सभी प्रकार की आय की तरह, व्यापार गतिविधियों के माध्यम से हुए मुनाफे पर भारत में आयकर कानूनों के तहत टैक्स लगाया जाता है. जैसा कि बाकी आय के बारे में सच है, टैक्स कम करने के लिए एक टैक्सपेयर कई तरह की छूट हासिल कर सकता है. हालांकि रिहायशी संपत्ति के उलट, बिजनेस से होने वाली इनकम का इलाज कुछ दूसरी तरह से किया जाता है. इस तरह से कमाए पैसों पर लगाए गए टैक्स की दर के बारे में भी यही सच है.
जहां तक बात बिजनेस के लिए इस्तेमाल होने वाली परिसंपत्तियों की है, टैक्सपेयर्स को ऐसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण की लागत पर डेप्रिशिएशन (विमूल्यन) का दावा करने की इजाजत होती है. ‘ब्लॉक ऑफ असेट्स‘ के कॉन्सेप्ट के आधार पर इस तरह की प्रॉपर्टी के लिए आयकर कानून के तहत डेप्रिशिएशन की इजाजत है. अलग-अलग वर्ग/ प्रकार की संपत्तियां हैं, जैसे जिन्हें छुआ जा सकता है और जिन्हें नहीं छुआ जा सकता. छूने योग्य वर्ग में प्लांट और मशीनरी, इमारत, फर्नीचर और फिक्सचर्स, आदि संपत्तियों की विभिन्न श्रेणियां हैं.
टैक्सेशन के मकसद से, वो सारी परिसंपत्तियां जो एक ही वर्ग में आती हैं और जिसके लिए डेप्रिशिएशन की एक ही दर निर्धारित की गई है, वो परिसंपत्तियों का एक खंड यानी ब्लॉक बनाते हैं.
विमूल्यन संपत्ति पर कैपिटल गेन्स
आयकर अधिनियम के सेक्शन 50 के तहत, अगर आपने परिसंपत्तियों का एक ब्लॉक बनाकर कैपिटल असेट को बेचा है, जिसमें बिल्डिंग और मशीनरी शामिल है, जिस पर कानून के तहत डेप्रिशिएशन की इजाजत है, तो उस बिक्री से हुई आय को शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा.
पढ़ने वाले को यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि जमीन कोई विमूल्यन (डेप्रिशिएबल) परिसंपत्ति (असेट) नहीं है और इसलिए वह विमूल्यन की दरों की गैरमौजूदगी में परिसंपत्तियों के ब्लॉक का हिस्सा नहीं बन सकती. लिहाजा, जमीन की बिक्री के मामले में धारा 50 के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता. अगर जमीन पर 24 महीने से ज्यादा समय से कब्जा है तो लेनदेन से हुए मुनाफे पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के तहत टैक्स लगाया जाएगा.
किसी परिसंपत्ति के ब्लॉक में बिजनेस प्रॉपर्टी की बिक्री से हुए मुनाफे या नुकसान की कैलकुलेशन
नियमित अकाउंटिंग से उलट, जहां डेप्रिशिएन की कैलकुलेशन हर प्रॉपर्टी की लागत या लिखी हुई कीमत के संदर्भ में की जाती है, प्रॉपर्टी के एक खास ब्लॉक के लिए डेप्रिशिएशन की गणना समग्र तरीके से की जाती है. साल की शुरुआत में ब्लॉक की लिखित कीमत के नीचे और साल के दौरान बेची गई एक या अधिक संपत्तियों के बिक्री मूल्य को कम करके अगर किसी एक खास ब्लॉक में एक से ज्यादा परिसंपत्तियां हैं तो डेप्रिशिएशन की गणना उस कीमत पर की जाती है जो साल के दौरान खरीदी गई संपत्तियों के अधिग्रहण की लागत को जोड़ने के बाद आती है और परिसंपत्तियों के उसी ब्लॉक के तहत आती है.
यदि कैलकुलेट की गई प्रॉपर्टी की कीमत एक सकारात्मक आंकड़ा है तब ही डेप्रिशिएशन स्वीकार्य होगा. अगर ऊपर बताई गई कैलकुलेशन नकारात्मक आंकड़े के रूप में है, तो इसे कैपिटल गेन्स के तौर पर माना जाएगा. उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि ऑफिस कॉम्प्लेक्स की परिसंपत्तियों के एक ब्लॉक के ओपनिंग बैलेंस की कीमत, जिसमें एक से अधिक ऑफिस शामिल हैं, 50 लाख रुपये है. अगर कोई बिजनेसमैन एक या एक से अधिक कार्यालयों के लिए एक करोड़ रुपये का निपटान करता है, तो यह परिसंपत्तियों के ब्लॉक की वैल्यू को –50 लाख रुपये बना देता है. क्योंकि डेप्रिशिएशन की वैल्यू की कैलकुलेशन नकारात्मक आंकड़े के रूप में नहीं की जा सकती इसलिए सरप्लस की 50 लाख रुपये की राशि को कैपिटल गेन्स मान लिया जाएगा. अगर कोई एक परिसंपत्ति, जिस पर डेप्रिशिएशन की इजाजत है, उसे आयकर के उद्देश्य के लिए ब्लॉक के तौर पर माना जाएगा.
बिजनेस प्रॉपर्टी की बिक्री से मुनाफे पर होल्डिंग अवधि का प्रभाव
आम स्थितियों में, संपत्ति की बिक्री से हुए 50 लाख रुपये के सरप्लस पर करदेयता, उस अवधि पर निर्भर करेगी, जिसके लिए संपत्ति रखी गई थी. ऑफिस/रिहायशी परिसर को बेचने से हुए मुनाफे, जिनका इस्तेमाल बिजनेस के लिए नहीं बल्कि उन्हें किराये पर दिया गया है, उन पर कोई भी डेप्रिशिएशन क्लेम नहीं किया जा सकता. अगर इसे 24 महीने से ज्यादा समय तक रखा गया है तो उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स कहा जाएगा. हालांकि अपने बिजनेस में टैक्सपेयर द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली परिसंपत्तियों के लिए, किसी विशेष वर्ग की परिसंपत्तियों के ब्लॉक से मिलने वाला फायदा नेगेटिव हो जाता है तो आयकर अधिनियम के सेक्शन 50 के तहत शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स कहा जाएगा. संपत्तियों पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर 20 प्रतिशत की एक फ्लैट दर से टैक्स लगाया जाता है, जबकि संपत्तियों पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स पर लागू स्लैब दर के हिसाब से टैक्स लगाया जाएगा.
अगर किसी खास प्रॉपर्टी को शॉर्ट टर्म कैपिटल असेट के रूप में माना जाता है, तो दो परिणाम होते हैं:
1. इंडेक्सेशन का फायदा उठाकर टैक्सपेयर अधिग्रहण की लागत बढ़ाने का फायदा लेने का अधिकार खो देता है.
2.टैक्सपेयर ऐसे सरप्लस पर 20 प्रतिशत की दर से टैक्स का भुगतान करने का फायदा खो देता है और उसे बिना इंडेक्सेशन के फायदे के इस तरह के मुनाफे पर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स का भुगतान करना होगा.
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 54 बनाम सेक्शन 50
आमतौर पर, जिन प्रॉपर्टीज को 24 महीने से ज्यादा समय तक रखा जाता है, उनसे हुए मुनाफे पर आपको कई तरह की छूट मिलती हैं. अगर आप धारा 54 या 54 एफ के तहत किसी अन्य आवासीय घर में निवेश करते हैं, तो इस पर निर्भर करता है कि आपने आवासीय घर बेचा है या कोई अन्य पूंजीगत संपत्ति.
वैकल्पिक रूप से, आप लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स से छूट का फायदा उठाने के लिए, सेक्शन 54EC के तहत खास फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन्स के बॉन्ड में कैपिटल गेन्स का निवेश कर सकते हैं.
हालांकि, सेक्शन 50 के प्रावधान डेप्रिशिएबल बिजनेस असेट की बिक्री से मिले सरप्लस को शॉर्ट टर्म गेन्स के तौर पर मानता है और इस तरह 20 प्रतिशत के इंडेक्सेशन या रियायती कर दर के फायदे के पात्र नहीं है. जबकि घर या कैपिटल गेन्स बॉन्ड में निवेश करके छूट के फायदा का दावा करने वाले टैक्सपेयर्स पर कोई स्पष्ट रोक नहीं है, लेकिन आयकर अधिनियम के सेक्शन 50 के मुताबिक आयकर अधिकारी करदाताओं को इस शर्त पर छूट से इनकार कर रहे हैं कि ये फायदे केवल लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के लिए मौजूद हैं और असेट्स के ब्लॉक पर सरप्लस को शॉर्ट टर्म गेन्स के तौर पर माना जाएगा.
कैपिटल गेन्स से छूट का दावा करने पर इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल के फायदे
जया दीपक भावनानी के मामले में मुंबई के इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल के सामने हाल ही में एक ही मुद्दा उठाया गया था, जहां टैक्सपेयर ने एक संपत्ति बेची थी, जिस पर डेप्रिशिएशन का दावा किया गया था. टैक्स चुकाने वाले के पास ब्लॉक में केवल एक परिसंपत्ति थी, जो परिसंपत्ति की लिखित कीमत से ज्यादा कीमत पर बेची गई थी, जिसके परिणामस्वरूप प्रॉपर्टी का ब्लॉक नेगेटिव हो गया.
टैक्सपेयर ने आवासीय मकान खरीदने के लिए धारा 54 एफ के तहत पूरी बिक्री आय का निवेश किया था और 54 एफ के तहत छूट का दावा किया था. मूल्यांकन अधिकारी ने टैक्सपेयर को छूट देने के दावे को अस्वीकार कर दिया लेकिन अपील आयुक्त (सीआईटी (ए)) ने दावा करने की अनुमति दे दी. आयकर विभाग ने अपील आयुक्त की ओर से छूट की इजाजत को ट्रिब्यूनल के सामने चुनौती दी.
केस पर सुनवाई करते हुए इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल ने मुंबई हाई कोर्ट के फैसले की राह पकड़ी. CIT v/ s ACE बिल्डर्स (प्रा) लिमिटेड के मामले में, जहां बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि धारा 50 का प्रावधान केवल व्यावसायिक संपत्ति पर होने वाले मुनाफे को शॉर्ट टर्म करार देता है, लेकिन साथ ही यह भी प्रावधान नहीं करता है कि होल्डिंग अवधि को भी समझा जाएगा, ताकि ऐसी संपत्ति को अल्पकालिक बनाया जा सके. इसलिए ट्रिब्यूनल ने माना कि अगर बेची गई प्रॉपर्टी का होल्डिंग पीरियड 36 महीने (अब 24 महीने) है क्योंकि सेक्शन 54एफ बेची जा रही संपत्ति की होल्डिंग अवधि के आधार पर छूट देता है तो यह छूट सिर्फ इसलिए वर्जित नहीं है क्योंकि कुछ निस्तारण प्रावधान इस तरह के मुनाफे को अल्पकालिक मानते हैं.
लिहाजा, भले ही डेप्रिशिएबल असेट्स की बिक्री से हुए मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स माना जाता है, तब भी एक निर्धारिती अभी भी लॉन्ग टर्म कैपिटल असेट्स के लिए उपलब्ध छूट का दावा करने का हकदार होगा. अचल संपत्ति के मामले में यह 24 महीने होगा और अन्य परिसंपत्तियों के मामले में 36 महीने.
(लेखक को टैक्स और इन्वेस्टमेंट में 35 साल का अनुभव है)