महज पंजीकरण से वसीयत की वैधता साबित नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वैध होने के लिए वसीयत को साक्ष्य अधिनियम और उत्तराधिकार अधिनियम की शर्तों को भी पूरा करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल वसीयत का पंजीकरण ही उसकी वैलिडिटी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। धनी राम (मृत) और अन्य बनाम शिव सिंह सिविल मामले में एक अपील को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने माना कि वसीयत को भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 68 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 63 के तहत निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।

उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63 वसीयत साबित करने का तरीका निर्धारित करती है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 कहती है कि एक दस्तावेज़, जिसे कानून के प्रावधानों के तहत सत्यापित किया जाना आवश्यक है, तब तक साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है जब तक कि इसके एक्सेक्यूशन को साबित करने के लिए कम से कम एक प्रमाणित गवाह को नहीं बुलाया गया हो।

शीर्ष अदालत ट्रायल कोर्ट के दृष्टिकोण और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश से सहमत थी, जिसमें कहा गया था कि विल का पंजीकरण का मात्र तथ्य ही वसीयत के निष्पादन और सत्यापन से जुड़े सभी संदेह को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है।

जानकी नारायण भोईर बनाम नारायण नामदेव कदम मामले में निष्कर्षों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कि एक वसीयत निष्पादित की गई है, उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63 के खंड (ए), (बी) और (सी) में जो रिक्वायरमेंट्स हैं उनका अनुपालन करना होगा।”सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वसीयत को दो या दो से अधिक गवाहों द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए और (शर्त यह भी है कि) इनमें से प्रत्येक गवाह ने वसीयतकर्ता को वसीयत पर हस्ताक्षर करते या अपना निशान लगाते हुए देखा हुआ हो।  वसीयत पेश करने वाले व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि वसीयत विधिवत और वैध तरीके से निष्पादित की गई थी और यह केवल यह साबित करके नहीं किया जा सकता है कि वसीयत पर हस्ताक्षर वसीयतकर्ता के थे क्योंकि प्रस्तावक को यह भी साबित करना होगा कि उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63 (सी) के अनुसार सत्यापन ठीक से किया गया था,” शीर्ष अदालत ने कहा।

 

धनी राम एवं अन्य बनाम शिव सिंहपूरा मामला

सोहन लाल की पत्नी लीला देवी की 10 दिसंबर 1987 को मृत्यु हो गई। उनके पति की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। उनकी मृत्यु के बाद, लीला देवी के भाई के बेटे धनी राम ने दावा किया कि उन्होंने एक पंजीकृत वसीयत बनाई जिसमें उनके दिवंगत पति द्वारा छोड़ी गई संपत्तियां उन्होंने धनी राम को दे दी।  उधर दिवंगत सोहन लाल के भाई के बेटे शिव सिंह ने लीला देवी द्वारा बनाई गई वसीयत को चुनौती देते हुए सोलन, हिमाचल प्रदेश, में एक नागरिक मुकदमा दायर किया। 1997 में, ट्रायल कोर्ट ने धनी राम द्वारा प्रस्तुत वसीयत पर अविश्वास करते हुए मुकदमा  ख़ारिज कर दिया।  परिणामस्वरूप, उक्त वसीयत के आधार पर अधिकारियों द्वारा किया गया म्युटेशन भी रद्द कर दिया गया। शिव सिंह को कब्जे की डिक्री का हकदार माना गया क्योंकि वह मुकदमे की संपत्तियों का असली मालिक था, और धनी राम को इसमें हस्तक्षेप करने से स्थायी रूप से रोक दिया गया था।

निर्णय से व्यथित होकर, धनी राम और अन्य प्रतिवादियों ने उसी वर्ष सोलन जिला न्यायाधीश के समक्ष एक नागरिक अपील दायर की।

1998 में, अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले और डिक्री को उलट दिया। यह माना गया कि वसीयत साबित हुई है, और इसके आसपास कोई संदिग्ध परिस्थितियाँ नहीं हैं । शिव सिंह द्वारा दायर मुकदमा तदनुसार लागत सहित खारिज कर दिया गया।

इसके बाद, शिव सिंह ने 1998 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष नियमित दूसरी अपील दायर की। 2009 में उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले और डिक्री को बहाल करते हुए दूसरी अपील की अनुमति दी थी।

घटनाक्रम से व्यथित होकर धनी राम ने विशेष अनुमति के माध्यम से अपील दायर की। 30 जुलाई 2009 के एक आदेश द्वारा, अदालत ने अपील के तहत फैसले के संचालन और कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर 2023 के अपने आदेश में धनी राम की अपील को खारिज कर दिया।

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