गणपति के 10 प्रसिद्ध मंदिर, जहाँ दर्शन करने से बनते हैं बिगड़े काम

आईये जानते हैं गणपति के 10 प्रसिद्ध मन्दिर के बारे में.

सभी देवों में प्रथम पूज्यनीय है, भगवान् श्री गणेश! भगवान् श्री गणेश को मनोकामना पूर्ण करने वाला देवता माना जाता है| भगवान् गणेश अपने भक्तों के संकट हरने में देर नही लगाते है.यही वजह है कि उनका एक नाम विघ्नहर्ता-विनायक है| भगवान् गणेश के देश भर में कई  प्रसिद्ध मन्दिर भी हैं.आईये हम जानते हैं गौरी पुत्र गणेश के इन्ही प्रसिद्ध मंदिरों में से 10 प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में विस्तृत रूप से.

Table of Contents

 

मुम्बई सिद्धिविनायक मन्दिर, महाराष्ट्र

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महाराष्ट्र के आर्थिक नगर मुम्बई के प्रभादेवी में स्थित श्री सिद्धिविनायक मन्दिर भगवान् गणेश जी को समर्पित सबसे पुराने और लोकप्रिय पवित्र मंदिरों में से एक है| ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त यहां आकर सच्चे मन से जो भी प्रार्थना करते हैं, उसे श्री सिद्धिविनायक भगवान् श्री गणेश जरूर पूरा करतें हैं. और यही कारण है कि यहां हर समय इस मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ लगी रहती है. ऐसा माना जाता है की कई मशहूर हस्तियां इस मन्दिर में भगवान् श्री गणेश के दर्शन करने के लिए आती रहती हैं|

 

श्री सिद्धिविनायक मन्दिर में है भगवान् श्री गणेश की खास मूर्ति

सिद्धिविनायक मन्दिर में भगवान् गणेश जी की मूर्ति में श्री गणेश जी की सूंड दाऐं ओर है, बल्कि जब हम गणेश जी की दूसरी मूर्तियों को देखते हैं तो उनकी सूंड बाईं ओर नजर आती हैं. सिद्धिविनायक मन्दिर में गणेश जी की मूर्ति को एक काले पत्थर से तराशा गया है जो 2.5-फिट ऊँची और 2-फिट चौड़ी है. भगवान् गणेश इस मन्दिर में अपनी दोनों पत्नियां रिद्धि-सिद्धि संग विराजमान हैं.

 

सिद्धिविनायक मन्दिर का निर्माण और मान्यता

सिद्धिविनायक मन्दिर का निर्माण 19 नवम्बर 1801 में हुआ था|मन्दिर के बारे में ऐसी मान्यता है इसके निर्माण में लगी धनराशि एक किसान महिला ने दी थी. उस महिला की कोई संतान नही थी, इसलिए वो चाहती थी कि जो भी महिला इस मन्दिर में संतान की कामना लेकर इस मन्दिर में आये, गणपति बप्पा उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करें|

 

सिद्धिविनायक मन्दिर और गणेश चतुर्थी

भगवान् श्री गणेश को समर्पित गणेश चतुर्थी का उत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है जोकी आने वाले 18 सितंबर से शुरू हो रहा है. यह उत्सव 11 दिनों तक चलता है|
सिद्धिविनायक मन्दिर में यह उत्सव देखते ही बनता है. इस दौरान यहां रहने या यहां आने वाले लगभग हर भक्त की मुख्य कोशिश यही रहती है की सिद्धिविनायक जी और लालबाग के राजा के दर्शन हों. इस दौरान सिद्धिविनायक मन्दिर में वैदिक भजन और श्लोकों का जप किया जाता है और भगवान् गणेश को मोदक के प्रसाद चढ़ाये जाते हैं|

 

खजराना गणेश मन्दिर, मध्य प्रदेश

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मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित खजराना के गणेश मन्दिर के चमत्कार की कहानी दूर-दूर तक फैली है| इस चमत्कारी मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इस मन्दिर में स्वयंभू  गणपति अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं. बस भक्तों को यहां आकर उल्टा स्वस्तिक बनाना होता है.

 

क्या है उल्टे स्वस्तिक का चमत्कार?

खजराना मन्दिर में जब हम कोई मन्नत लेकर जाते हैं तो भगवान् गणेश जी के मन्दिर के पीछे की दीवार पर उल्टा स्वस्तिक बनाते हैं| जब हमारी मन्नत पूरी हो जाती है तो हम दुबारा जाकर सीधा स्वस्तिक बनाते हैं. कहा जाता है, ये चलन यहां कई सालों से चला आ रहा है| माना जाता है यहां उल्टा स्वस्तिक बनाने से हमारी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं.

 

खजराना गणेश मन्दिर का इतिहास

खजराना गणेश जी का मन्दिर निर्माण 1735 में तत्कालीन होल्कर वंश की शासक अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था.  माना जाता है खजराना गणेश जी के मन्दिर के निर्माण के लिए गणेश जी ने एक पंडित को स्वप्न दिखाया कि यहां पर गणेश भगवान् की एक मूर्ति जमीन में दबी हुई है; उसे वहां से निकालो. तब अहिल्याबाई होल्कर ने स्वप्न के अनुसार उस जगह की खुदवाई करवाई और खुदाई में ठीक वैसी ही भगवान् गणेश की प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसके बाद यहां मन्दिर निर्माण करवाया गया|

 

खजराना गणेश मन्दिर का निर्माण

खजराना का गणेश मन्दिर का निर्माण अपने आप में ही भव्य और विस्तृत में बना हुआ है| माना जाता है इस मन्दिर के निर्माण में लोग देश- विदेश से आकर पैसे, सोना, चाँदी, हीरे जवाहरात मन्दिर के निर्माण के लिए दान करते हैं. खजराना श्री गणेश जी के मन्दिर के गर्भ गृह के बाहरी गेट और दीवार का निर्माण चाँदी से हुआ है, और इसमें अलग-अलग त्योहारों की झाँकिया प्रस्तुत की गयी हैं| भगवान् गणेश जी की प्रतिमा की आँख हीरे से बनाई गयी है, जिसको इंदौर के एक व्यापारी के द्वारा दान किया गया था|

 

पहला निमंत्रण श्री गणेश

खजराना के श्री गणेश मन्दिर में इंदौर और उसके आस- पास रहने वाले लोगों के यहां किसी भी शुभ कार्य में पहला निमंत्रण मन्दिर में भेजकर भगवान् श्री गणेश को आमन्त्रित करते हैं| लोगों का मानना है कि इससे शुभ कार्य में कोई बाधा नही आती है और श्री गणेश हम सब की रक्षा करते हैं|

 

रणथंभौर गणेश मन्दिर, राजस्थान

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यह मन्दिर भारत के राजस्थान प्रांत में सवाई माधोपुर जिले में स्थित है, जो की विश्व धरोहर में शामिल रणथंभौर दुर्ग के भीतर बना हुआ है| अरावली और विंध्याचल पहाड़ियों के बीच स्थित रणथंभौर दुर्ग में विराजे त्रिनेत्र गणेश की बात ही अलग निराली है| यह मन्दिर प्रकृति और आस्था का अनूठा संगम है|

 

रणथंभौर श्री गणेश मन्दिर की मान्यता

राजस्थान के रणथंभौर दुर्ग में स्थित त्रिनेत्र गणेश मन्दिर पूरे विश्व में मात्र एक ऐसा मन्दिर है, जहां हर वर्ष करोड़ों की संख्या में भगवान् गणेश को चिठ्ठिया और निमंत्रण कार्ड भेजे जाते हैं| भगवान् गणेश को आने वाले पत्रों पर रणथंभौर गणेश जी का पता लिखा जाता ह और डाकिया इन पत्रों को श्रद्धा और सम्मान से पहुँचाते हैं, जिन्हें मन्दिर के पुजारी भगवान् को इन निमंत्रण पत्रों को पढ़कर सुनाते हैं. मान्यता है कि भगवान् गणेश को निमंत्रण पत्र भेजनें से  सभी कार्य निर्विघ्न पूरे हो जाते हैं| पूरी दुनिया में यह एकलौता ऐसा गणेश मन्दिर है, जहां श्री गणेश की तीन नेत्रों वाली प्रतिमा विराजमान है तथा जहां भगवान् गणेश अपने पूरे परिवार दोनों पत्नियों रिद्धि -सिद्धि तथा दोनों पुत्र शुभ-लाभ सहित विराजमान हैं|

रणथंभौर गणेश जी का मन्दिर कहां स्थित है?

रणथंभौर के त्रिनेत्र श्री गणेश जी का मन्दिर प्रसिद्ध रणथंभौर टाइगर रिजर्व एरिया में स्थित है, इसे रणतभंवर मन्दिर भी कहा जाता है| यह मन्दिर 1579 फ़ीट की ऊंचाई पर  अरावली और विंध्याचल पहाड़ियों में स्थित है|

रणथंभौर के श्री गणेश जी कैसे बने त्रिनेत्र श्री गणेश

रणथंभौर के मन्दिर में विराजमान श्री गणेश त्रिनेत्रधारी हैं, जिसमें उनका तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है | मान्यता है कि भगवान् शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी के रूप में भगवान् श्री गणेश को सौंप दिया था और इस तरह भगवान् शिव की सारी शक्तियां गणेश जी में निहित हो गयीं और वे त्रिनेत्र धारी बनें|

 

उज्जैन चिंतामण गणेश मन्दिर, मध्य प्रदेश

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(Source: Instagram feed of chintaman_ganesh_daily_darshan) 

 

चिंतामण गणेश मन्दिर उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर से करीब 6 किलो मीटर दूर ग्राम जवस्या में स्थित है|इसे चिंतामण गणेश मन्दिर के नाम से जाना जाता है. मन्दिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते ही गणेश जी की तीन प्रतिमाएं दिखाई पड़ती हैं| पहला चिंतामण गणेश जी, दूसरा इच्छामन गणेश जीऔर तीसरे सिद्धिविनायक गणेश जी| माना जाता है, ये स्वयंभू मूर्तियां हैं. ऐसा माना जाता है कि चिंतामण गणेश जी अपने सभी भक्तों को चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं और इच्छामन गणेश जी अपने सभी भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करते हैं| जबकि सिद्धिविनायक स्वरूप सिद्धि प्रदान करते हैं.

चिंतामन गणेश मन्दिर परमकालीन है जो की 9वी शताब्दी से 13वी शताब्दी के बीच का माना जाता है. इस मन्दिर के शिखर पर सिंह विराजमान है| वर्तमान समय में मन्दिर का जीर्णोद्वार अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल में हुआ था| मान्यता के आनुसार इस मन्दिर की स्थापना स्वयं भगवान् श्री राम ने की थी. ऐसा माना जाता है, यहां दर्शन करने वाले भक्त की सभी चिंताएं खत्म हो जाती हैं और वे चिंता मुक्त हो जाते हैं|

यहां धागा बांधने से होती हैं सभी मनोकामना पूर्ण

ऐसा माना जाता है चिंतामण गणेश मन्दिर में भक्त अपनी मनोकामना के लिए धागा बांधते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान् चिंतामण गणेश जी से प्रार्थना करते हैं. मन्नत पूरी करने के लिए दूध, दही, चावल, या नारियल इनमें से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है. जब भक्त की मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वे चिंतामण भगवान् गणेश के मन्दिर में आकर उसी वस्तु का दान करते हैं.

 

डोडीताल का गणेश मन्दिर, उत्तराखंड

उत्तर-काशी जिले में स्थित डोडिताल को गणेश जी का जन्म स्थान माना जाता है| यहां पर माता अन्नपूर्णा का प्राचीन मन्दिर है, जहां गणेश जी अपनी माता के साथ विराजमान हैं| डोडिताल, जो कि मूल रूप से बुग्याल के बीच में काफी लंबी चौड़ी झील है, वहीं गणेश जी का जन्म हुआ था| यहां गणेश भगवान् को स्थानीय बोली में डोडी का राजा कहा जाता है| स्कंद पुराण के केदार खंड से पता चलता है कि गणेश जी का प्रचलित नाम डुंडीसर भी है, जिसे डोडी ताल से ही लिया गया है| ये दिव्य स्थान उत्तर काशी जिले में संगम चिट्टी से लगभग 23 किलोमीटर दूर स्थित है|

माना जाता है कि चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु गंगा- यमुना के धाम समेत, भगवान् गणेश की जन्म-स्थली माने जाने वाले डोडिताल के मां अन्नपूर्णा मन्दिर में जरूर जाते हैं|
माना जाता है कि विघ्न विनाशक भगवान् श्री गणेश के अन्नपूर्णा मन्दिर में दर्शन करने के बाद चार धाम यात्रा बाधा रहित संपन्न होती है|

 

अष्टविनायक श्री गणेश मन्दिर श्रृंखला, महाराष्ट्र

अष्टविनायक एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है आठ गणपति| यह शब्द पूरे महाराष्ट्र में बिखरे हुए आठ मंदिरों के प्रसिद्ध तीर्थ यात्रा का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है| भगवान् गणेश के ये सभी आठ मन्दिर शिक्षा और समृद्धि के लिए माने जाते हैं| अष्टविनायक की मन्दिर की यात्रा को हिंदुओं में बहुत पवित्र माना गया है| इस तीर्थ में भगवान् गणपति के आठ मन्दिर शामिल हैं. माना जाता है अष्टविनायक के ये सभी आठ मन्दिर बेहद पुराने व प्राचीन हैं| माना जाता है इन सभी आठ मंदिरों में भगवान् गणेश की मूर्तियां स्वयं उत्पन्न हुई हैं, जो कि किसी मनुष्य द्वारा नही बनाई गई हैं. आईये जानते हैं अष्टविनायक के आठ प्रमुख मंदिरों के बारे में.

 

मयूरेश्वर गणपति मन्दिर, मोरगाँव

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मयूरेश्वर अष्टविनायक का एक प्रमुख मन्दिर है जो मोरगाँव में स्थित है| इस मन्दिर में भगवान् गणेश की मूर्ति पर मोर सवार है, इसलिए इसका नाम मयूरेश्वर पड़ा.

 

गिरिजात्मक गणेश मन्दिर, लेन्याद्रि

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यह मन्दिर अष्टविनायक मन्दिर में से सबसे अनूठा मन्दिर है. यह मन्दिर बौद्ध जटिल गुफाओं में से एक है| मन्दिर का मुख दक्षिण की ओर है, जबकि भगवान् गणेश की मूर्ति उत्तर की ओर है और उनका धड़ बांयी ओर है| मन्दिर को एक विशाल पत्थर से तराशा गया है| इसमें 300 सीढ़िया हैं. मन्दिर में बिजली भी नही है फिर भी मन्दिर को इस तरह बनाया गया है कि मन्दिर में हमेशा दिन के दौरान उजाला रहता है| यहां भगवान् गणेश की प्रतिमा अन्य मंदिरों की प्रतिमा से थोड़ा अलग है|

 

सिद्धिविनायक गणेश मन्दिर, सिद्धटेक

सिद्धिविनायक मन्दिर सिद्धटेक गांव में स्थित है| सिद्धटेक में सिद्धिविनायक की मूर्ति लगभग 3 फिट ऊंची है और अन्य गणपति भगवान् के विपरीत उनकी सूंड दांयी ओर मुड़ी हुई है| इसमें इनका चेहरा शांत दिखाई देता है| सिद्धिविनायक गणेश मन्दिर भीमा नदी के तट पर स्थित है| यह मन्दिर लगभग 15 फिट ऊंचा है|

 

बल्लालेश्वर् गणेश मन्दिर, पाली

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बल्लालेश्वर् मन्दिर का निर्माण भगवान् गणेश के भक्त की याद में बनाया गया था. माना जाता है गणेश के भक्त बल्लाला को उनके पिता द्वारा भगवान् गणेश का भक्त होने के लिए पीटा गया था | तब भगवान् गणेश अपने भक्त को बचाने के लिए स्वयं धरती पर आये थे | तभी से यहां पर भगवान् गणेश की मूर्ति स्वयंभू है | इस मन्दिर का मुख पूर्व की ओर है तथा इसके दो गर्भ गृह हैं | इस मन्दिर में भगवान् गणेश की मूर्ति के साथ-साथ मूषक की भी एक मूर्ति है.

 

विघ्नेश्वर गणेश मन्दिर, ओझर

विघ्नेश्वर मन्दिर, छोटे से गांव में बसा है और अष्टविनायक के आठ मंदिरों में से एक है| इस मन्दिर में मूर्ति को विघ्नेश्वर विनायक कहा जाता है. माना जाता है जब देवताओं के प्रसाद को नष्ट करने के लिए इंद्र ने असुर विघ्नसुर् का निर्माण किया था, तब भगवान् गणेश ने उसका मुकाबला किया और उसको हराया| तब विघ्नसुर् ने भगवान् गणपति से याचना की कि उसका नाम हमेशा भगवान् से पहले लिया जाये| तभी से भगवान् श्री गणेश को विघ्नेश्वर-विनायक कहा जाने लगा.

 

वरदविनायक गणेश मन्दिर, रायगढ़

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भगवान् श्री गणेश की वरदविनायक मूर्ति रायगढ़ के महाद गांव में स्थित है जिसका अर्थ है ईनाम और सफलता देने वाला| कहा जाता है कि इस मन्दिर में जो मूर्ति स्थापित है वह मूल रूप से पास के एक नदी से मिली थी जो आधी विसर्जित थी. इसीलिए प्रतिमा का आकार थोड़ा बदला हुआ है| वरदविनायक मूर्ति में सूंड दाँयी ओर मुड़ती है|

 

महागणपति गणेश मन्दिर, रांजणगांव

महागणपति मन्दिर अष्टविनायक मन्दिर में से ही एक है| माना जाता है इस मन्दिर की स्थापना स्वयं भगवान् शिव ने की थी. इस मन्दिर के चारों ओर स्थापित नगर को भगवान् शिव का मणिपुर कहा जाता था. जिसे अब रांजणगांव के नाम से जाना जाता है|इस मन्दिर में भगवान् गणपति की मूर्ति में उनकी पत्नियों रिद्धि- सिद्धि की भी मूर्ति है | जो उनके पास बैठी हैं. वहां के आम धारणा के अनुसार माना जाता है, कि भगवान् गणेश की असली मूर्ति कहीं मन्दिर में पीछे छिपी है| स्थानीय लोगों के हिसाब से असली मूर्ति में 20 फंदे व 20 भुजाएं हैं|

 

चिंतामणि गणेश मन्दिर, पुणे

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चिंतामणि मन्दिर अष्टविनायक मन्दिर में से ही एक है| मन्यताओं द्वारा भगवान् गणेश द्वारा ऋषि कपिला के लिए असुरों से चिंतामणि नामक कीमती गहना वापस लाने के बाद, ऋषि ने भगवान् गणेश को दो हीरे भेंट किये थे. जो अब इस मन्दिर में उनकी सूंड पर टिकी हुई है इस मन्दिर में मूर्ति का मुख पूर्व की ओर है, जबकि मन्दिर का द्वार उत्तर की ओर है|

 

डोडा गणपति गणेश मन्दिर, कर्नाटक

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डोडा गणपति मन्दिर दक्षिण भारत के सबसे अदभुद गणेश मन्दिरों में से एक है| दक्षिण भारत में डोडा का अर्थ है बड़ा| अपने नाम के अनुरूप बैंगलुरू के बसावनगुड़ी में स्थित है. इस मन्दिर में गणेश जी की 18 फुट ऊंची और 16 फिट चौड़ी प्रतिमा है| इस प्रतिमा को काले ग्रेनाइट की एक ही चट्टान पर उकेर कर बनाया गया है|

 

डोडा गणपति मन्दिर में भगवान् श्री गणेश का श्रृंगार

भगवान् गणेश जी के इस अनोखे मन्दिर में गणेश जी का श्रृंगार फूलों से नही बल्कि माखन से किया जाता है. इस मन्दिर में भगवान् गणपति के श्रृंगार में 100 किलो माखन का प्रयोग किया जाता है. भगवान् के इस श्रृंगार को ” बेन्ने अलंकार ” कहा जाता है. इतना ही नही, यहां भगवान् गणेश जी की मूर्ति पर लगाया गया माखन कभी नही पिघलता है. भगवान् की मूर्ति पर लगाए गए माखन को भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है| कहा जाता है कि टीपू सुल्तान के सेनापति ने इस मन्दिर में बैठकर अंग्रेजों के खिलाफ़ रणनीति बनाई थी और सफल भी हुए थे. मन्दिर में लोग दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से आते हैं|

 

डोडा गणपति मन्दिर का निर्माण

भगवान् गणेश जी का यह मन्दिर बैंगलुरू के नंदी मन्दिर के ठीक पीछे है. ऐसा कहा जाता है कि डोडा गणपति मन्दिर में गणेश की मूर्ति स्वयं भू है. यह मन्दिर वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है| इस मन्दिर का निर्माण गौंड शासकों ने 1537 के आस-पास करवाया था. इस मन्दिर में आपको प्राचीन दक्षिण भारतीय वास्तुकला देखने को मिलेगी.

 

गणेश टोक मन्दिर, सिक्किम

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गणेश टोक मन्दिर सिक्किम के गंगटोक में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के साथ- साथ पूज्यनीय भी है| यह मन्दिर नाथूला मार्ग पर गंगटोक शहर से सात किलो मीटर दूर है | यहांपर छोटी सी पहाड़ी पर प्रथम पूज्यनीय भगवान् श्री गणेश जी का एक मन्दिर स्थापित है| पहाड़ और हरियाली के बीच ठंडी हवा के झोंके औरबारिश की बूँदों के चलते अक्सर यहां रूमानी सा एहसास चारों तरफ बिखरा हुआ रहता है| यहां से मन्दिर जाने तक का रास्ता एक सुंदर द्वार से होकर जाता है जो सिक्किम की शैली में निर्मित किया गया है| द्वार से कुछ सीढ़िया चढ़ने के बाद हम गणेश जी के मन्दिर में पहुँच जाते हैं| षटकोणीय आकार का यह एक छोटा सा मन्दिर है, जहां कुछ ही लोग एक साथ प्रवेश करके भगवान् गणेश के दर्शन का लाभ ले सकते हैं| मन्दिर के चारो ओर बालकनी बनी हुई है, जो एक व्यू पॉइंट की तरह से काम करती है | यदि यहां मौसम साफ हो तो मन्दिर परिक्रमा करते हुए कंचनजंगा  पर्वत और गंगटोक शहर के दूर तक नजारों का आनंद  लिया जा सकता है|

 

मधुरमहागणपति गणेश मन्दिर, केरल

मधुरमहागणपति मंदिर केरल में स्थित एक प्राचीन मन्दिर है, जिसे दसवीं सदी का माना जाता है. केरल का यह प्रसिद्ध मन्दिर कासर गोंड में मधुरवहिनी नदी के तट पर स्थित है| प्रारंभ में यहां शिव जी का ही मन्दिर था, लेकिन बाद में ये गणेश जी का मुख्य मन्दिर बन गया| इस संबंध में क्षेत्र में कई मान्यताएं प्रचलित हैं| क्षेत्र में प्रचलित मान्यता के अनुसार प्रारंभ में यहां सिर्फ शिव जी का मन्दिर था. उस समय यहां के पंडित के साथ उनका पुत्र भी रहता था| एक दिन पंडित के पुत्र ने मन्दिर की दीवार पर गणेश जी की आकृति बना दी. बाद में इस चित्र का आकार धीरे- धीरे और बढ़ने लगा और ये आकृति और मोटी होती चली गयी | दीवार पर चमत्कारी रूप से उभरे इस  प्रतिमा के दर्शन के लिए लोग दूर दूर से आने लगे. बाद में यहां गणेश जी की पूजा मुख्य रूप से होने लगी |
यहां मन्दिर में एक तालाब है | प्रचलित मान्यता के अनुसार तालाब का पानी औषधीय गुणों से भरपूर है| मुदप्पा सेवा यहां मनाया जाने वाला एक विशेष त्योहार है, जिसमें भगवान् गणपति की प्रतिमा को मीठे चावल और घी के मिश्रण से ढक दिया जाता है जिसे मुदप्पम कहतें हैं|

 

मनकुला विनयगर गणेश मन्दिर, पांडिचेरी

मनकुला विनयगर मन्दिर पांडिचेरी के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो भगवान् गणेश को समर्पित है| यह मन्दिर बहुत ही भव्य और सुंदर है. मनकुला विनयगर मन्दिर देश के सभी हिस्सों से आने वाले हिंदू भक्तों और पर्यटकों के बीच अत्यधिक प्रतिष्ठित है. 500 वर्षों से अधिक पुराना होने के कारण इसका एक शानदार इतिहास है| यह इस क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है| माना जाता है इस मन्दिर में पूरे वर्ष कई उत्सव आयोजित किये जाते हैं. फिर भी 24 दिनों तक चलने वाला यहां का ब्राह्मोत्सव सबसे महत्वपूर्ण होता है |

 

मनकुला मन्दिर की मूर्ति तोड़ने का फरमान

मनकुला मन्दिर 1666 के आस-पास बना था. जब पंडुचेरी में फ्रेंच कालीन सभ्यता स्थापित थी| उस समय वहां के फ्रेंच अफसर भगवान् श्री गणेश का मजाक उड़ाते थे. एक बार एक फ्रेंच अफसर ने इस मन्दिर की मूर्ति को तोड़ने का फरमान जारी किया और कहा की मूर्ति को समुद्र में फेंक दिया जाए| कई बार मूर्ति को समुद्र में फेंका गया, लेकिन बार-बार फेंके जाने के बाद भी वापस आकर देखने पर मूर्ति वहीं मिलती थी | इसके बाद मूर्ति को तोड़ने की बात की गई, लेकिन मूर्ति को तोड़ने की कोशिश करने वाले लोगों को खुद ही चोट लग गई. फिर उन्होंने इस मूर्ति को वहीं पर छोड़ दिया| और तबसे इसकी मान्यता और बढ़ गई|

 

मनकुला विनयगर मन्दिर में सोने के रथ की मान्यता

माना जाता है यहां एक सोने का रथ भी है, जो 7.5 किलो सोने से बना है. जो 10 फिट ऊंचा और 6 फिट चौड़ा है| इसे लकड़ी से बनाकर तांबे की प्लेटस् से सजाया गया है. और इसके उपर सोने के रैक्स् लगे हैं| मान्यता है कि इस रथ को खींचने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है| इसे सिर्फ एक दिन ही मन्दिर के बाहर (दशहरे पर) निकाला जाता है| बाकी दिन इसे मंदिर के अंदर ही देखा जा सकता है|

 

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