चैत्र नवरात्र 2024 में कब से शुरू है? जानें सही डेट, तिथि, घट स्थापना शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

आईये जानें कब से शुरू हो रहा है चैत्र नवरात्र 2024? सही तिथि, सही डेट, कलश पूजन स्थापना.

हमारे हिंदू धर्म में पूजा अर्चना को विशेष माना जाता है.  खासकर तब जब बात नवरात्री की हो रही हो, नवरात्री में पूरा देश माँ के आगमन की तैयारियों में लगा रहता है। क्योंकि नवरात्र का अपना अलग ही विशेष महत्व होता है, इसीलिए इस त्यौहार को पूरे देश में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

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हिंदू पंचांग के अनुसार साल में 4 नवरात्री पड़ती है। जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि बताई जाती है, और दो प्रत्यक्ष रूप से मनाई जाती है जिसमें से पहली है चैत्र नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि होती है। गुप्त नवरात्रि के बारें बताया जाता है कि यह दोनों नवरात्रि गृहस्थ लोगों के लिये नहीं होती है।

चैत्र नवरात्र की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ये पर्व भारत में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इन नौ दिनों में माता रानी के भक्त उपवास रखते हैं और उनके अलग-अलग स्वरूपों की उपासना करते हैं। इसके अलावा नवरात्रि में कई शुभ कार्य किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि की नौ तिथियां ऐसी होती हैं, जिसमें बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। माना जाता है चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र दोनों को बहुत ही ख़ास माना गया है, क्योंकि इस दौरान भक्त विधिवत रूप से मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। लेकिन यह पूजा लोग अपने घरों या फिर अपने पास के मन्दिर में ही जाकर करते हैं, क्योंकि चैत्र नवरात्र में शारदीय नवरात्र की तरह जगह – जगह पर माता रानी के पांडाल नहीं लगाये जाते हैं।
तो आईये ऐसे में जानते हैं कि साल 2024 में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत कब से हो रही है और मां दुर्ग की आराधना के लिए  कौन-कौन सी  तिथियां महत्वपूर्ण हैं और आप देवी के किन नौ स्वरूपों की पूजा करने वाले हैं।

 

नवरात्री में माता रानी के पूजे जाने वाले नौ स्वरूप

प्रथम- शैलपुत्री

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स्रोत: Pinterest/smosanjayupadhy

द्वितीय- ब्रह्मचारिणी

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तृतीय – चंद्रघंटा

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चतुर्थी- कुष्मांडा

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पंचम – स्कंदमाता

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षष्ठी- कात्यायनी

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सप्तम -कालरात्रि

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अष्टम- महागौरी

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नवम- सिद्धिदात्री 

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स्रोत: Pinterest/baruahsharmili9

इन नौ दिनों में माता के इन नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।

 

कब से शुरू है 2024 में चैत्र नवरात्र

अप्रैल 2024 में चैत्र नवरात्र 9 अप्रैल 2024 दिन मंगलवार से शुरू हो रहा है।

 

चैत्र नवरात्रि की सही तिथि की शुरुआत

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है, इस साल चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को देर रात 11 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी प्रतिपदा तिथि. अगले दिन यानी 9 अप्रैल को संध्याकाल 8 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी.
इसलिए उदया तिथि के अनुसार 9 अप्रैल 2024 से ही चैत्र नवरात्र शुरू होगा तथा इसी दिन घटस्थापना/ कलश स्थापना भी होगी.

 

चैत्र नवरात्री की पूजा का शुभ मुहूर्त

घटस्थापना / कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

9 अप्रैल  2024 को घटस्थापना के लिए शुभ समय सुबह 6 बजकर 2 मिनट से लेकर 10 बजकर 16 मिनट तक है, इसके अलावा 11 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त है. घटस्थापना/ कलश स्थापना करने के लिए ये दोनों समय शुभ समय हैं.

चैत्र नवरात्र के पहले दिन बन रहे हैं ये शुभ योग

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन प्रतिपदा तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, इस दिन अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण सुबह 7 बजकर 32 से हो रहा है. ये दोनों योग संध्याकाल 5 बजकर 6 मिनट तक है.

 

नवरात्री के नौ दिन माता रानी की पूजा कैसे करें

सबसे पहले आप अगर नौ दिन का व्रत रखते हैं तो आप 9 दिन के व्रत का संकल्प लें। इसके लिए आपको बायें हाथ में जल लेकर उसमें अक्षत, फूल, सिक्का और सुपारी रखें एवं मंत्रों के द्वारा नौ दिन के व्रत का संकल्प लें तथा जो जल आपने अपने हाथ में लिया था उसको माँ के चरणों में अर्पित करें एवं उनसे आशीर्वाद लें। आप चाहें तो पूजा के लिये किसी ब्राम्हण या किसी विद्वान पंडित को भी बुला सकते हैं । माता रानी के नौ दिन की पूजा में आपको दुर्गा सप्तसती का पाठ करना चाहिए, लेकिन अगर आप  दुर्गा सप्तसती का पाठ नहीं कर पाते हैं तो आपको रोज दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिये।

 

नवरात्री में माता की पूजा का मंत्र

ॐ जयंती मंगला काली भद्र काली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
•ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

 

चैत्र नवरात्र 2024 पूजन सामाग्री

  • लकड़ी का पाटा

 

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  • लाल या पीला आसान

 

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  • कलश

 

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  • कटोरी

 

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  • माँ दुर्गा सहित नौ देवियों की तस्वीर या छोटी मूर्ति

 

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  • अबीर

 

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  • पान का पत्ता

 

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माता के श्रृंगार का सामान

  • कुमकुम
  • हल्दी
  • कौड़ी

 

चैत्र नवरात्र 2024 कलश पूजन सामाग्री

  • जौ बोने के लिए मिट्टी का एक पात्र
  • लौंग
  • इलाइची
  • कपूर
  • गाय का गोबर
  • मिट्टी
  • रेत
  • चावल
  • अशोक या आम के पंच पल्लव
  • सुपारी
  • नारियल
  • कलावा
  • चुनरी
  • सिन्दूर
  • चंदन
  • हल्दी
  • गंगाजल
  • फल
  • फूल
  • फूलो की माला
  • दीया
  • घी
  • माता के लिए श्रृंगार पिटारी
  • दूर्वा
  • सिक्का
  • कलश को ढकने के लिए पात्र

 

नवरात्री में कलश स्थापना के लिए कलश किस धातु का होना चाहिए

नवरात्रि में कलश स्थापना के लिये कलश सबसे पहले मिट्टी का होना चाहिए,लेकिन किसी कारण वश अगर आप मिट्टी का कलश नहीं ले पाते हैं तो फूल, तांबा, या फिर पीतल धातु से बने हुए कलश का भी प्रयोग कर सकते हैं।

 

किस रंग की होनी चाहिए माता की चुनरी

चैत्र नवरात्र हो या शारदीय नवरात्र दोनों नवरात्री में माता को लाल या पीली रंग की ही चुनरी चड़ाई या ओढ़ाई जाती है।क्योंकि माता रानी को यह रंग अत्यंत प्रिय है।

 

चैत्र नवरात्र कलश स्थापना विधि

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना या घंटस्थापना/ कलश स्थापना के साथ ही माँ आदिशाक्ति को समर्पित यह पावन त्यौहार शुरू हो जाता है. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है. आइये जानें कलश स्थापना के नियम और कलश स्थापना विधि तथा कलश स्थापना कैसे करें।
• नवरात्रि के पहले दिन यानि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें,उसके बाद मन्दिर की तथा पूरे घर की साफ-सफाई करने के बाद, पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें।
उसके बाद अगर नौ दिन व्रत रखते हैं तो व्रत का संकल्प लें, उसके बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और शुरुआत करें।
• कलश स्थापना मन्दिर के उत्तर पूर्व दिशा में करनी चाहिए. सबसे पहले जिस जगह कलश रखना हो उस जगह को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें।लेकिन कोशिश करें कि आप नवरात्री कलश स्थापना अपने घर के मन्दिर में ही करें।   •नवरात्री कलश स्थापना के लिये सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़े का आसन बिछायें तथा उसके ऊपर स्वास्तिक बनाकर चौकी स्थापित करें। उसके बाद कलश में जल व गंगाजल भरकर उसे भी स्थापित करें।
• उसके बाद चौकी के ऊपर चावल से अष्टडल कमल बनाएं।
•उसके बाद कलश पर पत्र पल्लव या अशोक की पत्तियाँ रखें.
• उसके बाद कलश में एक सुपारी एक सिक्का, दूर्वा, हल्दी, दूध दही, शहद, डालें. साथ ही लौग-इलाइची भी डालें.
• कलश स्थापित करते समय उसके नीचे थोड़ा सा गाय का गोबर रखें।
•फिर कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र में लपेट कर रखें. साथ ही नारियल पर कलावा भी लपेटें।
• फिर चावल से अष्टदल बनाकर माँ दुर्गा की प्रतिमा रखें।
•माता को लाल चुनरी ओढ़ाएं.
•साथ ही कलश स्थापना के साथ अखण्ड दीपक की भी स्थापना की जाती है, जो पूरे नौ दिन जलता रहता है।
• कलश स्थापना एव अखण्ड ज्योति की स्थापना के साथ ही माँ शैलपुत्री की पूजा और ध्यान करते हुए मंत्र जाप करें और फूल और चावल माँ के चरणो में अर्पित करें।

मंत्र

ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
• इस मंत्र के द्वारा माता की पूजा करें।
• माँ शैल पुत्री की पूजा विधि-विधान से सम्पन्न करें।
• माँ के लिए जो भोग बनाये वो देशी घी से बने होने चाहिए.

 

नवरात्रि के इन नौ दिनों में माता रानी को कौन- कौन से भोग प्रतिदिन लगाएं

नवरात्रि का पहला दिन – माँ शैलपुत्री का भोग प्रसाद

नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है।माता शैलपुत्री की उपासना करने से अच्छी सेहत और सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है। वहीं कुंवारी कन्याओं को मनचाहा जीवनसाथी की प्राप्ति होती होती।माता पूजा उपासना के साथ ही साथ माँ को उनके पसंदीदा भोग  भी अर्पित किये जाते हैं। ऐसे में आप माँ शैलपुत्री की कृपा और उनका आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें दूध से बनी खीर और घी से बनी सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं।

 

नवरात्रि का दूसरा दिन – माँ ब्रह्मचारिणी का भोग प्रसाद

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है। माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी  को चीनी या गुड़ का भोग लगाएं। कहते हैं कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है। साथ ही माँ ब्रह्मचारिणी लंबी आयु का भी वरदान देती हैं। और हम सभी माँ ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद के कृपा पात्र बनते हैं।

नवरात्रि का तीसरा दिन- माँ चंद्रघंटा का भोग प्रसाद

नवरात्रि के तीसरे दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की पूजा- अर्चना की जाती है। माँ चंद्रघंटा को दूध, खीर और मेवा से बनी चीजों का भोग लगाने से भक्तों को अपने सभी दुख-तकलीफों से छुटकारा मिलता जाता है। भोग लगाने के बाद प्रसाद पूरे परिवार के साथ बांटकर खुद भी प्रसाद ग्रहण करें। माना जाता है माँ चंद्रघंटा जिन भक्तों से प्रसन्न रहती हैं उन्हें किसी चीज की कमी नहीं रहती है।

 

नवरात्रि का चौथा दिन- माँ कुष्मांडा का भोग प्रसाद

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा- अर्चना का विधान है। इस दिन माँ कूष्माण्डा देवी को मालपुआ का भोग जरूर लगाएं। माँ कुष्मांडा देवी को मालपुआ अति प्रिय है। माँ कुष्मांडा देवी को मालपुआ का भोग लगाने से माँ हमें बुद्धि, बल और तरक्की का आशीर्वाद देती हैं।

 

नवरात्रि का पांचवां दिन- माँ स्कंदमाता का भोग प्रसाद

नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा – अर्चना करें और उन्हें केले तथा मिश्री का भोग लगाएं उसके बाद पूरे परिवार सहित भोग को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें। माँ स्कंदमाता की पूजा उपासना करने से हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

 

नवरात्रि का छठा दिन- माँ कात्यायनी का भोग प्रसाद

नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की  पूजा – अर्चना की जाती है। माना जाता है माँ कात्यायनी की पूजा उपासना  करने से व्यक्ति को किसी प्रकार का भय या डर नहीं रहता है। माँ कात्यायनी को भोग प्रसाद में शहद और मीठे पान का भोग लगाएं। ऐसा करने से माता रानी आपकी हर मनोकामना को पूरा करती हैं।

 

नवरात्रि का सातवां दिन- माँ कालरात्रि का भोग प्रसाद

नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजी की जाती है। माँ कालरात्रि दुष्ट- दानवों का विनाश करने वाली होती हैं। ऐसे में माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना  ज्यादा फलदायी होता है। माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाने से घर-परिवार में मिठास बनी रहती है और नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करती हैं।

 

नवरात्रि का आठवां दिन-  माँ महागौरी का भोग प्रसाद

नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। इसके साथ ही नवरात्रि में अष्टमी पूजा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग कन्या पूजन भी करते हैं। नवरात्र के आठवें दिन मां गौरी की पूजा की जाती है। माता गौरी को नारियल और खीर तथा हलवा, पूरी और काले चने का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने माँ महागौरी  आप पर तथा आपके परिवार पर अति प्रसन्न होती हैं और आपकी हर इच्छा पूरी करती हैं।

 

नवरात्रि का नौवां दिन-  माँ सिद्धिदात्री का भोग प्रसाद

नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा – अर्चना की जाती है। नवरात्रि में नवमी पूजा का भी खास महत्व होता है। नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन मां सिद्धिदात्री को चने और हलवे का भोग लगाया जाता है। नवमी के दिन भी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।तथा इस राम नवमी भी होने के नाते भगवान् राम के लिए भी दूध की खीर बनाकर उन्हें भोग लगाया जाता है और राम स्तुति की जाती है।

 

चैत्र नवरात्र में करें कुछ नियमों का पालन

चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है, कहते हैं जहां घट स्थापित होते हैं वहां दुख-दरिद्रता का नाश होता है और मां दुर्गा की कृपा से वैवाहिक जीवन में मधुरता और संतान सुख की प्राप्ति होती है.
इस दौरान आपको सबसे पहले जो बात ध्यान रखनी है वो ये है कि जिन घरों में नवरात्रि के दौरान घटस्थापना की जाती है वहां पर कभी भी अंधेरा न होने दें, और न ही घर को सूना छोड़े। इसके साथ ही अगर आप ने अपने घर में अखंड ज्योत जलाई है तो उसमें ध्यानपूर्वक तेल या घी डालते रहें, ध्यान रहे की अखंड ज्योति बुझनी नहीं चाहिए।नौ दिन तक यह अखंड ज्योति लगातार जलनी चाहिए.

 

कब नहीं करनी चाहिए कलश स्थापना

माना जाता है रात के समय और अमावस्या के दिन को कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए। लेकिन अगर किसी कारण वश आप अगर ठीक समय पर कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो आप अभिजित मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं।

कलश विसर्जन कैसे करें?

कलश विसर्जन करने के लिए सबसे पहले आप एक कटोरी में चावल लेकर मन्दिर में बैठें, उसके बाद कटोरी में से थोड़े थोड़े चावल लेकर कलश के ऊपर छिड़के और साथ ही सभी देवी देवताओं से यह भी बोलें कि ” हे ईश्वर इस कलश में जितने भी देवी देवता विराजित हैं, हमनें आपका आवाहन किया और आप यहां पधारे, नवरात्रि में हमनें माँ दुर्गा के नव रूपों का वंदन पूजन किया उसे आप स्वीकारें “शास्त्रों के अनुसार वंदन पूजन के बाद विसर्जन होता है ,इसलिए इस पूजा में अगर हमसे कोई त्रुटि हुई हो तो’ हे ईश्वर आप उसे क्षमा करें’ और हमारे परिवार पर आप ऐसे ही सदा अपनी कृपा बरसाते रहें।
हे कलश देव आपमें संपूर्ण देवी देवताओं का वास होता है, त्रिविद् देवी देवता आपके अंदर विराजित होते हैं. इस समय हम आपका आवाहन कर रहें हैं, कि जब जब हम आपका आवाहन करें तब प्रभु आप अवश्य चलकर आइये। और इस समय आपकी जो दिशा है और जहां से भी आप आये हैं आप अपनी दिशा के लिये प्रस्थान करें.

यह बोलते हुए आप प्रणाम करें और फिर कलश पर से नारियल उठाएंगे उसके बाद उस पर पंच पल्लव को भी उठाएंगे । फिर उस कलश में से कुछ जल एक ग्लास में निकाल लीजिये और उसके बाद उसी जल से अपने घर के हर एक कोने में छिड़काव करें, आपके घर का कोई भी कोना बचना नहीं चाहिए। तथा उसके बाद घर के सभी सदस्यों के उपर भी आपने जो आम का पल्लव कलश पर लगाया था उसी से सभी के ऊपर इस जल का छिड़काव करें,उसके बाद उस कलश को आप माता रानी का नाम लेते हुए उसे किसी पवित्र नदी या सरोवर में विसर्जित करें। लेकिन अगर आपके पास में नदी या फिर कोई सरोवर नहीं है तो आप कलश के जल को अपने घर के गमलों में भी विसर्जित कर सकते हैं।

लेकिन यदि आप  ने तांबे, पीतल, फूल का इनमें से कोई कलश रखा है तो आप कलश के जल को गमलों में डालकर कलश को पुनः धोकर घर में रख सकते हैं, लेकिन यदि अपने मिट्टी का कलश रखा है तो उसे आप कलश सहित विसर्जित करें। कलश विसर्जन के बाद आप नारियल को एक साल तक अपने घर में या फिर लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें, उसके बाद अगली नवरात्रि में उसका विसर्जन करें।

 

चैत्र नवरात्र 2024 की नौ दिन की महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • 9 अप्रैल 2024 को  प्रथम मां शैलपुत्री की पूजा(मंगलवार)
  • 10 अप्रैल 2024 को द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी की पूजा(बुधवार)
  • 11 अप्रैल 2024 को तृतीय मां चंद्रघंटा की पूजा(गुरुवार)
  • 12 अप्रैल 2024 को चतुर्थी मां कुष्मांडा की पूजा(शुक्रवार)
  • 13 अप्रैल 2024 को पंचमी मां स्कंदमाता की पूजा(शनिवार)
  • 14 अप्रैल मां 2024 को षष्ठी मां कात्यायनी की पूजा(रविवार)
  • 15 अप्रैल 2024 को सप्तमी मां कालरात्रि की पूजा(सोमवार)
  • 16 अप्रैल 2024 को अष्टमी मां महागौरी की पूजा(मंगलवार)
  • 17 अप्रैल 2024 को नवमी मां सिद्धिदात्री की पूजा (राम नवमी)(बुधवार)

 

चैत्र नवरात्री 2024 में राम नवमी कब है?

2024 में राम नवमी 17 अप्रैल को पड़ रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल 2024 को दोपहर 1 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 17 अप्रैल 2024 को 3:14 मिनट पर समाप्त होगी।
ऐसे में आप राम नवमी की पूजा 17 अप्रैल को ही करेंगे। आप राम नवमी की पूजा में 17 अप्रैल को भगवान् राम के जन्म उत्सव को भी मना सकते हैं. आप इस दिन दोपहर में 12 बजे जब भगवान राम का जन्म हो तब अपने घर पर भगवान् राम की स्तुति करें एवं उनके पसंद के भोग बनावे और भोग लगावें।

 

चैत्र नवरात्र 2024 में कब है पारण

चैत्र नवरात्र 2024 में जो लोग भी व्रत रख रहें हैं उनको नवमी तिथि में हवन करके फिर ही पारण करना चाहिए। जो लोग सिर्फ दो दिन का व्रत रखते हैं यानी नवरात्री के पहले दिन   और लास्ट दिन वो लोग नवमी में हवन करके उसके बाद पारण कर सकते हैं। और जो लोग नौ दिन का व्रत करते हैं उनको दशमी में पारण करना चाहिए.
चैत्र नवरात्री दशमी तिथि का आरंभ 17 अप्रैल दिन बुधवार को शाम5:30 से  शुरू है तथा दशमी तिथि का समापन अगले दिन यानी 18 अप्रैल को शाम 6:55 मिनट पर है
तो ऐसे में आप 17 अप्रैल को शाम 5:30 बजे के बाद और 18 अप्रैल को शाम 6:55 के बीच में पारण कर सकते हैं। लेकिन जो लोग नौ दिन का व्रत रखते हैं उन्हें कोशिश करनी चाहिए की वे उदया तिथि में पारण करें। और दशमी की उदया तिथि के अनुसार आपको 18 अप्रैल को ही पारण करना चाहिए।

 

चैत्र नवरात्री के समय में घर में क्या नहीं करें

  • नवरात्रि के दौरान घर में गंदगी ना रखें तथा अपने घर का वातावरण बहुत ही शुद्ध रखें।
  • इसके साथ ही नवरात्री के इन नौ दिनों में किसी भी कन्या को मारना- पीटना नहीं चाहिए।
  • प्याज-लहसुन के साथ-साथ मांसाहारी भोजन न बनाये व ना ही खाएं।
  • नवरात्रि के 9 दिन बाल, नाखून काटने और दाढ़ी-मूंछ बनवाने के लिए भी मना किया जाता है।
  • नवरात्री के नौ दिन तक हर किसी को ब्रंहचर्य का पालन करना चाहिए।
  • अपने घर तथा बाहर में किसी से भी लड़ाई – झगड़ा नहीं करना चाहिए।
  • व्रतधारी को नवरात्रि के दौरान काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
  • नवरात्री के दौरान अपने घर में क्लेश नहीं करना चाहिये।
  • सुबह शाम विधि विधान से माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
  • तथा नवरात्रि के दौरान सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए.

 

दुर्गा चालीसा पाठ

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुख हरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहुँ लोक फैली उजियारी।।
शशि ललाट मुख महा विशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला।।
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जनि अति सुख पावै।।
तुम संसार शक्ति लय कीना ।पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा तुम जग पाला ।तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशनहारी ।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुन गावें ।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुधि ऋषि-मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।परगट भईं फाड़ कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रहलाद बचायो।हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माही। श्री नारायण अंग समाही ॥
क्षीर सिन्धु में करत बिलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमिट न जात बखानी।।
मातंगी धूमावती माता। भुवनेश्वरी बंगला सुख दाता।।
श्री भैरव तारा जग-तारिणि।छिन्न-भाल भव-दुःख निवारिणि
केहरि वाहन सोह भवानी ।लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर-खड्‍ग बिराजै ।जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र विविध त्रिशूला ।जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं बिराजत ।तिहूँ लोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दैत्य तुम मारे ।रक्तबीज-संखन संहारे ॥
महिषासुर दानव अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालि को धारा ।सेन सहित तुम तेहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब ।भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमर पुरी अरौ सब लोका ।तव महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै ।दुख-दारिद्र निकट नहिं आवै ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।जन्म-मरण ता कौ छुटि जाई ॥
योगी सुर-मुनि कहत पुकारी ।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।काम-क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको
शक्ति रूप को मरम न पायो ।शक्ति गई तब मन पछितायो ॥
शरणागत ह्‍वै कीर्ति बखानी ।जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।तुम बिन कौन हरे दुख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावैं । मोह मदादिक सब बिनसावै।।
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौ एकचित तुम्ही भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला।ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवी दास शरण निज जानी।करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

 

दुर्गा जी की आरती

जगजननी जय जय। मैया जगजननी जय जय।।
भयहरिणी भवतरिणी । भवभामिनि जय जय।। जग..
तु ही सत्-चित्-सुखमय।शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन सुन्दर । पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी…
आदि अनादि अनामय।अविचल अविनाशी।
अमल अनन्त अगोचर।अज आनन्दराशी॥ जगजननी…
अविकारी अघहारी ।अकल कलाधारी।
कर्ता विधि भर्ता हरि।हर संहारकारी॥ जगजननी…
तू विधि वधू रमा तू । उमा महामाया।
मूल प्रकृति विद्या तू ।तू जननी जाया॥ जगजननी…
राम  कृष्ण तू सीता। ब्रजरानी राधा।
तू वांक्छाकल्पद्रुम। हारिणि सब बाघा॥ जगजननी…
दश विद्या नव दुर्गा । नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका योगिनि।नव-नव रूप धरा॥ जगजननी…
तू परधामनिवासिनि।महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि । ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी..
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या।तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा। प्रलयमयी धारा॥ जगजननी…
तू ही स्नेहसुधामयी।तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही।तू ही अस्थि तना॥ जगजननी…
मूलाधार निवासिनि। इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली।कमला तू वरदे॥ जगजननी…
शक्ति शक्तिधर तू ही।नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी । विमले वेदत्रयी॥ जगजननी…
हम अति दीन दु:खी माँ। विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी। पर बालक तेरे॥ जगजननी…
निज स्वभाववश जननी। दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी। चरण शरण दीजै॥
जगजननी जय जय। मैया जगजननी जय जय।।

 

माँ अम्बे जी की आरती

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥
ॐ जय अम्बे गौरी…..
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी…..
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कण्ठन पर साजै॥
ॐ जय अम्बे गौरी……
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत तिनके दुखहारी॥
ॐ जय अम्बे गौरी……
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति॥
ॐ जय अम्बे गौरी……
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती॥
ॐ जय अम्बे गौरी……
चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे॥
ॐजय अम्बे गौरी……
ब्रहमाणी रुद्राणीतुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी तुम शिव पटरानी॥
ॐजय अम्बे गौरी…….
चौंसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा अरु बाजत डमरु॥
ॐ जय अम्बे गौरी…….
तुम ही जग की माता तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी……
भुजा चार अति शोभित खडग खप्पर धारी ।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी…. .
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी…..
श्री अंबेजी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी…..
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥
ॐ जय अम्बे गौरी…..

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