क्या है कलश पूजा? पूजा में क्यों रखा जाता है कलश?

वास्तु के अनुसार पूजा में प्रयोग किए जाने वाले मंगल कलश की स्थापना हमेशा ईशान कोण में की जाती है।

हिन्दू धर्म में कलश का अपना अलग ही महत्व है. कलश पूजा को मंगल कलश या मंगल कुम्भ भी कहा जाता है और इसे मंगल कामनाओं का प्रतीक भी माना जाता है।

 

पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन में निकला अमृत कलश

हमारे पुराणों में कलश की पवित्रता और दिव्यता का उल्लेश मिलता है जैसे समुद्र मंथन में निकला अमृत कलश! देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से समुद्र मंथन किया था.

ऋगवेद में सोम पूर्ति और अथर्व वेद मे घी और अमृत पूर्ति कलश का भी वर्णन किया गया है. जीवन से मृत्यु तक कलश विभिन्न रुप में प्रयोग किया जाता है.

 

पूजा में क्यों रखा जाता है कलश?

हमारे शास्त्रो में वर्णित है कि मंगल कलश में सभी देवी देवताओं और तीर्थो का वास होता है. घर की पूजा में रखा जाने वाला कलश संपन्नता का प्रतीक माना जाता है. इसकी स्थापना से सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं तथा कार्य सिद्ध होने में सहायता मिलती है।

 

कलश स्थापना के महत्व

हमारे हिन्दू धर्म में कलश स्थापना का अपना महत्व होता है. घर मे कोई भी शुभ कार्य करने से पहले कलश कि स्थापना की जाती है जो कि सुख-शान्ति और वैभव का प्रतीक माना जाता है.

हमारे घरों मे कोई भी छोटी या बड़ी विशेष पूजा हो, चाहे दीपावली पूजन हो नवरात्रि पूजन अथवा विवाह, कथा पूजन,करवा चौथ आदि कोई भी पूजन हो कलश स्थापना आवश्यक मानी गई है

 

कलश स्थापना मे प्रयोग होने वाली सामग्री

  • कलश
  • पान के पत्ते
  • आम पल्लव
  • कनेर के फूल
  • फूलो की माला
  • धूपबत्ती
  • घी का दीपक
  • कुमकुम
  • रोली
  • अनाज
  • पानी वाला नारियल
  • रेत
  • जौ
  • प्रसाद
  • जौ बोने के लिए
  • मिट्टी का बर्तन
  • कलावा
  • लकड़ी का पाटा
  • साफ पानी
  • हल्दी
  • पंचरत्न या 1 रूपये का सिक्का
  • पंचामृत
  • दूर्वा
  • कुश
  • सुपारी
  • इलाइची
  • लौंग
  • इत्र, आदि.

 

कलश स्थापित  करने की विधि 

Step 1- सबसे पहले सोने, तांबे, फूल या मिट्टी का एक कलश लें. इस पर रोली से स्वास्तिक बनाकर उस कलश के गले में कलावा बाँधकर कलश को एक ओर रखें ।

Step 2: कलश स्थापित करने के लिए लकड़ी के पाटे पर रोली या कुमकुम से अष्टदल, कमल बनाकर मिट्टी पर पाटे को रखें और ऊपर से जौ डालें.

Step 3: उसके बाद पाटे के ऊपर कलावा बंधा हुआ कलश स्थापित करें.

Step 4:  अब उस कलश में जल और गंगा जल दोनों ही भरें.

Step 5:  उसके बाद अनामिका अंगुली से कलश के जल में चन्दन डालें.

Step 6: कलश जल में सर्वोषधि या हल्दी डालें.

Step 7: कलश में दूर्वा डालें.

Step 8:  उसके बाद कलश पर पंचपल्लव रखें.

Step 9:  कलश में पवित्री (कुश) डालें.

Step 10:  कलश में जौ और तिल डालें.

Step 11:  कलश में पंचरत्न डालें. यदि पंचरत्न न हों तो कोई एक रत्न सोना या रूद्राक्ष भी डाल सकते हैं.

Step 12: कलश में पंचामृत डालें जैसे दूध, दही, घी, चीनी, शहद.

Step 13: कलश में पूंगी फल यानी सुपारी डालें.

Step 14: कलश में दक्षिणा डालें (द्रत्य सिक्का).

Step 15:  इसके बाद कलश पर चावल से भरा हुआ पात्र रखें.

Step 16:  फिर उसके ऊपर लाल चुनरी और मौली से बाँधा हुआ एक नारियल रखें. यहाँ ध्यान रखें कि कलश पर नारियल का मुख अर्थात जटा वाला हिस्सा  अपनी ओर रखें और तीखा हिस्सा पूर्व की ओर रखें.

Step 17:  दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर वरूण देव का आवाहन करें.

Step 18:   फिर नीचे दिए गए मंत्र को पढ़कर अक्षत पुष्प कलश पर छोड़ें.

भो वरूण इहागच्छ इह तिष्ठ स्थापयामि पूजयामि मम पूजा गृहाण अपापतये श्री वरूणाय नमः!

Step 19: फिर उसके बाद कलश को पंचामृत स्नान, गन्धोदक स्नान (चंदन मिला जल) चढ़ाएं. फिर आचमन करें

Step 20: वस्त्र (लाल चुनरी), अक्षत, पुष्प, सुगन्धित द्रव्य (इत्र), धूप दीप, नैवेघ प्रसाद, ऋतुफल (फल), ताम्बूलः (पान का पत्ता) ,सुपारी, लौंग, इलाइची, दक्षिणा, आदि, सभी सामग्रियों को कलश पर चढ़ाकर आरती जलाकर आरती करें.

Step 21: उसके बाद अपनी जगह पर खड़े होकर दाये से घूमकर एक बार प्रदक्षिणा करें।

Step 22: अंत में हाथ में फूल लेकर नमस्कार करे और समर्पण करें.

Step 23: कृतेन अनेन पूजनेव कलशे, वरूणाद्यावादित देवताः प्रीयन्ताम् न मम!

यह मंत्र पढ़कर पुष्प् चढ़ा दें. इस प्रकार कलश स्थापना सम्पन्न होती है।

 

कलश का प्रयोग 

कलश का प्रयोग तमाम तरह की पूजा जैसे नवरात्रि पूजन, दीपावली पूजन, गृह प्रवेश, अक्षत तृतीया पूजन, भगवान सत्यनारायण कथा वत्र पूजन, आदि, में होता है.

किसी भी घर मे कलश को दो जगहों पर रखना अत्यन्त ही शुभ परिणाम देने वाला माना जाता है

इसमें पहला स्थान हमारा पूजा घर और दूसरा मुख्य द्वार होता है. दोनो ही स्थानों पर रखे जाने वाले कलश में पवित्र नदी का जल डालकर रखना चाहिए. यदि आपके पास किसी पवित्र नदी का जल उपलब्ध न हो तो आप ताजा जल लेकर उसमें गंगाजल मिलाकर रख सकते है।

 

द्वार पर रखे कलश के लाभ

हमारे यहाँ घर के बाहर भी कलश रखने का विधान होता है. घर के बाहर रखे जाने वाले कलश का मुँह चौड़ा और खुला होना चाहिए जिसमें ताजे आम के पत्ते और अशोक के पेड़ की पत्तिया रख सकते है. ज्योतिष के अनुसार ये शुक्र और चंद्र ग्रह का प्रतीक है. आम के पत्ते का सम्बन्ध बुद्ध ग्रह से होता है और कलश का सम्बन्ध संपन्नता से होता है. ऐसे में दरवाजे के पास रखा कलश आपके घर में सुख-समृद्धि लेकर आएगा। और बाहर आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को रोकने का काम करेगा।

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