गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पृथ्वी के प्रथम पूज्यनीय भगवान गणेश के जन्म के रूप में मनाई जाती है। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ती है। महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं, कुछ निर्जला तो कुछ फलाहारी।इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
माना जाता है जो भी लोग इस गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखतें हैं तथा भगवान गणेश विधि- विधान से पूजा अर्चना करते हैं। भगवान गणेश उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं, तथा उनके जीवन से सभी दुख- दर्द दूर होते हैं।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत बहुत सी महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी रखती हैं। माना है जिन महिलाओं के संतान नहीं होती है उन्हें इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा करनी चाहिए तथा निर्जल व्रत भी रखना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत सही डेट
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत इस बार 30 नवंबर दिन गुरुवार को रखा जायेगा।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी तिथि कब से शुरू
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी तिथि शुरू हो रही है 30 नवंबर 2023 को दोपहर, 2 बजकर 24 मिनट पर तथा चतुर्थी तिथि का समापन हो रहा है, 1 दिसंबर 2023 को दोपहर, 3 बजकर 31 मिनट पर।
वैसे तो सारे व्रत त्यौहार उदया तिथि के अनुसार रखे जाते हैं। लेकिन क्योकिं गणेश चतुर्थी के इस गणाधिप चतुर्थी व्रत में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलना होता है तो इसलिए ये संकष्टी गणाधिप चतुर्थी व्रत 30 नवंबर 2023 को ही रखा जायेगा।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजन सामाग्री
लकड़ी की चौकी
गणेश जी मूर्ति या तस्वीर लाल कपड़ा चौकी पर बिछाने के लिए
कलश, आम का पल्लव
दीपक
घी
रुई की बाती
जल तथा गंगाजल
दुर्वा
फूल
फल
मिठाई
खोये की मिठाई, अक्षत
मोदक, तिल के लड्डू, लाल चंदन, अंगवस्त्र, जनेऊ
इत्र
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- उसके बाद बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनना बेहद शुभ और लाभकारी माना जाता है।
- उसके बाद पूजा स्थल को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछायें।
- अब इस पर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
- भगवान गणेश की मूर्ति के सामने कलश स्थापित करें। कलश स्थापित करने के लिये सबसे पहले कलश को भगवान गणेश के सम्मुख चौकी पर रखें तथा उसके बाद कलश पर आम का पल्लव रखें और कलश में जल भरकर उसके उपर दीपक जलाएं।
- ध्यान रखें कि पूजा करते समय आपका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
- इसके बाद भगवान गणेश को फूल, फल, अक्षत, दुर्वा, लाल चंदन, इत्र, जनेऊ, अंगवस्त्र, मिठाई आदि वस्तुयें अर्पित करें।
- इसके बाद भगवान् गणेश के सम्मुख घी का दीपक जलाएं। • प्रसाद के रूप में आप भगवान गणेश को खोये से बनी मिठाई या मोदक या तिल के लड्डू का भोग लगाएं।
- इसके बाद गणेश चालीसा का पाठ करें तथा उसके बाद आरती करें।
- तथा भगवान् गणेश से अपने संतान तथा घर परिवार के सुख- शांति की प्रार्थना करें तथा उन्हें प्रणाम करें।
- आरती करने के बाद जो भोग भगवान् गणेश को लगाया है उसी को लेकर घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरण करें। तथा खुद भी प्रसाद खाकर अपना व्रत रखें।
- लेकिन अगर आप निर्जला व्रत रखती हैं तो इस दिन पानी न पिये शाम को वापस गणेश जी पूजा करें तथा चंद्रमा निकलने के बाद ही चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें।
- इसके बाद अपने घर के सभी बड़े सदस्यों के पांव छुयें तथा उनसे भी आशीर्वाद लें।
- इसके बाद रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत पूरा करें।
श्री गणेश चालीसा
चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥
दोहा:-
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥
भगवान गणेश के मंत्र
- ॐ गं गणपतये नमो नमः ।
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः।। - वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
संकष्टी गणेश चतुर्थी 2023 महत्व
भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है और उनकी पूजा से सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए माघ महीने की इस गणाधिप संकष्टी व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान गणेश की विधिवत पूजा करने और व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को हर तरह के बाधा से मुक्ति मिल जाती है और जीवन में खुशहाली आती है। हर क्षेत्र में सफलता मिलने के साथ धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
एक समय की बात है, पार्वती माता ने स्नान करने के लिए अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने पुतले का नाम गणेश रखा। गणेश जी बड़े हो गए और उन्हें बुद्धि और बल दोनों प्राप्त हुए। एक दिन, पार्वती माता ने गणेश से कहा कि वे स्नान करने जा रही हैं और जब तक वे न लौटें, तब तक किसी को भी उनके कमरे में न आने दें।
उसी समय, भगवान शिव अपने पुत्र कार्तिकेय के साथ घर आए। कार्तिकेय ने देखा कि कोई उनके रास्ते में खड़ा है, तो उन्होंने उसे अपने रास्ते से हटाने का प्रयास किया। गणेश जी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि पार्वती माता ने उन्हें किसी को भी अपने कमरे में न आने के लिए कहा है।
इसके बाद, भगवान शिव अपने आलासी रूप में घर लौटे और बाथरूम में प्रवेश करने का प्रयास किया। गणेश जी ने अपनी माँ की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें रुकने के लिए कह दिया। इससे भगवान शिव को क्रोध आया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया।
पार्वती माता जब स्नान करके नदी से बाहर आईं और अपने पुत्र को बेहद दुखी हालत में देखा, तो उनका मन टूट गया। उनकी विलाप को देखकर भगवान शिव अपनी गलती को समझे और गणेश जी को पुनः जीवित करने का वचन दिया। वे फिर से गणेश जी को जीवित करके उनके सिर की जगह हाथी के सिर को लगा दिया।
इसके बाद से ही गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाने का परंपरागत रूप से प्रारंभ हुआ, और भगवान गणेश की पूजा इस दिन की जाती है। लोग गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखते हैं और भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा करते हैं।