हमारे हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का विशेष महत्व माना जाता है। क्योंकि इस दिन माता दुर्गा का अवतार माता शीतला की पूजा अर्चना की जाती है। इसके साथ ही माता शीतला को आरोग्यता की देवी भी माना जाता है. माता शीतला चेचक, खसरा, हैजा आदि त्वचा से संबंधित अनेक गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाती हैं. शीतला अष्टमी चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर यानि होली के आठवें दिन मनाई जाती है। इसीलिए शीतला अष्टमी के दिन माता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।और इस दिन ठंडा भोजन किया जाता है।तथा शीतला माता की कहानी सुनी जाती है और उनकी पूजा भी की जाती है। और घर की महिलाएं अपने परिवार व संतान के सुख समृद्धि की कामना करती हैं।
कब है 2024 में शीतला अष्टमी
अप्रैल 2024 में शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी दोनों का महत्व होता है। ऐसे में शीतला सप्तमी का शुरुआत 1 अप्रैल से है और शीतला अष्टमी 2 अप्रैल को है। क्योंकि हमारे यहां हर व्रत त्यौहार उदया तिथि में मनाये जाते हैं । ऐसे में उदया तिथि के अनुसार शीतला अष्टमी 2 अप्रैल को मनाया जायेगा।
शीतला अष्टमी 2024 पूजा का शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 11 मिनट से शुरू होगा और इसका समापन शाम 6 बजकर 39 मिनट पर होगा। यानी कि पूजा के लिए कुल अवधि लगभग 12 घंटे के आसपास की है। इसमें पूजा करना शुभ रहेगा ।
शीतला अष्टमी 2024 पूजन समाग्री
शीतला माता की तस्वीर
स्रोत: eeshajayaweera
दूध
दही
घी
शहद
गेहूं
गंगाजल
फल
फूल
रोली
चंदन
हल्दी
अक्षत
पान का पत्ता
मेहंदी
एक रुपये का सिक्का
नारियल
धूपबत्ती
नीम की पत्तियाँ
कलावा
सुपारी आदि
शीतला अष्टमी 2024 पूजा विधि
- शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहन पूजा स्थान को साफ कर तथा पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें.
- उसके बाद मन्दिर में शीतला माता की मूर्ति स्थापित करें और पूजा शुरू करें.
- उसके बाद मूर्ति को गंगा जल से स्नान करा के चावल, दूध, दही, घी, शहद, गेंहू, फल और फूल अर्पित करें.
- फिर दीपक मन्दिर में रखे लेकिन जलाएं नहीं लेकिन धूप जलाएं, फिर नारियल और सुपारी अर्पित कर हाथ में कलावा बांधें.
- उसके बाद रोली, चंदन, हल्दी और अक्षत से तिलक लगाएं और मां को पान, मेहंदी और सिक्के तथा नीम की पत्तियाँ अर्पित करें.
- उसके बाद माता शीतला स्त्रोत का पाठ अवश्य पढ़ें.
पूजा संपन्न करने के बाद नीम के पेड़ पर एक लोटा जल जिसमें हल्दी, मखाना, लौंग, नीम की पत्ती ये सब डालकर चढ़ाये. - उसके बाद शीतला माता की आरती करें और प्रार्थना करें कि वे आपकी तथा आपके परिवार की हर मोड़ पर रक्षा करें.
- फिर सप्तमी तिथि में तैयार किए गए भोग को मिट्टी के बर्तन में रखकर माता रानी को चढ़ाये जाते हैं.
जिसमें सबसे पहले सप्तमी के दिन भिगोई हुई चने की दाल चढ़ाई जाती है. - उसके बाद माता शीतला को चढ़ाये हुए भोग को कुम्हार के यहां भिजवा दिया जाता है.
शीतला अष्टमी पर क्या है बासी भोजन का महत्व
शीतला माता की पूजा के दौरान बासी भोग लगाया जाता है। इसका कारण यह है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इसीलिए एक दिन पहले ही भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है और दूसरे दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर शीतला माता की पूजा करती है। इसके बाद मां को बासी भोजन यानी शीतला सप्तमी के दिन बनाए भोजन का भोग लगाया जाता है और घर के सभी सदस्य भी बासी भोजन ही खाते हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा के दिन ताजे खाने का सेवन और गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए।
शीतला अष्टमी का महत्व
माता शीतला को माँ दुर्गा के नव रूपों में से एक माना जाता है। जिस दिन उनकी आराधना की जाती है उस दिन को शीतला अष्टमी के रूप में जाना जाता है। माता शीतला को आरोग्यता प्रदान करने वाली देवी माना जाता है , बताया जाता है कि माता शीतला आपके अंदर छिपे तमाम तरह के असाध्य रोगों का नाश करती हैं और और अपने भक्तों के सारे कष्ट हरती हैं। माना जाता है जो भी भक्त शीतला माता की शीतला अष्टमी के दिन सच्चे मन से तथा पूरे विधि विधान से उनकी पूजा व उपासना करता है उसके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं उसके तथा उसके परिवार के सभी सदस्यों के रोगों का निवारण हो जाता है।
शीतला अष्टमी व्रत कथा
पैराणिक कथा के अनुसार एक दिन शीतला माता धरती पर भ्रमण करने के लिये निकली और माता ने एक बुढ़िया का रूप धारण किया और राजस्थान के डुंगरी गाँव में पहुंची. जब माता गाँव में भ्रमण कर रहीं थी तभी एक घर के सामने पहुचीं तो किसी ने ऊपर से चावल का उबलता हुआ पानी डाल दिया। इससे माता जल गयीं और उनके पूरे शरीर पर छाले पड़ गये और माता इस जलन से व्याकुल होकर गांव के लोगों से मदद मांगी. लेकिन उस गांव में किसी ने भी उनकी नहीं सुनी । तभी गांव के ही एक कुम्हार की महिला माता के पास आयी और उन्हें अपने घर ले गयी उसने अपने घर ले जाकर माता को बैठाया और उनके ऊपर ठंढा जल डाला। जिससे माता को जलन से काफी शीतलता प्रदान हुई। उसके बाद उस कुम्हारिन ने माता से कहा हे बुढ़िया माई हमारे घर रात का बना हुआ खाना रखा है क्या आप खायेंगी, माता ने कहा हां, तब उस कुम्हारिन महिला ने रात के रखे दही और ज्वार की रबड़ी खाने को दिया । इससे माता के शरीर को ठंडक प्रदान हुई। इसके बाद कुम्हारिन ने माता से कहा की लाईये हम आपके बाल सवांर देती हूं.यह कहकर वह माता के बालों को सुलझाकर उनकी चोटी बनाने लगी । तभी बालों के नीचे छिपी माता की तीसरी आँख दिखाई दे गयी .यह देखकर कुम्हारिन डर गयी और माता के बाल छोड़कर भागने लगी, तब माता ने कहा बेटी भागो मत और डरो मत मैं शीतला माता हूं और मैं धरती पर ये देखने आई थी कि मेरी असली पूजा कौन करता है। फिर शीतला माता ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिये और कुम्हारिन माँ के सामने रोने लगी और बोली माता मैं तो बहुत गरीब हूं. आपको बैठाने लायक हमारे पास साफ सुथरी जगह भी नहीं है। तब शीतला माता मुस्कुराइं और कुम्हारिन के घर में मौजूद गधेे पर जाकर बैठ गयी , और झाड़ू से कुम्हारिन के घर की सफाई की और गंदगी के रूप में दरिद्रता को एक डलिये में भरकर बाहर फेंक दिया. इसके बाद माता शीतला ने कुम्हारिन से वरदान मांगने को कहा , तब कुम्हारिन ने कहा माँ आप हमारे डुमरी गांव में निवास करें. और जो भी इंसान आपकी श्रद्धा भाव से अष्टमी की पूजा करें और व्रत रखे और आपको ठंडे भोजन का भोग लगाये आप उसकी गरीबी ऐसे ही दूर करें। और उसके बच्चों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखें। इसके बाद शीतला माता ने उस कुम्हारिन महिला को अखंड सौभाग्वती का आशीर्वाद देते हुए कहा की ऐसा ही होगा । तब से लेकर आज तक शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता का व्रत रखने और माता को ठंडा बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है।
शीतला माता की आरती
जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानी,सब फल की दाता॥
ॐ जय शीतला माता…
रतन सिंहासन शोभित,श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर डोलावें,जगमग छवि छाता॥
ॐ जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े,सेवें शिव धाता।
वेद पुराण वरणत,पार नहीं पाता॥
ॐ जय शीतला माता…
इन्द्र मृदङ्ग बजावत,चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजावै,नारद मुनि गाता॥
ॐ जय शीतला माता…
घण्टा शङ्ख शहनाई,बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरती,लखि लखि हर्षाता॥
ॐ जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी,तु ही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देती,मातु पिता भ्राता॥
ॐ जय शीतला माता…
जो जन ध्यान लगावे,प्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावे,भवनिधि तर जाता॥
ॐ जय शीतला माता…
रोगों से जो पीड़ित कोई,शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया,अन्ध नेत्र पाता॥
ॐ जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे,दारिद्र दुख कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं,सिर धुनि धुनि पछताता॥
ॐ जय शीतला माता…
शीतल करती जन की,तू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति बाला बिनाशन ,तू सब की माता॥
ॐ जय शीतला माता…
दास नारायण,कर जोरी माता।
भक्ति आपनी दीजै,और न कुछ माता॥
ॐ जय शीतला माता..