जब भी हम अपने जीवन में कोई भी मांगलिक कार्य अथवा शुभ कार्य करते हैं तो हम पंचांग के अनुसार अच्छा दिन और शुभ मुहूर्त देखकर ही करते हैं। पंचांग का हर पूजा और शुभ काम में खास महत्व होता है। पंचांग देखे बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। हिंदू धर्म में पंचांग का विशेष स्थान है।पंचांग की मदद से शुभ दिन, शुभ मुहूर्त, शुभ योग, दिन के अशुभ समय, ग्रहों की स्थिति आदि के बारे में पता चलता है। पंचांग से दिशाशूल, सूर्योदय ,चंद्रोदय, सूर्यास्त, चंद्रास्त, आदि, के बारे में भी जानकारी मिलती है। चलिए आज हम आपको पं चांग के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देंगे और जानेंगे कि इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है।
क्या है पंचांग?
पंचांग या शाब्दिक अर्थ है, पांच अंग. यही हिंदू काल गणना के रीति से निर्मित पारंपरिक कैलेंडर या कालदर्शन को कहते हैं। इसमें सारणी या तालिका के रूप में महत्वपूर्ण सूचनाओं अंकित होती हैं जिनकी अपनी गणना पद्धति है। अपने विभिन्न रूपों में यह लगभग पूरे नेपाल और भारत में माना जाता है। भारतीय पंचांग का आधार विक्रम संवत है जिसका संबंध राजा विक्रमादित्य के शासनकाल से है। ये कैलेंडर विक्रमादित्य के शासनकाल में जारी हुआ था इसी कारण इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है।
पंचांग के मुख्य भाग
“तिथिवार्रश्र नक्षत्र योग: करण मेव च ।
एतेषां यत्र विज्ञानं पंचांग तनिंनगघते।।”
पंचांग नाम इसके पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, जो इस प्रकार हैं: तिथि, वार, नक्षत्र ,योग और करण।
नक्षत्र
पंचांग का पहला अंग नक्षत्र है, ज्योतिष के मुताबिक 27 प्रकार के नक्षत्र होते हैं। लेकिन मुहूर्त निकालते समय एक 28 व नक्षत्र भी गिना जाता है। उसे कहते हैं ,अभिजीत नक्षत्र। शादी ,गृह प्रवेश ,शिक्षा , वाहन, खरीदी आदि करते समय नक्षत्र देखे जाते हैं।
तिथि
पंचांग का दूसरा प्रमुख अंग तिथि है। तिथियां 16 प्रकार की होती हैं। इनमें पूर्णिमा और अमावस्या दो प्रमुख तिथियां हैं। यह दोनों तिथियां महीने में एक बार जरूर आती हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार महीने को दो भागों में बांटा गया है, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, अमावस्या और पूर्णिमा के बीच की अवधि को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। वही पूर्णिमा और अमावस्या के बीच की अवधि को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। वैसे ऐसी मान्यता है कि कोई भी बड़ा या महत्वपूर्ण काम कृष्ण पक्ष के समय नहीं करते हैं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस समय चंद्रमा की शक्तियां कमज़ोर पड़ जाती हैं और अधकार हावी रहता है। तो इसलिए सभी शुभ काम जैसे की शादी विवाह का निर्णय शुक्ल पक्ष के समय किया जाता है।
योग
पंचांग का तीसरा प्रमुख अंग योग है। योग किसी भी व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। पंचांग में 27 प्रकार के योग मन माने गए हैं। इसके कुछ प्रकार हैं : विष्कुंभ ,ध्रुव ,सिद्धि ,वरीयान , परिधि, व्याघात आदि।
करण
पंचांग का चौथा प्रमुख अंग करण है, तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है। मुख्य रूप से 11 प्रकार के करण होते हैं। इसमें चार स्थिर होते हैं और सात अपनी जगह बदलते रहते हैं। बव,बालव, तैतिल,नाग, वाणिज्य आदि करण के प्रकार हैं।
वार
पंचांग का पांचवा प्रमुख अंग वार है, एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच की अवधि को वार कहा जाता है। रविवार ,सोमवार ,बुधवार, बृहस्पतिवार ,शुक्रवार और शनिवार सात प्रकार के वार होते हैं। इनमें सोमवार ,बुधवार ,बृहस्पतिवार और शुक्रवार को शुभ माना जाता है।
पंचांग से होने वाले लाभ
हिन्दू धर्म में पंचांग का पाठ पठन-पाठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है। इसीलिए भगवान श्री राम भी पंचांग का श्रवण करते थे।
1. हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना और बोलकर पढ़ना चाहिए।
2. शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन-पाठन और श्रवण से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
3. वार के पठन-पाठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
4. नक्षत्र के पठन- पाठन और श्रवण से पापों का नाश होता है।
5. योग के पठन-पाठन और श्रवण से प्रिय जनों का प्रेम मिलता है उनसे आपका कभी वियोग नहीं होता है।
FAQs
पंचांग के रचयिता कौन है?
पंचांग दर्शन के रचनाकार मथुरा नाथ शुक्ला जी हैं।
पंचांग के पांच तत्व कौन-कौन से हैं?
पंचांग के पांच तत्व आकाश, वायु ,अग्नि, जल और पृथ्वी है।
पंचांग कितने प्रकार के होते हैं?
भारतीय कैलेंडर दो प्रकार के होते हैं। एक सौर कैलेंडर (सूर्य गणना) है जो विभिन्न राशियों में सूर्य के प्रवेश पर आधारित है। और दूसरा चंद्र कैलेंडर (चंद्र गणना) है जो चंद्रमा के पारगमन आधारित होता है।
हिंदू कलैंडर यानि पंचाग में कितने महीने होते हैं?
पंचाग में 12 महीने होते हैं. लेकिन हर 3 वर्ष में इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास, मल मास या पुरुषोत्तम महीना कहते हैं।
पंचांग कितने दिनों का होता है?
प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनो के चंद्रमा की कलाओं के घटना और बढ़ाने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग 15 दिन या दो सप्ताह होते हैं।
भारत का पहला पंचांग कौन सा है?
राष्ट्रीय पंचांग की तिथियों में ग्रेगोरियन कैलेंडर की तारीखों के साथ एक स्थायी पत्राचार है। चैत्र समान्य रूप से 22 मार्च को और 21 मार्च को एक अधिवर्ष में होता है।
ज्योतिष शास्त्र में पंचांग का क्या महत्व है?
ज्योतिष को वेदों का नेत्र माना गया है। ज्योतिष में भी, पंचांग विद्या को जानना भी बहुत कठिन होता है। कहते हैं कि पंचांग के पठन और श्रवण से भी लाभ मिलता है। वेदों और अन्य ग्रंथों में सूर्य ,चंद्रमा ,पृथ्वी और नक्षत्र सभी की स्थिति दूरी और गति का वर्णन किया गया है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी पंचांग का विशेष महत्व है।