इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अहम फैसले में कहा है कि फोन पर कि गई बात को अगर गैर-कानूनी तरीके से भी रिकार्ड किया गया हो तो भी यह साक्ष्य के रूप में ग्राहय होगी। कोर्ट ने साफ़ किया कि दो अभियुक्तों के वार्तालाप को फोन को स्पीकर मोड में रखकर डिजिटल वाइस रिकार्डर के माध्यम से रिकार्ड करना किसी भी प्रकार का अवरोध नही है.
जस्टिस सुभाष वि़द्यार्थी ने यह बात रिटायर्ड सीईओ फतेहगढ कन्टोनमेन्ट बोर्ड के महन्त प्रसाद राम त्रिपाठी द्वारा दाखिल रिवीजन अपलीकेशन पर कही. इस मामले में में ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रार्थना पत्र को रिजेक्ट कर दिया था, जिसमें अभियुक्त द्वारा यह कहा गया था कि वह निर्दोष है और उसके ऊपर जो आरोप लगे हैं वे गलत हैं.
ट्रायल कोर्ट के आदेश के विरूद्ध अभियुक्त हाईकोर्ट गया और अपने रिवीजन प्रार्थना पत्र में यह बात कही कि उसके ऊपर कोई मामला ही नही बनता है. “मेरे विरूद्ध जो साक्ष्य है वो फोन रिकार्डिग के है जिसे गैर-कानूनी तरीके से हासिल किया गया है,” त्रिपाठी ने अपनी अपील में कहा.
अपील को लखनऊ हाई कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि विधि शास्त्र के अनुसार सबूत को केवल इस ग्राउन्ड पर लेने से मना नही किया जा सकता है कि सबूत गैर-कानूनी तरीके से इकट्ठा किया गया है.
यह मामला पर Rs 156,000 के घूस का मामला था जहा पर सीबीआई ने दो अभियुक्तों की बात को डिजिटल काल रिकार्डर पर रिकार्ड किया था. कोर्ट ने कहा कि जनता की सुरक्षा के लिए जहाँ सरकारी एजेन्सीज को ऐसा लगे, वो काल रिकार्ड कर सकती हैं.