1 मई, 2024: कर्नाटक उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) ने फैसला सुनाया है कि एक पंजीकृत निपटान विलेख (सेटलमेंट डीड) को किसी एक पार्टी की इच्छा पर रद्द नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के विलेख को रद्द करने के लिए कोई भी सिविल अदालतों से संपर्क कर सकता है, जिन्हे भारतीय कानून इन मामलों में रहत प्रदान करने का अधिकार दे रखा है।
न्यायमूर्ति एच पी संदेश ने अपने 19 अप्रैल 2024 के एक आदेश में कहा, “केवल एक अदालत ही विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 31 के प्रावधानों में उल्लिखित परिस्थितियों के तहत विधिवत निष्पादित विलेख (सेटलमेंट डीड) को रद्द कर सकती है।”
यहाँ बता दें की एक निपटान विलेख (सेटलमेंट डीड) एक कानूनी कागज़ है, जिसके उपयोग से एक परिवार के सदस्य अक्सर संपत्ति का बंटवारा करते हैं।
एक निपटान विलेख का उपयोग करके, एक परिवार के सदस्य स्पष्ट रूप से एक संपत्ति को आपस में विभाजित कर सकते हैं, जिससे स्वामित्व पर भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है और आगे चल कर विवाद होने का कोई स्कोप नहीं रहता। सेटलमेंट डीड का उपयोग परिवार के किसी गैर-सदस्य को संपत्ति में अपना हिस्सा उपहार में देने के लिए भी किया जा सकता है।
“विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 31 बहुत स्पष्ट है कि व्यक्ति के पास उक्त उपकरण को रद्द करने के लिए सक्षम सिविल कोर्ट से संपर्क करने का साधन है | कानून ऐसे उपकरणों को रद्द करने का प्रावधान करता है, और इसे एकतरफा रद्द नहीं किया जा सकता है,” उच्च न्यायालय ने दुग्गती मातादा नागराज बनाम दनप्पा और अन्य मामले में अपना आदेश देते हुए कहा।