नाबालिग की ओर से संपत्ति के अधिग्रहण, स्वामित्व और बिक्री से जुड़े कानून

आज हम आपको बताएंगे कि किसी नाबालिग द्वारा प्रॉपर्टी के अधिग्रहण और बिक्री को लेकर क्या कानून हैं, साथ ही नाबालिग द्वारा स्वामित्व के मामले में इनकम टैक्स को लेकर क्या प्रावधान हैं.

किसी नाबालिग द्वारा अचल संपत्ति का अधिग्रहण

एक नाबालिग कई तरीकों से अचल संपत्ति हासिल कर सकता है. उसे प्रॉपर्टी विरासत, वसीयत या नाबालिग के धर्म के अनुसार निर्वसीयत उत्तराधिकार अधिनियम के तहत मिल सकती है. नाबालिग को अचल संपत्ति बतौर गिफ्ट भी मिल सकती है. एक नाबालिग भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के मुताबिक कॉन्ट्रैक्ट करने के लायक नहीं है लेकिन ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट 1882 के प्रावधानों के तहत नाबालिग अचल संपत्ति को बतौर गिफ्ट हासिल कर सकता है वो भी बिना अपने संरक्षकों की दखलअंदाजी के.

व्यावहारिक नजरिए से देखें तो रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी अचल संपत्ति के ट्रांसफर के लिए अग्रीमेंट को रजिस्टर कराने की जरूरत है और चूंकि किसी भी गिफ्ट को प्रभावी बनाने के लिए, उसे स्वीकार करना पड़ता है इसलिए यह सलाह दी जाती है कि गिफ्ट को नाबालिग की ओर से उसके प्राकृतिक संरक्षक स्वीकार करें, ताकि रजिस्ट्रेशन अधिकारी कोई सवाल न उठाएं. हालांकि कानूनी तौर पर, नाबालिग किसी अचल संपत्ति की गिफ्ट डीड पर साइन कर सकता है. यह सलाह व्यावहारिक दृष्टिकोण से दी गई है ताकि रजिस्ट्रेशन में देरी न हो.

हालांकि एक नाबालिग एक अचल संपत्ति बतौर गिफ्ट स्वीकार कर सकता है, कोई भी गिफ्ट, जिसमें कुछ देयता होती है, को नाबालिग पर बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता है. लेकिन, अगर नाबालिग कॉन्ट्रैक्ट के लिए योग्य होने के बाद गिफ्ट पाने लायक बनता है, या तो स्पष्ट रूप से या आचरण से, तो वह गिफ्ट को बाद में रद्द नहीं कर सकता.

अगर नाबालिग को कोई प्रॉपर्टी गिफ्ट में मिली है, जिसकी कीमत 50 हजार रुपये से ज्यादा है तो ऐसी प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू को उस वर्ष में नाबालिग की आय माना जाएगा, जिसमें वह ट्रांसफर की गई है. लेकिन अगर गिफ्ट खास रिश्तेदारों जैसे जैसे माता-पिता, मामा और मामी, चाचा-चाची के साथ-साथ दादा-दादी से मिला है तो नाबालिग को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा.

एक नाबालिग भी अपने खुद के पैसों से अचल संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है. एक अचल संपत्ति की खरीद के लिए किसी भी अग्रीमेंट को नाबालिग की ओर से उसके प्राकृतिक या कानूनी अभिभावकों की ओर से निष्पादित किया जाना चाहिए, क्योंकि नाबालिग कॉन्ट्रैक्ट के योग्य नहीं है. नाबालिग की ओर से काम करते हुए अभिभावकों को नाबालिग के फायदे के लिए बहुत विश्वास के साथ काम करना होता है.

नाबालिग के मालिकाना हक वाली संपत्ति से होने वाली इनकम पर टैक्स

किसी नाबालिग को अचल संपत्ति को खरीदने, विरासत और गिफ्ट में पाने का अधिकार है इसलिए वह तार्किक रूप से अचल संपत्ति के फायदों को बनाए रखने और उसका लुत्फ लेने का हकदार है. आयकर नियमों के मुताबिक, कोई भी शख्स खुद के कब्जे में दो आवासीय संपत्तियां रख सकता है, जिसके लिए आयकर उद्देश्यों के लिए टैक्सेबल वैल्यू शून्य के रूप में लिया जाता है.

इसलिए अगर किसी अचल संपत्ति का इस्तेमाल नाबालिग या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा रहने के लिए किया जा रहा है तो उससे अनुमान लगाया जाता है कि उससे कोई आय नहीं होगी. नाबालिग के स्वामित्व वाली संपत्ति को अभिभावकों की ओर से किराये पर भी दिया जा सकता है. किराये पर दी हुई प्रॉपर्टी के लिए किराये की आय मानक कटौती के रूप में हासिल किराए के 30% की कटौती के बाद टैक्सेबल है.

क्योंकि नाबालिग के पास कोई सक्रिय आय नहीं होती इसलिए नाबालिग को होम लोन मिलने की संभावना कम होती है. लेकिन अगर नाबालिग ने खरीद, निर्माण, मरम्मत या प्रॉपर्टी में रेनोवेशन के लिए पैसे उधार लिए हैं तो वह ऐसे पैसों पर टैक्स छूट पाने का हकदार है.

नाबालिग की निष्क्रिय आय, जिसे आयकर कानूनों के प्रावधानों के मुताबिक कैलकुलेट किया जाता है, उसे उस अभिभावक की इनकम के साथ जोड़ा जाना जरूरी है, जिसकी आय ज्यादा है और तब तक इसे जोड़ा जाना जारी रहेगा, जब तक कि मूल्यांकन अधिकारी आदेश न दे. नतीजतन, नाबालिग के स्वामित्व वाली संपत्ति के संबंध में किराये की आय या कैपिटल इनकम को कटौती और छूट देने के बाद अभिभावक की आय के साथ जोड़ दिया जाता है. नाबालिग की आय पर आयकर अधिनियम की धारा 10 (32) के तहत हर साल 1,500 रुपये तक की छूट है. तो, इससे ऊपर की कोई भी आय, माता-पिता की आय में जोड़ी जाएगी.

नाबालिग के स्वामित्व वाली अचल संपत्ति की बिक्री और निष्पादन

हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट 1956 के प्रावधानों के मुताबिक, कोई संपत्ति या नाबालिग के स्वामित्व वाली संपत्ति में शेयर को बिना कोर्ट की मंजूरी लिए नाबालिग के प्राकृतिक गार्डियन (अभिभावक) बेच या निष्पादित नहीं कर सकते. इजाजत लेने के लिए, नाबालिग के अभिभावक को जिला कोर्ट में एप्लिकेशन डालनी होती है. कोर्ट की इजाजत के बिना अगर नाबालिग के अभिभावक उसकी संपत्ति को बेच देते हैं
तो वह उसके बालिग बनने पर नाबालिग के विकल्प पर अमान्य है.

तथ्य यह है कि संपत्ति की बिक्री नाबालिग की देखभाल की लागत को पूरा करने और उसके फायदे के लिए बनाई गई थी, तो यह बिक्री को कानूनी रूप से वैध नहीं बना देगी.

हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट 1956 के तहत प्राकृतिक अभिभावक पर बिना कोर्ट की इजाजत के नाबालिग के स्वामित्व वाली संपत्ति को गिरवी रखने, बेचने, एक्सचेंज, चार्जिंग या बतौर गिफ्ट देने पर पाबंदी है. अगर प्राकृतिक अभिभावक नाबालिग के स्वामित्व वाली संपत्ति को किसी भी शख्स को लीज पर देना चाहता है तो उसे कोर्ट से परमिशन लेनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्थिति सरोज बनाम सुंदर सिंह के केस में स्पष्ट कर दी थी.

स्पष्ट करने के लिए, नाबालिग के स्वामित्व वाली प्रॉपर्टी का कोई भी सौदा अवैध या शून्य नहीं है, बल्कि नाबालिग के बालिग होने के विकल्प पर शून्य है और वही नाबालिग का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा भी निरस्त किया जा सकता है. इसलिए अगर आप ऐसी संपत्ति खरीदते हैं या फिर लीज पर लेते हैं, जो नाबालिग के स्वामित्व वाली है तो सुनिश्चित करें कि नाबालिग के प्राकृतिक अभिभावकों ने कोर्ट से इजाजत ली हो, ताकि भविष्य में दिक्कतें न आएं.

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