संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत हर वर्ष माघ महीने में पड़ता है। इस साल 2024 में माघ का महीना 21 जनवरी से शुरू हो रहा है। और 19 फरवरी 2024 को समाप्त होगा।इसके साथ ही माघ के इस महीने में पड़ने वाला संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत सबसे खास होता है। इस महीने में पड़ने वाले सकट गणेश चतुर्थी व्रत पर सभी महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु तथा उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिये रखती हैं। यह व्रत माघ में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।तथा शाम को चंद्रमा निकलने के बाद ही पूजा करके व्रत खोला जाता है। इस दिन भगवान गणेश की धूमधाम से पूजा की जाती है। इस दिन जिसके घर में नये बच्चे का जन्म हुआ रहता है उसके लिये भी विशेष पूजा की जाती है।
कब मनाई जाती है संकष्टी गणेश चतुर्थी
संकटी गणेश चतुर्थी हर वर्ष माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। और इस वर्ष यह जनवरी महीने में पड़ रही है।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत सही डेट
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत इस बार जनवरी महीने में 29 जनवरी दिन सोमवार 2024 को मनाई जायेगी।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत 2024 तिथि
पंचांग के अनुसार संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि की शुरुआत 29 जनवरी दिन सोमवार को सुबह 6 बजकर, 10 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 30 जनवरी दिन मंगलवार को 8 बजकर 54 मिनट तक रहेगी।
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष सकट गणेश चतुर्थी का व्रत 29 जनवरी 2024 दिन मंगलवार को रखा जायेगा।
चंद्रमा उदय का समय
माघ का महीना ठंढ का महिना होता है ऐसे में चंद्रमा लेट से दिखाई देते हैं या फिर कभी- कभी कोहरे और धुंध के कारण नहीं भी दिखाई देते हैं। ऐसे में आप जो हम चंद्रमा उदय का समय बता रहें हैं उस समय पर अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल सकते हैं।
चंद्रमा उदय का समय है 29 जनवरी की रात में 9 बजकर 10 मिनट पर।
संकष्टी गणेश चतुर्थी पूजा शुभ- मुहूर्त
संकष्टी गणेश चतुर्थी पर सुबह का शुभ – मुहूर्त -सुबह 7 बजकर 11 मिनट से लेकर 8 बजकर 35 मिनट तक है
शाम की पूजा का शुभ मुहूर्त – शाम 4 बजकर 37 मिनट से 7 बजकर 37 मिनट तक. आप इन समय में से किसी भी समय भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं।
संकष्टी गणेश चतुर्थी पूजा सामाग्री 2024
लकड़ी का चौका, लाल या पीला कपड़ा, सुपारी, भगवान गणेश जी की मूर्ति, पान का पत्ता, या आम या अशोक का पत्ता, कलावा, फल, फूल, अक्षत, दूर्वा, जनेऊ, चंदन, सिंदूर, काला तिल, सफेद तिल, शकरकंद, गुड़, गंगाजल आदि।
संकष्टी गणेश चतुर्थी पूजा विधि 2024
• संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले अपने घर की सफाई करें।
• घर की सफाई के बाद पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें।
• ये सब करने के बाद अपने नित्य क्रिया से निवृत होकर शुद्ध जल से स्नान करें।
• स्नान करने के बाद साफ़ कपड़े पहने तथा श्रृंगार करें।
• उसके बाद पूजा की थाली सजाकर भगवान गणेश के मन्दिर जाकर गणेश जी विधिवत पूजा करें।
• उसके बाद हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
• सकट गणेश चतुर्थी के इस व्रत में तिल विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है।
•इसलिए भगवान गणेश को तिल के लड्डू का भोग लगाएं।
• उसके बाद पूरे परिवार में भगवान को भोग लगे लड्डू का प्रसाद वितरित करें।
• फिर शाम की पूजा के समय आप फिर से स्नान करें एवं नये कपड़े पहनकर अच्छे से श्रृंगार करके पूजा के लिये तैयार हो जाएं।
• फिर पूजा स्थल पर एक लकड़ी का पाटा रखें, तथा उसके उपर एक लाल कपड़ा बिछाएं।
• उसके बाद चौकी पर गंगा जल का छिड़काव करें तथा भगवान गणेश की मूर्ति को स्थापित करें।
• अगर आपके पास भगवान गणेश की मूर्ति न हो तो आप सुपारी से भगवान गणेश को बिठा सकते हैं।
• इसके लिए सबसे पहले आपको जहां पर पूजा करनी हो वहां पर एक छोटी सी रंगोली बनाएं ।
• उसके बाद उसके बीच में रोटी बनाने वाले लकड़ी के चौके को बिठाएं तथा उसके उपर एक लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
• अगर आपके पास कपड़ा न हो तो ऐसे में आप फूल भी बिछा सकते हैं।
• तथा उसके उपर पान के पत्ते पर या आम या अशोक कोई भी एक पत्ते पर आप सुपारी में कलावे को चारो तरफ से लपेटकर भगवान गणेश को बनाएं तथा उसके बाद उन्हें उस पत्ते पर रखकर चौके पर विराजित करें।
• तथा उसके बाद भगवान गणेश को जल तथा गंगा जल से स्नान करायें उसके बाद उन्हें वस्त्र तथा जनेऊ चढ़ाएं।
• साथ ही गणेश जी को फूल, अक्षत, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, फल आदि वस्तुयें चढ़ाएं।
• सकंटी चतुर्थी के दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है तिल, शकरकंद जिसे गंजी भी कहते हैं तथा नया गुड़ इन तीनों चीजों का विशेष महत्व होता है इस गणेश चतुर्थी की पूजा में बिना इन सभी चीजों के पूजा ही अधूरी मानी जाती है।
• तो आप फल, फूल, अक्षत ये सब चढ़ाने के बाद भगवान गणेश को काला तिल, शकरकंद तथा नया गुड़ चढ़ाएं ये सब वस्तुयें आप पहले अच्छे से धोकर सुखा लें तभी चढ़ाएं।
• तथा” ऊं गं गणपतये नमो नमः” इस मंत्र का जप करें तथा गणेश स्तुति का पाठ करें।
• उसके बाद भोग के लिये सफेद तथा काले तिल के बने लड्डू लें और उबली हुयी शकरकंद लें और भगवान गणेश को भोग लगाएं।
• उसके बाद संकटी गणेश चतुर्थी व्रत का कथा सुने तथा अंत में गणेश तथा लक्ष्मी जी की आरती करें और अपनी पूजा संपन्न करें।
• उसके बाद परिवार के सभी सदस्यों को कहें की एक- एक करके भगवान गणेश के पांव छुये तथा उनसे अपने घर परिवार के सभी सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य तथा सुख समृद्धि के लिये आशीर्वाद मांगें।
• भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद को पूरे परिवार में बाटें।
• उसके बाद चंद्रमा उदय के बाद चंद्र देव को अर्घ्य देकर उसके बाद अपना व्रत खोलें।
संकष्टी गणेश चतुर्थी पर जन्में नये बच्चे के लिये की जाती है विशेष पूजा
• जिसके घर में नये बच्चे का जन्म हुआ रहता है उसके लिये विशेष पूजा की जाती है, उसके लिये काले तिल सर गुड़ को मिलाकर एक थाली में पहाड़ बनाया जाता है और साथ ही चावल के आटे के लड्डू भी बनाये जाते हैं। उसके बाद तिल और गुड़ से बने पहाड़ को काटा जाता है। माना जाता है ऐसा करने से नये बच्चे की सारी परेशानियाँ भगवान गणेश दूर करते हैं तथा उस बच्चे को दीर्घायु प्रदान करते हैं।
श्री गणेश स्तुति पाठ
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय!
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते!!
भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय!
विद्याधराय विकटाय च वामनाय , भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते!!
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:!
नमस्ते रुद्राय्रुपाय करिरुपाय ते नम:!!
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे!
भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक!!
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय!
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा!!
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति ,
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति!
विद्याप्रत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति,
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव!!
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम !
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोSस्तु सदा मम !!
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा 2024
एक बार की बात है माता पार्वतीजी ने गणेश जी से प्रश्न किया और कहा कि हे वत्स माघ की चतुर्थी को किसका व्रत और पूजन करना चाहिए हमें यह बताइये । इस पर श्री गणेशजी ने कहा कि हे जननी ! माघ मास की चतुर्थी को भालचन्द्र गणेश की षोडशोपचार के साथ पूजा करना चाहिए पूजा के बाद तिल के लड्डू बनाकर श्री गणेशजी को भोग लगावें । प्रसाद वितरण कर इन्हीं लड्डुओं को प्रसाद के रूप में खावें ।
इस व्रत की एक सुन्दर कथा सुनाता हूँ श्रवण करिए। सतयुग में महान् धर्मात्मा सत्यवादी राजा श्री हरिश्चन्द्र राज्य करते थे । उनके राज्य में ऋषिशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहते थे। उनके एक छोटी आयु का बालक था। कुछ समय बाद ऋषिशर्मा का देहान्त हो जाता है । विधवा ब्राह्मणी अपने दुख के दिनों को जैसे तैसे बिताकर अपने बालक का पालन करने लगी। वह ब्राह्मणी गणेश चतुर्थी का सदा व्रत करती थी ।
एक दिन ब्राह्मणी का पुत्र गणेश जी की प्रतिमा को लेकर खेलने जाता है उसे खेलता हुआ देखकर एक पापी कुम्हार ने किसी के कहने पर उस ब्राह्मणी के पुत्र को आवां में बंद कर आग लगा दी । बालक जब घर नहीं पहुँचा तो ब्राह्मणी विलाप करती हुई गणेशजी से प्रार्थना करने लगी-हे संकट रक्षक भक्तों की पुकार सुनने वाले गणेश मुझे मेरा पुत्र प्राप्त कराओ । मैं आपकी शरण में हूं यदि मेरा पुत्र संकट में है तो उसकी रक्षा करें। यदि मुझे पुत्र नहीं मिला तो मैं प्राण त्याग दूंगी।
ऐसी प्रार्थना सुन भगवान मुस्कुराये और सवेरा होने पर जब कुम्हार ने अपना आवां देखा तो उसमें कटि पर्यन्त जल में बालक को खेलते हुए देखा तो कुम्हार को बड़ा आश्चर्य हुआ।
पापी कुम्हार से राजा हरिश्चन्द्र के पास जाकर कहा कि राजन् ! मैंने घोर पाप कर्म किया है मेरा वध किया जावे। मैंने आवां पकाने के लिए आग लगाई थी किन्तु बर्तन पके नहीं तब किसी दुष्ट ने कहा कि आवें किसी बालक की बलि दोगे तब तुम्हारा आवां पकेगा। मैंने एक बालक को आवें में दबाकर आग लगा दी किन्तु जब आवें को खोलकर देखा तो कमर तक जल में यह बालक खड़ा हुआ खेल रहा था।
यह समाचार सुनकर वहाँ ब्राह्मणी आ गई और अपने बालक को उठाकर छाती से लगा लिया । राजा ने ब्राह्मणी से पूछा हे साध्वी ! तेरा बालक अग्नि में जला क्यों नहीं ? तू ऐसा कौन-सा जप-पूजन या व्रत करती है जिसके प्रभाव से बालक जीवित है ।
तब ब्रह्ममाणी ने कहा – हे राजन ! मैं कोई विद्या या मंत्र नहीं जानती और न ही कोई तप करती हूँ। मैं तो केवल दुखहर्ता भगवान गणेश की संकटी गणेश चतुर्थी व्रत पूजन करती हूँ। इसी व्रत के प्रभाव से तथा श्री गणेश जी की कृपा से मेरा पुत्र मुझे प्राप्त हो गया। उसके बाद राजा ने सारी प्रजा को भी संकटी गणेश चतुर्थी का व्रत करने की आज्ञा दी। उसके बाद सारी प्रजा बड़ी श्रद्धा के साथ भगवान श्री गणेश का यह संकटी गणेश चतुर्थी व्रत करने लगी।
जो भी भगवान गणेश का यह व्रत करता है भगवान गणेश उसके सारे संकट हर लेते हैं। इसलिए इस व्रत का नाम संकटी गणेश चतुर्थी व्रत पड़ा।
भगवान श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,चार भुजा धारी । माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,और चढ़े मेवा । लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,शंभु सुतकारी । कामना को पूर्ण करो,जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व
संकटी गणेश चतुर्थी का व्रत महिलाएं अपनी संतान के लिए रखती हैं.संकटी गणेश चतुर्थी का यह व्रत संकटहर्ता भगवान गणेश के लिए रखा जाता है।यह हर साल माघ मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के रूप में यह सकट चौथ मनाई जाती है. सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रतुण्डी चतुर्थी, तिल कुटा चौथ और माही चौथ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है जो भी महिलाएं यह व्रत श्रद्धापूर्वक अपनी संतान के लिये रखती हैं, भगवान गणेश की कृपा से उनकी संतान तीव्र बुद्धि, अच्छा स्वास्थ्य तथा दीर्घायु प्राप्त करता है।