हम सभी के लिये जमीन खरीदना एक बहुत बड़ी बात होती है। और जब हम जमीन खरीद कर उस पर कुछ बनाना चाहते हैं तो उससे पहले हमें उस पर भूमि पूजन कराना जरूरी होता है। भूमि पूजन की शुरुआत पहले पूजा यानी देवी-देवताओं की आराधना से करते हैं। क्योंकि उनके आशीर्वाद के बगैर हम किसी भी नये शुभ कार्य की शुरुआत नहीं कर सकते। तो इसीलिए हम जब भी नए घर या किसी भूमि पर निर्माण कार्य शुरू करते हैं तो सबसे पहले भूमि पूजन करते हैं। भूमि पूजन देवी पृथ्वी (भूमि) और वास्तु पुरुष (दिशाओं के देवता) का सम्मान करने के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। ऐसा माना जाता है कि भूमि पूजा करने से भूमि में उपस्थित सभी नकारात्मक प्रभाव और वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं और निवासियों के लिए शांति और समृद्धि आती है। अनुष्ठान की शुरुआत आधारशिला रखने से होती है।
क्यों करना चाहिए भूमि पूजन
जब भी हम किसी नई खरीदी हुई जमीन पर किसी तरह का कंशट्रक्शंन शुरू करना चाहते हैं यो उससे पहले उस भूमि की भूमि पूजा की जाती है। माना जाता है यदि भूमि पर किसी भी प्रकार का कोई दोष या नकारत्मक ऊर्जा का वास है तो भूमि पूजन से हर प्रकार के दोष व नकारत्मक ऊर्जा से छुटकारा मिल जाता है। भूमि पूजा करने से उस जमीन अगर गलती वस कोई पाप कृत्य या कोई भी अपराध हुए रहते हैं तो भूमि पूजन से सभी चीजें समाप्त हो जाती है वह भूमि पवित्र हो जाती है।
कैसे करें भूमि पूजन?
भूमि पूजन करने के लिये हमें सबसे पहले उसकी सही विधि पता होनी चाहिए। और इसके लिये हम हिंदू कैलेंडर को देखकर भूमि पूजा के लिए शुभ तिथि का चयन करना चाहिए। शुभ माह, मुहूर्त, तिथि और नक्षत्र की जांच करनी चाहिए। पूजा अनुष्ठान समुदाय और क्षेत्र के आधार पर भिन्न होते हैं। आम तौर पर, भूमि पूजा अनुष्ठान में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं।
साइट चयन
भूमि पूजन के लिए जिस जगह पर भूमि पूजन करनी है उसका चयन करें। उसके बाद जिस दिन भूमि पूजन करना हो उस दिन सुबह स्नान करने के बाद उस जगह को साफ करना चाहिए। वहां से सूखी पत्तियों, कांटेदार पौधे हैं तो उन्हें भी हटा दे साथ ही अगर उस जगह पर किसी भी प्रकार के गड्ढे या कुछ भी अजीब चीजें हैं तो उन्हें साफ करके हटा दें, सफाई के बाद गंगाजल का छिड़काव करके उस जगह का शुद्धिकरण किया जाना चाहिए तथा उसके बाद निर्माण स्थल के पूर्वोत्तर कोने में 64-भाग का चित्र बनाएं, जो विभिन्न देवताओं (वास्तु पुरुष) का प्रतिनिधित्व करता है।
भूमि पूजन में वास्तु दिशा का रखें ध्यान
पूजा का आयोजन करने वाले व्यक्ति को पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए जबकि पुजारी को उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। भूमि पूजन किसी योग्य पंडित से ही करवाया जाना चाहिए। भूमि पूजन के लिए अनुभवी पुजारी का होना आवश्यक है ताकि आपकी भूमि पूजा अच्छे से हो सके, जो की सभी वास्तु दोषों और नकारात्मक ऊर्जाओं को खत्म करने में हमारी मदद करता है।
कैसे करें वास्तु पुरुष मंडल की पूजा
हमारे गृह प्रवेश पूजा में वास्तु पुरुष का विशेष महत्व होता है क्योंकि वास्तु पुरुष को जमीन का देवता माना जाता है। वास्तु पुरुष मंडल वास्तु संरचनाओं के देवता भी माने जाते हैं। तथा जमीन पर होने वाला हर निर्माण वास्तु पुरुष मंडल के प्रतिनिधित्व में ही होता है। माना जाता है वास्तु पुरुष की पूजा करने से घर में रहने वाले लोंगो के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहती है।
क्यों महत्वपूर्ण है पंचभूति पूजन विधि
भूमि पूजन में पंचभूति पूजन का भी विशेष महत्व होता है। एक प्रकार से यह भूमि पूजन का एक मुख्य पार्ट होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार हमारे ब्रह्मांड में ये पांच प्राथमिक तत्व मौजूद हैं। जिनमें पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और आकाश। हमारे मानव जीवन में इन तत्वों का संतुलन जीवन में सुधार ला सकता है। इसलिए किसी भी निर्माण कार्य में चाहें वो घर का हो या अन्य किसी भी प्रकार का निर्माण उन सभी में प्रत्येक तत्व का अपना अलग ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिए भूमि पूजन के दौरान पंचभूति पूजन करवाना अति आवश्यक होता है।
भूमि पूजन में सबसे पहले गणेश पूजा
किसी भी पूजा या कार्य को शुरू करने से सबसे पहले भगवान गणेश की विधिवत् रूप से पूजा की जाती है क्योंकि उन्हें अच्छी शुरुआत और बाधाओं को दूर करने वाला तथा शुभ मंगल देवता माना जाता है। भगवान गणेश की पूजा करने से समृद्धि और सौभाग्य मिलता है और भगवान् गणेश से यह प्रार्थना की जाती है कि घर के निर्माण में कोई बाधा न आए।
भूमि पूजन में नाग तथा अन्य देवताओं की पूजा
पूजा क्षेत्र में तेल या घी का दीपक जलाएं। भूमि पूजन के अगले भाग में नाग देवता की चांदी की मूर्ति और कलश की पूजा शामिल है। नाग की पूजा करने का महत्व यह है कि देवता शेषनाग पृथ्वी पर शासन करते हैं और भगवान विष्णु के सेवक हैं। घर के निर्माण और सुरक्षा के लिए उनका आशीर्वाद और अनुमोदन मांगा जाता है। मंत्रों का जाप करके और दूध, दही और घी डालकर देवता का आह्वान किया जाता है।
कलश पूजा
एक कलश या लोटे में पानी भरकर उसके ऊपर एक पानी वाले नारियल के साथ आम या पान के पत्ते रखे जाते हैं। देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए कलश के अंदर सिक्के और सुपारी डाली जाती है और उसके बाद कलश पूजा की जाती है। वास्तु के अनुसार, कलश ब्रह्मांड का प्रतीक है और यह भूमि पर दैवीय ऊर्जा का संचार करता है इसलिए भूमि पूजन में भी इसका विशेष महत्व होता है।
भूमि पूजन शुभ मुहूर्त कैसे तय करें
भूमि पूजन में शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व तो होता है। लेकिन सबसे ज्यादा भूमि पूजन में सही महीने, सही तिथि, सही नक्षत्र, लग्न और सही समय का विशेष महत्व होता है। हमें इन शुभ मुहूर्त के बजाय इन सभी चीजों का विशेष तौर ध्यान देना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार भूमि पूजन के लिये सही महिनो की गणना हिंदू कैलेंडर के अनुसार की जाती है। बैशाख, माघ, पौष, फालगुन के महीने यानी- मई , दिसंबर, जनवरी और मार्च में पड़ने वाले नए कंशट्रक्शंन को शुरू करने के लिये या भूमि पूजन के लिये सही माने जाते हैं। लेकिन वहीं अगर हम घर बनवाने की बात करते हैं तो आषाढ़ शुक्ल से कार्तिक शुक्ल के बीच निर्माण करवाना अशुभ माना जाता है।
भूमि पूजन के लिये कौन कौन से महीने शुभ माने जाते हैं?
भूमि पूजन के लिए वास्तु शास्त्र में बैशाख, श्रावण, माघ, फ़ालगुन, भाद्रपद्, और कार्तिक के ये महीने भूमि पूजन के लिए बेहद शुभ माने जाते हैं।
भूमि पूजन के लिये सबसे अच्छे नक्षत्र
भूमि पूजन , नींव पूजन एवं शिलान्यास के लिये सबसे अच्छे नक्षत्र हैं उत्तरफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद और रोहिणी आप इन सभी नक्षत्रों में भूमि पूजन या नींव पूजन करवा सकते हैं।
भूमि पूजन के बाद गृह निर्माण के लिए सबसे अच्छे नक्षत्र
रेवती, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, शतभिषा, धनिष्ठा, हस्त और पुष्य नक्षत्र इन सभी पर आप गृह निर्माण कर सकते हैं।
भूमि पूजन के बारे में
शुभ मुहूर्त पर, गणेश पूजा और हवन सहित मुख्य भूमिपूजन अनुष्ठान आयोजित किया जाता है। आमतौर पर, पूजा में दिशाओं के देवता, दिक्पाल, नाग देवता, पंचभूत प्रकृति के पांच तत्व की पूजा शामिल होती है। और कुलदेवता। संकल्प, षट्कर्म, प्राण प्रतिष्ठा और मांगलिक द्रव्य स्थापना जैसे अनुष्ठान किये जाते हैं। पूजा के दौरान, फूल, अक्षत , चावल, सिन्दूर ,रोली, हल्दी, चंदन का लेप, धूपबत्ती, कलावा (पवित्र धागा), फल, पान के पत्ते, सुपारी, मिठाई आदि चीजें भूमि पूजन के समय पंडित के द्वारा मंत्र बोलते हुए चढ़वाए जाते हैं। उसके बाद भूमि पूजा के लिए एकत्र हुए लोगों के बीच मिठाइयाँ और फल वितरित किए जाते हैं। इसके बाद अन्य अनुष्ठान किए जाते हैं जैसे बलिदान या विशेष प्रसाद, हल कर्षण या साइट समतलन और अनुकुर-रूपण या बीज बोना। शिलान्यास या आधारशिला रखना अगले चरण में किया जाता है। वास्तु के अनुसार, शिलान्यास समारोह के दौरान उस स्थान पर चार ईंटें रखी जाती हैं।
भूमि पूजन विधि विस्तार में
- भूमि पूजन के सबसे पहले सुबह स्नान करके उस जगह पर जाएं जहां पर आपको भूमि पूजन करवाना है। उस जगह पर पहुँचकर आप सबसे पहले वहां पर साफ – सफाई करें उसके बाद उस जगह पर गंगाजल से छिड़काव करें।
- उसके बाद सभी पूजन सामाग्री को एक जगह रख ले। फिर सभी परिवारिजन और आपके रिलेटिवस सब एक जगह पर बैठ जाएं. फिर मुख्य यजमान अपनी जगह पर बैठकर पूजा की शुरुआत करें।
- भूमि पूजन करने के लिए किसी ब्राह्मण को बुलवाना चाहिए।
- पूजा करते समय ब्राह्मण को उत्तर की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए।
- पूजा करवाने वाले व्यक्ति को पूर्व की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए।
- अगर व्यक्ति शादीशुदा हैं तो उसे अपनी पत्नी को अपनी बायीं तरफ बैठाना चाहिए।
- उसके बाद मंत्रोच्चारण द्वारा शरीर, आसन और स्थान की शुद्धि की जाती है।
- पूजन शुरू करने से पूर्व सभी परिवारजन ईश्वर का ध्यान करते हुए उनका नाम जप करें।
- इसके बाद सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करते हैं। उसके बाद भूमि पूजन करने के लिए चांदी के नाग और कलश की पूजा की जाती है।
- उसके बाद कलश में दूध, दही , घी, जल, मिट्टी डालकर मंत्रो द्वारा शेषनाग का आह्वान करना चाहिए।
- उसके बाद कलश में सिक्का और सुपारी डालकर गणेशजी और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करनी चाहिए।
- उसके बाद कलश पर “श्री” लिखकर फूल मालाओं से सजा लें । तथा कलश के उपर लाल कपड़े में लपेटकर नारियल रखें।
- उसके बाद कलश के बगल में धूप और दीपक जला कर रखें।
- कलश को ब्रह्मांड का प्रतीक और विष्णु भगवान का रूप मानकर पूजा करें ताकि विष्णु भगवान मां लक्ष्मी के साथ उसकी भूमि पर सदैव विराजमान रहें।
- अब पांच ईंटों पर सिंदूर से “श्री:” लिखें।
- फिर उसे बनाये हुए गढ्ढे में रखें।
- अब उत्तर पूर्व कोण यानि की ईशान कोण में आसन बिछाएं।
- सबसे पहले दीपों नमः धूपो नमः से धूपदीप करें और मंत्रोच्चार के साथ सभी कलश और उन पर रखी मूर्तियों का पूजन करें।
- अब वृषभ की प्रतिमा वाले कलश को गड्ढे में रखे पत्थर पर रखें और उसके ऊपर फूल चढ़ाते हुए निम्न मन्त्र का जाप करें –आसनाय नमः, पद्मासनाय नमः, शतदल-पद्मासनाय नमः
- अब अपने दाएं हाथ की तरफ रखी हुई पीली सरसों को किसी ईंट से गाढ़ें और उसे दबाते हुए पढ़ें –ध्रुवा द्यो-धुर्वा पृथिवी ध्रवासः पर्वता इमा ध्रुवं विश्वं-इदं सर्वं ध्रुवो राजा विश्वम असि।
- अग्निकोण – पूर्व दक्षिण कोण में कलश सहित घोड़े की प्रतिमा ले आये अब ईंटों पर फूल बिछाकर जिस तरह ईशान कोण में पूजा की थी उस तरह पूजा करें।
- नैऋत्यकोण – दक्षिण पश्चिम कोण पर मनुष्य वाली कलश रखकर पूजा करें।
- वायुकोण – पश्चिम उत्तर कोण में हाथी की मूर्ति वाले कलश को रखकर पूजा करें । उसके बाद बीच वाले गड्ढे में – जो गड्ढा भूमि के बीच में खोदा गया है उसमें नाग के जोड़े वाली की मूर्ति एवं कलश को रखें।
- उसके बाद सभी मिलकर “ॐ श्रीमन नारायण नारायण नारायण ॐ “हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे” का जाप करें।
अंत में सभी आरती गाएं और प्रसाद का वितरण करें।
नींव की खुदाई एवं नींव का निर्माण
भूमि पूजा के अगले चरण में नींव या जल स्रोत की खुदाई की जाती है। आप जब नींव की खुदाई या जल स्रोत की खुदाई शुरू करें तो, सबसे पहले नाग मंत्र का जाप करते हुए निर्माण के लिए नींव की खुदाई ईशान कोण से ही शुरू करें। ईशान के पश्चात आग्नेय कोण की, आग्नेय के बाद वायव्य कोण फिर नैऋत्य कोण की खुदाई करें। जब कोणों की खुदाई पूरी हो जाये फिर दिशा की खुदाई करें पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में क्रम से खुदाई करें। नींव की खुदाई हो जाने के बाद निर्माण के लिए शुभ मुहूर्त जानने के लिए वास्तु और ज्योतिष विशेषज्ञ से परामर्श करने की सलाह दी जाती है। सबसे पहले दरवाजे के फ्रेम को ठीक करने से शुरुआत करनी चाहिए, उसके बाद अन्य निर्माण गतिविधियां शुरू करनी चाहिए। अंत में, कोई गृह प्रवेश शुरू कर सकता है, निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद नये घर में प्रवेश।
भूमि पूजन एवं निर्माण के बाद घर में गृह प्रवेश
भूमि पूजन कंप्लीट करने के बाद आप अपने घर के निर्माण कार्य को तेजी से पूरा करने में लग जाते हैं। घर निर्माण के लिए भी कुछ शुभ तिथियाँ और समय हैं जिनके बारे में आप किसी अच्छे पंडित की सलाह से ले सकते हैं। ये सब कुछ हो जाने के बाद जब आपका घर कंप्लीट हो जाए तब आप गृह प्रवेश के बारे में भी सोच सकते हैं। आपके नये घर में प्रवेश के लिये गृह- प्रवेश बहुत ही अच्छा व शुभ दिन होता है। गृह- प्रवेश आपके नवनिर्मित घर के लिये एक ऐसा दिन होता है जब आप अपने घर में अपने बड़ों और ईश्वर के आशीर्वाद से प्रवेश करते हैं। इसलीए हमें गृह- प्रवेश के लिये भी एक अच्छा दिन, तिथि व शुभ मुहूर्त किसी अच्छे पंडित से निकलवाकर ही गृह- प्रवेश करना चाहिए। और साथ ही गृह प्रवेश के मौके पर अपने दोस्तों, रीलेटिव सभी को आमंत्रित करना चाहिए।
भूमि पूजन में किन बातों का रखें विशेष ध्यान
- सबसे पहले यदि आप भूमि पूजन करने जा रहें हैं तो सही दिन, सही तिथि, नक्षत्र , लग्न इन सभी का विशेष ध्यान रखें।
- भूमि पूजन के दौरान यदि आपके पास कोई भी जानवर या पक्षी आपके पूजन के आस पास आ रहें हैं तो उन्हें मारे या भगाएं नहीं, उन्हें कुछ चारा व दाना डालें और फिर जाने दें।
- भूमि पूजन के लिये आप सबसे पहले भूमि पूजन वाली जगह को अच्छे से साफ़ करें उसके बाद ही भूमि पूजन करें।
- भूमि पूजन कभी भी रविवार,मंगलवार, शनिवार इन सभी दिनों न करें।
- भूमि पूजन हमें श्राद्ध पक्ष के दौरान भी नहीं करना चाहिए।