेशन रामनगर तहसील मुख्यालय से लगभग 3 किमी दूर है, जो बरौलिया गांव से लगभग 11 किलोमीटर दूर है। आप बाराबंकी जंक्शन रेलवे स्टेशन पर उतर कर वह से भी प्राइवेट टैक्सी लेकर आसानी से बरौलिया जा सकते हैं।
सड़क मार्ग द्वारा: जिला बाराबंकी में रामनगर टाउन, बरौलिया गांव से लगभग 11 किलोमीटर दूर है। रामनगर टाउन तक पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें उपलब्ध हैं। राममनगर टाउन से स्थानीय परिवहन जैसे कि तीन-व्हीलर, जीप आदि को प्रात 6.00 बजे से शाम ७ बजे तक उपलब्ध होते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
पारिजात वृक्ष कहाँ स्थित है?
पारिजात वृक्ष भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकी ज़िले के बरौलिया गांव, जो की सिरौली गौसपुर तहसील में पड़ता है, में स्थित है।
पारिजात का बोटैनिकल नाम क्या है?
पारिजात का बोटैनिकल नाम ऐडानसोनिया डिजिटाटा (Adansonia digitata) है।
पारिजात का फूल किस रंग का होता है?
पारिजात वृक्ष में सफेद फूल आते हैं, जो सूखने के बाद सुनहरे रंग में बदल जाते हैं.
पारिजात का फूल किस महीने में खिलता है?
पारिजात का फूल प्रायः अगस्त महीने में खिलता है।
क्या पारिजात और हरसिंगार एक ही हैं?
महाराष्ट्र में हरसिंगार का पौधा, जिसका वानस्पतिक नाम निक्टेंथस आर्बर ट्रिसट्रिस है, पारिजात के नाम से ही जाना जाता है, लेकिन पारिजात और हरसिंगार के पौधों के रूप और गुण में काफी अंतर है।
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