क्या अंतर है सक्रमणीय भूमिधर व असक्रमणीय भूमिधर में?

सक्रमणीय भूमिधर व असक्रमणीय भूमिधर, यह दोनो शब्द भूमि के मालिकों का भूमि पर किस प्रकार का अधिकार है?

सामान्य तौर पर जब हम किसी कृषि भूमि की खतौनी देखते हैं तो खतौनी इस बात का भी खुलासा करती है कि ज़मीन किस श्रेणी की है। किसी भी ख़रीदार या निवेशक के लिए ज़मीन की श्रेणी कि जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है।  ऐसा इसलिए क्योंकि ज़मीन की श्रेणी जाने बिना ज़मीन कि मिल्कियत के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं मिल सकती।  ये कहना अधिक सटीक होगा कि भूमि किस श्रेणी की है ये जानने के बाद ही हम इस बात से अवगत हो सकते हैं कि भूमिधर का उस ज़मीन पर किस प्रकार का अधिकार है।  वो दो प्रमुख शब्द जो ज़मीन के मालिकाना हक़ को ज़ाहिर करते हैं वो हैं: सक्रमणीय भूमिधर व असक्रमणीय भूमिधर। आसान भाषा में कहें तो यह दोनो शब्द भूमि के मालिकों का भूमि पर किस प्रकार का अधिकार है, इस बात की विवेचना या उल्लेख करते हैं।  आइये जानते है इस दोनो शब्दो में क्या अन्तर है।

 

सक्रमणीय भूमि (transferable land)

सक्रमणीय भूमि का मतलब यह होता है कि यह भूमि खरीदी व बेचे जाने योग्य है। इस तरह के मालिक को अपनी जमीन को बेचने का पूर्ण अधिकार होता है।  इस जमीन का मालिक उक्त भूमि को बेच सकता है, दान कर सकता है, बन्धक रख सकता है और इस भूमि पर कोई एग्रीमेन्ट भी कर सकता है। उत्तर प्रदेश की राजस्व सहिता 2006 में इस शब्द को धारा 88 (1) में स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार की जमीन की श्रेणी-1क के रूप में खतौनी में स्पष्ट रूप से दर्शाया जाता हैं।

सामान्य स्थिति में, सक्रमणीय भूमि के मालिक को जमीन को किसी और के नाम ट्रांसफर करने का पूर्ण अधिकार होता है। किन्तु इस पर राजस्व संहिता की कुछ शर्ते भी हैं। जैसे कि, उत्तर प्रदेश में किसी व्यक्ति के 12.5 एकड़ से अधिक भूमि नही होनी चाहिए।  इससे अधिक का किया गया क्रय स्वतः ही शून्य समझा जायेगा तथा राज्य सरकार अपने सामान्य या विशेष आदेश द्वारा 12.5 एकड़ की सीमा से अधिक जमीन का अधिग्रहण कर सकती है।  किन्तु राज्य सरकार की अनुमति लेने के बाद अर्जित की गई या खरीदी गई जमीन विधि मान्य होगी।  ऐसी अनुमति विशेष तौर पर जन-कल्याण की योजना या औद्योगिक कार्य के लिए दी जाती है।

दूसरी बेहद महत्वपूर्ण बात यह कि ट्रांसफरेबल होते हुए भी एक भारतीय अपनी कृषि भूमि किसी विदेशी मूल के व्यक्ति को नहीं बेच सकता। गैर-भारतीय लोगों को ऐसी भूमि का विक्रय शून्य यानि गैर-कानूनी ही समझा जायेगा। वही दूसरी तरह, उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के सदस्यों द्वारा ऐसी भूमि के ट्रांसफर पर प्रतिबन्ध है।

 

असक्रमणीय भूमि (non-transferable land)

समय-समय पर राज्य सरकारों द्वारा भूमिहीन किसानों और मजदूरो को जमीन पट्टे पर दी जाती है, जिससे वे अपना जीवन -पन कर सकें।  ऐसी भूमि पार्क भू-धारक को वो सारे अधिकार प्राप्त होते है जो अन्य भू स्वामियो को प्राप्त होते है।  जैसे कि आप सरकार द्वारा दी गई ज़मीन पर खेती कर सकते है। इस भूमि पर आप लोन भी ले सकते हैं तथा इस प्रकार की जमीन को उत्तराधिकारियो में बराबर बाँटा भी जा सकता है।  लेकिन ऐसे ज़मीन के ट्रान्सफर पर मनाही है।  इस प्रकार से प्राप्त जमीन के ट्रान्सफर पर सरकार द्वारा रोक होती है।

इस प्रकार से प्राप्त जमीन को दान भी नही किया जा सकता है तथा इस प्रकार की जमीन को अ-कृषक भी घोषित नही कराया जा सकता।  असक्रमणीय भूमि का गैर-कृषक उपयोग भी नही किया जा सकता है।  दूसरे शब्दों में कहें तो, सरकार द्वारा दी गई ज़मीन पर कुल मिला कर मालिकाना हक़ सरकार का ही बरक़रार रहता है।

असक्रमणी अधिकार वाले भूमिधर के हितो की सुरक्षा हेतु सरकार ने उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एव भूमि सुधार संसोधन अधिनियम 1995 द्वारा धारा 131क के बाद नई धारा 131 ख जोड़ दी गई है। 131 ख के अनुसार असक्रमणी अधिकार वाले भूमिधर भूमि प्राप्त होने के 10 वर्ष की समाप्ति के बाद सक्रमणीय अधिकार (transfer rights) प्राप्त हो जाते हैं। एक अध्यादेश द्वारा 2015 में संशोधन करके इसकी समय सीमा को 5 वर्ष तय कर दिया गया है।

 

हमारे लेख से संबंधित कोई सवाल या प्रतिक्रिया है? हम आपकी बात सुनना चाहेंगे। हमारे प्रधान संपादक झूमर घोष को jhumur.ghosh1@housing.com पर लिखें

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