मार्च 2022 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में ने फैसला सुनाया था कि, जहां संपत्ति के टाइटल से सम्बंधित विवाद है, वहां संबंधित पक्षों को घोषणा के लिए एक सूट दायर करना चाहिए, स्थायी निषेधाज्ञा के लिए नहीं। यहाँ सवाल आता है, क्या होती है स्थायी निषेधाज्ञा?
क्या है स्थायी निषेधाज्ञा?
स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent injunctions) किसी न्यायालय द्वारा जारी किया गया वह आदेश है, जो किसी पक्ष को एक तरह का status quo (यथास्थित) बनाए रखने का निर्देश देता है. इसमें किसी भी तरह का परिवर्तन न्यायालय की अवमानना समझा जाएगा और उसको करने वाले के विरूद्ध आवश्यक विधिक कार्यवाही की जायेगी।
किन्तु भारतीय कानूनी प्रक्रिया किसी निषेधाज्ञा के लिए तब तक आवेदन की सुविधा नही देती, जब तक न्यायालय इस बात से सन्तुष्ट न हो जाए कि ऐसा न करने पर वादी को अपूरणीय क्षति होगी जिसको भविष्य में सुधारा न जा सकेगा।
कोई भी न्यायालय तब ही स्थायी निषेधाज्ञा का आदेश करेगा जब वह प्रथम दृष्टया पूरी तरह से संतुष्ट होगा कि मामला याचिकाकर्ता के पक्ष में होना अर्थात उसके सफल होने की पूर्ण सम्भावना होना.
निषेधाज्ञा के प्रकार
स्थायी निषेधाज्ञा
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963, (Specific Relief Act) में उल्लिखित स्थायी निषेधाज्ञा वह है जिसके द्वारा कोई न्यायालय एक विपक्षी को स्थायी रूप से यह आदेश दिया जाता है कि वह सम्बन्धित मामले में ऐसा कोई कार्य न करे, जिससे वादी के अधिकारो का अतिक्रमण हो. यह निषेधाज्ञा स्थायी प्रकार की होती है, जो तब तक लागू रहती है जब तक वाद का पूर्ण रूप से निस्तारण नही हो जाता है।
अस्थायी निषेधाज्ञा
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 39 इस प्रकार की निषेधाज्ञा का व्याख्यान करता है, जिसे अंतरिम निषेधाज्ञा भी कहते है. इस प्रकार की निषेधाज्ञा में एक न्यायालय किसी पक्ष को अस्थायी रूप से ऐसा कोई भी कार्य करने से रोकती है, जिससे वादी के हितों और अधिकारों का हनन हो. इस प्रकार की निषेधाज्ञा प्रायः मुकदमे के निपटारे अथवा न्यायालय के अगले आदेश तक के लिए ही दी जाती है।