सावन के सोमवार: पूर्ण पूजा एवं व्रत विधि

शिव जी की अराधना के लिए साल के सबसे स्पेशल दिन होते है सावन के सोमवार।

जैसे की आप सभी जानते हैं कि हमारे सनातन धर्म मे पूजापाठ और व्रतों का बहुत अधिक महत्व है। हमारे हिन्दु धर्म मे सैंकड़ो भगवान हैं, और हर भगवान के कोई कोई अलग मंत्र , अलग पूजापाठ और अलग अलग व्रत जरूर होते हैं जिन्हे विधिवत पूर्ण कर के आप उन्हें प्रसन्न कर सकते है। पूजापाठ करने से मन को शांति तो मिलती ही है और साथ मे लाइफ में चल रही और आने वाली परेशानियों का भी हल हो जाता है।

 

देवों के देव महादेव यानि की भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना होता है सावन। सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है और सावन मास मे आने वाले सोमवार का सबसे अधिक महत्व होता है। सावन के सोमवार का व्रत महादेव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है, केहते हैं महादेव अपने भक्तों के कष्ट दूर कर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

 

हम आपको बताएंगे की महादेव की असीम कृपा के लिए सावन के व्रत की कथा और पूजा को पूर्ण विधिवत कैसे सम्पन्न करें

 

वैसे तो सावन का पूरा महीना ही बहुत ही शुभ होता है, लेकिन सावन के सोमवार का किसी भी अन्य दिन की तुलना में सबसे अधिक महत्व होता है क्योंकि इसे शिव जी का दिन माना जाता है। यहां तक की यह भी कहा जाता है की सावन के महीने के पाँच सोमवार के व्रत का वजन सोलह सोमवार के व्रतों के बराबर होता है। यह माना जाता है की शिव जी इतने भोले हैं की अपने भक्तों से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए जो भी व्यक्ति सावन के सोमवार के व्रतों को विधिवत पूरा करता है उसको भरपूर सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।

 

सोमवार के व्रत की पूर्ण विधि

सबसे पेहले सोमवार के दिन सुबह सुबह सूर्योदय से पेहले नहा कर साफ और शुद्ध वस्त्रों को धारण करके मंदिर की अच्छे से साफसफाई कर लें। फिर शिव जी और माता पार्वती की मूर्ति को गंगाजल से पवित्र कर के पूजा स्थान पर स्थापित कर लें। 

ध्यान रहे की सबसे पेहले गणेश जी की पूजा करें और उसके बाद ही भगवान शिव की। अब एक लोटे में थोडा सा गंगा जल डालकर उसको साफ पानी से भर लें। फिर अपने दाहिने हाथ में थोडा सा जल लेकर सावन सोमवार व्रत एवं पूजा का संकल्प लें।

पूजा मे शिव जी का जलाभिषेक होता है जिसके लिए कच्ची लस्सी, बेल पत्र , काले तिल , शहद , घी और दहीं से ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए शिव जी का जलाभिषेक करें। और फिर उनको सफेद फूल, चंदन, भांग के पत्ते, धतूरा, गाय का दूध, धूप, पंचामृत, सुपारी और बेलपत्र चढ़ाएं और इस पूरी विधि के दौरान ओम नम: शिवाय शिवाय नम: मन्त्र का उच्चारण करते रहें।

 

उसके बाद आरती कर के पूजा का समापन करें।

 

शिव जी की आरती

 

जय शिव ओंकारा जय शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा जय शिव

एकानन चतुरानन पंचानन राजे

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे जय शिव

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे जय शिव

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी जय शिव

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे जय शिव

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता जय शिव

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका जय शिव

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी जय शिव

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे जय शिव

जय शिव ओंकारा हर शिव ओंकारा|

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ जय शिव ओंकारा

पूजा पूरी होने के बाद फलाहार ग्रहण करें। कोई भी फल खा सकते हैं बस नमक का सेवन नहीं करना है, दूध, दहीं , मीठी रोटी भी खा सकते हैं। और फिर शाम के समय सूर्यास्त होने से पेहले सम्पूर्ण भोजन खा सकते हैं।

 

               

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