जानिए क्या होता है एक्ट ऑफ़ गॉड और भारतीय रियल एस्टेल में यह कैसे काम करता है?

आज हम आपको बताएंगे कि अप्रत्याशित खंड, जिसे आम भाषा में दैवीय घटना भी कहा जाता है, वो रियल एस्टेट के कॉन्ट्रैक्ट में कैसे काम करता है.

भारतीय रियल एस्टेट डेवेलपर्स को उस वक्त थोड़ी राहत महसूस हुई, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 13 मई 2020 को 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के बारे में देश को जानकारी दी. इसमें वित्त मंत्री ने डेवेलपर्स को इजाजत दी कि वे दैवीय आपदा खंड को प्रोजेक्ट डिलिवरी में देरी का कानूनी कारण बता सकते हैं. इसका मतलब है कि राज्यों के रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी के पास प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन के समय तय की गई डेडलाइन को पूरा न कर पाने को लेकर पूरे प्रोजेक्ट का 10 प्रतिशत जुर्माने के तौर पर अब डेवेलपर्स को नहीं चुकाना होगा.

सीतारमण ने कहा कि सरकार राज्यों के रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटीज को यह निर्देश देगी कि भारत में कोविड-19 महामारी की पूरी अवधि को अप्रत्याशित घटना (Force majeure) माना जाएगा. यह एक फ्रेंच शब्द है, जिसका मतलब होता है श्रेष्ठ या अकाट्य बल. यानी जिस पर इंसान का बस नहीं. इसे हिंदी में दैवीय आपदा कहा जाता है.

इससे पहले कि हम यह बताएं कि सरकार के कदम का घर ग्राहकों पर और हाउसिंग सेक्टर पर क्या असर पड़ेगा, आइए आपको बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट में कैसे दैवीय आपदा का खंड काम करता है.

क्या होता है एक्ट ऑफ़ गॉड का मतलब?

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने Force Mejeure को ‘अप्रत्याशित घटना बताया है, जैसे युद्ध, जिसे एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है कि जो कॉन्ट्रैक्ट में लिखा था, वह युद्ध के कारण उसे पूरा नहीं कर पाया’.

ब्लैक लॉ डिक्शनरी के मुताबिक Force Majeure का मतलब है कि ऐसी घटना, जो न तो अपेक्षित है और न ही किसी के नियंत्रण में है.

यह कहता है, ‘ऐसे क्लॉज कंस्ट्रक्शन से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट्स में आम होते हैं, ताकि पार्टीज को उन स्थितियों में बचाया जा सके, जो कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा तो हैं, लेकिन किए नहीं जा सकते. इसमें वो खंड होते हैं, वो पार्टियों के नियंत्रण से बाहर हैं और काफी देखभाल के बाद भी टाले नहीं जा सकते.’

क्या है दैवीय आपदा? Force Majeure एक फ्रेंच शब्द है, जिसका मतलब है अत्यधिक बल. यह दैवीय आपदा के सिद्धांत से जुड़ा है, जिसके लिए किसी भी पक्ष को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता. उदाहरण के तौर पर भूकंप या सुनामी. Force Majeure के तहत युद्ध, सैन्य झड़प, आतंकी हमला, मजदूरों की हड़ताल और लॉकआउट्स इत्यादि शामिल होते हैं.

कानूनी जानकारों का मानना है कि दैवीय आपदा के तहत दोनों आते हैं- असाधारण स्थितियां भी और प्राकृतिक आपदा भी. इससे अग्रीमेंट में शामिल पक्षों को अग्रीमेंट में शामिल खंडों से छूट मिल जाती है क्योंकि ये चीजें उनके नियंत्रण के बाहर हैं.

लेकिन दैवीय आपदा की स्थिति ठहाराए जाने के लिए भी कई शर्तों को पूरा करना जरूरी है, जिसमें बाहरीपन, अप्रत्याशितता और घटना की अप्रतिरोध्यता शामिल है.

भारतीय कानूनी व्यवस्था में दैवीय आपदा: भले ही दैवीय आपदा को भारतीय कानून में न तो परिभाषित किया गया है और न ही निपटा गया है, लेकिन अनिश्चितकालीन भविष्य की घटना की अवधारणा को इंडियन कॉन्ट्रैक्ट्स एक्ट, 1872 के सेक्शन 32 के तहत मान्यता दी गई है, जिसमें एक घटना पर आकस्मिक अनुबंध के प्रवर्तन के बारे में बताया गया है.’ इसके अलावा कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के सेक्शन 56 के तहत निराशा के सिद्धांत में भी इसका जिक्र है.

सेक्शन 32 के मुताबिक, ‘जब तक कि घटना न हुई हो, अनिश्चित भविष्य की घटना होने पर कुछ भी करने या न करने के लिए आकस्मिक अनुबंध, कानून के जरिए लागू नहीं किया जा सकता. दूसरी ओर सेक्शन 56, जो निराशा के सिद्धांत पर काम करता है, में कहा गया है कि अगर मूलभूल मकसद ही खत्म हो गया तो कॉन्ट्रैक्ट अमान्य ठहरा दिया जाए.

कॉरपोरेट लॉ के जानकार और गुड़गांव के वकील ब्रजेश मिश्रा ने कहा, ‘ भारतीय कानूनी प्रणाली में इस क्लॉज का कोई खास जिक्र नहीं है. पक्षों को खास तौर पर अपने कॉन्ट्रैक्ट्स में दैवीय आपदा का जिक्र करना पड़ता है, ताकि कारण तय किए जा सकें कि काम पूरा क्यों नहीं हो पाया.

ध्यान देने वाली बात यह है कि कॉन्ट्रैक्ट एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी पार्टी को दैवीय आपदा के कारण कॉन्ट्रैक्ट करने से वंचित करता हो. इसका मतलब है कि कॉन्ट्रैक्ट में शामिल पार्टियां भुगतान नहीं करने को लेकर अप्रत्याशित स्थितियों का हवाला नहीं दे सकतीं, यह देयता दैवीय आपदा के बावजूद रहेगी.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील अवनीश कुमार ने कहा, ‘दैवीय आपदा के आधार पर किसी भी पार्टी को पूरी तरह से अपने कॉन्ट्रैक्ट के दायित्वों को पूरा करने से छुटकारा नहीं दिया जा सकता. कार्य को एक निश्चित अवधि तक ही स्थगित करने के लिए इस प्रावधान को लाया जा सकता है.’

भोपाल गैस त्रासदी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अप्रत्याशित घटना को किसी के दायित्व का सम्मान नहीं करने के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. दैवीय आपदा को केवल बचाव पक्ष के रूप में निवेदन किया जा सकता है और ऐसा करने वाली पार्टी को यह साबित करना होगा कि उसने सावधानी के साथ ऐसा किया.

एक्ट ऑफ़ गॉड के उदाहरण:

नोएडा में एक बिल्डर ने साल 2017 में यूपी रेरा में नए आवासीय प्रोजेक्ट को रजिस्टर कराया, जिसमें उसने प्रोजेक्ट पूरे होने की डेडलाइन 31 मई 2022 रखी. कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण बिल्डर 6 महीने तक प्रोजेक्ट का काम नहीं कर पाया. इस मामले में रियल एस्टेट कानून में दैवीय आपदा के खंड का जिक्र करते हुए बिल्डर को RERA के नियमों के तहत देरी होने के कारण जुर्माना भरने से एक साल तक के लिए छूट मिल सकती है. इसका मतलब है कि अगर बिल्डर 31 मई 2023 तक भी प्रोजेक्ट डिलिवर कर देता है तो कोई जुर्माना नहीं लगेगा.

निराशा के सिद्धांत का उदाहरण: एक एंटरटेनमेंट एजेंसी ने चंडीगढ़ के एक प्रोजेक्ट में रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशन से 14 अप्रैल 2020 को शो करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया. कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण आरडब्ल्यूए शो की मेजबानी नहीं कर पाया और एजेंसी शो नहीं कर पाई. यहां कॉन्ट्रैक्ट को हराने के रूप में कॉन्ट्रैक्ट की निराशा को लागू किया जा सकता है.

RERA में एक्ट ऑफ़ गॉड :

रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवेलपमेंट) एक्ट (RERA) के तहत सभी बिल्डर्स के लए अपने नए प्रोजेक्ट्स को संबंधित राज्य प्रशासन के पास पंजीकृत कराना अनिवार्य है. इसमें उन्हें एक अवधि बतानी होगी, जिसके भीतर प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा.

रेरा के सेक्शन 3 के मुताबिक, ‘कोई भी प्रोमोटर रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को रजिस्टर कराए बिना प्रोजेक्ट की मार्केटिंग, बुकिंग, बिक्री, विज्ञापन, खरीद के लिए लोगों को न्योता नहीं दे सकता.’

अगर कोई बिल्डर तय वक्त पर प्रोजेक्ट डिलिवर नहीं कर पाता तो उसे पूरे प्रोजेक्ट की लागत का 10 प्रतिशत बतौर जुर्माना देने को कहा जाएगा.

हालांकि अगर प्रत्याशित स्थितियां पैदा हो जाती हैं तो कानून बिल्डर्स की मदद भी करता है. कॉन्ट्रैक्ट्स एक्ट के विपरीत, जो सिर्फ दैवीय आपदा का केवल सांकेतिक रूप से जिक्र करता है, रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवेलपमेंट) एक्ट 2016 में प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन के संबंध में क्लॉज को पहचानना और परिभाषित करना शामिल है.

RERA के चैप्टर-II के सेक्शन 6 के मुताबिक, ‘रजिस्ट्रेशन की इजाजत (रियल एस्टेट प्रोजेक्ट) का विस्तार (रियल एस्टेट रेग्युलेटरी) प्रशासन दैवीय आपदा के कारण प्रोमोटर की एप्लिकेशन पर ऐसी फीस के भुगतान पर नियामकों के तहत कर सकता है.’

इसमें कहा गया कि उचित परिस्थितियों में, जिसमें प्रोमोटर की गलती नहीं है, उसके हर कारणों को लिखित में रिकॉर्ड करते हुए प्रशासन प्रोजेक्ट के रजिस्ट्रेशन को जरूरी वक्त के लिए विस्तार दे सकता है. विस्तार एक साल की अवधि से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

शर्तों को परिभाषित करते हुए RERA में कहा गया कि दैवीय आपदा का मतलब युद्ध, बाढ़, सूखा, आग, चक्रवात, भूकंप या कोई और प्राकृतिक आपदा है, जिसके कारण रियल एस्टेट प्रोजेक्ट का नियमित काम प्रभावित होता है.

हालांकि महामारी शब्द परिभाषा से गायब है, लेकिन कोई भी प्राकृतिक आपदा, जिससे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट का नियमित विकास प्रभावित होता है, ये वाक्य अपने आप महामारी को शामिल समझने के लिए काफी है. दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रांजल किशोर ने कहा, ”सरकार की छह महीने के लिए परियोजना पंजीकरण की समय सीमा का विस्तार करने की घोषणा सिर्फ एक कैलकुलेशन है. बिल्डर समुदाय को बाध्य किया गया और वे कोरोना वायरस अवधि को दैवीय आपदा के रूप में बताना उनका कानूनी अधिकार था क्योंकि यह रेरा कानून में लिखा है.” वरना दैवीय आपदा का खंड सभी बिल्डर-खरीदारों के अग्रीमेंट में बेबदलता से डाला गया है.

कैसे एक्ट ऑफ़ गॉड का खंड घर ग्राहकों पर असर डालता है?

दैवीय आपदा के खंड के कारण कई प्रोजेक्ट्स में बड़े स्तर पर देरी होती है. इससे भी बुरी बात यह है कि कम-प्रभावित आवास बाजारों में बिल्डर्स बिना कोई जुर्माना दिए बच जाते हैं क्योंकि केंद्र ने उन्हें राहत दी है. किशोर कहते हैं, ‘यह राहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (MMR) में देने का तर्क समझ में आता है क्योंकि ये शहर महामारी की चपेट में हैं, जिसकी वजह से कंस्ट्रक्शन से जुड़ी गतिविधियां थम सी गई हैं. जब लॉकडाउन खत्म होगा और निर्माण गतिविधियां शुरू होंगी तो बड़े स्तर पर पलायन कर चुके प्रवासी मजदूरों के कारण काम की गति भी प्रभावित होगी. किशोर ने कहा, पूरे देश में डेवेलपर्स को राहत देना एक अच्छा आइडिया नहीं है क्योंकि निर्माण गतिविधियां चालू हैं और ये इलाके ग्रीन जोन में हैं.

RICS साउथ एशिया के एमडी निमिश गुप्ता ने कहा, ‘फिलहाल, इंडस्ट्री के लिए सबसे अहम है सप्लाई चेन की जरूरत ताकि सामान की डिलिवरी को चालू किया जा सके और कंस्ट्रक्शन साइट पर बिजनेस फिर से तुरंत शुरू हो जाए. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती काम शुरू होने के बाद मजदूरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है. प्रवासी मजदूरों का पलायन कंस्ट्रक्शन फिर से शुरू होने में सबसे बड़ी चिंता है.’

प्रॉपटाइगर डेटालैब्स के 31 मार्च 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की 9 प्राइम रिहायशी बाजारों में करीब 16 लाख हाउसिंग यूनिट्स निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं. इनमें से करीब 37 प्रतिशत MMR बाजार में केंद्रित हैं, जबकि एनसीआर मार्केट में स्टॉक 19 प्रतिशत है.

गुप्ता ने कहा, सरकार ने जो ऐलान किए हैं, उन्हें लागू होने में कुछ समय लग सकता है और हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में भी देरी हो सकती है. लेकिन संचयी प्रभाव यही है कि प्रोजेक्ट्स में देरी 3-6 महीने की होगी.

FAQs

क्या है एक्ट ऑफ गॉड?

एक्ट ऑफ गॉड वो स्थितियां हैं, जिसमें किसी पक्ष का जोर नहीं चलता. इसमें एक या दोनों ही पार्टियों को कॉन्ट्रैक्ट में लिखी बातों को निभाने से राहत देता है.

क्या है Doctrine of Frustration?

इस नियम के तहत, वो स्थिति जो कॉन्ट्रैक्ट के काम को पूरा करने से रोकती है और आखिर में वह निराशा या कॉन्ट्रैक्ट के अंत पर खत्म होती है.

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