समाज में उत्पादों और सेवाओं की मार्केटिंग, बिक्री और डिलीवरी के तरीके में भारी बदलाव के बीच, जो कि काफी हद्द तक टेक्नोलोगी पर निर्भर करता है, भारत ने 2019 में अपने तीन दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण कानून को निरस्त करके एक एडवांस उपभोक्ता संरक्षण कानून लॉन्च किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की शुरुआत के साथ ही पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को निरस्त कर दिया गया है।
पिछले कानून के कुछ प्रावधानों को बरकरार रखते हुए, 2019 अधिनियम में कुछ नए प्रावधान पेश किए गए है जो उपभोक्ताओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के लिए मौजूदा नियमों को और कड़ा करते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत नए प्रावधानों में शामिल हैं:
*ई-कॉमर्स, डायरेक्ट सेलिंग को शामिल करना
*केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की स्थापना
*भ्रामक विज्ञापन के लिए सख्त मानदंड
*उत्पाद दायित्व के लिए सख्त मानदंड
*आर्थिक क्षेत्राधिकार में बदलाव
*विवाद समाधान में अधिक आसानी
*अनुचित व्यापार व्यवहार की धारा का विस्तार
*अनुचित अनुबंध ( अनफेयर कॉन्ट्रैक्ट )
*मध्यस्थता के माध्यम से वैकल्पिक विवाद समाधान
इस लेख में समझाया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधान कौन-कौन से हैं और कानून कैसे प्रमुख बाजार ताकतों के खिलाफ ग्राहकों के हितों की रक्षा करता है, जिसमें होमबॉयर्स भी शामिल हैं।
उपभोक्ता कौन है?
2019 अधिनियम की धारा 2(7) बताती है कि कानून की नजर में उपभोक्ता कौन है।
“उपभोक्ता एक ऐसा व्यक्ति है जो किसी भी सामान या सेवाओं को खरीदता है, जिसका भुगतान किया गया है या वादा किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान किया गया है और आंशिक रूप से वादा किया गया है, या आस्थगित भुगतान की किसी भी प्रणाली के तहत ऐसे सामान या सेवाओं के लाभार्थी के अनुमोदन के साथ उपयोगकर्ता भी शामिल है। अधिनियम के तहत, अभिव्यक्ति “कोई भी सामान खरीदता है” और “किसी भी सेवा को किराए पर लेता है या प्राप्त करता है” में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या टेलीशॉपिंग या डायरेक्ट सेलिंग या मल्टी-लेवल मार्केटिंग के माध्यम से ऑफ़लाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल हैं।
अधिनियम में उन लोगों के बारे में भी बताया गया है जो उपभोक्ता होने के योग्य नहीं हैं। इसमें शामिल है:
*जो लोग मुफ्त में सामान प्राप्त करते हैं
*जो लोग मुफ्त में सेवाओं का लाभ उठाते हैं
*जो लोग पुनर्विक्रय या किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए माल प्राप्त करते हैं
*वे लोग जो किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए सेवाओं का लाभ उठाते हैं
*सेवा के अनुबंध ( कॉन्ट्रैक्ट ) के तहत सेवाओं का लाभ उठाने वाले लोग
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत गारंटीकृत उपभोक्ता अधिकार क्या हैं ?
अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं के पास निम्नलिखित छह उपभोक्ता अधिकार हैं:
- सुरक्षा का अधिकार
- सूचना का अधिकार
- चुनने का अधिकार
- सुनवाई का अधिकार
- निवारण मांगने का अधिकार
- उपभोक्ता जागरूकता का अधिकार
उपभोक्ता विवाद निवारण एजेंसियां कौन-कौन सी हैं ?
2019 के कानून के तहत उपभोक्ताओं की मदद करने के लिए एक त्रिस्तरीय प्रणाली है:
*जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग या DCDRCs (जिला आयोग)
*राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग या SCDRCs (राज्य आयोग)
*राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग या NCDRC (राष्ट्रीय आयोग)
अनुचित अनुबंध क्या है?
2019 अधिनियम ने अनुचित अनुबंध की अवधारणा को भी पेश किया गया है और इसे धारा 2(46) में परिभाषित किया गया है। एक अनुचित अनुबंध वह है जिसकी शर्तें अधिनियम के तहत उपभोक्ता अधिकारों में महत्वपूर्ण बदलाव लाती हैं। इन शर्तों में शामिल हैं:
*अनुबंध के तहत दायित्वों के प्रदर्शन को सुविधाजनक बनाने के लिए उपभोक्ता द्वारा अत्यधिक सिक्योरिटी डिपाजिट की मांग
*उपभोक्ता पर अनुबंध के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाना जो इस तरह के उल्लंघन के कारण हुए नुकसान की तुलना में कम है
*लागू जुर्माने के साथ जल्दी ऋण चुकौती स्वीकार करने की अनिच्छा
*किसी एक पक्ष को बिना किसी उचित कारण के या एकतरफा अनुबंध समाप्त करने की अनुमति देना
*उपभोक्ता की सहमति के बिना किसी पक्ष को उपभोक्ता के नुकसान के लिए अनुबंध सौंपने का अधिकार
*उपभोक्ता पर अनुचित पाबंदी, दायित्व या जुर्माना लगाना जो उसे नुकसानदेह स्थिति में डाल दे
आयोगों का आर्थिक और क्षेत्रीय क्षेत्राधिका
2019 अधिनियम के तहत, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (CDRC) स्थापित किए जाएंगे, जहां उपभोक्ता किसी भी गलत काम के खिलाफ राहत की मांग कर सकते हैं।
चूंकि त्रि-स्तरीय प्रणाली है, इसलिए कानून ने आयोगों के अधिकार क्षेत्र को विभाजित करने के लिए एक आर्थिक तंत्र की स्थापना की।
जिला स्तर के आयोगों में, एक उपभोक्ता 1 करोड़ रुपये तक की मूल्य की शिकायत दर्ज करा सकता है।
राज्य स्तर के आयोगों में, एक उपभोक्ता 1 करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये के बीच तक की मूल्य शिकायत दर्ज करा सकता है।
राष्ट्र-स्तरीय आयोग में, एक उपभोक्ता 10 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की शिकायत दर्ज करा सकता है।
ध्यान रहे कि एक अनुचित अनुबंध के खिलाफ शिकायतें केवल राज्य और राष्ट्रीय आयोगों में दर्ज कराई जा सकती हैं।
यह भी ध्यान रहे कि जिला CDRC की अपीलों को राज्य CDRC द्वारा सुना जाएगा जबकि राज्य CDRC की अपीलों को राष्ट्रीय CDRC द्वारा सुना जाएगा। अंतिम अपील सुप्रीम कोर्ट (SC) के समक्ष होगी।
साथ ही ये भी ध्यान रहे, 2019 अधिनियम उपभोक्ता को शिकायत दर्ज कराने की स्वतंत्रता देता है। उपभोक्ता जहाँ रहता है या जहाँ काम करता है वहीँ शिकायत दर्ज करा सकता है। जबकि पहले के कानून में उपभोक्ताओं को शिकायत दर्ज कराने की अनुमति दी थी जहां विरोधी पक्ष अपना व्यवसाय करता था या रहता था।
शिकायत दर्ज कराने की समय सीमा क्या है?
कानून के तहत, कार्रवाई का कारण उत्पन्न होने की तारीख से दो साल के भीतर शिकायत दर्ज करानी होती है। इसका मतलब उस दिन से दो साल होगा जब सेवा में कमी या माल में खराबी उत्पन्न हुई है या पता चला है। इसे शिकायत दर्ज कराने की सीमा अवधि के रूप में भी जाना जाता है।
क्या किसी उपभोक्ता को आयोग में अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वकील की आवश्यकता है?
चूंकि उपभोक्ता आयोग अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जिन्हें फौरी तौर पर राहत प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है, उपभोक्ता को वकील को शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। वह स्वयं शिकायत दर्ज कराने और सुनवाई के दौरान अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालाँकि, एक उपभोक्ता यदि चाहे तो कानूनी सलाहकार की सेवाएं लेने के लिए स्वतंत्र है।
उपभोक्ता न्यायालय ( कंज्यूमर कोर्ट ) में शिकायत कैसे दर्ज कराएं?
एक उपभोक्ता को अपनी शिकायत लिखित रूप में ऑफलाइन या ऑनलाइन मोड में दर्ज करानी होती है। शिकायत ऑनलाइन दर्ज करने के लिए, उपभोक्ता https://edaakhil.nic.in/index.htmlपर जा सकते हैं। शिकायतकर्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से या उसके एजेंट द्वारा भी शिकायत प्रस्तुत की जा सकती है। इसे कोर्ट फीस के साथ रजिस्टर्ड डाक से भी भेजा जा सकता है। आम तौर पर, शिकायत की तीन कापियां जमा करने की आवश्यकता होती है।
उपभोक्ता को अपनी शिकायत में क्या विवरण देना होता है?
अपनी शिकायत में, एक उपभोक्ता को बताना होगा:
*उनका नाम, विवरण और पता
*जिस पक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा रही है उसका नाम, विवरण और पता
*शिकायत से संबंधित समय, स्थान और अन्य तथ्य
*आरोपों को साबित करने के लिए सम्बंधित दस्तावेज
यदि उपभोक्ता उपभोक्ता आयोग के आदेश से संतुष्ट नहीं है तो क्या होगा?
उपभोक्ता, जो आयोग के आदेश से संतुष्ट नहीं हैं, आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर उच्च आयोग में इसके आदेश के खिलाफ अपील कर सकता हैं। अपैक्स कंस्यूमर कोर्ट के फैसले से नाखुश उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग के आदेश के 45 दिनों के भीतर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता हैं।
उपभोक्ता को शिकायत दर्ज कराने के लिए कितना भुगतान करना होगा ?
उपभोक्ताओं को शिकायत आगे बढ़ने के लिए न्यूनतम शुल्क देना होगा। ये शुल्क शिकायत की रकम पर निर्भर करता हैं।
उत्पाद सेवाओं का कमीशन/मूल्य | फीस |
जिला आयोग | |
5 लाख रुपये तक | कुछ नहीं |
5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक | Rs 200 |
10 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक | Rs 400 |
20 लाख रुपये से 50 लाख रुपये तक | Rs 1,000 |
50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक | Rs 2,000 |
राज्य आयोग | |
1 करोड़ रुपये से 2 करोड़ रुपये तक | Rs 2,500 |
2 करोड़ रुपये से 4 करोड़ रुपये तक | Rs 3,000 |
4 करोड़ रुपये से 6 करोड़ रुपये तक | Rs 4,000 |
6 करोड़ रुपये से 8 करोड़ रुपये तक | Rs 5,000 |
8 करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये तक | Rs 6,000 |
राष्ट्रीय आयोग | |
10 करोड़ रुपये से अधिक | Rs 7,500 |
शुल्क का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट के रूप में या राज्य आयोग के रजिस्ट्रार के पक्ष में तैयार किए गए एक क्रॉस पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से करना होगा।
यदि दोनों पक्ष उपभोक्ता फोरम की सहायता से मध्यस्थता के माध्यम से विवाद को निपटाने का निर्णय लेते हैं, तो उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
उपभोक्ता अधिनियम के तहत भ्रामक विज्ञापनों के लिए क्या दंड है?
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA), जिसे उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षित करने और लागू करने के लिए अधिनियम के तहत शीर्ष निकाय के रूप में स्थापित किया गया है, जो एक निर्माता या एक समर्थनकर्ता पर झूठे या भ्रामक विज्ञापन के आरोप में10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है और दो साल के लिए जेल में भी डाल सकता है। इसके बाद के अपराधों के मामले में जुर्माना 50 लाख रुपये तक भी पहुँच सकता है और पांच साल तक की कैद हो सकती है।
कंज्यूमर कोर्ट और होम बायर्स
कंज्यूमर कोर्ट या रेरा (RERA)
रियल एस्टेट (विनियमन और विकास), अधिनियम, 2016 के तहत राज्य रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरणों की स्थापना के साथ, घर खरीदारों के पास अब किसी भी मुद्दे के मामले में संपर्क करने के लिए एक मंच है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि होमबॉयर्स राहत के लिए उपभोक्ता अदालतों का रुख नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि 2019 के कानून में बनानेवले ( डेवेलपर ) को “उत्पाद विक्रेताओं” की परिभाषा के तहत शामिल किया गया था, जिन्हें चूक पर उपभोक्ता अदालतों में ले जाया जा सकता था। एक उत्पाद विक्रेता में वह व्यक्ति शामिल होता है जो निर्मित घरों की बिक्री या घरों या फ्लैटों के निर्माण में लगा होता है।
2020 में, SC ने दिल्ली स्थित इम्पीरिया स्ट्रक्चर्स के खिलाफ शिकायतों के एक समूह की सुनवाई करते हुए इसे दोहराया।
“इस तरह घोषित कानून के बल पर, रेरा अधिनियम की धारा 79 किसी भी तरह से (उपभोक्ता) आयोग या फोरम को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत किसी भी शिकायत पर विचार करने से नहीं रोकती है। संसदीय मंशा स्पष्ट है कि आवंटी को एक विकल्प या मौका दिया जाता है कि वह CP अधिनियम के तहत उचित कार्यवाही शुरू करना चाहता है या रेरा अधिनियम के तहत एक आवेदन दायर करना चाहता है, ” कहना है SC का।
इसमें यह भी कहा गया है कि रेरा ने वैधानिक रूप से किसी व्यक्ति को ऐसी किसी भी शिकायत को वापस लेने के लिए मजबूर नहीं किया और न ही रेरा अधिनियम के प्रावधानों ने ऐसी लंबित कार्यवाही को रेरा अधिनियम के तहत अधिकारियों को हस्तांतरित करने के लिए कोई तंत्र बनाया।
हालांकि, होमबॉयर्स को ध्यान देना चाहिए कि रियल एस्टेट कानून की धारा 79 में यह प्रावधान है कि सिविल कोर्ट के पास उन मामलों पर अधिकार क्षेत्र नहीं है जो रेरा के तहत तय किए जाने हैं। इसका मतलब है कि एक होमबॉयर उपभोक्ता अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन वे बिल्डर के खिलाफ सिविल मुकदमा दायर कर सकते हैं।
यह भी देखें: RERA या NCDRC: घर खरीदारों की बेहतर सुरक्षा कौन कर सकता है?
होम बायर्स और NCLT
यह हमें इस सवाल पर भी लाता है कि क्या घर खरीदार किसी बिल्डर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने के लिए न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकता हैं? इसका उत्तर यह है कि यदि वे कुछ शर्तों को पूरा करता हैं तो वो कर सकता हैं।
यह अगस्त 2019 में शीर्ष अदालत द्वारा दिवाला और दिवालियापन संहिता में किए गए संशोधन को बरकरार रखने के बाद संभव हुआ, जो खरीदारों को वित्तीय लेनदार का दर्जा देता है। हालाँकि, जनवरी 2021 में पारित एक अन्य आदेश में, SC ने यह भी कहा है कि एक आवास परियोजना में कुल खरीदारों में से कम से कम 10 प्रतिशत को दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2020 के तहत एक डिफ़ॉल्ट डेवलपर के खिलाफ दिवालिया होने पर कार्यवाही शुरू करने की आवश्यकता है। संशोधनों में अनिवार्य किया गया था कि कम से कम 100 होम बॉयर्स को एक डिफॉल्ट डेवलपर के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में दिवाला आवेदन दाखिल करने के लिए एक साथ आना होगा।
“अगर एक अकेला आवंटी को, एक वित्तीय लेनदार के रूप में, एक आवेदन को स्थानांतरित करने की अनुमति दी जाती है, तो अन्य सभी आवंटियों के हितों को खतरा हो सकता है। उनमें से कुछ रेरा के तहत प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं। अन्य, इसके बजाय, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मंचों का सहारा ले सकते हैं, हालांकि, एक सिविल मुकदमे का उपाय तो मौजूद है, इसमें कोई संदेह भी नहीं है, और इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है, ”SC ने 465-पृष्ठ के आदेश में दिवालिया कोड में संशोधनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा।
यह भी देखें: उपभोक्ता न्यायालय, RERA या NCLT: क्या कोई घर खरीदार इन सभी मंचों पर एक साथ संपर्क कर सकता है?
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 कब लागू हुआ था?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 को 9 अगस्त, 2019 को अधिसूचित किया गया था। हालाँकि, यह 20 जुलाई, 2020 से लागू हुआ था।
क्या मध्यस्थता के माध्यम से किसी उपभोक्ता की शिकायत का समाधान किया जा सकता है?
पक्षकार शिकायत के किसी भी स्तर पर मध्यस्थता के माध्यम से समाधान का विकल्प चुन सकते हैं।
क्या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सामान खरीदने या सेवाओं को किराए पर लेने वाला व्यक्ति उपभोक्ता अदालतों में शिकायत कर सकता है?
व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सामान खरीदने या सेवाओं को किराए पर लेने वाले लोग उपभोक्ता अदालतों में शिकायत नहीं कर सकते।