हर साल वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। यह दिन धार्मिक और अध्यात्मिक दोनों तरीकों से बेहद शुभ माना जाता है।अक्षय तृतीया के दिन भगवान् विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है इसी दिन देवी गंगा का अवतरण हुआ था पृथ्वी को पवित्र करने के लिये तथा आज ही के दिन भगवान् परशुराम जी का भी प्राक्ट्य हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन दान का विशेष महत्व है माना जाता है इस दिन किये गए दान- पुण्य का कभी भी क्षय नहीं होता है यानी अक्षय तृतीया के दिन किये गए दान पुण्य कभी खतम नहीं होते हैं।इस साल 2024 में अक्षय तृतीया 10 मई को मनाई जायेगी।n
अक्षय तृतीया 2024 में कब है?
साल 2024 में अक्षय तृतीया 10 मई दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी।
अक्षय तृतीया 2024 सही तिथि?
हिन्दी कैलंडर के अनुसार, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई की सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर शुरू हो रही है और अगले दिन 11 मई को देर रात 2 बजकर 49 मिनट पर यह तिथि समाप्त हो रही है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 10 मई को अक्षय तृतीया मनाई जाएगी.
अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया के दिन पूजा का शुभ समय सुबह 5 बजकर 34 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 17 मिनट तक है. इस दौरान व्यक्ति पूजा-अर्चना कर सकते हैं. इस समय में पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त 10 मई दिन शुक्रवार को दिन भर रहने वाला है। इसके अलावा, आप शाम से लेकर निशिता काल तक सोने की खरीदारी कर सकते हैं। बाकी अन्य कोई भी चीजें आप अक्षय तृतीया के पूरे दिन खरीद सकते हैं।
क्या अक्षय तृतीया के दिन घर खरीद सकते हैं?
जी हाँ! अक्षय तृतीया के दिन घर खरीद सकते हैं ।अक्षय तृतीया के दिन सोना-चांदी के अलावा घर और वाहन भी खरीद सकते हैं। इससे घर में मां लक्ष्मी की कृपा से सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ ही परिवार में एकता और खुशहाली बनी रहती है ।लेकिन इस बार 2024 में शुक्र अस्त होने के नाते आप अक्षय तृतीया के दिन घर या वाहन नहीं खरीदें तो अच्छा है। क्योंकि जब शुक्र अस्त होते हैं तो कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं।
2024 में अक्षय तृतीया के दिन गृह प्रवेश कर सकते हैं?
वैसे तो गृह प्रवेश करने के लिये अक्षय तृतीया के दिन किसी भी शुभ मुहूर्त या शुभ समय देखने की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि अक्षय तृतीया का दिन अपने आप में ही बहुत शुभ माना जाता है इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है। आप बिना कोई मुहूर्त देखे अक्षय तृतीया के दिन कोई भी शुभ कार्य, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन इस बार 2024 में अप्रैल के महीने में ही सूर्य अस्त हो गये हैं और 9 मई 2024 को देव गुरु भी अस्त हो रहे हैं। तो ऐसी स्थिति में आप इस बार अक्षय तृतीया पर भी गृह प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
अक्षय तृतीया पर इन चार चीजों की खरीददारी अवश्य करें
आप इस अक्षय तृतीया 2024 पर दो मुख्य योग बन रहें हैं ऐसे में आपको इन दोनों योगों का ख़ास ध्यान रखते हुए कुछ चीजें करनी होंगी। जैसे कि अक्षय तृतीया 2024 यानी 10 मई को सुबह 5 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 7 मिनट तक अतिगण्ड योग बन रहा है। और दोपहर 12 बजकर 7 मिनट के बाद सुकर्मा योग बन रहा है। ऐसे में आप दोपहर 12 बजकर 7 मिनट से पहले आपको दान करना है और दोपहर 12 बजकर 7 मिनट के बाद आपको ये चार चीजें खरीदकर अपने घर लाना है।
1. कौड़ी
11 पीली कौड़ियों को खरीदकर उन्हें अपने घर लाकर एक लाल कपड़े में बांधकर उसे भगवान् के सामने रखें, उसके बाद उसे उठाकर अपने तिजोरी में रखें। यह आपके घर में संपन्नता बनाये रखता है।
2. माँ लक्ष्मी जी के चरण
इस अक्षय तृतीया पर आप माँ लक्ष्मी के चांदी के छोटे- छोटे चरण खरीदकर लाएं और उन्हें पूजा स्थान पर रखें और प्रतिदिन उनकी पूजा करें । ऐसे में माँ लक्ष्मी की कृपा हमें प्राप्त होती है।
3. चावल
अक्षय तृतीया के दिन आपको 10 किलो चावल अवश्य खरीदकर लाना है और उसे अपने भंडारण में रखना है फिर उसे प्रतिदिन उपयोग में लाना है। इससे आपके घर में कभी भी अन्नपूर्णा की कमी नहीं होगी।
4. भगवान् विष्णु और देवी लक्ष्मी की गोल्डेन प्रतिमा
अक्षय तृतीया के दिन आपको भगवान् विष्णु और देवी लक्ष्मी की एक गोल्डेन प्रतिमा खरीदकर या बनवाकर लानी है और उसे अपने घर के पश्चिम दिशा में लगानी है। ऐसा करने से आपके घर का वास्तु दोष भी दूर होता है।
अक्षय तृतीया पर करें नारायण कवच पाठ और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ होगी सारी मनोकामना पूर्ण
नारायण कवच पाठ
इस अक्षय तृतीया आप नारायण कवच पाठ अवश्य करें। इससे आपकी सारी मनोकामना पूरी होगी और आपके सारे बिगड़े, रुके हुए सभी काम बनने लगेगें, पर ध्यान रहे नारायण कवच पाठ करते समय साफ- सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
हिंदी यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्।।
भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्।
यथाततायिनः शत्रून् येन गुप्तोsजयन्मृधे।।
वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु।।
विश्वरूप उवाचधौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः। कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः।।
नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि।।
मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत्।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा।।
करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया। प्रणवादियकारन्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु।।
न्यसेद् हृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्।।
वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः।।
सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्।
ॐ विष्णवे नम इति ।।
आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्। विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत ।।
ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे। दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोष्टगुणोष्टबाहुः ।।
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्। स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ।। दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः। विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ।। रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः। रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान् ।।
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्। दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ।।
सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्। देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ।। धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा। यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ।।
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्। कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः ।। मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः। नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ।। देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः ।। श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः। दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ।। चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्। दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ।। गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि। कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ।।
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ।। त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि। चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा ।।
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ।।
गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः। रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ।।
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ।।
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः ।। यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्। भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ।।
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ।।
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः। प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः ।। मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम्।
विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ।।
एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा।
पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते ।।
न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत्। राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ।।
इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन् द्विजः।
योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरूधन्वनि ।।
तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा।
ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः ।।
गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ।।
वैसे तो नारायण कवच का पाठ करना बहुत ही कठिन होता है लेकिन अगर आप ये पाठ कर पाते हैं तो आपको सभी बाधाओं, परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। अगर आप नारायण कवच का पाठ खुद से नहीं कर पाते हैं तो किसी विद्वान पंडित को बुलाकर उनसे ये पाठ करायें।
विष्णु सहस्त्रनाम पाठ
विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः ।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ॥ 1 ॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमागतिः ।
अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च ॥ 2 ॥
योगो योगविदां नेता प्रधान पुरुषेश्वरः ।
नारसिंहवपुः श्रीमान् केशवः पुरुषोत्तमः ॥ 3।।
सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्ययः ।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभुरीश्वरः ॥ 4 ॥
स्वयंभूः शंभुरादित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ॥ 5 ॥
अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ॥ 6 ॥
अग्राह्यः शाश्वतो कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मंगलं परम् ॥ 7 ॥
ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः ॥ 8 ॥
ईश्वरो विक्रमीधन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृतिरात्मवान्॥ 9 ॥
सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः ।
अहस्संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ॥ 10 ॥
अजस्सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिरच्युतः ।
वृषाकपिरमेयात्मा सर्वयोगविनिस्सृतः ॥ 11 ॥
वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्मा सम्मितस्समः ।
अमोघः पुंडरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ॥ 12 ॥
रुद्रो बहुशिरा बभ्रुर्विश्वयोनिः शुचिश्रवाः ।
अमृतः शाश्वतस्थाणुर्वरारोहो महातपाः ॥ 13 ॥
सर्वगः सर्व विद्भानुर्विष्वक्सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविदव्यंगो वेदांगो वेदवित्कविः ॥ 14 ॥
लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृताकृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूहश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्भुजः ॥ 15 ॥
भ्राजिष्णुर्भोजनं भोक्ता सहिष्णुर्जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ॥ 16 ॥
उपेंद्रो वामनः प्रांशुरमोघः शुचिरूर्जितः ।
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ॥ 17 ॥
वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः ।
अतींद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ॥ 18 ॥
यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः ।
ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये ॥ 19 ॥
महेश्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतांगतिः ।
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां पतिः ॥ 20 ॥
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ॥ 21 ॥
अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः संधाता संधिमान् स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ॥ 22 ॥
गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यपराक्रमः ।
निमिषोऽनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारधीः ॥ 23 ॥
अग्रणीग्रामणीः श्रीमान् न्यायो नेता समीरणः
सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥ 24 ॥
आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः संप्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निरनिलो धरणीधरः ॥ 25 ॥
सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृग्विश्वभुग्विभुः ।
सत्कर्ता सत्कृतः साधुर्जह्नुर्नारायणो नरः ॥ 26 ॥
असंख्येयोऽप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्टकृच्छुचिः ।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धि साधनः ॥ 27 ॥
वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुतिसागरः ॥ 28 ॥
सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः ।
नैकरूपो बृहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः ॥ 29 ॥
ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः ।
ऋद्दः स्पष्टाक्षरो मंत्रश्चंद्रांशुर्भास्करद्युतिः ॥ 30 ॥
अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः ।
औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः ॥ 31 ॥
भूतभव्यभवन्नाथः पवनः पावनोऽनलः ।
कामहा कामकृत्कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः ॥ 32 ॥
युगादि कृद्युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजिदनंतजित् ॥ 33 ॥
इष्टोऽविशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः ।
क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्वबाहुर्महीधरः ॥ 34 ॥
अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः ।
अपांनिधिरधिष्ठानमप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ॥ 35 ॥
स्कंदः स्कंदधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरंधरः ॥ 36 ॥
अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ॥ 37 ॥
पद्मनाभोऽरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत् ।
महर्धिरृद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वजः ॥ 38 ॥
अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः ।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिंजयः ॥ 39 ॥
विक्षरो रोहितो मार्गो हेतुर्दामोदरः सहः ।
महीधरो महाभागो वेगवानमिताशनः ॥ 40
उद्भवः, क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः ।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ॥ 41 ॥
व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः ।
परर्धिः परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ॥ 42 ॥
रामो विरामो विरजो मार्गोनेयो नयोऽनयः ।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठो धर्मोधर्म विदुत्तमः ॥ 43 ॥
वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः ।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ॥ 44 ॥
ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः ।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्वदक्षिणः ॥ 45 ॥
विस्तारः स्थावर स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम् ।
अर्थोऽनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ॥ 46 ॥
अनिर्विण्णः स्थविष्ठो भूद्धर्मयूपो महामखः ।
नक्षत्रनेमिर्नक्षत्री क्षमः, क्षामः समीहनः ॥ 47 ॥
यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतांगतिः ।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमम् ॥ 48 ॥
सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत् ।
मनोहरो जितक्रोधो वीर बाहुर्विदारणः ॥ 49 ॥
स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत्। ।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ॥ 50 ॥
अक्षय तृतीया 2024 पूजन सामाग्री
आटा
हल्दी
गंगाजल
कलश मिट्टी या पीतल
सिंदूर
गोपी चंदन
आम का पल्लव
चावल
नारियल
घी
दीपक
धूप
गेंदे के फूल
कमल के फूल
चावल के खीर
पंचामृत

अक्षय तृतीया पूजन विधि 2024
- अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कामों से निपटकर अपने घर को साफ करें।
- उसके बाद स्नान करके साफ कपड़े पहने. इस दिन आप पीले रंग के कपड़े पहने।
- घर को साफ करने के बाद पूरे घर में गंगाजल में हल्दी मिलाकर छिड़काव करें।
- उसके बाद आपको अपने घर के मन्दिर में रंगोली और हल्दी आटे से चौक बनाये।
- चौक बनाने के बाद उस मिट्टी या फिर पीतल का कलश स्थापित करना है। उसके बाद कलश में जल भरना है तथा उसके ऊपर आप का पंच पल्लव रखें।
- साथ ही एक कटोरी में चावल भरकर रखें और उसपर नारियल में कलावा लपेटकर रखें।
- साथ ही भगवान् विष्णु व माता लक्ष्मी की तस्वीर स्थापित करें। उसके बाद गंगा जल से भगवान् की तस्वीर को साफ करें।
- तस्वीर साफ करने के बाद मां लक्ष्मी को सिंदूर और भगवान् विष्णु को गोपी चंदन का तिलक लगाएं।
- उसके बाद भगवान् के सामने घी का दीपक जलाएं।
- उसके बाद भगवान् विष्णु जी को पीले फूलों की माला अर्पित करें और फूल भी चढ़ाएं साथ ही मां लक्ष्मी को कमल के फूल अर्पित करें।
- उसके बाद भगवान् के सामने धूप जलाएं और पूजन करें।
- भगवान् विष्णु व माता लक्ष्मी जी के लिये मीठे का भोग बनाये जैसे मखाने या चावल की खीर का भोग लगाएं।
आप पंचामृत का भी भोग लगा सकते हैं। - उसके बाद भगवान् विष्णु व माता लक्ष्मी की भाव के साथ आरती करें। और पूजन में जो भी गलती हुई हो उसके लिये क्षमा मांगे।
मां लक्ष्मी पूजन मंत्र
पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे ,तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ।
ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।।
भगवान विष्णु पूजन मंत्र
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
अक्षय तृतीया पर किन वस्तुओं का दान करें
मिट्टी के मटके में जल का दान करें
अक्षय तृतीया के दिन आप जल दान करें यह वैशाख के महीने में सबसे पुण्य का काम माना जाता है क्योंकि वैशाख के महीने में गर्मी अधिक पड़ती है। जल दान के लिए आप मटका या फिर कलश ले सकते हैं। मगर ध्यान रखें कि इसको खाली नहीं दान करना चाहिए। इसमें जल भरकर और कुछ मात्रा में चीनी डालकर दान करें। इसके अलावा इस दिन पशुओं को पानी पिलाना भी बहुत पुण्य का कार्य माना गया है साथ ही आप पक्षियों को भी पानी पिलायें.पक्षियों को पानी देने के लिए आप एक मिट्टी के पात्र में जल भरकर उसे छत पर छांव वाली जगह में रखें जिससे पानी गर्म न हो।
जरूरतमंदों को करें अन्न दान
शास्त्रों में अक्षय तृतीया के दिन अन्न दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन आप किसी जरूरत मंद को या किसी मन्दिर पर अन्न दान में आप गेंहू, जौ, चावल, हल्दी, दाल, आटा, चना, घी,तिल, नमक, गुड़, चीनी, दलिया, ककड़ी आदि इन वस्तुओं को दान कर सकते हैं। माना जाता है इन सभी वस्तुओं के दान से आपके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है, और आपके नवग्रह भी शांत रहते हैं।
वस्त्र दान
अक्षय तृतीया के दिन वस्त्रों का दान करना भी बेहद शुभफलदायी माना गया है। इस बार अक्षय तृतीया बेहद खास शुभ योग में होने और शुक्रवार के दिन होने से वस्त्र दान का महत्व और भी बढ़ जाता है। शुक्रवार को अक्षय तृतीया होने की वजह से आपको सफेद और चमकीले वस्त्रों का दान करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन जरूरतमंदों को वस्त्रों का दान करने से आपका शुक्र ग्रह मजबूत होता है और आपके घर में सुख समृद्धि आती है। शुक्र ग्रह का मजबूत होना आपके जीवन में भौतिक सुविधाओं और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी माना जाता है। यह दिन मां लक्ष्मी को समर्पित होने की वजह से आपको घर की महिलाओं को भी इस दिन उपहार देकर प्रसन्न करना चाहिए। आपके घर में साल भर खुशहाली बनी रहेगी।
किताबों का करें दान
अक्षय तृतीया के दिन किताबों या फिर पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी वस्तुओं का दान करना भी बहुत ही अच्छा माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन धार्मिक विषयों में रुचि रखने वाले लोगों को पंचांग का दान करना सबसे शुभ माना जाता है। इसके साथ ऐसे लोगों को धार्मिक पुस्तकें उपहार के रूप में दी जा सकती हैं। इस बात का ध्यान रखें कि धार्मिक पुस्तकें उसी व्यक्ति को देनी चाहिए, जिसकी इसमें रुचि हो। बिना रुचि वाले व्यक्ति को ऐसी पुस्तक देना आपको पुण्य की जगह पाप का भागीदार बनाता है। इस दिन आप उन बच्चों को किताबें और कॉपी दान कर सकते हैं जो धन कमी की वजह से पढ़ नहीं पाते हैं। ऐसा करने से आपकी कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है।
चंदन का दान करें
अक्षय तृतीया के दिन चंदन का दान भी बहुत शुभ माना जाता है। माना जाता यह दिन भगवान् विष्णु जी का होता है तो ऐसे में अगर आप चंदन की लकड़ी या फिर गोपी चंदन या पीला चंदन इनमें से किसी भी चंदन का दान करते हैं तो इससे आपको मानसिक शांति मिलती है।
जौ का दान करें
हमारे शास्त्रों में जौ के दान को बहुत शुभ माना गया है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जौ दान करना चाहिए या फिर जौ को किसी मिट्टी के पात्र में भरकर उसे किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करना चाहिए। साथ ही इस दिन जौ को पक्षियों को भी खिलाना चाहिए।
गाय को चारा खिलाएं
अक्षय तृतीया के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं और मीठा दलिया, फल, सब्जियां, गुड़ आदि चीजें भी खिलाएं।
अक्षय तृतीया 2024 महत्व
अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। वहीं शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार का जन्म हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर को कृष्णजी ने अक्षय पात्र दिया था। जिसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था। इस दिन दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन को शास्त्रों में अबूझ मुहूर्त की संज्ञा दी है। मतलब इस दिन विवाह, गृह प्रवेश, वाहन खरीदारी, सगाई या कोई अन्य शुभ काम किया जा सकता है। लेकिन इस बार 2024 में गुरु और शुक्र ग्रह अस्त रहेंगे। इस वजह से अक्षय तृतीया पर भी शादी का मुहूर्त नहीं है।वहीं अक्षय तृतीया के दिन एकाक्षी नारियल, दक्षिणावर्ती शंख और पारद शिवलिंग खरीदकर घर लाना बेहद शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया पर किन चीजों की खरीदारी करें
- बिना छिलके वाली चने की दाल खरीदें।
- सोने की कोई भी चीज खरीद सकते हैं जैसे ज्वेलरी आदि।
- अगर आप के पास सोना खरीदने का बजट नहीं है तो आप पीतल के बर्तन खरीदें।
- पीले कपड़े या पीले फूल अवश्य खरीदें।
- इस दिन जौ की खरीददारी करें।
अक्षय तृतीया पर किन चीजों की खरीदारी नहीं करें
- इस दिन काले कपड़े की खरीददारी भी न करें।
- इस दिन प्लास्टिक या फिर एलुमिनियम की भी वस्तुयें न खरीदें।
- इस दिन तवा भी नहीं खरीदें।
- पैसों का भी दान नहीं करें, माना जाता है अक्षय तृतीया के दिन पैसोंका दान करने से लक्ष्मी जी हमसे रुस्ट होतीं हैं।
- अक्षय तृतीया के दिन किसी भी वस्तु को बेचें नहीं चाहे वह छोटा हो या बड़ा।
भगवान् विष्णु जी की आरती
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ओम जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
माता लक्ष्मी जी की आरती
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
मैया तुम ही जग-माता।।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
मैया सुख संपत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।
मैया तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
मैया सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
मैया वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
मैया क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
महालक्ष्मी जी की आरती,जो कोई नर गाता।
मैया जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।