आजकल लगभग सभी लोग किसी ना किसी ज़रूरत के लिए बैंक से लोन लेते हैं. यह संभव नहीं है कि आपके पास हर चीज के लिए पूरा पैसा हो, इसीलिए बैंक ने लोन और उस पर EMI की सुविधा भी दी है. आप अपनी सुविधा के अनुसार पैसे बचा कर हर महीने उस EMI का भुगतान कर सकते हैं.
लेकिन कभी-कभी हो सकता है कि निर्धारित समय पर आपके पास पैसा ना हो तो आप उस पैसे का भुगतान नहीं कर पाते हैं. ऐसे में बैंक से आप पर पेनल्टी लगा सकता है. लेकिन अगर आप अपना EMI चुकाते ही नहीं है तो बैंक आपके उस लोन अमाउंट को NPA यानी नॉन परफोर्मिंग एसेट क़रार दे देती है.
नियम की बात की जाए तो अगर ड्यू डेट के 90 दिन बाद तक आपके लोन का इंटरेस्ट, प्रिंसिपल, EMI आदि का भुगतान आपकी तरफ से नहीं किया जाता है तो वह बैड लोन या फिर नॉन परफोर्मिंग एसेट है.
बैड एसेट(Bad asset) का बुरा असर ना सिर्फ बैंकों पर पड़ता है बल्कि ये देश की इकॉनमी के लिए बहुत गलत है. बार बार फ्रॉड होने से बैंकों के लाभ में कमी आती है और वो ज्यादा लोन देने की स्थिति में नहीं रह पाते हैं या फिर अपने ब्याज की दरें बढ़ा देते है. लोन ना मिलने के कारण लोग निवेश नहीं कर पाते हैं जिसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था(Economy) पर पड़ता है.
लोन के पेमेंट के आधार पर नॉन परफोर्मिंग एसेट(NPA) का निर्धारण;
लोन को 4 तरह की केटेगरी में रखा गया है;
- स्टैंडर्ड (Standard)
- सब-स्टैंडर्ड (Sub Standard asset)
- डाउटफुल (Doubtful asset)
- लॉस एसेट(loss asset)
जैसा कि नाम से ही समझ में आ रहा है स्टैंडर्ड लोन वो है जब कोई भी लेनदार सही समय पर लोन की रीपेमेंट कर देता है. इसके अलावा सब-स्टैंडर्ड लोन में राशि लगभग 12 महीने तक NPA रहती है. ऐसे में लेनदार के पास ऐसा कोई एसेट भी नहीं होता है जिसको ले कर बैंक लोन का पैसा वसूल कर सके.
जब कोई लोन 12 महीने तक NPA रहे और उसके बाद उसके रीपेमेंट की कोई संभावना नज़र ना आ रही हो तो उसे बैंक डाउटफुल एसेट में डाल देता है. साथ ही अगर बैंक को यह सीधे तौर पर पता चल जाए कि लेनदार की तरफ से लोन चुकता होने की कोई संभावना नहीं है तो बैंक उसे राइट ऑफ कर देता है और इस बकाया लोन का पूरा प्रोविजन बैंक ही करता है.
रातों–रात नहीं हुई है ये समस्या
NPA पर सबसे पहली बार ध्यान पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल में दिया गया था. उन्होंने बैंकों के सामने अपने NPA के वास्तविक आंकड़े रखने का प्रस्ताव किया था. इससे पहले NPA बैंकों की बैलेंस शीट से बाहर निकलता ही नहीं था. उस समय पर रिजर्व बैंक द्वारा सीधे तौर पर कह दिया गया था कि बैंकों को अपने क्रेडिट ग्रोथ की जगह NPA को कम करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि NPA पर काबू पाने के बाद बैंक अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने में समर्थ हो सकते हैं.
NPA में सुधार के लिए बना बैड बैंक क्या है?
सरल शब्दों में समझने की कोशिश करें तो बैड बैंक एक ऐसी फाइनेंसियल यूनिट है जिसे NPA या बैड लोन को खरीदने के लिए बनाया गया है. इसका मुख्य काम बैंकों की बैलेंसशीट से बैड लोन को खरीदकर उन्हें फिर से लोन देने के काबिल बनाने से है.बैड बैंक इन सब देखरेख के बीच थोड़ा बहुत लाभ कम सकता है लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है.
बैड बैंक NPA का रख रखाव कर बैंकों के ऊपर आए हुए बोझ को कम करने का सरकार द्वारा सुझाया एक तरीका है.
NPA निपटान के लिए योजनाएं
हालांकि बैंक और उसका बोर्ड किसी भी तरह की ऋण वसूली और उसके निपटान के लिए योजना बनाने का हक़ रखता है लेकिन फिर भी कई बार मामलों को अदालत तक पहुंचाना जरूरी हो जाता है ऐसे में लीगल तौर पर दो जगह जाया जा सकता है;
- लोक अदालत: 20 लाख तक के NPA के निपटान के लिए लोक अदालत का गठन किया गया है. ये अदालत किसी भी तरह की गंभीर सजा नहीं दे सकती है लेकिन यहां आप समस्या पर चर्चा कर हल निकाल सकते हैं.
- NCLT और NCALT: यह IBC यानी इन्सोल्वेंसी एंड बैंकिंग कोड के तहत बनाया है.यहां पर सबसे अच्छी बात है कि यहां पर मुकदमे बाजी होती है और पूरी तरह से समस्या का हल 330 दिनों में निकाल देने का नियम है.
- दूसरे बैंकों को NPA बेचना: जी हां! यह भी एक विकल्प है.लेकिन यहां पर आपको एक बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि NPA उसी बैंक को नहीं बेचा जा सकता है जिसने मूल रूप से NPA को बेचा था.
इस समस्या का समाधान क्या है?
जैसा कि हमने समझने की कोशिश की है यह समस्या रातों-रात खड़ी नहीं हो गई है. कहीं ना कहीं कुछ ऐसी चीजें जरूर की जा सकती है जिससे इस समस्या को हल भी किया जा सकता है और साथ ही इसमें कमी भी आ सकती है. आइए जानते हैं ऐसी कौन सी छोटी-छोटी चीजें हैं जिन्हें अपनाकर NPA की समस्या पर काबू पाया जा सकता है;
- किसी भी व्यक्ति या कंपनी को लोन देने से पहले उसके प्रोफाइल को अच्छी तरह से जांच लेना जरूरी है. जैसे कि सबसे पहले उसके CIBIL या क्रेडिट स्कोर को जरूर देखें.
- बैंक में कर्मचारियों को भी अच्छी तरह से इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए और साथ ही उनकी ट्रेनिंग में इस तरह के सुझाव और तरीके बताएं जाने चाहिए जिससे वह भी लोन देते समय लोगों की प्रोफाइल कि अच्छे से जांच करें.
- NPA के निपटारे और देखरेख के लिए बनाई गई सभी जांच एजेंसियों को भी समय-समय पर अपनी रिपोर्ट देने के बारे में प्रोत्साहित करना जरूरी है.बैड लोन को लेकर काफी संस्थाएं बनाई गई है लेकिन फिर भी उनके द्वारा लंबे लंबे समय तक कोई भी रिपोर्ट नहीं दी जाती है जिससे स्थिति का सही जायजा नहीं हो पाता है.
- सार्वजनिक डोमेन में आने वाले ऐसे मामले हैं जहां पर बड़ी बड़ी राशि का भुगतान नहीं हो रहा है उन पर जल्द से जल्द एक्शन लिया जाना जरूरी है. बहुत बार बैंक की तरफ से भी लापरवाही देखी जाती है ऐसे मामले जो सार्वजनिक हित के हैं उन्हें जल्द से जल्द किसी बड़ी एजेंसी को सौंप देना चाहिए.
- बैंकों को भी समय-समय पर उस व्यक्ति या कंपनी से संपर्क में रहना चाहिए जिन्होंने लोन लिया है. कई बार बैंक की तरफ से भी एक्शन लेने में इतनी देरी हो जाती है कि सामने से लोन लोन का भुगतान होना मुश्किल हो जाता है.
- हम देखते हैं कि बहुत बार बड़े बड़े बड़े घोटाले होने के बाद भी बहुत बड़ी कार्यवाही नहीं की जाती हैं. अगर आने वाले समय में हमें समस्या का हल निकालना चाहते हैं तो बैंकों को भी अपने काम के प्रति जवाबदेह बनाना बेहद जरूरी है. ऐसा करने से आगे चलकर लोन देने से पहले बैंक अच्छी तरह से प्रोफाइल का जांच पड़ताल करने के बाद ही लोन की राशि जारी करेंगे.
निष्कर्ष
भारत में बैंकिंग प्रणाली का इतिहास बहुत पुराना है इसलिए इस तरह की चुनौतियां भी हमें समय-समय पर आती रही हैं. लेकिन हाल ही में सार्वजनिक बैंकों में भी NPA का मुद्दा सामने आया है. एक रिपोर्ट की माने तो एसबीआई पर सबसे ज्यादा बैड लोन है और अगर प्राइवेट बैंक की बात की जाए तो आईसीआईसीआई बैंक इसमें नंबर एक पर आता है. ऐसे में बैंकों को यह सोचने की जरूरत है कि अब वह समय नहीं रहा है जब वह अपने क्रेडिट ग्रोथ के लिए बिना किसी जांच-पड़ताल के लोन देते रहें और उसके बाद वह केवल एक बैड एसेट बन कर रह जाए.
अब समय आ गया है कि इस समस्या के निपटारे के लिए बैंकों को भी उतनी ही जिम्मेदारी लेनी होगी जितना वह आम लोगों से मांग रहे हैं तभी जाकर इस समस्या का हल निकल सकता है.
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
NPA का फुल फॉर्म क्या है?
NPA है नॉन परफोर्मिंग एसेट.
कितने दिन के बाद कोई लोन NPA लिस्ट में आ जाता है?
अगर लोन की EMI का भुगतान ड्यू डेट के 90 दिन बाद तक ना किया जाए तो उसे NPA मान किया जाता है.
NPA बढ़ने का मुख्य कारण क्या है?
लोगों द्वारा बैंक से उधार लेकर उसे चुकता ना करना NPA बढ़ने का मुख्य कारण है.