परमा एकादशी अधिक माह के कृष्ण पक्ष में आती है. परमा एकादशी को अधिक मास एकादशी भी कहा जाता है. आइए जानते है परमा एकादशी के बारे में जो भगवान विष्णु का समर्पित है।
परमा एकादशी का महत्व
अधिक मास या पुरूषोत्तम मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को परमा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, कथा, व्रत करने से दुर्लभ सिद्धियो की प्राप्ति होती है. यह एकादशी परम दुलर्भ सिद्धियो का दाता होने के कारण ही परमा के नाम से प्रसिद्ध है. इस एकादशी में स्वर्ण-दान, विद्या-दान, अन्न-दान, भूमि-दान और गौ-दान करना चाहिए.
वर्ष 2023 में परमा एकादशी कब है?
अधिक मास हर तीन साल में एक बार आता है. अधिक मास की एकादशी तिथियों का विशेष महत्व होता है. यह दोनो ही भगवान विष्णु को अत्यंन्त प्रिय हैं.
परमा एकादशी तिथि का प्रारम्भ 11 अगस्त को सुबह 05 बजकर 06 मिनट पर होगा और और इसका समापन 12 अगस्त को सुबह 06 बजकर 31 मिनट पर होगा. ऐसे में परमा एकादशी व्रत 12 अगस्त शनिवार के दिन मनाया जायेगा
परमा एकादशी व्रत-पारण समय
परमा एकादशी व्रत के पारण का समय 13 अगस्त को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से 08 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।
शुभ मुहूर्त
परमा एकादशी की शुरूआत 11 अगस्त दिन शुक्रवार को प्रातः 8 बजे से शुरू होकर अगले दिन 12 अगस्त दिन शनिवार को प्रातः 7 बजकर 46 मिनट तक यह तिथि रहेगी.
उदया तिथि के मुताबित 12 अगस्त को व्रत रखा जायेगा
पूजा का शुभ मुहूर्त 12 अगस्त को सुर्योदय से लेकर सुबह 7 बजकर 46 मिनट तक रहेगा
परमा एकादशी पूजन विधि
Step 1: इस दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल व फल लेकर व्रत का संकल्प करना चाहिए. इसके बाद भगवान का पूजन करना चाहिए तथा निर्जला व्रत रखकर विष्णु पुराण श्रवण या पाठ करें।
Step 2: इसके बाद 5 दिनो तक श्री विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का पालन करना चाहिए।
Step 3: पांचवे दिन ब्राहमण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के बाद व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए.
परमा एकादशी के दिन कौन से कार्य करें?
परमा एकादशी का व्रत 3 साल में एक बार आता है. ऐसे में इसका पूर्ण लाभ लेना चाहते है तो इस दिन विष्णु जी का पंचामृत केसर-मिश्रित जल अभिषेक करें, तुलसी-दल चढ़ाएं और कथा का श्रवण करे।
परमा एकादशी के व्रत के दिन व्रतगीता का पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है. इससे आर्थिक तंगी दूर होती है. मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
एकादशी के दिन पीपल की पूजा जरूर करे इस दिन पीपल में लक्ष्मीनाराण का वास होता है. 7 परिक्रमा भी करें।
परमा एकादशी के दिन कौन से कार्य न करें?
परमा एकदशी व्रत करने से सालभर के धार्मिक कर्म और दान का पुण्य मिल जाता है. इसलिए इस दिन सुबह देर तक न सोएं. दोपहर में भी नही सोना चाहिए. व्रती रात्रि जागरण कर विष्णु जी के मंत्रो का जाप करें।
परमा एकादशी के दिन जो व्यक्ति पशु-पक्षी घर आएं तो उसे कुछ खिलाए बिना न भेजें. माना जाता है की इस दिन पितर किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं ।
इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को काले रंग के कपड़े भूलकर भी नही पहनना चाहिए. काला रंग नकारात्मकता का प्रतीत है. इससे व्रती पर बुरा प्रभाव पड़ता है. व्रती को व्रत का फल नही मिलता है।
दान न लें!
परमा एकादशी के दिन दान देना पुण्यकारी माना जाता है लेकिन ध्यान रहे इस दिन व्रत करने वाले भूलकर किसी दूसरे के घर का जल-फल नही खाना चाहिए. न ही कोई दान लेना चाहिए. अगर किसी कारण-वश ऐसा करना पड़े तो उसके बदले उन्हे रूपये दे दें. इससे व्रत नष्ट नहीं होता है।
संयम रखें, शांत रहे!
परमा एकादशी व्रत वाले दिन व्यक्ति को पूरी तरह से साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए. काम, क्रोध या ईर्ष्या की भावना का त्याग करें तभी व्रत का फल मिलेगा।
परमा एकादशी के दिन किन चीजो का दान अवश्य करें?
अन्न का दान: परमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अन्न का दान करें. इससे भगवान विष्णु के साथ-साथ माँ अन्नपूर्णा का आर्शीवाद भी मिलता है।
दीपक दानः परमा एकादशी के दिन दीपक का दान करना शुभ और लाभकारी होता है. ऐसे में 21 दीपकों को घी के साथ दान करने से मनोकामनाए पूरी हो जाती हैं।
केसर का दानः परमा एकादशी के दिन केसर का दान करने से आर्थिक स्थित सुधर जाती है. इससे आर्थिक तंगी भी दूर होती है।
शंख का दान: परमा एकादशी के दिन मन्दिर में शंख का दान करें। ऐसा करने से धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं।
किताबों का दान करें: परमा एकादशी के दिन किताबों का दान करना चाहिए. ऐसा करने से जीवन में सफलता मिलती है।
पीले वस्त्रो का दान: परमा एकादशी के दिन गुरू ग्रह को मजबूत करने के लिए पीले वस्त्रो का दान करना चाहिए. इसके साथ ही केले के पेड़ की परिक्रमा करें और भगवान विष्णु जी को केले अर्पित करें।
परमा एकादशी व्रत कथा
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परमा एकादशी व्रत का महत्व और कथा का वर्णन सुनाया. प्राचीन काल में काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था. वह परमा सती और साध्वी थी. पति-पत्नी दोनो निर्धनता में जीवन निर्वाह करते हुए भी परम धार्मिक थे और हमेशा अतिथि सेवा में तत्पर रहते थे. एक दिन गरीबी से परेशान होकर ब्राह्मण ने परदेश जाने का विचार किया. तब उसकी पत्नी ने कहा: “स्वामी, धन और संतान पूर्व-जन्म के दान से ही प्राप्त होता है. अतः, आप इसके लिए चिन्ता न करें.”
फिर कुछ बाद दिन महर्षि कौण्डिन्य उनके घर आये. ब्राह्मण दंपति ने श्रद्धा भाव से उनकी सेवा की. महर्षि ने उनकी दशा देखकर उन्हे परमा एकादशी का व्रत करने को कहा. उन्होने कहा, “दरिद्रता को दूर करने का सुगम उपाय यही है कि तुम दोनो मिलकर अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत तथा रात्रि जागरण करो. इस एकादशी के व्रत से यक्षराज कुबेर धनाधीश बना है हरिश्चन्द्र राजा हुआ है.”
ऐसा कहकर महर्षि चले गये और सुमेधा ने पत्नी सहित व्रत किया. इसके बाद प्रातः काल एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उसने सुमेधा को सर्व-साधन संपन्न सर्व-सुख समृद्ध कर एक अच्छा घर रहने को दिया. इसके बाद उनके समस्त दुख-दर्द दूर हो गये. इसलिए परमा एकादशी का व्रत करने से जीवन की तमाम परेशांनियाँ दूर हो जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।