भारत में पैतृक संपत्ति के बारे में जान लें ये अहम बातें

अगर आपको कोई अचल संपत्ति विरासत में मिलने वाली है तो पैतृक संपत्ति के बारे में कुछ बुनियादी बातें आपको जाननी जरूरी हैं

पैतृक संपत्ति वह संपत्ति है जो आपको आपके पुरखों से विरासत में मिलती है। लेकिन चूंकि पैतृक संपत्ति अधिकार के कानून काफी सारे और बेहद पेचीदा हैं, ऐसी संपत्ति पर अपना मालिकना हक़ पाना अक्सर टेढ़ी खीर साबित होता है। यही वजह है के भारत की कचहरियों में ज्यादातर पेंडिंग मामले ज़मीन विभाजन से ही जुड़े हुए हैं। ऐसे में हमें पैतृक संपत्ति क्या होती है और इसके बंटवारे को रेगुलेट करने वाले कानून कौन से हैं इस बारे में जानकारी होना लाज़मी है।

 

10 facts you must know about ancestral property in India

 

पैतृक संपत्ति पर कितनी पीढ़ियां दावा कर सकती हैं?

जो पैतृक संपत्ति अविभाजित रह गई है, पुरुष वंश की चार पीढ़ियां उस पर दावा कर सकती हैं. इसका मतलब है कि राम की पैतृक संपत्ति पर उसके बेटे श्याम, श्याम के बेटे घनश्याम और घनश्याम के बेटे राधे श्याम के उत्तराधिकार हैं. दूसरे शब्दों में पिता, दादा, परदादा और उनसे भी पहले के पूर्वजों के पास अविभाजित पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकार का हक होता है.

 

 

इसके अलावा, जब भी किसी को अपने पूर्वजों से तीन पीढ़ियों तक की संपत्ति विरासत में मिलती है, तो उसके नीचे तीन पीढ़ियों तक के कानूनी वारिसों को उस संपत्ति में सहदायिक के रूप में समान अधिकार मिलेगा. इसलिए जब राधे श्याम को अपने पिता से संपत्ति विरासत में मिली तो उसके बाद की तीन पीढ़ियों को उस पर उत्तराधिकार का हक मिल जाएगा.

 

गैरविभाजित संपत्ति क्या होती है?

अगर राम यह फैसला करता है कि प्रॉपर्टी को श्याम और उसके बेटों के बीच बांट दी जाए तो चेन टूट जाएगी और श्याम को विरासत में मिली संपत्ति अब पैतृक संपत्ति के रूप में नहीं बल्कि खुद कमाई हुई संपत्ति (self-Acquired property) के रूप में जानी जाएगी.

सीधे शब्दों में कहें तो किसी संपत्ति को पुश्तैनी रहने के लिए चार पीढ़ियों तक कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए. एक पैतृक संपत्ति जिसका एक विभाजन विलेख या पारिवारिक व्यवस्था के जरिए बंटवारा किया गया है, जैसे ही व्यवस्था लागू होती है, पैतृक संपत्ति खत्म हो जाती है. अन्य शब्दों में कहें तो जब हिंदू गैरविभाजित परिवार में बंटवारा होता है तो जिस परिवार के शख्स को संपत्ति मिलती है, वह खुद अर्जित की हुई बन जाती है.

उत्तम बनाम सौभाग सिंह एवं अन्य के मामले में 2 मार्च 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि संयुक्त परिवार की संपत्ति विभिन्न व्यक्तियों के हाथों में एक संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं रह जाती है, जिन्हें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 के तहत यह मिली है, क्योंकि वे संपत्ति को सामान्य किरायेदारों के रूप में रखते हैं न कि संयुक्त किरायेदारों के रूप में.

 

क्या गिफ्ट में मिली हुई संपत्तियां पैतृक संपत्ति होगी?

जो संपत्तियां गिफ्ट डीड या फिर वसीयत के जरिए मिलती हैं, उन्हें पैतृक संपत्ति नहीं कहा जाता. यह भी ध्यान दें कि गिफ्ट डीड के जरिए एक पिता अपने जीवनकाल में खुद कमाई हुई प्रॉपर्टी को किसी थर्ड पार्टी को दे सकता है. वसीयत के जरिए स्वामित्व डोनर की मृत्यु के बाद ट्रांसफर होता है.

 

पैतृक संपत्ति से बाहर क्या  होता है?

कोई भी शख्स वसीयत लिखने के लिए स्वतंत्र है और वह खुद अर्जित की गई संपत्ति से अपने बेटों या बेटियों को बाहर रख सकता है. साल 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि व्यस्क बेटे का अपने माता-पिता द्वारा कमाई हुई संपत्ति पर कोई कानूनी हक नहीं होता है.

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ”जो घर माता-पिता ने बनाया है, उसमें बेटा, चाहे वो शादीशुदा हो या फिर कुंवारा, उसका उस घर पर कोई कानूनी हक नहीं होता और वह उस घर में सिर्फ अपने माता-पिता की दया पर रहता है, जब तक वह चाहें. ”

हालांकि यह पैतृक संपत्ति के मामले में सच नहीं है. एक पिता के पास अपने बेटे को उसकी पैतृक संपत्ति के कब्जे से बाहर करने का विकल्प नहीं होता. हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर 2018 में फैसला सुनाया था कि परेशान माता-पिता अपने बच्चों को किसी भी प्रकार की संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं. हाई कोर्ट ने कहा, संपत्ति का प्रकार बच्चों और कानूनी उत्तराधिकारियों को बेदखल करने में किसी भी तरह से एक निवारक के रूप में काम नहीं करेगा, जो अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.

दिल्ली मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सीटिजन्स (संशोधन) अधिनियम 2017 के जरिए कानून में हुए संशोधन के बाद ‘खुद अर्जित की हुई’ शब्द को हटा दिया गया. अब वरिष्ठजन अपने बेटों, बेटियों और कानूनी उत्तराधिकारियों को किसी भी तरह की संपत्तियों से बेदखल कर सकते हैं चाहे वो अचल हो या फिर चल, खुद कमाई हुई हो या फिर स्वयं अर्जित, मूर्त या अमूर्त.

 

पैतृक संपत्ति में स्वामित्व अधिकार की शुरुआत

पैतृक संपत्ति के मामले में, हितधारक के अधिकार पैदा होने के साथ ही शुरू हो जाते हैं. विरासत के अन्य रूपों में, जैसे वसीयत के माध्यम से विरासत, मालिक की मृत्यु के समय अधिकार शुरू होता है. इसलिए ऊपर बताए गए उदाहरण के तहत श्याम के अधिकार पैतृक संपत्ति में उसके जन्म के साथ शुरू होंगे, तब नहीं जब उसके पिता राम की मृत्यु होगी.

 

पैतृक संपत्ति में हर पीढ़ी का हिस्सा

हर पीढ़ी का हिस्सा पहले निर्धारित किया जाता है और बाद की पीढ़ियों के हिस्से को हिस्से से आगे विभाजित किया जाता है. यहां ध्यान दें कि पैतृक संपत्ति में हर सदस्य का हिस्सा लगातार कम हो रहा है क्योंकि परिवार में नए सदस्य जुड़ते जा रहे हैं. इसका मतलब है, किसी बिंदु पर, संपत्ति में आपका हिस्सा काफी महत्वहीन हो सकता है और उसके पीछे पड़ना बेकार हो जाएगा.

 

पैतृक संपत्ति पर दावे की सीमा

पिछली पीढ़ी का पैतृक संपत्ति पर पहले से दावा होगा. इसका मतलब यह है कि अगली पीढ़ी का दावा पिछली पीढ़ी के हितधारकों के बीच संपत्ति के बंटवारे के बाद जो कुछ बचा है, उसका एक उप-विभाजन होगा. सीधे शब्दों में कहें तो, पैतृक संपत्ति में हितधारकों के अधिकार प्रति-पट्टी के आधार पर तय किए जाते हैं न कि प्रति व्यक्ति के आधार पर.

अगर राम के दो भाई हैं, उनकी पैतृक संपत्ति के पहले तीन हिस्से होंगे. तब प्रत्येक भाई के हिस्से को उनकी संतानों आदि में विभाजित किया जा सकता है.

 

पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में संशोधन से पहले महिलाओं को शादी के बाद पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं दिए जाते थे क्योंकि उन्हें सहदायिक नहीं समझा जाता था. पुराने कानूनों ने मूल रूप से महिलाओं को सहदायिकी का दर्जा देने से इनकार किया था.

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के जरिए संशोधन किया गया, जिसमें महिलाओं को सहदायिक माना गया. अब बेटों और बेटियों दोनों को परिवार में सहदायिक माना गया और उनके प्रॉपर्टी में समान अधिकार और देयता हैं. शादी के बाद भी बेटी प्रॉपर्टी में सहदायिक रहेगी. यह कहा गया कि बेटियों के पैतृक संपत्ति में बेटों की तरह समान अधिकार हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान को लागू करने के लिए बेटी और पिता दोनों का 9 सितंबर 2005 तक जीवित रहना जरूरी है. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मृत पिता की संपत्ति पर भी बेटी का अधिकार है भले ही पिता इस तारीख पर जीवित हो या नहीं. हालांकि किसी के मातृ पक्ष से अर्जित संपत्ति को पैतृक संपत्ति के रूप में नहीं माना जाता.

 

पैतृक संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले कानून

पैतृक संपत्ति हिंदू, सिख, जैन और बौद्धों में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत विभाजित की जाती है, इस संबंध में नियम ईसाइयों के मामले में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा शासित होते हैं. मुसलमानों के मामले में, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के प्रावधान लागू होते हैं.

ईसाइयों में, विरासत और उत्तराधिकार के नियम पुरुषों और महिलाओं के लिए समान होते हैं. इसके अलावा, उनकी संपत्ति को स्व-अर्जित माना जाता है, इसके अधिग्रहण के तरीके के बावजूद और किसी के जीवनकाल के दौरान, कोई और इसके लिए दावा नहीं कर सकता.

 

मुस्लिम कानूनों के तहत दो तरह के उत्तराधिकारी होते हैं- पहला

हिस्सेदार, जिनका मृतक की संपत्ति में कुछ हिस्सा होता है और दूसरा अवशिष्ट, जो उस संपत्ति में हिस्सा लेता है जो हिस्सेदारों द्वारा अपना हिस्सा लेने के बाद बची हुई है.

 

कौन पैतृक संपत्ति को बेच सकता है?

हिंदू कानून के तहत, हिंदू गैरविभाजित परिवार (एचयूएफ) के मुखिया परिवार की संपत्ति की देखरेख करते हैं. पैतृक संपत्ति को एक या आंशिक मालिकों के एकमात्र निर्णय से नहीं बेचा जा सकता है, क्योंकि ऐसी संपत्ति पर चार पीढ़ियों का दावा होता है. पैतृक संपत्ति बेचने के लिए हर हितधारक की रजामंदी की जरूरत होती है. सभी सहदायिक, जिसमें बेटियां भी शामिल होती हैं, वह बंटवारे या पैतृक संपत्ति को बेचने की मांग कर सकती हैं.

अगर किसी हितधारक को संपत्ति में अपने हिस्से से महरूम कर दिया जाता है या अगर एक सदस्य अन्य सदस्यों से परामर्श किए बिना संपत्ति बेचने का फैसला करता है, तो अपने अधिकारों की मांग करते हुए, आपत्तिजनक पक्ष को एक कानूनी नोटिस भेजा जा सकता है.

 

पूछे जाने वाले सवाल

पैतृक संपत्ति क्या होती है?

पैतृक संपत्ति वह प्रॉपर्टी या जमीन का टुकड़ा होता है, जो किसी शख्स के पूर्वजों से जुड़ा होता है.

हिंदू कानून के तहत किस प्रकार की संपत्तियां होती हैं?

हिंदू कानून के मुताबिक, प्रॉपर्टीज को दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया है: पहला पैतृक संपत्ति और दूसरा खुद अर्जित संपत्ति. किसी व्यक्ति के परदादा की खुद कमाई हुई और अविभाजित संपत्ति पैतृक संपत्ति बन जाती है.

क्या पैतृक संपत्ति में बेटियां बंटवारे की मांग कर सकती हैं?

सभी सहदायिक, जिसमें बेटियां भी शामिल होती हैं वह पैतृक संपत्ति में बंटवारे की मांग कर सकते हैं.

 

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