अपने हाल ही के जारी किये गए एक फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट की कलबुर्गी बेंच ने आदेश किया है कि दत्तक पुत्र कानूनी रूप से अपने नए परिवार का हमवारिस हो जाता है और उसे वह सारे अधिकार प्राप्त हो जाते है जो खुद के द्वारा उत्पन्न हुए पुत्र के होते हैं. किन्तु दत्तक पुत्र का अपने पिछले परिवार की सम्पत्ति पर कोई हक़ नहीं बचता.
अपने आदेश में एकल पीठ के न्यायाधीश जस्टिस सीएम जोशी ने सिकंदराबाद निवासी भीष्मराज की अपील को खारिज करते हुए कहा: “यह कोर्ट एम कृष्णा बनाम एम रामचंद्र समेत एक अन्य मामले में पहले ही आदेश दे चुकी है कि अगर गोद लेने वाला व्यक्ति गोद लेने के समय संयुक्त परिवार का सदस्य था, तो संयुक्त परिवार की संपत्ति में उसके अधिकार समाप्त हो जाते हैं अगर उन संपत्तियों को विभाजन के माध्यम से पहले ही अलग न किया जा चुका हो.”
“गोद लिया गया व्यक्ति एक नये परिवार का हिस्सा बन जाता है जिसमें उसे प्राकृतिक रूप से जन्मे बेटे के समान अधिकारों के साथ गोद लिया जाता है. इस तरह, गोद लिए गए बच्चे के स्थानांतरण से उस परिवार के साथ उसके सभी अधिकार समाप्त हो जाते हैं, जहां से उसे लिया गया था। गोद लेने में यह स्पष्ट रूप से माना गया कि गोद लिया गया व्यक्ति पैतृक पारिवारिक संपत्तियों में उत्तराधिकार का अधिकार खो देता है,” जस्टिस जोशी ने कहा।
भीष्मराज बनाम राधाबाई और अन्य: पूरा मामला
22 दिसंबर 1974 को 24 साल के भीष्मराज को हैदराबाद के दंपत्ति पी विष्णु और पी शांताबाई ने पूरी कानूनी कार्यवाही के बाद गोद लिया था। 2004 में अपनी असली पिता पांडुरंगप्पा एल्लुर की मौत के बाद, भीष्मराज ने रायचूर की अदालत में अपनी एक पेटीशन में यह दावा किया की गोद लिए जाने के फैसले में उनकी सहमति नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पैतृक परिवार के हमवारिस हैं, और इसलिए उनका पारिवारिक संपत्तियों में अधिकार है। 22 जनवरी 2010 को कोर्ट में भीष्मराज की अपील को खारिज कर दिया। जिसके बाद वो अपनी अपील लेकर हाई कोर्ट पहुंचे।