जब किसी सम्पत्ति को बेचा जाता है, तो उस सरकारी रिकार्डो में भी उस संपत्ति में हुए बदलाव का लेखा-जोखा बदला जाता है. सरकारी रिकार्डो में संपत्ति से सम्बंधित परिवर्तत की इस प्रक्रिया को ही असल में दाखिल-खारिज कहते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो, दाखिल -खारिज की प्रक्रिया में संपत्ति के नए मालिक का नाम जोड़ कर यानी दाखिल करके पुराने मालिक का नाम हटा देते हैं यानी खारिज कर देते हैं.
दाखिल–खारिज की प्रक्रिया
दाखिल-खारिज एक चरण-बद्ध तरीके से चलने वाली प्रक्रिया है. सर्वप्रथम प्रापट्री के क्रेता द्वारा सम्बन्धित तहसील, नगर निगम, नगर पालिका या हाउसिग सोसाइटी इनमें से जहाँ पर भी सम्पत्ति स्थित है, के आफिस में दाखिल-खारिज का फार्म भरकर बैनामे की मूलप्रतिया और सत्यापित प्रति के साथ अप्लाई करना होता है अप्लाई करने के बाद सम्बन्धित आफिस से आप को एक वादसंख्या प्राप्त होती है तथा उस वाद में 35 दिन बाद की एक तारीख नियत कर दी जाती है. इसी बीच सम्बन्धित प्रापट्री से जुडे़ हुए लोगों जैसे क्रेता व सरकार व सम्बन्धित एथार्टी को नोटिस जारी कर दिया जाताहै कि उपरोक्त दाखिल-खारिज का आवेदन हमें प्राप्त हुआ है अगर किसी व्यक्ति को कोई आपत्ति है, तो वह अपना पक्ष सम्बन्धित एथार्टी को 35 दिन के अन्दर उपलब्ध करा दे. अन्यथा 35 दिन बाद विक्रेता का नाम खारिज करके क्रेता का नाम पर सम्बन्धित सम्पत्ति दर्ज कर दी जाती है। ध्यान रहे कि दाखिल-खारिज की प्रक्रिया भिन्न-भिन्न राज्यो में अलग-अलग है. राज्यो द्वारा समय-समय पर इस से सम्बन्धित नियमो पर परिवर्तन किया जाता रहा है, जिससे एक प्रक्रिया को सुदृढ रूप से चलाया जा सके तथा प्रक्रिया की खामियो को दूर किया जा सके.
दाखिल खारिज में लगने वाले महत्वपूर्ण प्रपत्र
आइये जानते है कि दाखिल-खारिज कराने के लिए किन-किन दस्तावेज़ों /कागज़ों की आवश्यकता पड़ती है. दाखिल-खारिज कराने के लिए आपको नीचे लिखे सभी दस्तावेज़ों /कागज़ों की आवश्यकता पड़ेगी:
- मूल प्रति बैनामा (sale deed)
- क्रेता का आधार कार्ड
- क्रेता का मोबाइन नम्बर
- सत्यापित प्रतिलिपि खतौनी
- विक्रेता द्वारा दिया गया शपथ-पत्र
दाखिल खारिज की फीस
दाखिल खारिज की फीस अलग-अलग राज्यो में अलग-अलग निर्धारित है. उत्तर प्रदेश में कृषि जमीन की दाखिल खारिज की कोई फीस नही है. केवल सम्बन्धित फार्म खरीदना होता है. अलग-अलग राज्य सम्पत्ति के मूल के आधार पर दाखिल- खारिज की फीस निर्धारित करते है। फीस का निर्धारण सम्पत्ति के मूल्य पर ही निर्भर करता है।