पंजाब, तमिलनाडु, असम और कोलकाता के इन पारंपरिक घर डिजाइनों को देख हैरान रह जाएंगे आप

अतीत के खूबसूरत डिजाइनों को पीछे छोड़ते हुए भारत का शहरी मार्केट हर साल आगे बढ़ता जा रहा है। घरों के पारंपरिक डिजाइन गांवों में नजर आते हैं, जबकि शहरों में कुछ ही जगहों पर ये दिखाई पड़ते हैं। अगर आप फ्लैट या मकान के लिए मार्केट में हैं तो सोचेंगे कि वे खूबसूरत घर कहां गायब हो गए? लेकिन विकल्प अब भी मौजूद हैं और क्या आप यह जानना नहीं चाहेंगे कि ये डिजाइन्स क्या थे और कहां से आए?
तमिलनाडु: दक्षिण भारत की पारंपरिक वास्तुकला को कभी-कभी तमिलनाडु के अग्रहर-शैली का पर्यायवाची माना जाता है। तमिलनाडु का पारंपरिक घर अग्रहर या अग्रहम राज्य की मुख्य हिंदू जड़ों को दर्शाती है। ब्राह्मणों का घर इस वास्तुकला का सटीक उदाहरण माना जाता है। यह नाम स्वयं एक गांव में रखे गए तरीके से निकला है, जो एक माला की तरह था। इसे गांव के प्राथमिक मंदिर की ओर जाने वाले घरों में शामिल किया गया है जो या तो एक देवता या अलग-अलग देवताओं को समर्पित हैं।

हर घर में आगे एक बड़ा वरांडा होता है या जो उसके आसपास की जगह को थिन्नाई कहा जाता है, जहां आप आराम से बैठकर लोगों से बातचीत कर सकते हैं। बड़े लकड़ी के खंभे थिन्नाई के टेराकोटा छत को सपोर्ट देते हैं। दिलचस्प बात है कि टेराकोटा को अब ठेठ माना जाता है, लेकिन जब यह शुरू हुआ था तो लोग इसे शाही कहते थे। सिर्फ अमीरों को ही राजघराने से इसे इस्तेमाल करने की इजाजत होती थी। अन्य परिवार मामूली छत का इस्तेमाल किया करते थे। इन घरों में जो चीज सबसे असाधारण थी, वह थे दरवाजे, जो आज भी हैं। इन पर अद्भुत नक्काशी की जाती थी। इन पारंपरिक घरों की एक अन्य खासियत यह भी थी कि इनमें रेड अॉक्साइड कोटेड फर्श होते थे, जो गर्मियों में ठंडे रहते थे।
ये भारतीय घर वास्तुकला का शानदार नमूना थे, जो पर्यावरण को बेहद कम नुकसान पहुंचाते हुए घर के अंदर का वातावरण ठंडा रखते थे। छप्पर या टाइल की छत गर्मी को दूर भगाते थे और मिट्टी की बनीं ईंटें या दीवारें एंटीसेप्टिक का काम करती थीं, जिससे कीड़े-मकौड़े दूर रहते थे। बांस को बैठने के लिए चटाई के रूप में बुना जाता था या दीवारें बनाने के लिए।
इन खूबसूरत घरों के आसपास का कल्चर सांप्रदायिक था, क्योंकि ज्यादातर गांव निर्माण में शामिल थे। मालिक के घर के बाहर पेड़ों को गांव के बड़े-बुजुर्गों की मंजूरी के बिना गिराया नहीं जा सकता था। इसमें बढ़ई शामिल थे और सुंदर खंभे और दरवाजों का निर्माण। स्थानीय लोहारों को उसे टिकाने के लिए बुलाया जाता था और कुम्हार टेराकोटा टाइल्स का निर्माण करते थे। इन सबकी मेहनत से वास्तुकला का अद्भुत नमूना सामने आता था जो आज भी मौजूद है और लोगों को प्रेरित कर रहा है।
असम: अगर तमिलनाडु की वास्तुकला में गर्मी पर फोकस था तो असम के लोग भूकंप को लेकर चिंतित थे। वे सिर्फ एक ही चीज दिमाग में लेकर चलते थे- हल्की। विचित्र दिखने वाले छोटे घर एक मंजिला ऊंचे थे और इन्हें बांस और टिंबर के जरिए बनाया जाता था। छत लोहे की शीट्स या घास-फूस से बनाई जाती थी। दिलचस्प बात है कि असम में इकरा के तौर पर पहचाने जाने वाले इन घरों का नाम सरकंडे (ईख) से आया है। पिछली दो शताब्दियों से यह तरीका चलन में है। लेकिन आजकल आधुनिक तरीकों को इसमें मिलाकर घरों को और खूबसूरत बना दिया गया है।
जब आप नॉर्थ-ईस्ट के बारे में सोचते हैं तो यहां का सबसे मशहूर वास्तुकला का नमूना चैंग हाउस जहन में आता है। इन पारंपरिक घर के डिजाइनों में बांस की दीवारें पाबांसा के जरिए उठाई जाती हैं और आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। भूस्खलनों और बाढ़ को देखते हुए यह डिजाइन काफी मशहूर हुआ। आमतौर पर भूकंप के खतरे के कारण घरों को एक मंजिला ऊंचा रखा जाता है। ये घर शानदार सामाजिक निर्माण है, जिसके दोनों छोरों पर खाली जगह है, ताकि लोग बैठ सकें। इनमें से अधिकतर भारतीय घरों में बाहर बगीचे हैं, जहां कुछ परिवार फसलों की खेती भी करते हैं। जॉइंट फैमिली कल्चर वाले इन घरों में किचन बीचोबीच होता है।
पंजाब: पारंपरिक पंजाबी घर आपने बॉलीवुड फिल्मों में खूब देखे होंगे। ये घर कृषि, जॉइंट फैमिली कल्चर के इर्द-गिर्द नजर आते हैं। पंजाब के पारंपरिक घर की पहचान यही है कि उसके आंगन में फूलों का छोटा बगीचा और बीच में एक छोटा बाग होता है। यहां अकसर जश्न और पूजा-पाठ होता है। इन डिजाइनों में कुछ घर एेसे भी थे, जिनके दरवाजे उनके पड़ोसियों के घर तक जाते थे।
ये घर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे, जिनमें लकड़ी के दरवाजे होते थे। गर्मी के लिए ये काफी मुफीद माने गए हैं। मवेशियों के लिए आंगन में ही जगह होती थी, लेकिन यह चीज शहरी घरों में नजर नहीं आई। बैठक या लिविंग रूम घर के केंद्र में होता है और इसमें आम फर्नीचर जैसे चारपाई रखी होती हैं। बाकी के कमरे आंगन के साथ ही हैं और एक दरवाजा जो मोहल्ले की ओर खुलता है। बरामदे में महिलाओं से जुड़ी गतिविधियां होती थीं। इन सबके चारों ओर पक्की बाउंड्री होती है। दरवाजों पर पेंट किया जाता है, जो गली या अगले घर के दरवाजे की ओर खुलता है।
कोलकाता: यहां के बंगलों में ब्रिटिश शासन की झलक मिलती है। अंग्रेजों ने यहां के घरों को यूरोपियन और भारतीय वास्तुकला के मिश्रण से बनाने का फैसला किया था। इन एक मंजिला विला में बड़ा बरामदा होत है, जो ब्रिटिश अफसरों को बंगाल की गर्मी से राहत देने का काम करता था। इस दौरान जो भी घर बनाए गए, उनमें ब्रिटिश वास्तुकला की नकल की गई थी।
इन घरों में बड़े आंगन होते थे, जिनके बीच में तुलसी का पौधा लगा होता था। इस आंगन के एक तरफ पूजा घर है, जहां भगवान की मूर्तियों को रखा जाता है। इसके बगल में एक बालकनी होती है, जहां महिलाएं सड़क पर हो रही गतिविधियों को देख सकती हैं। आंगन की दूसरी ओर बेडरूम्स होते हैं, जहां लिविंग रूम से कुछ दूर महिलाओं के रहनी की जगह है। बरामदे से जुड़े लिविंग रूम में ब्रिटिश अफसर मेहमानों का स्वागत, मनोरंजन और बैठक करते थे। घर के फ्लोर्स तक जाने के लिए इन इमारतों में घुमावदार गलियारे और चौड़ी सीढ़ियां बनाई गई हैं।
कमरे में रखा फर्नीचर असाधारण है। बेड पर चार खंभे लगे होते हैं और उनमें परदे लगाकर बेड को ढक दिया जाता है। कमरे में नक्काशीदार चंदन की मेज और कुर्सियों के अलावा दीवारें पेंटिंग के सजाई जाती थीं। बगीचों को भी बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। इनमें फव्वारे लगे थे और पक्षी भी उसके आसपास चहचहाते थे। अगर अपने घर के लिए कोई आर्किटेक्चर आप नहीं सोच पाए हैं, तो बरसों से चले आ रही इन भारतीय कलाओं और डिजाइन्स को अपना सकते हैं। अपने ड्रीम होम की प्लानिंग पारंपरिक तरीके से करें, जिससे उसमें चार चांद लग जाएं।
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