बहुत दिनों पहले एक फिल्म आई थी-नगीना. उसमें एक गीत था-सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेसी घर वापस आया. यह पूरा गीत झूले पर था. नगीना से 20 साल पहले एक फिल्म आई थी जुर्माना. उसका एक बड़ा ही मधुर गीत था-सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ…तुम चले आओ. यहां प्रेमिका अपने प्रेमी को बुला रही है कि सावन आ गया है, झूले पड़ गए हैं, मैं यहां हूं और तुम कहीं और हो. इसलिए मेरे पास आ जाओ.
आपको लग रहा होगा, आज हम लोग फिल्मों की बात क्यों कर रहे हैं. दरअसल, हम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि 5,000 साल से भी ज्यादा पुराना झूला हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है. क्या फिल्म, क्या मेडिकल साइंस. हर स्थान पर झूले का अपना वजूद रहा है, अपना महत्व रहा है. झूला सदैव सकारात्मक ऊर्जा का बहुत बड़ा सोर्स रहा है. यह आपको खुद को बैलेंस रखते हुए आगे बढ़ने की सीख देता है. झूले का एक पींग आपको पहले आगे बढ़ाता है, फिर पीछे खींचता है. ये आगे बढ़ना और पीछे आना, फिर आगे बढ़ना, फिर पीछे आना आपके जीवन का एक हिस्सा है. इसी में खुद को संतुलित रखना है, बैलेंस रखना है. जिसे जीवन का यह आर्ट समझ में आ गया, उसके लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं. एक झूला हमें बैलेंस रखना सिखा देता है. तो आइए, आज झूले के बारे में हर वो चीज जानने का प्रयास करें, जो हमें जरूर जानना चाहिए.
झूले का इतिहास
इस बात का कोई रिकार्ड नहीं है कि झूले का आविष्कार कब हुआ. इस बारे में अलग-अलग दावे किये जाते हैं. परमानंद सहाय की किताब भारत और दुनिया की सभ्यता में एक जगह दावा किया गया है कि जब सृष्टि का निर्माण हो चुका था, आदम और हौव्वा आ चुके थे तो उन्होंने पेड़े के लत्तों को ही झूले के हिसाब से ट्रीट किया था. उस दौर में झूले का पहला इस्तेमाल बंदरों से करने की बात कही जाती है. बाद में, द्वापर और त्रेता की बात करें तो श्रीराम और श्रीकृष्ण का झूला झूलना भी एक बड़ा उदाहरण रहा है. कुल मिलाकर आप मान लें कि झूला इस दुनिया में बहुत पहले से है. इस झूले का इस्तेमाल भगवान श्रीविष्णु ने बार-बार किया है. उन्होंने अपने राम और श्रीकृष्ण अवतारों में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया है. वह राधा के साथ, गोपियों के साथ भी झूला झूलते थे तो हिरण के बच्चों को भी गोद में बिठाकर झूला झूलने में संकोच नहीं करते थे.
आधुनिक झूले
आधुनिक युग में झूले कई प्रकार के हो गए हैं. कुछ झूले आज भी काठ, फूल और स्टील के होते हैं. देश-दुनिया में अब रबड़ के झूलों का भी इस्तेमाल होने लगा है. फोम, ग्रेनाइट, फाइबर और एल्युमिनियम के झूले भी प्रचलन में हैं. गांव-देहात में आपको बांस के खप्चे के भी झूले दिख जाएंगे. अमेरिका में अब रोबोट लोगों को झूला झुलाता है. दौर बदल रहा है तो चीजें भी अपना आकार बदल रही हैं. देश-दुनिया में सब मिलाकर 100 से ज्यादा किस्म के झूले उपलब्ध हैं.
झूलों की कीमत
भारत में काठ के झूले ज्यादा प्रचलित हैं. काठ एक प्रकार की लकड़ी ही होती है, जिससे नाव बनती है. यह मजबूत होता है और सालों-साल चलता है. काठ के झूले भी कई प्रकार के होते हैं. इनके साइज में विविधता होती है. अमूमन जो बाजार में झूले उपलब्ध हैं, वो दो फुट चौड़ाई और चार फुट लंबाई के होते हैं. इनकी अलग-अलग साइज भी होती है. इनकी शुरुआती कीमत 4000 से शुरू होती है और 12000 तक जाती है. यह देश के बड़े शहरों में तो उपलब्ध है ही, आप इसे आनलाइन भी मंगा सकते हैं. यह झूला अलग-अलग फोल्ड में भेजने योग्य होता है.
एल्युमीनियम का झूला
कुछ लोग, जो मेटल प्रेमी होते हैं, वो एल्युमिनियम का झूला लगवाते हैं. एल्युमिनियम का झूला कीमती होता है. यह 10000 से शुरू होता है और 65000 तक जाता है. अभी इस किस्म के झूले आगरा, दिल्ली, मुंबई, बेगलुरू जैसे शहरों में ही उपलब्ध हैं. ये आनलाइन नहीं मिलते. हां, जस्ट डायल पर रिंग करके या इंडिया मार्ट में संपर्क करके आप इन्हें आर्डर देकर मंगवा सकते हैं. एल्युमीनियम का झूला उन लोगों को पसंद आता है जो गर्मा बर्दाश्त नहीं कर पाते.
स्टील का झूला
स्टील का झूला भारत के हर बड़े शहर में तो मिल ही जाता है, यह छोटे शहरों में भी उपलब्ध हो जाता है. इनकी शुरुआती कीमत 5000 से 20000 तक होती है. आप जब स्टील का झूला लेने जाएं तो यह जरूर पता कर लें कि झूले को कनेक्ट करने वाला चेन दुकानदार देगा या नहीं. कई स्थानों पर सिर्फ झूला दे देते हैं, चेन गायब कर देते हैं. तो पहले बात कर लेना जरूरी होता है.
फोम का झूला
फोम के झूले इन दिनों प्रचलन में हैं. ये कोजी टाइप के होते हैं. आप जब चाहें, इन्हें फोल्ड करके रख लें. फोम के झूले आरामदायक होते हैं. इनकी कीमत 2000 से 5000 के बीच होती है. आनलाइन पर ये ज्यादा बिकते हैं. दुकानदार भी रखते हैं. इन झूलों के साथ नायलॉन की रस्सी फ्री मिलती है. आप अपने वजन के हिसाब से उसमें रस्सी जोड़ सकते हैं.
लकड़ी का झूला
लकड़ी का झूला आपको पूरी दुनिया में मिल जाएगा. इसकी कीमत भी कम होती है. भारत में लकड़ी के झूलों में आम तौर पर आम की लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है. हां, आपको शीशम, सागौन, बेर, चकरी, पाकुड़ आदि के लकड़ियों से भी बने झूले मिल सकते हैं. ये बाजार में उपलब्ध रहते हैं. दिक्कत ये है कि ये दो फुट चौड़ा और दो फुट लंबे होते हैं. इसी साइज में ये आपको मिलेंगे. अगर आपको इससे बड़ी साइज चाहिए तो फिर आपको आर्डर करना पड़ेगा. लकड़ी के झूले आपको 1200 रुपये लेकर 2500 तक मिल जाएंगे. ये आपको आनलाइन भी प्राप्त हो सकते हैं.
लकड़ी-फूल का झूला
कुछ झूले लकड़ी के प्लेटफार्म पर फूल के बने होते हैं. ये फूल रोज बदलने योग्य होते हैं. इनमें कुछ खास तो होता नहीं पर फूलों की सेज पर बैठना किसे खराब लगता है. लोग इस पर बैठ कर झूले झूलते हैं. खास कर न्यू कपल्स को ये बेहद पसंद आता है. इसकी कीमत के बारे में बहुत जानकारी नहीं है.
झूले लगाए कहां
झूले को कभी भी घर के रहने वाले हिस्से में नहीं लगाना चाहिए, हालांकि लोग लगाते हैं. वास्तुशास्त्र कहता है कि घर में वही चीजें रहनी चाहिए, जो स्थिर हो. उस लिहाज से देखें तो झूला स्थिर नहीं है. हां, आप अगर झूले पर सिर्फ बैठना चाहते हैं तो आप झूले को जहां चाहें वहां लगा सकते हैं. वैसे, ज्यादा बेहतर यह होता कि आप झूले को लिविंग एरिया के बाहर लगाएं. लिविंग एरिया बाहर लगाने का अर्थ हुआ घर से बाहर. घर से बाहर का मतलब सड़क पर नहीं बल्कि जो एरिया आपके कैंपस में हो पर घर से बाहर हो, वहां लगाएं. इसके कई फायदे आपको मिलेंगे. पहला, सू4य की रौशनी मिलेगी. दूसरा ताजी हवा मिलेगी. घर के अंदर वैसे भी झूले की कोई पोजीशनिंग आप सही तरीके से नहीं कर पाएंगे.
झूला झूलने के फायदे
झूला झूलने के अनेक फायदे हैं. इसे आप इस तरीके से समझें:
01. आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
02. नकारात्मक चीजें धीरे-धीरे खत्म होती हैं.
03. फेफड़े की एक्सरसाइज हो जाती है.
04. आपकी मांसपेशियों की एक्सरसाइज हो जाती है.
05. आपकी रीढ़ की हड्डी की एक्सरसाइज हो जाती है.
06. आपकी हथेलियों की एक्सरसाइज हो जाती है.
07. दिमाग शांत रहता है.
08. दिमाग में नए-नए ख्याल आते हैं.
09. शरीर आपका संतुलित रहता है.
दरअसल, एक बार 15 से 20 मिनट तक तेज झूला झूलने से आपकी एकाग्रता में वृद्धि होती है, मन में अच्छे-अच्छे ख्याल आते हैं, आप जीवन को लेकर सकारात्मक नजरिया अपनाते हैं, आपमें निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और सबसे बड़ी बात, आप जान जाते हैं कि जीवन को संतुलित कैसे किया जा सकता है. अगर आप वास्तव में अपने जीवन को संतुलित करने की सोचते हैं तो आपको झूला जरूर झूलना चाहिए. यह रोज की प्रैक्टिस होनी चाहिए. यह न सिर्फ आपकी शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करता है बल्कि आपको रिलैक्स करते हुए नई ऊर्जा से भी भर देता है.
आप सोचें, भगवान श्रीकृष्ण को झूला क्यों प्रिय था?दिन भर थके-मांदे, दुनिया भर की समस्याओं को सुलझाने के बाद वह भी रिलैक्स करने के लिए झूले पर ही आते थे क्योंकि उन्हें मालूम रहा होगा कि झूले पर ही वह आराम कर पाएंगे, नए आइडियाज उनको मिलेंगे. इसलिए वह झूले पर रिलैक्स होते थे. ऐसा नहीं था कि उस दौर में झूले के अलावा कुछ और नहीं था. सब कुछ था पर झूले की बात ही निराली थी. आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य को मानता है, मेडिकल साइंस भी मानता है कि मानसिक और शारीरिक रुप से थके हुए लोगों को जो रिलैक्स झूले पर मिलता है, वह कहीं नहीं. यही वजह है कि अब दुनिया भर में झूलों पर नए-नए शोध हो रहे हैं, झूलों का बाजार बड़ा हो रहा है और सैकड़ों परिवार इससे चल रहे हैं.
अगर आपका पॉकेट अनुमति देता है तो आप बजट के अनुसार एक झूला आज ही खरीद लें या बनवा लें. आप देखेंगे, आपमें सकारात्मक ऊर्जा का भाव कितनी तेजी से विकसित होता है, कैसे आप दिक्कतों से पार पाते हैं और कैसे आप नए आइडियाज से ओत-प्रोत होते हैं.