January 22, 2024: श्री राम मंदिर निर्माण को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) और डीएसटी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग) के कम से कम चार प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा तकनीकी रूप से सहायता प्रदान की गई है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने आज दिल्ली में इस बात कोबताते हुए कहा कि जिन चार संस्थानों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उनमें केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) रूड़की, राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) बेंगलुरु और इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) पालमपुर (एचपी) शामिल हैं।
मंत्री महोदय ने कहा, “सीएसआईआर-सीबीआरआई रूड़की ने राम मंदिर निर्माण में प्रमुख योगदान दिया है; सीएसआईआर-एनजीआरआई हैदराबाद ने नींव डिजाइन और भूकंपीय सुरक्षा पर महत्वपूर्ण इनपुट दिए; डीएसटी-आईआईए बेंगलुरु ने सूर्य तिलक के लिए सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर ने 22 जनवरी को अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए ट्यूलिप खिलाए हैं।’’
सिंह ने कहा कि मुख्य मंदिर भवन, जो 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा है, राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से निकाले गए बलुआ पत्थर से बना है। इसके निर्माण में कहीं भी सीमेंट या लोहे और इस्पात का उपयोग नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि 3 मंजिला मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन भूकंप प्रतिरोधी बनाया गया है और यह 2,500 वर्षों तक रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता के मजबूत भूकम्पीय झटकों को बर्दाश्त कर सकता है। उन्होंने कहा,“सीएसआईआर-सीबीआरआई रूड़की प्रारंभिक चरण से ही राम मंदिर के निर्माण में शामिल रहा है। संस्थान ने मुख्य मंदिर के संरचनात्मक डिजाइन, सूर्य तिलक तंत्र को डिजाइन करने, मंदिर की नींव के डिजाइन की जांच और मुख्य मंदिर की संरचनात्मक देखभाल की निगरानी में योगदान दिया है।”
सिंह ने कहा कि सीबीआरआई के अलावा, सीएसआईआर-एनजीआरआई हैदराबाद ने भी नींव डिजाइन और भूकंपीय/भूकंप सुरक्षा पर महत्वपूर्ण इनपुट दिए। उन्होंने कहा कि कुछ आईआईटी विशेषज्ञ सलाहकार समिति का भी हिस्सा थे और यहां तक कि भव्य भवन के निर्माण में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का भी उपयोग किया गया है। राम मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसका सूर्य तिलक तंत्र है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हर वर्ष श्रीराम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे लगभग 6 मिनट के लिए सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी। उन्होंने कहा किराम नवमी हिंदू कैलेंडर के पहले महीने के नौवें दिन मनाई जाती है, यह आमतौर पर मार्च-अप्रैल में आती है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्मदिन का प्रतीक है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु ने सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और ऑप्टिका, बेंगलुरु लेंस और पीतल ट्यूब के निर्माण में शामिल है। उन्होंने कहा, “गियर बॉक्स और परावर्तक दर्पण/लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि शिकारा के पास स्थित तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणों को सूर्य पथ पर नज़र रखने के प्रसिद्ध सिद्धांतों का उपयोग करके गर्भ गृह तक लाया जाएगा।’’
सिंह ने कहा कि प्रतिष्ठा समारोह में सीएसआईआर भी शामिल होगा। उन्होंने कहा, आस्था, एकता और भक्ति की भावना के उत्सव में, सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर (एचपी) 22 जनवरी को अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में ट्यूलिप ब्लूम्स भेज रहा है।
उन्होंने कहा, “इस मौसम में ट्यूलिप में फूल नहीं आते। यह केवल जम्मू-कश्मीर और कुछ अन्य ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में ही उगता है और वह भी केवल वसंत ऋतु में। इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी पालमपुर ने हाल ही में एक स्वदेशी तकनीकी विकसित की है, जिसके माध्यम से ट्यूलिप को उसके मौसम का इंतजार किए बिना पूरे वर्ष उपलब्ध कराया जा सकता है।” डॉ. सिंह कहा कि रोजमर्रा की जिंदगी में सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अमृतकाल के दौरान आत्मनिर्भर और विकसितभारत@2047 के रूप में उभरने के शिखर पर है।
वैज्ञानिक संस्थानों की तकनीकी सहायता से किया गया राम मंदिर का निर्माण: मंत्री

राम मंदिर निर्माण में CBRI-Roorkee, NGRI-Hyderabad, IIA-Bangalore और IHBT पालमपुर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
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