महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में बिक्री, गिफ्ट और ट्रांसफर के लिए स्टैंप ड्यूटी अंतर को 1% बढ़ा दिया है और स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क में और बढ़ोतरी की संभावना है.
हालांकि, एक अनिश्चितता जो फ्लैट मालिकों और खरीदारों को परेशान करती है, वो ये कि कॉपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (सोसाइटी) द्वारा बिल्डिंग के फ्लैट्स में अधिकार या शेयर्स के ट्रांसफर और बिक्री पर लगाए जाने वाला ट्रांसफर चार्ज.
किसी सदस्य द्वारा फ्लैट में शेयर और अधिकार की बिक्री के वक्त सोसाइटी ट्रांसफर प्रीमियम के भुगतान पर जोर देती हैं, जिसकी रेंज 25000 रुपये से लेकर फ्लैट की बिक्री के लिए खरीद विचार का एक प्रतिशत भी होता है.
ट्रांसफर चार्ज: कानून के मुताबिक अधिकतम अनुमेय राशि
फ्लैट का मालिक और खरीदार, जिन्हें सोसाइटी से सहयोग की जरूरत है ताकि वे शेयर सर्टिफिकेट पर खरीदार के नाम को बदल सकें. लेकिन उनके पास सोसाइटी की डिमांड से सावधान रहने के सिवाय कोई चारा नहीं बचता. सवाल है कि क्या कानून किसी सोसाइटी को हद से ज्यादा ट्रांसफर शुल्क लगाने की इजाजत है.
इसका जवाब महाराष्ट्र कॉपरेटिव सोसाइटी एक्ट, 1960 के तहत बनाई गई 2013 मॉडल सोसाइटी के बाय लॉ नंबर 38 में मिलता है. इसमें 9 अगस्त 2001 का एक सर्कुलर है, जिसे महाराष्ट्र सरकार ने जारी किया था. बाय लॉ नंबर 38 और 9 अगस्त 2001 का सर्कुलर साफ तौर पर कहता है कि फ्लैट्स के ट्रांसफर के लिए जो प्रीमियम सोसाइटी ने फिक्स किया है, वह 25 हजार से ज्यादा नहीं हो सकता.
लोग ऊपर बताए गए ट्रांसफर चार्जेज पर ही ना थम जाएं इसलिए कई सोसाइटीज अकसर फ्लैट खरीदारों/मालिकों से ‘स्वैच्छिक डोनेशन’ के जरिए रकम की मांग करते हैं. हालांकि बाय लॉ नंबर 38 एक कदम आगे बढ़कर इस बात को भी कवर करता है कि किसी फंड या डोनेशन में कोई अतिरिक्त राशि नहीं देनी चाहिए. अगर दिया गया है तो उसे ट्रांसफर करने वाले और हस्तांतरी से वसूला जाना चाहिए.
ट्रांसफर चार्जेज से जुड़े कानूनी फैसले
एक सोसायटी की ओर से मांगे गए ट्रांसफर चार्ज के भुगतान की वैधता के मामले पिछले कुछ वर्षों में कई मौकों पर अदालतों के सामने आए हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारतीय भवन कॉपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड और अन्य बनाम कृष्ण एच बजाज और अन्य (2004 की रिट याचिका संख्या 1094, जिस पर 17 फरवरी, 2010 को फैसला लिया गया था) के मामले में सोसाइटी को अपील फाइल करने की इजाजत दी थी, जिसमें फ्लैट खरीदने वाले को स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से फ्लैट की बिक्री के समय सोसायटी को भुगतान की गई 9,63,000 रुपये की राशि का रिफंड हासिल करने से रोक दिया गया था. अपील की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट में फ्लैट खरीदार ने कहा कि स्वैच्छिक योगदान कुछ और नहीं बल्कि ट्रांसफर चार्ज थे, जो सोसाइटी ने मांगे थे और फ्लैट के मालिक के सामने उसे चुकाने के अलावा कोई और चारा नहीं था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में यह माना कि कानूनी स्थिति को जानते हुए, फ्लैट मालिक ने स्वैच्छिक योगदान के नाम पर 9,63,000 रुपये बतौर ट्रांसफर चार्ज सोसाइटी को दिया.
इस फैसले से दुखी होकर फ्लैट के मालिक ने सुप्रीम कोर्ट में एक स्पेशल लीव पिटिशन (एसएलपी नंबर ऑफ 2010, जिस पर फैसला 9 नवंबर 2011 को आया था) दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह हाई कोर्ट द्वारा इस मामले में दिए गए फैसले के कारणों से पूरी तरह सहमत नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला नहीं पलटा. वो इसलिए क्योंकि फ्लैट खरीदार ने ट्रांसफर चार्ज की राशि को तय करने में सोसाइटी द्वारा पारित प्रस्ताव को चुनौती नहीं दी थी. इसके अलावा फ्लैट खरीदार ने हाई कोर्ट के चुनौती दी, वो भी स्वैच्छिक योगदान के भुगतान के दो साल बाद.
हालांकि ट्रांसफर चार्ज का मामला उस खत्म हो गया, जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने अलंकार सहकारी गृह रचना संस्था मर्यादित बनाम अतुल महादेव और अन्य (रिट पिटिशन नंबर 4457 2014, जिस पर 6 अगस्त 2018 को फैसला आया था) के मामले में फैसला दिया और बॉम्बे हाई कोर्ट के ही कृष्णा एच बजाज मामले में दिए गए फैसले पर असहमति जताई. कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि ट्रांसफर चार्ज के भुगतान के लेन-देन को चुनौती देने के लिए तत्काल कदम उठाने वाले फ्लैट खरीदार को देखते हुए, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि यह एक स्वैच्छिक योगदान था, बल्कि मजबूरी में भुगतान की गई ट्रांसफर फीस थी.
अलंकार सहकारी मामले में, सोसाइटी द्वारा अपनाए गए बाय लॉ के प्रावधानों और 9 अगस्त 2011 के सर्कुलर पर भरोसा करते हुए, बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि ट्रांसफर फीस पर 25 हजार रुपये की सीमा है और सोसाइटीज ऐसे विभिन्न तरीके ईजाद कर रही हैं ताकि वे कानूनी रूप से अभेद्य साधनों के जरिए अधिक से अधिक पैसा कमा सकें.
इसके अलावा, बॉम्बे हाई कोर्ट ने अलंकार सहकारी मामले को ऐसी स्थिति बताया, जहां फ्लैट खरीद आसान लेनदेन और अपने नाम पर शेयर सर्टिफिकेट का ट्रांसफर चाहता था लेकिन सोसाइटी यहां हावी थी. ऐसी परिस्थितियों में, सोसाइटी ने ‘स्वैच्छिक योगदान’ की आड़ में फ्लैट खरीदार से बकाया राशि के भुगतान की मांग की.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि जिसकी इजाजत दी गई है, एक सोसायटी सिर्फ कानूनी तौर पर वही शुल्क वसूल सकती है और सदस्यों से ही मुनाफाखोरी करने की उम्मीद नहीं है. हालांकि किसी सोसायटी को दान देने पर कोई रोक नहीं है, इसे बिना किसी मजबूरी या जबरदस्ती के किया जाना चाहिए और किसी भी तरह से सोसायटी दान के बहाने ज्यादा ट्रांसफर फीस नहीं ले सकती.
प्रॉपर्टी ट्रांसफर पर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला
अलंकार सहकारी मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले से किसी भी फ्लैट मालिक या खरीदार के लिए सोसाइटी द्वारा मांगे गए ट्रांसफर चार्ज को चुनौती देने की एक नींव तैयार हुई, चाहे उसे स्वैच्छिक योगदान का नाम दिया गया हो या फिर कुछ और.
हालांकि कानूनी सहारा और कानून को काफी हद तक सुलझा लिया गया है, लेकिन जो सवाल बना हुआ है, वह यह है कि क्या एक फ्लैट खरीदने वाला एक ऐसी सोसाइटी के साथ तीखा मुकदमा शुरू करने के लिए तैयार है, जहां उसे भविष्य में रहने की उम्मीद है. लेकिन ऐसी सोसाइटीज, जहां वर्तमान में ट्रांसफर प्रीमियम को बतौर स्वैच्छिक डोनेशन के तौर पर लगाने को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं है, वहां सदस्य ऐसा कोई भी प्रस्ताव पास करने का विरोध कर सकते हैं क्योंकि यह कानून की भावना के विरुद्ध है. अगर सदस्य सही समय पर आवाज उठाएंगे तो ऐसे काम रोके जा सकते हैं.
क्या कॉपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को भंग किया जा सकता है?
साल 2020 में महाराष्ट्र में डिप्टी डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार ने कटराज (पुणे) में कॉपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के पूरे परिषद को भंग कर दिया था. घर खरीदार के नाम पर एनओसी ट्रांसफर करने के मामले को लेकर बोर्ड ने एक प्रस्ताव पास किया था, जिसमें इसके लिए 1.25 लाख रुपये बतौर सोसाइटी चार्ज लगाने की बात कही गई थी.
जैसा कि कॉपरेटिव सोसाइटीज एक्ट में लिखा है कि ट्रांसफर के लिए राशि सिर्फ 25 हजार रुपये है. बोर्ड ने नियमों का उल्लंघन किया और उसे भंग कर दिया गया. इसके अलावा डिप्टी रजिस्ट्रार ने सोसाइटी के सारे डायरेक्टर्स पर अगले 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इससे यह बात तो साफ जाहिर होती है कि अत्यधिक ट्रांसफर फीस चार्ज करना अवैध और दंडनीय है.
ध्यान दें:
-सोसाइटी फ्लैट की बुकिंग वैल्यू और ट्रांसफर करने वाले को फ्लैट के ट्रांसफर पर मिलने वाली कीमत या अधिकतम 25,000 रुपये, जो भी कम हो, के बीच के अंतर के 2.5% पर शुल्क वसूल सकती है.
-कॉपरेटिव सोसाइटी एक्ट का सेक्शन 79 कहता है कि ट्रांसफर चार्ज की प्रीमियम राशि 25,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए.
-यूं तो ट्रांसफर चार्ज 25 हजार रुपये से ज्यादा नहीं हो सकता लेकिन अगर संस्था चाहे तो इसमें कमी कर सकती है.
-प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली मैनेजिंग कमेटी को अयोग्य ठहराने वाला आदेश 10 अगस्त 2019 को पास हुआ था.
ट्रांसफर चार्जेज के लिए न्यूनतम प्रीमियम रेट्स
जोन | प्रीमियम की दर |
नगर निगम और प्राधिकरण क्षेत्र | Rs 25,000 |
A क्लास म्युनिसिपालिटी | Rs 20,000 |
B क्लास म्युनिसिपालिटी | Rs 15,000 |
C क्लास म्युनिसिपालिटी | Rs 10,000 |
ग्राम पंचायत (ग्रामीण इलाका) | Rs 5,000 |
क्या बिल्डर द्वारा ट्रांसफर चार्ज कानूनी है?
अगर प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है तो हाउसिंग सोसाइटी और सर्विस सोसायटी द्वारा लगाए गए ट्रांसफर चार्ज कानूनी हैं. एक बिल्डर फ्लैट मालिक पर ट्रांसफर चार्ज नहीं लगा सकता है. हालांकि आपने कुछ बेईमान बिल्डर्स के बारे में सुना होगा, जो ट्रांसफर चार्ज मांगते हैं. बिल्डर्स के खिलाफ शिकायतें ऐसी स्थितियों में तब आती हैं, जब खरीदार एनओसी के लिए बिल्डर से संपर्क करता है और बिल्डर घर खरीदार से चालाकी करते हुए अपना प्रभाव दिखाता है. हालांकि इन वजहों से यह कानूनी नहीं है.
1. यह ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट 1882, के खिलाफ है, जो कहता है कि प्रॉपर्टी का ट्रांसफर हस्तांतरिती को चलता रहता है, सभी हित जो संपत्ति सौंपने वाले के प्रॉपर्टी में और उसके बाद कानूनी घटनाओं में पारित करने में सक्षम है.
-यह इंडियन कॉन्ट्रैक्ट अधिनियम, 1872 के विरोध में है क्योंकि यह संपत्ति पर खरीदार के स्वामित्व अधिकारों का उल्लंघन करता है.
-कॉपरेटिव सोसाइटी द्वारा चार्ज की गई ट्रांसफर फीस के ये विपरीत है. कॉपरेटिव सोसाइटी इमारत और जमीन की कानूनी मालिक है जबकि खरीदार शेयरहोल्डर है. बिल्डर के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है.
-खरीदारों को यह देखना होगा कि क्या ऐसे डेवलपर्स जो कहते हैं कि वे कॉपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की ओर से ट्रांसफर चार्ज ले रहे हैं, वास्तव में सबसे पहले सोसाइटी के गठन में बाधा डालने की कोशिश कर सकते हैं.
-एक बिल्डर जो घर खरीदारों को धोखा देने और ट्रांसफर चार्ज का भुगतान करने के लिए कह रहा है, उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 384 और 385 के तहत दंडित किया जा सकता है. यह 2007 के कॉम्पिटिशन एक्ट के तहत मना है, साथ ही इसे ‘ताकत का दुरुपयोग’ कहा जाता है.
(खेतान एंड कंपनी, मुंबई में हर्ष पारिख पार्टनर और ऋषभ वोरा सीनियर असोसिएट हैं)
लेखकों के इस आर्टिकल में विचार निजी हैं और उन्हें खेतान एंड कंपनी की कानूनी/पेशेवर राय न समझा जाए.
पूछे जाने वाले सवाल
आमतौर पर ग्राहक ही सोसाइटी ट्रांसफर चार्ज चुकाता है.
किसी सदस्य द्वारा फ्लैट में शेयर या अधिकार बेचे जाने के समय सोसाइटी ट्रांसफर प्रीमियम की मांग करती है. सोसाइटी का ट्रांसफर चार्ज कौन देता है खरीदार या विक्रेता?
सोसाइटी ट्रांसफर चार्ज क्या होते हैं?