जो प्रॉपर्टीज निर्माणाधीन चरण में हैं, उन्हीं पर सर्विस टैक्स और वैट लगाया जा सकता है। इसलिए दोनों ही टैक्स उन प्रॉपर्टीज पर नहीं लगाए जा सकते, जिन्हें बिल्डर द्वारा कंप्लीशन सर्टिफिकेट लिए जाने के बाद खरीदा गया है। इसी तरह उन संपत्तियों पर भी कोई वैट या सर्विस टैक्स नहीं लगाया जाएगा, जिन्हें रीसेल के तहत खरीदा गया है।
प्रॉपर्टी पर सर्विस टैक्स और वैट की प्रजोज्यता:
निर्माणाधीन संपत्तियों को उनके कॉस्ट कंपोनेंट के साथ तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला हिस्सा है जमीन की लागत, जिस पर कोई VAT या सर्विस टैक्स अप्लाई नहीं होता। दूसरा है मटीरियल की लागत। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक रहेजा डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में इसे वर्क कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा माना गया और लिहाजा वैट चुकाया गया। तीसरा हिस्सा था निर्माण की लागत, जिसमें बड़े स्तर पर मजदूरों की दिहाड़ी शामिल है। इसे खरीददार को बिल्डर द्वारा मुहैया कराई गई सर्विस के तौर पर माना जाएगा। इसलिए इस पर सर्विस टैक्स लगाया जा सकता है।
गणना का आधार:
चूंकि समझौते में लिखी पूरी कीमत को वर्क कॉन्ट्रैक्ट या बिल्डर द्वारा मुहैया कराई गई सर्विस के तौर पर नहीं माना जा सकता, इसलिए समझौते की पूरी कीमत पर वैट या सर्विस टैक्स नहीं लगाया जा सकता। अगर मटीरियल और लेबर के लिए अलग-अलग रिकॉर्ड्स रखे गए हैं तो लागू दरों पर टैक्स चुकाया जा सकता है। लेकिन अलग-अलग रिकॉर्ड्स रखना संभव नहीं है तो इन टैक्स की कैलकुलेशन के लिए नियम एक तर्कसंगत आधार मुहैया कराते हैं।
कानून आपको अग्रीमेंट की कीमत का 30 प्रतिशत बतौर सर्विस कंपोनेंट चुनने और उस हिस्से पर सर्विस टैक्स चुकाने की इजाजत देता है। लिहाजा सर्विस टैक्स की लेवी प्रभावी रूप से कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू के 4.50% (15% का 30 प्रतिशत) पर आ जाएगी। निर्माण की लागत के अतिरिक्त सर्विस टैक्स भी अन्य सुविधाओं पर लागू होगा। इनमें गैरेज का प्रावधान, हाई प्लोर्स का प्रीमियम इत्यादि शामिल है।
चूंकि वैट राज्य का विषय है, इसलिए वैट लगाने के लिेए हर राज्य का अपना कानून है। अग्रीमेंट की राशि में मटीरियल की असल कीमत का पता लगाने की मुश्किलों से बचने के लिए महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने कंपोजिशन स्कीम के तहत समझौते की पूरी कीमत पर वैट चुकाने के लिए मुहैया कराई है। इस कंपोजिशन स्कीम में महाराष्ट्र में कुछ अग्रीमेंट की कीमत का 1 प्रतिशत वैट लगाया जाएगा।
इन टैक्स को कौन चुकाएगा?
यह बिल्डर की जिम्मेदारी है कि वह सरकार को वैट और सर्विस टैक्स चुकाए, लेकिन वह इसे ग्राहकों से लेता है। यह निर्भर करता है कि बिल्डर और ग्राहकों के बीच क्या समझौता हुआ है। अगर आप वैट और सर्विस टैक्स नहीं चुकाना चाहते तो ध्यान रहे कि यह अग्रीमेंट में भी लिखा होना चाहिए।
छूट:
सर्विस टैक्स एक रिहायशी यूनिट जैसे मकान, विला या बंगले के निर्माण पर अप्लाई नहीं होता। इसके अलावा किफायती आवास श्रेणी में भी सर्विस टैक्स नहीं लगाया जाता। किसी हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में एेसे घर, जिनका कार्पेट एरिया 60 स्क्वेयर मीटर है, उनमें भी सर्विस टैक्स लागू नहीं होगा। चूंकि वैट राज्य के कानूनों पर निर्भर करता है, लिहाजा इसे लगाने या छूट देने का फैसला राज्यों पर निर्भर करता है।
दिल्ली हाई कोर्ट के जजमेंट का प्रभाव:
3 जून 2016 को दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसले में कहा था कि कानून में कुछ तकनीकी खामियों को ध्यान में रखते हुए कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्ट्स पर सर्विस टैक्स की लेवी, जहां भूमि भी हस्तांतरित की जा रही है, वैध नहीं है। इस मामले पर सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है, साथ ही साथ विधायी खामियों को भी सही किया जा सकता है, ताकि सर्विस टैक्स लेवी बरकरार रहे। फिलहाल जिस कानून की दिल्ली हाई कोर्ट ने घोषणा की है, उसके मुताबिक बिल्डर भूमि के हस्तांतरण के साथ अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टीज पर सर्विस टैक्स लेवी नहीं लगा सकते।