मार्च 2024 में खरमास कब से  है? क्यों नहीं किये जाते हैं खरमास में मांगलिक कार्य?

आईये जानते हैं 2024 में मार्च में खरमास कब से लग रहा है.

हमारे हिंदू धर्म में खरमास का विशेष महत्व माना जाता है। खरमास हर साल, साल में दो बार लगता है। पहला दिसंबर से जनवरी और दूसरा मार्च से अप्रैल के महीने में पड़ता है। मार्च – अप्रैल के महीने में लगने वाला खरमास को मीनमास कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार जिस दिन से  सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश करते हैं उस दिन से ही खरमास लगता है.

 

मार्च 2024 में कब से लग रहा है खरमास

हिंदू कैलेंडर के अनुसार 14 मार्च 2024 से खरमास की शुरुआत हो जाएगी और 13 अप्रैल  2024 को इसका समापन होगा,  राशि चक्र में अंतिम राशि मीन राशि है इसलिए जिस दिन सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश करेंगे, उस दिन से ही खरमास की शुरुआत हो जाती है, इस दिन को मीन संक्रांति के नाम से  भी जाना जाता है। अब की बार 2024 में 14 मार्च से खरमास लग रहा है ऐसे में इस दौरान मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, शादी से जुड़े समस्त कार्यों पर विराम लग जाएगा. हालांकि पूजा पाठ, मंत्र जाप आदि के लिए खरमास शुभ माना गया है, इस दौरान विष्णु जी की विशेष  रूप से पूजा  की जाती है और माना जाता है की खरमास के इस महीने में भगवान विष्णु जी की पूजा करने से आपके द्वारा किये गए सभी पापों का नाश होता है ।

 

क्या होता है खरमास

सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु या मीन में भ्रमण करते हैं तो  खरमास शुरू हो जाता है। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार इसे गुरुवादित्य काल भी कहा गया है । ये स्थिति साल में 2 बार दिसंबर-जनवरी और मार्च-अप्रैल में बनती है. दिसंबर-जनवरी के दौरान सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने से इसे धनुर्मास भी कहा जाता है. वहीं मार्च-अप्रैल में मीन राशि में सूर्य के प्रवेश करने से इसे मीनमास भी कहा जाता है.
खरमास में कौन – कौन से कार्य किये जाते हैं और कौन- कौन से कार्य नहीं किये जाते हैं
खरमास की अवधि को शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है। माना जाता है खरमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसीलिए, 14 मार्च 2024 से मांगलिक कार्यों में आने वाले शादी, विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश  आदि सभी कार्यों पर विराम लग जायेगा। हालाँकि इसके बावजूद पूजा, पाठ, मंत्र जाप आदि सभी कार्य किये जायेंगे। क्योंकि ये सभी कार्य खरमास में करने अति पुण्य के कार्य माने जाते हैं। इस महीने में भगवान विष्णु जी पूजा का विशेष महत्व होता है.

 

खरमास में क्या नहीं करें

खरमास के दौरान शादी, गृह प्रवेश, मुंडन , जनेऊ जैसे संस्कारों का आयोजन नहीं किया जाता है, इसके साथ ही इस दौरान नया वाहन, नया घर, प्लाट, रत्न-आभूषण और वस्त्र आदि नहीं खरीदना चाहिए।इन दिनों गाजर, मूली, तेल, चावल, तिल, बथुआ, मूंग, सोंठ और आंवला का सेवन नहीं करना चाहिए. खरमास अशुभ होते हैं इसलिए इस दौरान मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए.

 

खरमास में जरूर करें ये काम

खरमास में केवल शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन खरमास में किसी भी वस्तु के खरीदने या बेचने की मनाही नहीं है, परंतु अधिकांश लोग मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण होते ही जमीन, मकान, वाहन की खरीद आदि शुभ आवश्यक कार्य करना शुरू कर देते हैं। इन सभी चीजों के साथ हमें खरमास में विष्णु सहस्रनाम का पाठ अपने घर में प्रतिदिन करना चाहिए.

 

विष्णु सहस्रनाम पाठ

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिहृर्ध्यानगम्यम्
वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

 

ये हैं भगवान विष्णु के सहस्रनामो में से 50 नाम जिनका जप आप खरमास के दौरान कर सकते हैं

विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः ।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ॥ 1 ॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमागतिः ।
अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च ॥ 2 ॥
योगो योगविदां नेता प्रधान पुरुषेश्वरः ।
नारसिंहवपुः श्रीमान् केशवः पुरुषोत्तमः ॥ 3।।
सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्ययः ।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभुरीश्वरः ॥ 4 ॥
स्वयंभूः शंभुरादित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ॥ 5 ॥
अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ॥ 6 ॥
अग्राह्यः शाश्वतो कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मंगलं परम् ॥ 7 ॥
ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः ॥ 8 ॥
ईश्वरो विक्रमीधन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृतिरात्मवान्॥ 9 ॥
सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः ।
अहस्संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ॥ 10 ॥
अजस्सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिरच्युतः ।
वृषाकपिरमेयात्मा सर्वयोगविनिस्सृतः ॥ 11 ॥
वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्मा सम्मितस्समः ।
अमोघः पुंडरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ॥ 12 ॥
रुद्रो बहुशिरा बभ्रुर्विश्वयोनिः शुचिश्रवाः ।
अमृतः शाश्वतस्थाणुर्वरारोहो महातपाः ॥ 13 ॥
सर्वगः सर्व विद्भानुर्विष्वक्सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविदव्यंगो वेदांगो वेदवित्कविः ॥ 14 ॥
लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृताकृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूहश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्भुजः ॥ 15 ॥
भ्राजिष्णुर्भोजनं भोक्ता सहिष्णुर्जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ॥ 16 ॥
उपेंद्रो वामनः प्रांशुरमोघः शुचिरूर्जितः ।
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ॥ 17 ॥
वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः ।
अतींद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ॥ 18 ॥
यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः ।
ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये ॥ 19 ॥
महेश्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतांगतिः ।
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां पतिः ॥ 20 ॥
मरीचिर्दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः ।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ॥ 21 ॥
अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः संधाता संधिमान् स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ॥ 22 ॥
गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यपराक्रमः ।
निमिषोऽनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारधीः ॥ 23 ॥
अग्रणीग्रामणीः श्रीमान् न्यायो नेता समीरणः
सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥ 24 ॥
आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः संप्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निरनिलो धरणीधरः ॥ 25 ॥
सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृग्विश्वभुग्विभुः ।
सत्कर्ता सत्कृतः साधुर्जह्नुर्नारायणो नरः ॥ 26 ॥
असंख्येयोऽप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्टकृच्छुचिः ।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धि साधनः ॥ 27 ॥
वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुतिसागरः ॥ 28 ॥
सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः ।
नैकरूपो बृहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः ॥ 29 ॥
ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः ।
ऋद्दः स्पष्टाक्षरो मंत्रश्चंद्रांशुर्भास्करद्युतिः ॥ 30 ॥
अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः ।
औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः ॥ 31 ॥
भूतभव्यभवन्नाथः पवनः पावनोऽनलः ।
कामहा कामकृत्कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः ॥ 32 ॥
युगादि कृद्युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजिदनंतजित् ॥ 33 ॥
इष्टोऽविशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः ।
क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्वबाहुर्महीधरः ॥ 34 ॥
अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः ।
अपांनिधिरधिष्ठानमप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ॥ 35 ॥
स्कंदः स्कंदधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरंधरः ॥ 36 ॥
अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ॥ 37 ॥
पद्मनाभोऽरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत् ।
महर्धिरृद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वजः ॥ 38 ॥
अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः ।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिंजयः ॥ 39 ॥
विक्षरो रोहितो मार्गो हेतुर्दामोदरः सहः ।
महीधरो महाभागो वेगवानमिताशनः ॥ 40
उद्भवः, क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः ।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ॥ 41 ॥
व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः ।
परर्धिः परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ॥ 42 ॥
रामो विरामो विरजो मार्गोनेयो नयोऽनयः ।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठो धर्मोधर्म विदुत्तमः ॥ 43 ॥
वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः ।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ॥ 44 ॥
ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः ।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्वदक्षिणः ॥ 45 ॥
विस्तारः स्थावर स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम् ।
अर्थोऽनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ॥ 46 ॥
अनिर्विण्णः स्थविष्ठो भूद्धर्मयूपो महामखः ।
नक्षत्रनेमिर्नक्षत्री क्षमः, क्षामः समीहनः ॥ 47 ॥
यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतांगतिः ।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमम् ॥ 48 ॥
सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत् ।
मनोहरो जितक्रोधो वीर बाहुर्विदारणः ॥ 49 ॥
स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत्। ।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ॥ 50 ॥

 

खरमास में सूर्य देव की भी पूजा का है विशेष महत्व

खरमास में सूर्य उपासना का बहुत महत्व होता है, इसलिए इस दौरान  हमें प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। और सूर्य देव को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए।

सूर्य अर्घ्य मंत्र

सूर्य देव को जल अर्पित करते समय तांबे के लोटे में अक्षत, रोली, लाल फूल इत्यादि डाल दें, उसके बाद सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं।
सूर्य को जल देते समय
‘ऊं आदित्य नम:  ऊं भास्कराय नम: मंत्र या ऊं घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करें

 

खरमास में कुछ नियमों का रखें ख़ास ध्यान

  • ये माह आराधना और जप, उपवास आदि के लिए शुभ माना जाता है।
  • खरमास के दिनों  में हमें बेड या चारपाई का त्याग कर भूमि पर बिस्तर लगाकर सोना चाहिए।
  • खरमास की अवधि  के दौरान थाली की बजाए पत्तल में भोजन करना अति उत्तम माना जाता है।
  • इस दौरान किसी से भी बुरा व्यवहार न करें और न ही मन में किसी के प्रति बुरी भावना लाएं ।
  • खरमास के दौरान भगवान विष्णु की पूजा करना भी बेहद शुभ रहता है।
  • खरमास में नियमित रूप से तुलसी पूजन भी करना चाहिए।
  • खरमास के दौरान हमें माँस, मदिरा , प्याज, लहसुन आदि तामसिक खाने की चीजों का परहेज करना चाहिए।
  • इसके साथ ही खरमास के इस महीने में हो सके तो ब्रामहचर्य का पालन करना चाहिए।
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