सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अमान्य शादियों से पैदा हुई संतानों का अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति पर पूरा हक़ है। बता दें कि अभी तक हिन्दू कानून अमान्य शादियों से पैदा हुए बच्चों को केवल उनके माँ-बाप कि सेल्फ-अक्वायर्ड (self-acquired) प्रॉपर्टी में हक़ देता है। सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फैसले के बाद ऐसे बच्चों का अब पैतृक संपत्ति पर भी हक़ होगा।
सुप्रीम कोर्ट की तीनो जजो की बेंच ने 1 सितम्बर 2023 को दिये अपने अहम फैसले मे यह कहा हैं कि शून्य (void) एवम् शून्यकरणीय (voidable) विवाह से उत्पन्न सन्तानो को अपने माता–पिता की सम्पत्ति में जन्म के समय से ही पूर्ण अधिकार होता है जो संयुक्त हिन्दू परिवार में मिताक्षरा कानून के तहत लागू है। मिताक्षरा कानून वह कानून है जो संयुक्त हिन्दू परिवार में उत्तराधिकार के कानून की व्याख्या करता है. यह बताता है कि संयुक्त हिन्दू परिवार में उत्तराधिकार के क्या नियम है. मिताक्षरा कानून पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में प्रभावी है.
बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 16(1) और 16(2) के तहत उत्पन्न संतान हिन्दू उत्तराधिकार एक्ट के तहत लीगल होगी. ऐसी संतानों को केवल अपने माता-पिता की सम्पत्ति में ही अधिकार होगा; संयुक्त हिन्दू परिवार के किसी अन्य सदस्य कि सम्पत्ति पर उनका कोई अधिकार नही होगा
यह मामला वर्ष 2011 से Supreme Court कि समक्ष पेंडिंग था, जिसमे सर्वोच्च न्यायालय को फैसला लेना था कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत void व voidable (यानी अमान्य या अमान्य करार देने लायक)) विवाह से उत्पन्न संतान को अपनी पैतृक सम्पत्ति में उत्तराधिकार के क्या नियम होगे।
अमान्य या अमान्य–करार–देने–लायक विवाह में अन्तर
अमान्य करार देने लायक विवाह (voidable marriage), जिसे कानूनी भाषा में शून्यकरणीय विवाह कहते हैं, वह विवाह होता है जिसको पति या पत्नी द्वारा न्यायालय के आदेश द्वारा अमान्य घोषित कराया जाता है. दूसरी तरफ अमान्य विवाह (void marriage), जिसे कानूनी भाषा में शून्य विवाह कहते हैं, वह विवाह होता है जो शादी के समय पर ही अमान्य होता है।
Supreme Court के फैसले के परिणाम
शून्य व शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न संतान विधि–सम्मत (legal) है. हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 16(2) यह बताती है कि जहाँ शून्यकरणीय विवाह रद्द भी हो, किन्तु संतान अगर डिग्री के पूर्व उत्पन्न हुई हो तो वह संतान वैध संतान होगी, तथा माता पिता की सम्पत्ति में उसे वैध पुत्र की भांति उत्तराधिकार की मान्यता होगी।