घर की मरम्मत करवाते समय रहें अलर्ट, जानें क्या है BMC की गाइडलाइन्स

इस गाइड में हम आपको बताएंगे कि नगर निगम की ओर से किस तरह के कार्यों की मरम्मत की अनुमति है और नियमों का उल्लंघन करने पर आपको क्या दंड भुगतना पड़ सकता है।

आवास इकाई से जुड़ी सबसे बड़ी आपदाओं में से एक है – अवैध तरह से घरों में मरम्मत कार्य कराना। मई 2025 में मुंबई के कल्याण इलाके में एक चार मंजिला इमारत की ऊपरी मंजिल का स्लैब गिरने से 6 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 4 अन्य लोग घायल हो गए। इस तरह के कई हादसे पहले भी सामने आ चुके हैं, जिनमें लोगों को अवैध मरम्मत की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। इस आर्टिकल में हम आपको यह जानकारी देंगे कि कौन-कौन से मरम्मत कार्य नगर निगम द्वारा वैध माने जाते हैं और किन कार्यों के करने से नियमों का उल्लंघन होता है, जिससे आपको बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

क्या संपत्ति की आयु के आधार पर मरम्मत कार्य पर प्लानिंग करना जाना चाहिए?

वकील विनोद सी. संपत के अनुसार, संपत्ति की आयु के आधार पर मरम्मत कार्य की प्लानिंग करना जरूरी नहीं है, लेकिन किसी भी इमारत के 30 साल पूरे होने पर उसका स्ट्रक्चरल ऑडिट कराना अनिवार्य होता है। इस ऑडिट में यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि क्या भवन में मरम्मत की जा सकती है या नहीं। इमारत जितनी पुरानी होती है, वह उतनी ही कमजोर भी हो जाती है। वकील नीलम मयुरेश पवार का कहना है कि “पुरानी इमारतें किसी भी तरह के संरचनात्मक बदलावों के प्रति ज्यादा कमजोर होती हैं। मरम्मत शुरू करने से पहले किसी लाइसेंस प्राप्त स्ट्रक्चरल इंजीनियर से इमारत की मजबूती या स्थिरता की रिपोर्ट लेना बेहद जरूरी है, खासतौर पर तब जब आप फर्श बदल रहे हों, प्लंबिंग लाइन बदल रहे हों या जगह में किसी तरह का बदलाव कर रहे हों।”

पुराने फ्लैट में किस प्रकार के नवीनीकरण की अनुमति होती है?

बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के अनुसार, फ्लैट में दो प्रकार के मरम्मत या नवीनीकरण कार्यों की अनुमति होती है।

  • पहला है “किरायेदार योग्य मरम्मत” (Tenantable Repairs), जिसमें पेंटिंग, टाइल्स बदलना, रसोई या बाथरूम का नवीनीकरण जैसे आंतरिक सुधार कार्य शामिल होते हैं। ऐसे कार्य आमतौर पर म्युनिसिपल एक्ट की धारा-342 के अंतर्गत आते हैं। इन्हें करने के लिए महापौर या निगम आयुक्त की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन सोसाइटी से NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) लेना अनिवार्य होता है।

किरायेदार द्वारा की जा सकने वाली मरम्मतों में ये शामिल हैं –

  • संरचनात्मक हिस्सों या दीवारों पर कंक्रीट का छिड़काव कराना।
  • प्लास्टर करना, पेंट कराना या चिनाई के जोड़ भरवाना।
  • फर्श की टाइलें बदलवाना।
  • शौचालय, स्नानघर या साफ-सफाई के स्थान पर मरम्मत कराना।
  • नाली की पाइपों, नलों, मेनहोल्स और अन्य फिटिंग्स की मरम्मत या उन्हें बदलवाना।
  • सेनेटरी जल आपूर्ति या बिजली की फिटिंग्स की मरम्मत या उन्हें बदलना।
  • छत को उसी सामग्री से बदलना।

लेकिन इनमें निम्नलिखित कार्य शामिल नहीं होंगे –

  • किसी भी मौजूदा संरचना की क्षैतिज या ऊर्ध्वाधर आयामों में परिवर्तन।
  • भार वहन करने वाली दीवारों के किसी भी संरचनात्मक हिस्से को हटाना या बदलाव करना।
  • चबूतरे, नींव या फर्श को नीचे करना।
  • मेजेनाइन फ्लोर या लॉफ्ट का विस्तार या जोड़।
  • छत को समतल करना या अलग सामग्री से उसकी मरम्मत करना।

दूसरी श्रेणी ऐसे मरम्मत कार्यों की है, जिन्हें किरायेदार द्वारा किए जाने योग्य (नॉन-टेनेनटेबल) नहीं माना जाता, जैसे कि इमारत में विभाजन को निर्धारित करने वाली दीवारों को हटाना, शौचालय या बाथरूम को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना, दरवाजे-खिड़कियों को हटाना या नई खिड़कियों का निर्माण करना आदि। ऐसे कार्य इमारत की संरचनात्मक इकाइयों, जैसे बीम, स्तंभ, स्लैब या भार वहन करने वाली दीवारों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में नगर निगम आयुक्त को एक लिखित पत्र के माध्यम से अनुमति प्राप्त करनी होती है और भवन समिति (सोसायटी) से भी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लेना अनिवार्य होता है।

वकील विनोद सी. संपत के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को यदि भवन में कोई अतिरिक्त निर्माण, बदलाव या ऐसा मरम्मत कार्य करना है, जिसमें भवन के किसी भाग को हटाना, बदलना या पुनर्निर्मित करना शामिल है (सिवाय उन मरम्मतों के जो किरायेदार द्वारा की जा सकती हैं), तो उसे आयुक्त को पूर्व सूचना देना अनिवार्य है। हालांकि, किसी भी इमारत की नींव, प्लिंथ या फर्श की ऊंचाई को घटाने की अनुमति नहीं दी जाती।

यह आवेदन आयुक्त को दिया जाना होता है, जो कि धारा-344 के अंतर्गत प्राप्त एक निर्धारित प्रपत्र में भरकर पेश किया जाता है। इसमें उस इमारत की स्थिति का उल्लेख करना होता है, जिसमें कार्य किया जाना है। प्रस्तावित कार्य की प्रकृति और उसकी सीमा का विवरण देना होता है, साथ ही उस व्यक्ति का नाम भी दर्ज करना होता है, जिसे इस काम की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया है।

बीएमसी पोर्टल के अनुसार, यदि कार्य “नॉन-टेनैंटेबल रिपेयर” की कैटेगिरी में आता है तो इसके लिए संबंधित व्यक्ति को “कार्यपालन अभियंता (भवन प्रस्ताव) सिटी-1” के कार्यालय में संपर्क करना होता है।

कार्यकारी अभियंता कार्यालय (भवन प्रस्ताव) सिटी-I (नए नगर भवन में स्थित)

सीएसनं. 335-बी, भगवान वाल्मीकि चौक, सामने। हनुमान मंदिर, विद्यालंकार

मार्ग, साल्ट पेन रोड, एंटॉप हिल, वडाला (पूर्व), मुंबई – 400 037.

नई फ्लैट्स में फिट-आउट: कौन-से काम करना मना है?

आजकल लोग नए घरों में इंटीरियर पर भारी खर्च करने लगे हैं, ऐसे में फ्लैट की पजेशन मिलते ही फिट-आउट का काम शुरू कर देते हैं। अशोक यादव ने 2024 में नवी मुंबई में अपना नया फ्लैट लिया और तभी से 3BHK फ्लैट के इंटीरियर का काम शुरू हो गया। एक साल बीत गया है, लेकिन काम अब भी जारी है। रियल एस्टेट इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि यादव जैसे कई लोग अपने नए फ्लैट में बड़े स्तर पर काम कराते हैं, लेकिन कुछ काम ऐसे होते हैं, जो असुरक्षित होते हैं और इन पर रोक होनी चाहिए।

नीचे दिए गए कामों से बचना चाहिए –

  • कॉलम, बीम या लोड-बेयरिंग दीवारों में ड्रिल करना।
  • बाथरूम, बालकनी या टैरेस जैसी जगहों की वॉटरप्रूफिंग लेयर से छेड़छाड़ करना।
  • बिल्डर की तकनीकी जानकारी जांचे बगैर फ्लोरिंग को बदलना करना।
  • बगैर लोड असेसमेंट के भारी मार्बल या ग्रेनाइट लगवाना।

नीलम मयूरेश पवार कहती हैं, “आमतौर पर कई लोग मानते हैं कि अंदर की दीवारें इमारत के मुख्य स्ट्रक्चर का हिस्सा नहीं होती है, लेकिन सच्चाई यह है कि कुछ आंतरिक दीवारें भी लोड-बेयरिंग हो सकती हैं। बिना किसी स्ट्रक्चरल असेसमेंट और मंजूरी के दीवार हटाना इमारत की मजबूती को खतरे में डाल सकता है।”

वे आगे कहती हैं, “बाथरूम और बालकनी की टाइल्स के नीचे बिल्डर आमतौर पर वॉटरप्रूफिंग मेम्ब्रेन लगाते हैं। अगर इन्हें एक्सपर्ट की सलाह के बिना हटाया जाए तो वॉटरप्रूफ लेयर टूट सकती है, जिससे नीचे के फ्लैट्स में सीलन और लीकेज हो सकती है। अगर ऐसा काम जरूरी हो, तो उसे फिर से प्रोफेशनल वॉटरप्रूफिंग के साथ किया जाना चाहिए।”

महाराष्ट्र में कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी को फिट-आउट कार्य पर कितना नियंत्रण होता है?

महाराष्ट्र में उपविधि संख्या 46 के अनुसार, फ्लैट में कोई भी परिवर्तन या संशोधन करने के लिए सदस्य को सोसायटी की प्रबंध समिति से अनुमोदन लेना आवश्यक होता है। महाराष्ट्र सोसायटी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश प्रभु बताते हैं, “इसी कारण कई सोसायटियों ने ऐसे कामों की अनुमति देने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार की है, जिसमें यह तय किया गया है कि किस प्रकार के बदलाव किए जा सकते हैं। कई सोसायटियों ने रजिस्टर्ड ठेकेदार और सलाहकार नियुक्त किए हैं, जो इन कार्यों की निगरानी करते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि कार्य केवल दी गई अनुमति के दायरे में ही किया जाए।”

महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसायटी अधिनियम के तहत सोसायटी को निम्न अधिकार प्राप्त हैं –

  • किसी भी फिट-आउट या मरम्मत कार्य के लिए पहले से सूचना और अनुमति मांगने का अधिकार।
  • कार्य के समय, ध्वनि स्तर और नगर निगम/सोसायटी नियमों का पालन सुनिश्चित करने का अधिकार।
  • ऐसे कार्यों को रोकने या अस्वीकृत करने का अधिकार, जो संरचना के लिए जोखिमपूर्ण हो या अनुमोदित योजना के खिलाफ हो।

प्रभु आगे कहते हैं, “कई सोसायटियां इस प्रकार की अनुमति देने के लिए 50,000 रुपए से 1,00,000 रुपए तक की सुरक्षा राशि जमा करवाती हैं ताकि यदि कोई अवांछनीय परिवर्तन किया गया हो तो उसे उसी राशि से पुनः पूर्ववत कराया जा सके।”

आरडब्लूए उस निवासी से कैसे निपट सकता है, जो नियमों का पालन नहीं करता?

यदि कोई निवासी सोसायटी के नियमों का उल्लंघन करता है तो सोसायटी निम्नलिखित कदम उठा सकती है –

  • निवासी को कारण बताओ नोटिस जारी करना या जुर्माना लगाना।
  • नगर निगम में शिकायत दर्ज कराना।
  • सहकारी सोसायटी अधिनियम के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही आरंभ करना।

क्या निवासियों द्वारा नियमों की अनदेखी के लिए सोसायटी के पदाधिकारी जिम्मेदार होते हैं?

यदि पदाधिकारी अपने आपत्ति पत्रों को दस्तावेज के रूप में दर्ज करते हैं, लिखित सूचना जारी करते हैं और अवैध कार्यों को रोकने या रिपोर्ट करने की प्रक्रिया का पालन करते हैं तो आम तौर पर उन्हें व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। अक्सर ऐसा होता है कि जब ये मरम्मत कार्य कराए जाते हैं, तब तक सोसायटी का गठन ही नहीं हुआ होता। अगर सोसाइटी गठित है तो उन्हें किसी भी बड़े मरम्मत कार्य की अनुमति देने से पहले स्ट्रक्चरल इंजीनियर की रिपोर्ट अवश्य मांगना चाहिए और संबंधित सदस्य से एक क्षतिपूर्ति बांड (indemnity bond) भी लेना चाहिए। संपत ने अनुसार, यदि किसी सदस्य द्वारा बीम या कॉलम में छेड़छाड़ की जाती है और पदाधिकारी मूकदर्शक बने रहते हैं तो उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यदि पदाधिकारी पहले ही अनुमति देने से इनकार कर चुके हैं तो उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यदि कोई सदस्य इससे पीड़ित है तो वह सक्षम कोर्ट में जाकर आवश्यक अनुमति प्राप्त कर सकता है।

Housing.com का पक्ष

आखिर में हम आपको एक त्वरित सारणी के माध्यम से यह जानकारी देना चाहते हैं कि कौन-कौन से बदलाव कानूनी रूप से बगैर अनुमति के किए जा सकते हैं और कौन से ऐसे परिवर्तन हैं, जिनके लिए विभिन्न स्तर पर अनुमति लेने की जरूरत होती है और जिन्हें उनके संभावित प्रभाव के आधार पर अनुमति दी भी जा सकती है या नहीं भी।

बीएमसी द्वारा कानूनी रूप से स्वीकृत संशोधन ऐसे संशोधन, जिनके लिए अनुमति की आवश्यकता होगी।
इनकी गणना किरायेदार द्वारा किए जाने योग्य मरम्मतों में की जाती है। इन्हें गैर-किराएदारीय मरम्मत के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
घर के अंदरुनी सुधारों में पेंटिंग, टाइल्स बदलना, मॉड्यूलर किचन लगवाना और बाथरूम को अपग्रेड करना शामिल है। संरचनात्मक हिस्सों जैसे कि खंभों, बीम और भार सहन करने वाली दीवारों में बदलाव करना। बिना भार मूल्यांकन के भारी मार्बल या ग्रेनाइट की फिटिंग कराना, जिससे नीचे के मंजिल की छत पर असर पड़ता है।
कानूनी तौर पर अनुमति है, इसलिए बीएमसी से अनुमति की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, सोसायटी से एनओसी लेना जरूरी है। इसके लिए बीएमसी की अनुमति और सोसाइटी का एनओसी अनिवार्य है। यदि यह बिना अनुमति के किया गया, तो यह अवैध माना जाएगा।
कोई उल्लंघन नहीं इन उल्लंघनों को गंभीर माना जाता है और कई बार इससे लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। यदि किसी मकान मालिक को कानून का उल्लंघन करते हुए पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें जुर्माना, जेल या दोनों शामिल हो सकते हैं।

अक्सर देखा जाता है कि मकान मालिक घर की मरम्मत के दौरान एक सीमा से ज्यादा बदलाव कर देते हैं, यहां तक कि वे दीवारें और बीम तक हटा देते हैं, जो पूरी इमारत के स्ट्रक्चर को प्रभावित करता है। ऐसा करके वे न केवल इमारत की मजबूती को कमजोर कर देते हैं, बल्कि उसमें रहने वाले अन्य लोगों की जान को भी खतरे में डालते हैं, इसलिए हाउसिंग सोसायटी को अवैध निर्माण कार्यों के प्रति ‘शून्य सहनशीलता’ की नीति अपनानी चाहिए और इसके लिए सख्त निगरानी व्यवस्था होना जरूरी है। मजदूरों, ठेकेदारों और सप्लायर्स की जांच सुरक्षा गार्ड द्वारा की जानी चाहिए और केवल सोसायटी की अनुमति मिलने के बाद ही काम शुरू होना चाहिए। इसके अलावा, सोसायटी को समय-समय पर मकान में हो रहे काम की निगरानी भी करनी चाहिए ताकि किसी भी उल्लंघन की समय रहते पहचान हो सके।

हमारे लेख से संबंधित कोई सवाल या प्रतिक्रिया है? हम आपकी बात सुनना चाहेंगे। हमारे प्रधान संपादक झूमर घोष को jhumur.ghosh1@housing.com पर लिखें
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