जानिए जीएसटी में क्या है रिवर्स चार्ज मिकैनिजम और कंस्ट्रक्शन की लागत पर इसका असर

जीएसटी में रिवर्स चार्ज मिकैनिजम, उस स्थिति को कहते हैं जब सप्लायर की जगह सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाला शख्स टैक्स चुकाता है। आज हम आपको बता रहे हैं कि जीएसटी में यह कैसे लागू होता है और इसका प्रॉपर्टी की कीमतों पर क्या असर होता है।
मौजूदा सर्विस टैक्स कानूनों में सर्विसेज का सप्लायर अपने क्लाइंट्स या कस्टमर्स से सर्विस टैक्स लेता है और उसे सरकार के पास जमा कराता है। लेकिन एेसे कई मामले हैं, जहां सर्विस का इस्तेमाल करने वाले शख्स को सर्विस टैक्स चुकाना पड़ता है। जिस प्रक्रिया में पाने (Recipient) वाले को सर्विस टैक्स चुकाना पड़ता है, उसे रिवर्स चार्ज मिकैनिजम (आरसीएम) कहते हैं। यही कॉन्सेप्ट, बड़े स्तर पर सर्विस टैक्स कानूनों से गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) में लिया गया है।

सर्विस टैक्स रेग्युलेशंस के तहत रिवर्स चार्ज मिकैनिजम:

सर्विस टैक्स सिस्टम के तहत, बिल्डर को इस्तेमाल की जाने वाली कुछ सर्विसेज पर टैक्स चुकाना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर इन सर्विसेज में सामान ट्रांसपोर्ट करने वाली एजेंसी शामिल होती हैं, जहां डिवेलपर को भुगतान किए गए ट्रांसपोर्ट चार्जेज के संबंध में सर्विस टैक्स का भुगतान करना होगा। इसी तरह किसी व्यक्ति या कानूनी मामलों के लिए वकीलों की कंपनी से सर्विसेज लेने पर बिल्डर को सर्विस टैक्स चुकाना पड़ेगा। साथ ही बिल्डर को सिक्योरिटी सर्विसेज से मिले लोगों पर भी पर सर्विस टैक्स देना होगा। अगर डिवेलपर अपना काम किसी अन्य शख्स को आउटसोर्स करता है तो बिल्डर को ही एेसे वर्क कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए आंशिक तौर पर भुगतान करना पड़ेगा।
सर्विस टैक्स सिस्टम के तहत एेसी दो श्रेणियां हैं, जिन पर रिवर्स चार्ज मिकैनिजम अप्लाई होता है। कुछ सर्विसेज पर बिल्डर को 100 प्रतिशत सर्विस टैक्स चुकाना पड़ता है, जबकि कुछ पर थोड़ा ही। बाकी बैलेंस सर्विस प्रोवाइडर द्वारा भुगतान किया जाता है। आरसीएम के तहत सर्विस टैक्स का भुगतान कैश या बैंक पेमेंट के जरिए किया जा सकता है और देयता को डिवेलपर को उपलब्ध सेनवैट (इनपुट टैक्स क्रेडिट) में डेबिट के जरिए डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता। लेकिन आरसीएम के तहत चुकाए गए सर्विस टैक्स का डिवेलपर बतौर इनपुट टैक्स क्रेडिट फायदा उठा जा सकता है।

जीएसटी सिस्टम के तहत रिवर्स चार्ज मिकैनिजम कैसे काम करेगा?

जो सर्विस जीएसटी के तहत आती हैं, उन्हें जीएसटी काउंसिल ने नोटिफाई कर दिया है। ये सर्विसेज उन्हीं बातों पर हैं, जो पहले सर्विस टैक्स सिस्टम के आधीन थीं। अगर बिल्डर ने नॉन टैक्सेबल एरिया में रहने वाले किसी शख्स से, सामान ट्रांसपोर्ट करने की सर्विस देने वाले या लीगल सर्विस देने वाले से सुविधाएं ली हैं तो उसे उन पर जीएसटी चुकाना होगा। सरकार या स्थानीय प्रशासन द्वारा मुहैया कराई गई म्युनिसिपल जैसी सुविधाएं लेने पर डिवेलपर को रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के तहत बिल्डर को जीएसटी चुकाना पड़ेगा।
फिर भी, सरकार द्वारा दी जाने वाली कुछ सेवाएं, जैसे परिसर किराए पर लेना, डाक विभाग द्वारा दी जाने वाली खास सेवाएं, रेलवे द्वारा माल ढुलाई या स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग सर्विस टैक्स सिस्टम की तरह जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।
पुराने सर्विस टैक्स प्रावधान की तुलना में जीएसटी कानूनों में कई विचलन हैं। रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के तहत अगर कोई शख्स (जो जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड है) किसी एेसे व्यक्ति से सामान लेता है, जो जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड नहीं है तो भी उसे सभी सर्विसेज एंड गु्ड्स पर जीएसटी चुकाना होगा।
इसने टैक्स के तहत आने वाले सभी लोगों के लिए रिवर्स चार्ज मिकैनिजम के दायरे में काफी विस्तार किया है और इससे डिवेलपर्स पर उलटा असर पड़ेगा। सर्विस टैक्स कानून के तहत प्राप्तकर्ता को कुछ सर्विसेज पर ही सर्विस टैक्स चुकाना पड़ता है। रिवर्स चार्ज मिकैनिजम उन सर्विसेज को कवर नहीं करता, जो एेसे शख्स से ली जाती हैं, जो सर्विस टैक्स के नियमों के तहत रजिस्टर्ड नहीं हैं। क्योंकि उसकी सर्विसेज की कुल वैल्यू 10 लाख की मूल सीमा को पार नहीं कर रही है। जीएसटी के तहत सीमा 20 लाख कर दी गई है।
इसलिए पहले जब बिल्डर किसी प्रोफेशनल जैसे आर्किटेक्ट या स्ट्रक्चर इंजीनियर की मदद लेता था, जो सर्विस टैक्स के कानूनों के अधीन रजिस्टर्ड नहीं थे, तब दोनों पक्षों को कोई सर्विस टैक्स चुकाना नहीं पड़ता था। लेकिन जीएसटी कानूनों के तहत, अगर बिल्डर एेसे लोगों से सर्विसेज लेता है, जो उसके तहत रजिस्टर्ड भी नहीं हैं, तब भी उसे जीएसटी चुकाना होगा। यह उस सीमा तक बिल्डरों द्वारा किए गए खर्च में इजाफा करेगा। इसके अलावा जीएसटी के तहत रिवर्स चार्ज सिस्टम के तहत चुकाए जाने वाला टैक्स बिल्डर जीएसटी के मिलने वाले इनपुट क्रेडिट के साथ एडजस्ट नहीं कर सकता। लेकिन कैश या बैंक पेमेंट के जरिए चुका सकता है।
इसलिए जीएसटी के तहत बिल्डरों पर दोहरी मार पड़ेगी। पहला उन्हें गैर-पंजीकृत लोगों से मिलने वाली सर्विस पर जीएसटी देना होगा। दूसरा गैर पंजीकृत सप्लायर्स से मिलने वाले सामान पर रिवर्स टैक्स देना होगा। जीएसटी काउंसिल ने एक राज्य से दूसरे राज्य में माल सप्लाई कने वाले सप्लायर्स को राहत भी दी है। अगर सामान की सप्लाई की कीमत एक दिन में 5000 रुपये को पार नहीं करती तो रिवर्स चार्ज मिकैनिजम लागू नहीं होगा।
इसलिए यह साफ है कि जीएसटी के तहत रिवर्स चार्ज मिकैनिजम का नया अवतार पुराने से काफी बड़ा है। यह निश्चित तौर पर बिल्डरों के लिए लागत में इजाफा करेगा, खासकर उन छोटे बिल्डर्स के लिए जो गुड्स एंड सर्विसेज गैर-पंजीकृत सप्लायर्स से लेते हैं और टैक्स की लागत उस हद तक वहन नहीं कर रहे थे।

 

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