जब लम्बे समय के लिए घर खोजने की बात आती है, तो हम देखते हैं कि बेहतर क्या है – किराए के घर में रहना या घर खरीदना – और किसी को भी चुनने से वो सभी वजहें जिन पर विचार करना चाहिए।
जब, किराए पर रहने की तुलना में अपने खुद के घर में रहने की बात आती है, तो लोग वकालत करते हैं, अक्सर वे यह कहते हैं कि घर किराये पर लेने की तुलना में खुद के घर की लागत कम होती है। जो लोग घर के मालिक हैं, वे उससे मिलने वाली स्वतंत्रता का हवाला देते हैं| खुद का घर का होना अक्सर हर भारतीय का सपना होता है, हाल के दिनों में आसमान छूती प्रोपर्टी की कीमतों ने लोगों को घर खरीदने के बजाय किराए पर घर लेने पर मजबूर कर दिया है | ये कहना है अजय जैन, प्रबंध निदेशक-इन्वेस्टमेंट बैंकिंग और हेड रियल एस्टेट ग्रुप, सेंट्रम कैपिटल लिमिटेड का |
“हालांकि, अगर कोई शहर के बारे में निश्चित है जिसमें वह भविष्य में रहने जा रहा है और उसके पास डाउन पेमेंट और भविष्य में देने के लिए धन की व्यवस्था है, तो वह घर का मालिक होने के लिए बिलकुल सही है।
जैन ने कहा, किराये पर रहने की बजाय अगर वे घर ख़रीदते हैं तो अपने घरेलू बचत से होम लोन की ईएमआई दे सकते हैं , जो कि ज़्यादातर लोग बेकार में खर्च कर देते है।
किराए के घर से खुद के घर का लाभ
किराए के घर में रहने से खुद के घर में रहने के मुख्य लाभ :
- घर का मालिक, सुरक्षा और गर्व की भावना।
- आपको बढ़ते हुये किराये का सामना नहीं करना पड़ेगा
- जब आप घर लोन पर खरीदते हैं, तो आपको पहले से ही लम्बे समय में भुगतान की जाने वाली ईएमआई के बारे में पता होता है। इस प्रकार भविष्य के खर्चे का अनुमान लग जाता है और खर्चे भी एक जैसे से होते हैं ।
- जब आप खुद के घर में रहते हैं, तो आपके जीवन में दखल अंदाजी की संभावना कम होती है।
कैसे तय करें कि किराए के घर में रहें या खुद का खरीदें
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि युवा अपने शुरुआती कैरियर में घर खरीदने पर विचार कर सकते हैं, अगर उन्हें किसी विशेष शहर में रहना है| शुरूआत में ईएमआई (EMI) की व्यवस्था करना मुश्किल लगता है लेकिन 5 से 10 साल बाद जब उनकी सैलरी बढ़ जाती है, तब भी ईएमआई (EMI) वैसी ही रहती है जो कि आपके सेलरी की तुलना में कम अनुपात में होती है । और यही नहीं प्रोपर्टी की कीमत में भी कई गुना वृद्धि हो जाती है।
अमित ओबेरॉय, राष्ट्रीय निदेशक, ज्ञान प्रणाली, कोलियर्स इंटरनेशनल इंडिया के अनुसार “बहुत से राज्यों में मकान मालिक सिर्फ कुछ तय सालों तक किराएदारों को रखते हैं| क्योंकि, मकान मालिकों को हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि कानून द्वारा दी गई कमजोर सुरक्षा के कारण किरायेदार उनके घर पर कब्जा कर सकते हैं। कम ब्याज दरों और सब्सिडी से पहली बार बहुत लोगों को अपना घर खरीदना अब संभव हुआ है| ”
खुद का घर बनाम किराए का घर: आर्थिक आधार
केस 1: मान लेते हैं कि 3- बीएचके किराये के घर में एक व्यक्ति रहता है और हर महीने 20,000 रुपये का किराया देता है। हर साल औसतन पाँच प्रतिशत किराया बढ़ जाता है।
केस 2: एक व्यक्ति 3-बीएचके का घर 20 साल के लिए होम लोन पर 40 लाख रुपये में खरीदता है।
मान लीजिए की वह व्यक्ति 40 वर्षों तक उस घर में रहता है, तो वित्तीय गणना (फाइनेंशियल कैलकुलेशन) को देखें:
विस्तार में | हिसाब |
केस 1 (किराए पर रहना ) | |
माना कि (प्रति माह) किराया | रु 20,000 |
किराए में वृद्धि (प्रति वर्ष) | 5% |
20 वर्ष के बाद संभावित किराया | (प्रति माह) रु40000 |
40 वर्ष के बाद संभावित किराया | (प्रति माह) रु80000 |
40 वर्षों में भुगतान हुआ | 2.9 करोड़ रुपये |
केस 2 (अपने घर में रहना) | |
माना कि होम लोन | 40 लाख रुपये |
कार्यकाल | 20 साल |
ब्याज दर | 8.3% |
ईएमआई | रु34,200 |
20 वर्षों में कुल लगभग | 82 लाख रुपये दिए गए |
घर के मालिक ने 40 वर्षों में किराए की बचत (पिछले 20 वर्षों में किरायेदार द्वारा दिया गया ज़्यादा किराया) | 2.1 करोड़ रुपये |
इस उदाहरण में, पूरे जीवन के लिए किराये पर रहने की लागत, अपने घर में रहने की तुलना में बहुत अधिक होगी। इसके अलावा, घर की कीमत भी समय के साथ बढ़ जाती है, जबकि, किराये के घर में हमको इस तरह का कोई फायदा नहीं मिलता है।
क्यों किराए के घर से अपना घर अच्छा विकल्प है:
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